हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 157 ☆ नवरात्रि विशेष – नौ संकल्प ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

सोमवार, 26 सितम्बर से नवरात्र साधना आरम्भ होगी।

इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे।

अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे।

मंगल भव। 💥

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

☆  संजय उवाच # 157 ☆ नवरात्रि विशेष – नौ संकल्प ?

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:

भारतीय संस्कृति नारी को पूजनीय मानती रही है। यही कारण है कि नवरात्रि एवं अन्यान्य पर्व-त्योहारों में कुमारिका एवं विवाहिता का पूजन-सम्मान होता रहा है। तथापि इस सत्य से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि कालांतर में स्त्री को शरीर की परिधि तक सीमित कर दिया गया। इस परिधि को तोड़ कर बाहर आने का स्त्री का संघर्ष अनवरत जारी है। इन पंक्तियों के लेखक की ‘वह’ शृंखला की एक कविता में यह संघर्ष कुछ यूँ अभिव्यक्त हुआ है-

वह जानती है

बोलते  ही ‘देह’,

हर आँख में उभरता है

उसका ही आकार,

इस आकार को, मनुष्य

सिद्ध करने के मिशन में

सदियों से जुटी है वह !

वस्तुत: स्त्री के इस मिशन को सफल करने की दृष्टि से नवरात्रि अर्थात शक्तिपर्व महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। कल से आरंभ हो रहे इस पर्व में शास्त्रोक्त एवं परंपरागत पद्धति से उपासना अवश्य करें। अनुरोध है कि साथ ही निम्नलिखित नौ संकल्पों की सिद्धि का व्रत भी ले सकें तो निश्चय ही दैवीय आनंद की प्राप्ति होगी।

  1. अपने बेटे में बचपन से ही स्त्री का सम्मान करने का संस्कार डालना देवी की उपासना है।
  2. घर में उपस्थित माँ, बहन, पत्नी, बेटी के प्रति आदरभाव देवी की उपासना है।
  3. दहेज की मांग रखनेवाले घर और वर तथा घरेलू हिंसा के अपराधी का सामाजिक बहिष्कार करना देवी की उपासना है।
  4. स्त्री-पुरुष, सृष्टि के लिए अनिवार्य पूरक तत्व हैं। पूरक न्यून या अधिक, छोटा या बड़ा नहीं अपितु समान होता है। पूरकता के सनातन तत्व को अंगीकार करना देवी की उपासना है।
  5. स्त्री को केवल देह मानने की मानसिकता वाले मनोरुग्णों की समुचित चिकित्सा करना / कराना भी देवी की उपासना है।
  6. हर बेटी किसीकी बहू और हर बहू किसीकी बेटी है। इस अद्वैत का दर्शन देवी की उपासना है।
  7. किसीके देहांत से कोई जीवित व्यक्ति शुभ या अशुभ नहीं होता। मंगल कामों में विधवा स्त्री को शामिल नहीं करना सबसे बड़ा अमंगल है। इस अमंगल को मंगल करना देवी की उपासना है।
  8. गृहिणी 24 क्ष 7 अर्थात पूर्णकालिक सेवाकार्य है। इस अखंड सेवा का सम्मान करना तथा घर के कामकाज में स्त्री का बराबरी से या अपेक्षाकृत अधिक हाथ बँटाना, देवी की उपासना है।
  9. स्त्री प्रकृति के विभिन्न रंगों का समुच्चय है। इन रंगों की विविध छटाओं के विकास में स्त्री के सहयोगी की भूमिका का निर्वहन, देवी की उपासना है।

या देवि सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

💐 शारदीय नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाएँ 💐

© संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी   ☆  ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 110 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 110 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 110) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 110 ?

देखी जो नब्ज मेरी नासाज़

हँस  कर  बोला हकीम,

जा कर दीदार उसका जो

तेरे हर मर्ज की दवा है..!

Saw my pulse, when unwell

Said the Hakim, laughingly

Go to him who’s is medicine

for your each n every ailment..!

☆☆☆☆☆

काश सीख पाते हम भी

मीठा झूठ बोलने का हुनर…

कडवे सच ने तो ना जाने

कितने लोग हमसे छिन लिए…!

Wish I could also learn the

art of telling sweet lies…

Not sure how many people the

bitter truth has snatched from me…!

☆☆☆☆☆

चल उठ ना, ऐ मेरे दिन

चल फिर से मुस्कुराते हैं,

फिर एक नया ज़ख्म खाते हैं

और हँस के भूल जाते हैं…

O’ my heart! Let’s get up,

and smile again, today…

Let’s get a new wound

and forget it by laughingh…!

☆☆☆☆☆

तकलीफ तो हमें…

हकीकत ने दी है,

ख्वाब तो…

आज भी खूबसूरत हैं…!

Reality only has

given me pain,

Dreams are beautiful

even today…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 109 ☆ अरण्य वाणी… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित अरण्य वाणी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 109 ☆ 

अरण्य वाणी… ☆

*

मनुज पुलक; सुन अरण्य वाणी

जीवन मधुवन बन जाएगा

कंकर शंकर बन गाएगा

श्वास-आस होगी कल्याणी

*

भुज भेंटे आलोक तिमिर से

बारी-बारी आए-जाए

शयन-जागरण चक्र चलाए

सीख समन्वय गिरि-निर्झर से

*

टिट्-टिट् करती विहँस टिटहरी

कुट-कुट कुतरे सुफल गिलहरी

गरज करे वनराज अफसरी

*

खेलें-खाएँ हिल-मिल प्राणी

मधुरस पूरित टपरी-ढाणी

दस दिश गुंजित अरण्य वाणी

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२०-९-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #142 ☆ एक आत्म कथा – समाधि का वटवृक्ष ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 142 ☆

☆ ‌एक आत्म कथा – समाधि का वटवृक्ष ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

एक बार मैं देशाटन के उद्देश्य से घर से निकला जंगलों के रास्ते गुजर रहा था, कि सहसा उस नीरव वातावरण में एक आवाज तैरती सुनाई दी।

“अरे ओ यायावर मानव! कुछ पल मेरे पास रूक और मेरी भी राम कहानी सुनता जा और अपने जीवन के कुछ कीमती पल मुझे देता जा। ताकि जब मैं इस जहां से जाऊं तो मेरी अंतरात्मा का बोझ थोडा़ सा हल्का हो जाय।”

जब मैंने कौतूहल बस अगल बगल देखा तो वहीं पास में ही जड़ से कटे पड़े धराशाई वटवृक्ष से ये आवाज़ फिज़ा में तैर रही थी। और दयनीय अवस्था में गिरा पड़ा वह वटवृक्ष मुझसे आत्मिक संवाद करता अपनी राम कहानी सुनाने लगा था, मैंने जब ध्यानपूर्वक उसकी तरफ देखा तो पाया कि उसके तन पर मानवीय अत्याचारों की अनेक अमानवीय कहानियां अंकित थी।उसका तना जड़ से कटा गिरा पड़ा था और उसके पास ही उसकी अनेकों छोटी-छोटी शाखाएं भी कटी बिछी  पड़ी थी।

वह धरती के सीने पर गिरा पड़ा था, बिल्कुल महाभारत के भीष्म पितामह की तरह, उसके चेहरे पर चिंता और विषाद की असीम रेखाएं खिंची पड़ी थी। वहीं पर उसके हृदय में और अधिक लोकोपकार न कर पाने की गहरी पीड़ा भी थी।

उसका हृदय तथा मन मानवीय अत्याचारों से दुखी एवं बोझिल था। उसने अपने जीवन काल के बीते पलों को अपनी स्मृतियों में सहेजते हुए मुझसे कहा।

“प्राकृतिक प्रकीर्णन द्वारा पक्षियों के उदरस्थ भोजन से बीज रूप में मेरा जन्म एक महात्मा की कुटिया के प्रांगण के भीतर धरती की कोख से हुआ था। धरती की कोख में एक नन्हे बीज रूप में मैं पड़ा पड़ा ठंडी गर्मी सहता पड़ा हुआ था कि एक दिन काले काले मेघों से पड़ती ठंडी  फुहारों से तृप्त हो उस बीज से नवांकुर फूट पड़े थे।जब मेरी कोमल लाल लाल नवजात पत्तियों पर महात्मा जी की निगाहें पड़ी,तो वे मेरे रूप सौन्दर्य पर रीझ उठे थे। उन्होंने लोक कल्याण की भावना से मुझे उस कुटिया प्रांगण में रोप दिया था। वे रोज सुबह शाम पूजा वंदना के बाद बचे हुए अमृतमयी गंगाजल  से मेरी जड़ों को सींचते तो उसकी शीतलता से मेरी अंतरात्मा निहाल हो जाती, और मैं खिलखिला उठता।।

इसी तरह समय अपनी मंथर गति से चलता रहा और समय के साथ मेरी आकृति तथा छाया का दायरा विस्तार लेता जा रहा था।इसी बीच ना जाने कब और कैसे महात्मा जी को मुझसे पुत्रवत स्नेह हो गया था।

मुझे तो पता ही नहीं चला, वे रोज कभी मेरी जड़ों में खाद पानी डाला करते, और कभी मेरी जड़ों पर मिट्टी डाल चबूतरा बना लीपा पोता करते, और परिश्रम करते करते जब तक कर बैठ जाते तो मेरी शीतल छांव‌ से उनके मन को अपार शांति मिलती। मेरी शीतल घनेरी छांव  उनकी सारी पीड़ा और थकान हर लेती। उनके चेहरे पर उपजे आत्मसंतुष्टि का भाव देख मैं भी अपने सत्कर्मो के आत्मगौरव के दर्प से भर उठता।मेरा चेहरा चमक उठता और मेरी शाखाएं झुक झुक कर अपने धर्म पिता के गले में गलबहियां डालने को व्याकुल हो उठती।

गुजरते हुए समय के साथ मेरे विकास का क्षेत्र फल बढ़ता गया। अब मैं जवान हो चला था, और मैंने हरियाली की एक चादर तान दी थी अपने धर्म पिता के कुटिया के उपर तथा सारे प्रांगण को अपनी सघन शीतल छांव से ढंक दिया था। मेरी शीतल छांव‌ का एहसास धूप से जलते पथिक तथा मेरे पके फल खाते पंक्षियो के कलरव से सारा कुटिया प्रांगण गूंज उठता तो उसे सुनकर महात्मा जी का चेहरा अपने सत्कर्मों के आत्मगौरव से खिल उठता और उनके चेहरे काआभा मंडल देख मेरा मन मयूर नाच उठता। और उनकी प्रेरणा मेरे सत्कर्मो की प्रेरक बना जाती। और मैं भी लोकोपकार की आत्मानुभूति से संतुष्ट हो जाता। एक संत के सानिध्य का मेरी जीवन वृत्ति पर बड़ा ब्यापक असर पड़ा था। मेरी वृति भी लोकोपकारी हो गई थी।अब औरों के लिए दुख और पीड़ा सहने में ही मुझे आनंद मिलने लगा था।मैं लगातार कभी वर्षा कभी गर्मी की लू कभी पाला और तुषार  की प्राकृतिक आपदाओं को झेलते हुए भी निर्विकार भाव से तन कर खड़ा रहा आंधियों तूफानों के झंझावातों को झेल लोककल्याण हेतु तन कर खड़ा  लड़ता रहा।अब औरों के लिए खुद पीड़ा सहने  में ही मुझे सुखानुभूति होने लगी थी।और महात्मा जी ने मेरी जड़ों के नीचे बने चबूतरे को ही अपनी साधना स्थली बना लिया था। और लोगों का आना-जाना और सत्संग करना महात्मा जी के दैनिक जीवन का अंग बन गया था। मैंने अपने जीवन काल में महात्मा जी की वाणी और सत्संग के प्रभाव से अनेकों लोगों की जीवन वृत्ति बदलते देखा है। और एक दिन महात्मा जी को जीवन की पूर्णता पर इस नश्वर संसार से विदा होते भी देखा। अब मेरी उस  छाया के नीचे  बने चबूतरे को महात्मा जी  का समाधि स्थल बना दिया गया था।तब से अब तक महात्मा जी के सानिध्य में बिताए पलों ‌को अपने स्मृतिकोश में सहेजे, लोककल्याण की आस अपने हृदय में लिए उस समाधि को अपनी घनी शीतल छांव‌ में आच्छादित किए वर्षों से ज्यों का त्यों खड़ा हूं। मैंने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा। मैं कभी पंछियों का आश्रय बना, तो कभी थके-हारे पथिक की शरणस्थली।

पर हाय ये मेरी किस्मत! ना जाने क्यूं? ये मानव मुझसे रूठ गया। यह मुझे नहीं पता। वो अब तक अपने तेज धार कुल्हाडे से मुझे चोट पहुंचाता रहा, मैं शांत हो उस दर्द और पीड़ा को सहता रहा और वो अपना स्वार्थ सिद्धि करता रहा।

परंतु आज इन बेदर्द इंसानों ने सारी हदें पार कर दी, और मेरी सारी जड़े काट कर मुझे मरने पर विवस कर दिया। क्यों कि  उन बेदर्द इंसानों ने वहां भव्य मंदिर को बनाने का निर्णय ले लिया है, इस क्रम में पहली बलि उन्होंने मेरी ही ली है।

और इस प्रकार मैंने सोचा कि जब मैं इस जग से जा ही रहा हूं तो क्यों न अपनी राम कहानी तुम्हें सुनाता जाऊं, ताकि मरते समय मेरे मन की मलाल पीड़ा और घुटन थोड़ी कम हो जाय, और सीने का बोझ थोडा़ हल्का हो जाय। मैं अपने आखिरी समय में अल्पायु मृत्यु को प्राप्त हो, लोगों की और सेवा न कर पाने की टीस मन में लिए जा रहा हूं। मेरा तुमसे यही निवेदन है कि मेरी पीड़ा और दर्द से सारे समाज को अवगत करा देना। ताकि यह मानव समाज अब और हरे वृक्ष न काटे।इस प्रकार पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते देते उस वृक्ष की आंखें छलछला उठी, उसकी जुबां ख़ामोश हो गई। वह वटवृक्ष मर चुका था, उस समाधि के वटवृक्ष की दयनीय स्थिति देखकर मेरा भावुक हृदय चीत्कार कर उठा था।  मैं इंसानी अत्याचारों का शिकार हुए उस धराशाई वटवृक्ष को निहार रहा था, अपलक किंकर्तव्यविमूढ़ असहज असहाय हो कर।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ नवरात्रि विशेष – नवरात्रि त्योहार ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ नवरात्रि विशेष – नवरात्रि त्योहार  ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

इस बार मैं आपको नवरात्र त्यौहार क्या है इसे क्यों मनाते हैं और इसकी आराधना किस तरह से करें, इस संबंध में आपको बताने का प्रयास करूंगा ।

नवरात्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है पहला नव और दूसरी रात्रि । अर्थात नवरात्रि पर्व 9 रात्रियों का पर्व है ।

9 के अंक का अपने आप में बड़ा महत्व है । यह इकाई की सबसे बड़ी संख्या है । भारतीय ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की संख्या भी नौ है ।

9 का अंक एक ऐसी वस्तु का द्योतक है जिसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता । क्योंकि 9 के अंक को चाहे जिस अंक से गुणा किया जाए प्राप्त अंको का योग भी 9 ही होगा ।
हमारे शरीर में 9 द्वार हैं। 2 आंख ,  दो कान , दो  नाक , एक मुख ,एक मलद्वार , तथा एक मूत्र द्वार। नौ द्वारों को सिद्ध करने हेतु पवित्र करने हेतु नवरात्रि का पर्व का विशेष महत्व है। नवरात्रि में किए गए पूजन अर्चन तप यज्ञ हवन आदि से यह नवो द्वार शुद्ध होते हैं।

नवरात्रि दो तरह की होती है एक प्रगट नवरात्रि और दूसरी गुप्त नवरात्रि।

हम यहां केवल प्रगट नवरात्रि की ही चर्चा करेंगे। दो प्रगट नवरात्रि होती हैं । पहली नवरात्रि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होती है । इसे वासन्तिक नवरात्रि भी कहते हैं ‌। यह 2 अप्रैल 2022 से थी।

 

दूसरी नवरात्रि अश्वनी महासके शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होती है । इसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं । यह इस वर्ष 26 सितंबर से प्रारंभ हो रही है।

दोनों नवरात्रि में नवरात्रि पूजन प्रतिभा का सीन प्रतिपदा से नौमी पर्यंत किया जाता है प्रतिपदा के दिन घट की स्थापना करके नवरात्रि व्रत का संकल्प करके गणपति तथा मातृका पूजन किया जाता है । इसके उपरांत पृथ्वी का पूजन कर घड़े में आम के हरे पत्ते दूर्वा पंचामृत पंचगव्य डालकर उसके मुंह में सूत्र बांधा जाता है । घट के पास में गेहूं अथवा जव का पात्र रखकर वरुण पूजन करके भगवती का आह्वान करना चाहिए । नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व है ।

विभिन्न ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि पूजन के कुछ नियम है, जैसे :-

देवी भागवत के अनुसार अगर अमावस्या और प्रतिपदा एक ही दिन पड़े तो उसके अगले दिन पूजन और घट स्थापना की जाती है।

विष्णु धर्म नाम के ग्रंथ के अनुसार सूर्योदय से 10 घटी तक प्रातः काल में घटस्थापना शुभ होती है।

रुद्रयामल नाम के ग्रंथ के अनुसार यदि प्रातः काल में चित्र नक्षत्र या वैधृति योग हो तो उस समय घट स्थापना नहीं की जाती है अगर इस चीज को टालना संभव ना हो तो अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापना की जाएगी।

देवी पुराण के अनुसार देवी की देवी का आवाहन प्रवेशन नित्य पूजन और विसर्जन यह सब प्रातः काल में करना चाहिए।

निर्णय सिंधु नाम के ग्रंथ के अनुसार यदि प्रथमा तिथि वृद्धि हो तो प्रथम दिन घटस्थापना करना चाहिए।

नवरात्र के वैज्ञानिक पक्ष की तरफ अगर हम ध्यान दें तो हम पाते हैं कि दोनों प्रगट नवरात्रों के बीच में 6 माह का अंतर है। चैत्र नवरात्रि के बाद गर्मी का मौसम आ जाता है तथा शारदीय नवरात्रि के बाद ठंड का मौसम आता है। हमारे महर्षि यों ने शरीर को गर्मी से ठंडी तथा ठंडी से गर्मी की तरफ जाने के लिए तैयार करने हेतु इन नवरात्रियों की प्रतिष्ठा की है। नवरात्रि में व्यक्ति पूरे नियम कानून के साथ अल्पाहार  एवं शाकाहार  या पूर्णतया निराहार व्रत रखता है । इसके  कारण शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है।अर्थात शरीर के जो भी विष तत्व है वे बाहर हो जाते हैं । पाचन तंत्र को आराम मिलता है । लगातार 9 दिन के  आत्म अनुशासन की पद्धति के कारण मानसिक स्थिति बहुत मजबूत हो जाती है ।जिससे डिप्रेशन माइग्रेन हृदय रोग आदि बिमारियों  के होने की संभावना कम हो जाती है।

देवी भागवत के अनुसार सबसे पहले मां ने महिषासुर का वध किया । महिषासुर का अर्थ होता है ऐसा असुर जोकि भैंसें के गुण वाला है अर्थात जड़  बुद्धि है । महिषासुर का विनाश करने का अर्थ है समाज से जड़ता का संहार करना। समाज को इस योग्य बनाना कि वह नई बातें सोच सके तथा निरंतर आगे बढ़ सके।

समाज जब आगे बढ़ने लगा तो आवश्यक था कि उसकी दृष्टि पैनी होती और वह दूर तक देख सकता ।अतः तब माता ने धूम्रलोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि दी।

धूम्रलोचन का अर्थ होता है धुंधली दृष्टि। इस प्रकार माता जी माता ने धूम्र लोचन का वध कर समाज को दिव्य दृष्टि प्रदान की।

समाज में जब ज्ञान आ जाता है उसके उपरांत बहुत सारे तर्क वितर्क होने लगते हैं ।हर बात के लिए कुछ लोग उस के पक्ष में तर्क देते हैं और कुछ लोग उस के विपक्ष में तर्क देते हैं । जिससे समाज की प्रगति अवरुद्ध जाती है । चंड मुंड इसी तर्क और वितर्क का प्रतिनिधित्व करते हैं ।माता ने चंड मुंड की हत्या कर समाज को बेमतलब के तर्क वितर्क से आजाद कराया।

समाज में नकारात्मक ऊर्जा के रूप में मनो ग्रंथियां आ जाती हैं ।रक्तबीज इन्हीं मनो ग्रंथियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस प्रकार एक रक्तबीज को मारने पर अनेकों रक्तबीज पैदा हो जाते हैं उसी प्रकार एक नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने पर हजारों तरह की नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। जिस प्रकार सावधानी से रक्तबीज को मां दुर्गा ने समाप्त किया उसी प्रकार नकारात्मक ऊर्जा को भी सावधानी के साथ ही समाप्त करना पड़ेगा।

शारदीय नवरात्र में प्रतिपदा को माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है । उसके उपरांत द्वितीया को ब्रह्मचारिणी त्रितिया को चंद्रघंटा चतुर्थी को कुष्मांडा पंचमी को स्कंदमाता षष्टी को कात्यायनी सप्तमी को कालरात्रि अष्टमी को महागौरी और नवमी को सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है ।

नवरात्रि के दिनों में हमें मनसा वाचा कर्मणा शुद्ध रहना चाहिए। किसी भी प्रकार के मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए । नवरात्र में लोग बाल बनवाना दाढ़ी बनवाना नाखून काटना पसंद नहीं करते हैं । शुद्ध रहने के लिए आवश्यक है कि हम मांसाहार प्याज लहसुन आदि तामसिक पदार्थों का त्याग करें । तला खाना भी त्याग करना चाहिए ।

अगर आपने नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित किया है या अखंड ज्योत जला रहे हैं तो आपको इन दिनों घर को खाली छोड़कर नहीं जाना चाहिए ।

नवरात्र में प्रतिदिन हमें साफ कपड़े साफ और झूले हुए कपड़े पहनना चाहिए । एक विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि इन 9 दिनों में नींबू को काटना नहीं चाहिए । क्योंकि अगर आप नींबू काटने का कार्य करेंगे तो तामसिक शक्तियां आप पर प्रभाव जमा सकती हैं।

विष्णु पुराण के अनुसार नवरात्रि व्रत के समय दिन में सोना निषेध है।

अगर आप इन दिनों मां के किसी मंत्र का जाप कर रहे हैं पूजा की शुद्धता पर ध्यान दें ।जाप समाप्त होने तक उठना नहीं चाहिए।

इन दिनों शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए।

नवरात्रि में रात्रि का दिन से ज्यादा महत्व  है ।इसका विशेष कारण है। नवरात्रि में हम व्रत संयम नियम यज्ञ भजन पूजन योग साधना बीज मंत्रों का जाप कर सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। राज्य में प्रचलित के बहुत सारे और रोज प्रकृति स्वयं ही समाप्त कर देती है। जैसे कि हम देखते हैं अगर हम जिनमें आवाज दें तो वह कम दूर तक जाएगी परंतु रात्रि में वही आवाज दूर तक जाती है दिल में सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों को रेडियो तरंगों को आज को रोकती है अगर हम दिन में रेडियो से किसी स्टेशन के गाने को सुनें तो वह रात्रि में उसी रोडियो से उसी स्टेशन के गाने से कम अच्छा सुनाई देगा और संघ की आवाज भी घंटे और शंख की आवाज भी दिन में कम दूर तक जाती है जबकि रात में ज्यादा दूर तक जाती है। दिन में वातावरण में कोलाहल रहता है जबकि रात में शांति रहती है। नवरात्रि में  सिद्धि हेतु रात का ज्यादा महत्व दिया गया है ।

नवरात्रि हमें यह भी संदेश देती है की सफल होने के लिए सरलता के साथ ताकत भी आवश्यक है जैसे माता के पास कमल के साथ चक्र एवं त्रिशूल आदि हथियार भी है समाज को जिस प्रकार  कमलासन की आवश्यकता है उसी प्रकार सिंह अर्थात ताकत ,वृषभ अर्थात गोवंश , गधा अर्थात बोझा ढोने वाली  ताकत , तथा पैदल अर्थात स्वयं की ताकत सभी कुछ आवश्यक है।

मां दुर्गा से प्रार्थना है कि वह आपको पूरी तरह सफल करें ।आप इस नवरात्रि में  जप तप पूजन अर्चन कर मानसिक एवं शारीरिक दोनों रुप में आगे के समय के लिए पूर्णतया तैयार हो जाएं।

जय मां शारदा 🙏🏻

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २५ सप्टेंबर – संपादकीय – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

? ई-अभिव्यक्ती – संवाद ☆ २५ ऑगस्ट -संपादकीय – सौ. उज्ज्वला केळकर – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

अरुण मार्तंडराव साधू (१७ जून १९४१- २५ सप्टेंबर१७ )

अरुण साधू यांचा जन्म अमरावती जिल्ह्यात परतवाडा इथे झाला. गणित व भौतिकशास्त्राचे ते पदवीधर होते पण त्यांनी कार्यक्षेत्र निवडले, ते मात्र पत्रकारिता आणि साहित्य लेखन. कादंबरी, कथासंग्रह, विज्ञान, सामाजिक, राजकीय इ. विषयांवर त्यांनी लेख लिहिले.

केसरी, इंडियन एक्स्प्रेस, टाईम्स ऑफ इंडिया इ. वर्तमानपत्रांसाठी त्यांनी वार्ताहर, विशेष प्रतिनिधी म्हणून काम केले. फ्री-प्रेस जर्नलचे संपादक म्हणूनही त्यांनी काही काळ काम केले. १९८९नंतर ते स्तंभलेखनाकडे वळले. त्यांचे स्तंभलेखनही गाजले.

त्यांनी विपुल साहित्य लेखन केले. कादंबरी, कथासंग्रह, विज्ञान, सामाजिक, राजकीय इ. विषयांवर त्यांनी लेख लिहिले. त्यांच्या प्रसिद्ध साहित्यकृती सांगायच्या झाल्या, तर फिडेल चे आणि क्रांती, ड्रॅगन जागा झाला, तिसरी क्रांती- लेनिन, स्टॅलीन ते गोर्बाचेव्ह, झिपर्याइ, मुंबई दिनांक, सिंहासन इ. पुस्तकांचा उल्लेख करावा लागेल.

डॉ. जयसिंग पवार यांच्या ‘छत्रपती राजर्षी शाहू महाराज’ या ग्रंथाचा त्यांनी इंग्रजीत अनुवाद केला. जब्बार पटेल दिग्दर्शित ‘डॉ. आंबेडकर’ या चित्रपटासाठी त्यांनी संहिता लेखन केले.

‘सिंहासन’ हा अरुण साधू यांच्या ‘सिंहासन’ या कादंबरीवरील चित्रपट अतिशया लोकप्रिय ठरला. त्यांनी लिहीलेल्या, कथा, कादंबर्याि, नाटके, एकांकिका आणि स्तंभलेखन समकालीन इतिहासाचा मागोवा घेणारे आहे.

पुरस्कार – अरुण साधू यांना अकादमी, न.चिं. केळकर, भैरूरमण दामाणी, फाय फाउंडेशन इ. महत्वाचे पुरस्कार लाभले आहेत.

८० व्या मराठी साहित्य संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते.

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शंकर नारायण नवरे उर्फ शन्ना  (२१ नोहेंबर १९२७- २५ सप्टेंबर २०१३)

शं. ना. नवरे कथाकार, नाटककार, पटकथाकार, म्हणून सुप्रसिद्ध होते. त्यांनी स्तंभलेखनही केले. मध्यमवर्गीय माणसाचे अनुभव आणि भावविश्व त्यांनी आपल्या साहित्यातून रेखाटले. शहाणी सकाळ, मेणाचे पुतळे, कोवळी वर्षे इ. त्यांचे २७ कथासंग्रह आहेत.

जयवंत दळवी यांच्या ‘महानंदा’ कादंबरीवरून त्यांनी ‘गुंतता हृदय हे’, हे नाटक लिहिले. ते अतिशय गाजले. याशिवाय गहिरे रंग, खेळीमेळी, धुक्यात हरवली वाट, देवदास, दोघांमधले नाते, नवरा म्हणू नये आपला, पसंत आहे मुलगी, मन पाखरू पाखरू हीही त्यांची उत्तम नाटके आहेत. जनावर आणि दोन यमांचा फार्स या त्यांच्या एकांकिका प्रसिद्ध आहेत. 

त्यांच्या पटकथा असलेले सारेच चित्रपट अतिशय गाजले. कळत नकळत, कैवारी, घरकुल, तू तिथे मी, निवडुंग, सवत माझी लाडकी, बाजीरावचा बेटा या चित्रपटांच्या पटकथा त्यांनी लिहिल्या.

आनंदाचे झाड, दिवसेंदिवस, दिनमान या त्यांच्या कादंबर्या  तर, झोपाळे आणि शन्नाडे ही त्यांच्या स्तंभलेखनावरची पुस्तके

नोहेंबर २००८मध्ये त्यांना ग.दी. माडगूळकर प्रतिष्ठानचा ग.दी.मा. पुरस्कार मिळाला, तर नोहेंबर २००९ मधे त्यांना डोंबिवली भूषण हा पुरस्कार मिळाला. शं. ना. नवरे यांच्यावर ‘गोष्टीवेल्हाळ शन्ना’ हा लघुपट निघाला आहे. काही जुन्या नाटकांचे दुर्मिळ चलत् चित्रण व जुन्या सहकाऱ्यांनी (डॉ. जब्बार पटेल, विक्रम गोखले, बाळ कुडतरकर, प्रदीप वेलणकर इ.) सांगितलेल्या शन्नांच्या रमणीय आठवणी या लघुपटात अनुभवायला मिळतात.

डोंबिवलीमधे २००३ साली झालेल्या नाट्यसंमेलनाचे त अध्यक्ष होते. त्यांना मिळणार्या् पैशाचा मोठा हिस्सा ते पडद्यामागील कलाकारांसाठी खर्च करत.

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अरुण बाळकृष्ण कोलटकर (१नोहेंबर १९३२- २५ सप्टेंबर २००४ ) 

अरुण बाळकृष्ण कोलटकर हे सुप्रसिद्ध कवी होते. कोलटकरांचा जन्म कोल्हापुरात झाला. त्यांचे शालेय शिक्षण तेथील राजाराम माध्यमिक विद्यालयात झाले. मुंबईच्या सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्‌सचे पदवीधारक असलेले कोलटकर एक उत्तम ग्राफिक्स डिझायनर व जाहिरात क्षेत्रातील अत्यंत यशस्वी कलादिग्दर्शक होते. १९५०–१९६० च्या दशकांत त्यानी लिहिलेल्या कविता या मुंबईतील विशिष्ठ बोली मराठीतल्या असून त्यात मुंबईत आलेल्या निर्वासितांच्या व गुन्हेगारांच्या जीवनाचे दर्शन घडते. उदाहरणार्थ, मै भाभीको बोला / क्या भाईसाबके ड्यूटीपे मै आ जाऊ? / भड़क गयी साली / रहमान बोला गोली चलाऊॅंगा / मै बोला एक रंडीके वास्ते? / चलाव गोली गांडू.

अरुण कोलटकर यांचे प्रकाशित काव्यसंग्रह

अरुण कोलटकरच्या कविता (१९७७), चिरीमिरी (२००४), द्रोण (२००४), भिजकी वही (२००४), अरुण कोलट्करच्या चार कविता

मराठीप्रमाणेच त्यांनी हिन्दी व इंग्रजीमधूनही कविता लिहिल्या.

अरुण कोलटकर यांना लाभलेले पुरस्कार

१.  २००५ चा साहित्य अकादमी पुरस्कार

२.  कुसुमाग्रज पुरस्कार

३.  २००५ चा बहिणाबाई पुरस्कार

४. १९७६ चा राष्ट्रकुल काव्य पुरस्कार

इ. पुरस्कार त्यांना मिळाले.

अरुण कोलटकर हे ’शब्द’ या लघु नियतकालिकाचे रमेश समर्थ व दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे यांच्याबरोबर सहसंपादक होते.

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कमलाकर सारंग (जून २९, इ.स. १९३४ – सप्टेंबर २५ इ.स. १९९८)

कमलाकर सारंग हे मराठी नाट्य-अभिनेते, दिग्दर्शक, निर्माते, लेखक होते. सखाराम बाइंडर व इतर अनेक नाटकांतील यांचा अभिनय विशेष नावाजला गेला. त्यांनी दिग्दर्शिलेली घरटे आमुचे छान, बेबी व जंगली कबूतर ही नाटकेही गाजली.

मराठी नाट्यअभिनेत्री लालन सारंग या यांच्या पत्नी होत.

प्रकाशित साहित्य

कमलाकर सारंगानी सखाराम बाइंडर नाटकाच्या वेळच्या आठवणींवर “बाइंडरचे दिवस” नावाचे पुस्तक लिहिले.

कमलाकर सारंग यांच्यावर नाट्यप्रेमी कमलाकर सारंग हे पुस्तक अनुराधा औरंगाबादकर यांनी लिहिले आहे.

आज साहित्यिक अरुण साधू, शं. ना. नवरे, अरुण कोलटकर आणि नाटककार कमलाकर सारंग यांचा स्मृतीदिन. त्यानिमित्त त्यांना आदरांजली.?  

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सौ. उज्ज्वला केळकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : साहित्य साधना – कराड शताब्दी दैनंदिनी , गुगल, विकिपीडिया

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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सूचना/Information ☆ गणेश चतुर्थी उत्सव एर्लांगेन – मराठी मित्र मंडळ फ्रँकेन, जर्मनी ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

💐 गणेश चतुर्थी उत्सव एर्लांगेन (Erlangen) – मराठी मित्र मंडळ फ्रँकेन, जर्मनी 💐

मराठी मित्र मंडळ फ्रँकेन, जर्मनी या मराठमोळया मंडळातर्फे सालाबादप्रमाणे याही वर्षी गणेश चतुर्थी उत्सव एर्लांगेन (Erlangen) येथे ११ सप्टेंबर २०२२ रोजी मोठ्या दिमाखात आणि उत्साहात साजरा करण्यात आला. यावेळी श्रींचे पारंपारिक आगमन, पूजा व आरती, महाप्रसाद, सांस्कृतिक कार्यक्रम आणि श्रींचे विसर्जन असा सर्वसमावेशक कार्यक्रम येथील मराठी आणि भारतीय बांथवांसाठी एक विशेष आकर्षण ठरला.

ई-अभिव्यक्ति (हिन्दी/मराठी/अङ्ग्रेज़ी) या प्रसिद्ध प्रकाशनाचे संपादक माननीय श्री हेमंत बावनकर यांनी मंडळाच्या आयोजिका सौ. माधुरी नाडकर्णी यांचीशी संपर्क करून अगत्याने या कार्यक्रमात सहपरिवार सहभाग घेतला. यावेळी त्यांनी मंडळाला श्री अमोल केळकर लिखित ‘माझी टवाळखोरी’डॉ हंसा दीप लिखित व सौ उज्ज्वला केळकर अनुवादित ‘…आणि शेवटी तात्पर्य’ या दोन मराठी संग्रहांची सस्नेह भेट दिली.

मराठी मित्र मंडळ फ्रँकेन, जर्मनी तर्फे श्री हेमंत बावनकर, सौ उज्ज्वला केळकर आणि श्री अमोल केळकर यांचे मनःपूर्वक आभार आणि सस्नेह प्रणाम.

मराठी मित्र मंडळ फ्रँकेन, जर्मनी
११ सप्टेंबर २०२२

 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ औचित्य… ☆ श्री शरद कुलकर्णी ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ औचित्य… ☆ श्री शरद कुलकर्णी

घेउनी संदेश मेघांचे सहिष्णू,

वारा कांही बरळतो आहे.

आठवांच्या लाटांचा दर्या अनावर ,

थेंब होउन डोळ्यात तरळतो आहे.

पाखरं उडून गेली म्हणून इथे,

वृक्ष थोडाच रडणारआहे.

रानावनाला माहीत आहे,

पाऊस हमखास पडणार आहे.

चिंब होण्या सरीत बरसत्या,

पाऊस एक निमित्त आहे.

जीवघेण्या पावसाचे आवेग समजण्या,

भिजून जाणे हे खरे औचित्य आहे

© श्री शरद  कुलकर्णी

मिरज

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भिजकी वही… ☆ अरूण कोलटकर ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ भिजकी वही… ☆ अरूण कोलटकर ☆

ही वही कोरडी नकोस ठेवू

माझी वही भिजो

शाई फुटो

ही अक्षरं विरघळोत

माझ्या कवितांचा लगदा होवो

या नदीकाठच्या गवत खाण-या म्हशींच्या दुधात

माझ्या कवितांचा अंश सापडो

 

 – अरूण कोलटकर

अरुण बालकृष्ण कोलटकर (नोव्हेंबर १, १९३२ – सप्टेंबर २५, २००४) 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ भेट… ☆ सौ.मंजुषा सुधीर आफळे ☆

सौ.मंजुषा सुधीर आफळे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ भेट… ☆ सौ.मंजुषा सुधीर आफळे ☆

निळी जांभळी

मेघ डंबरी

चंद्र पोर्णिमा

रात साजिरी

 

सुटता कोडे

आठव सारे

भाव रंगात

रंगले मी रे

 

ओंजळीत त्या

गंध भरला

निळा खग ही

मंद हसला

 

आदिमाया ती

हळू जोजवी

नव स्वप्नांची

रचून ओवी

 

इथेच पुन्हा

श्याम भेटले

ब्रह्मवेळेत

सुख गोंदले

 

स्वर मधुर

स्निग्ध एकांती

मनमोहन

सवे भ्रमंती

© सौ.मंजुषा सुधीर आफळे

२३/८/२०२२.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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