हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कस्तूरी मृग ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना (नवरात्र साधना)

इस साधना के लिए मंत्र इस प्रकार होगा-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे।

अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे।

मंगल भव। 💥

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – कस्तूरी मृग ??

मैं परिधि पर

जीना चाहता हूँ

पर केंद्र भी

छोड़ नहीं पाता,

केंद्र और परिधि पर

एक समय, एक साथ

जीने की जिजीविषा,

अधर में बने रहने की

स्वयंसिद्ध तितिक्षा,

न वृत्त सिमटकर

बिंदु हो पाता है,

न सीमाओं का विस्तार कर

बिंदु परिधि बन पाता है,

लगता है,

क्रमिक विकास पर

डार्विन के सिद्धांतों के साथ,

अनुभूति का

जब कोई इतिहास लिखेगा,

यात्रा वृत्तांत में

वानरों के साथ,

कस्तूरी मृग का

नाम भी जुड़ेगा.!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈



हिन्दी साहित्य – यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 2 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 2 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

New Jersey में सुबह घूमते हुए…

सड़क किनारे, खुले में पेड़ के नीचे ज्यादा शायद शतरंजी बुद्धि, तेजी से चलती है। तभी तो सीमेंट के पक्के टेबल पर स्थाई शतरंज का बोर्ड बनाया दिखता है।

लोकतंत्र में पैदल भी वजीर बन सकता है ।

घोड़े, हॉर्स-ट्रेडिंग का हिस्सा बनकर ढाई घर की चालें चले बिना मानते ही नहीं।

ऊंट तिरछा ही भाग रहे हैं।

मुंशी प्रेमचंद की 1924 में लिखी कहानी शतरंज के खिलाड़ी पर आधारित फिल्म भारतीय सिनेमा की एक यादगार फिल्म रही है।

शतरंज के बोर्ड के मजेदार मैथेमेटिकल किस्से हैं। एक बार एक राजा से इनाम में एक गणितज्ञ ने कहा कि मुझे बस पहले दिन गेहूं के एक दाने से शुरू कर प्रतिदिन दो गुना करते हुए, शतरंज के 64 खानों के अनुसार गेहूं के दाने इनाम में दिए जाए। राजा ने हंसते हुए यह स्वीकार कर लिया, पर जल्दी ही उसे गणितज्ञ की प्रतिभा समझ आ गई, वह सारे राज्य की फसल देकर भी इस गणितीय इनाम को देने में असमर्थ था, आप भी केल्कुलेटर   से गुणा भाग लगाते हुए जरा अंदाजा लगाइये।

कल मिलते हैं।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ परदेश – भाग -4 ☆ श्री राकेश कुमार ☆

श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 4 ☆ श्री राकेश कुमार ☆

प्रातः भ्रमण

हमारे देश में उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रातः काल के भ्रमण को सर्वोत्तम बताया जाता हैं। इसी मान्यता का पालन करने के लिए हम भी दशकों से प्रयास रत हैं। पूर्ण रूप से अभी तक सफलता प्राप्त नहीं हुई हैं। इसी क्रम में विदेश में कोशिश जारी हैं।

घड़ी के हिसाब से भोर की बेला में तैयार होकर जब घर से बाहर प्रस्थान किया तो देखा सूर्य देवता तो कब से अपनी रोशनी से धरती को ओतप्रोत कर चुके हैं। घड़ी को दुबारा चेक किया तो भी लगा की अलसुबह सूर्य के प्रकाश का तेज तो दोपहर जैसा प्रतीत हो रहा था। हवा ठंडी और सुहानी थी, इसलिए मेज़बान की सलाह से पतली जैकेट जिसको अंग्रेजी मे विंड चीटर का नाम दिया गया, पहनकर चल पड़े, सड़कें नापने के लिए। हमें लगा यहां के लोग तो बहुत धनवान हैं, इसलिए  देर रात्रि तक जाग कर सुबह देरी से उठते होंगे, परंतु ये तो हमारा भ्रम निकला। सड़क पर बहुत सारे युवा, वृद्ध प्रातः भ्रमण कर रहें थे। कुछ ने हमारा अभिवादन भी किया। अच्छा लगा कि यहां भी संस्कारी लोग रहते हैं। हमारे देश में तो अनजान व्यक्ति को तो अब लोग अच्छी दृष्टि से देखते भी नहीं हैं, अभिवादन तो इतिहास की बात हो गई हैं। हम लोग तो अपने पूर्वजों के संस्कारों को तिलांजलि दे चुके हैं।

सड़कें इतनी साफ और स्वच्छ थी, हमें लगा, हमारे चलने से कहीं गंदी ना हो जाएं। कहीं पर भी कोई कागज़, गुटके के खाली पैकेट भी नहीं दिखाई दे रहे थे। विदेश की सफाई और स्वच्छता के बारे में सुना और पढ़ा था, आज अपनी आँखों से देखा तब जाकर विश्वास हुआ की इतनी स्वच्छता भी हमारे ब्रह्मांड पर हो सकती हैं।

यहां के अधिकतर नागरिक सैर के समय अपने श्वान को साथ लेकर चल रहे थे, अगले भाग में श्वान चर्चा करेंगे।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 139 – नव दूर्गा की आराधना ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी नवरात्रि पर्व पर आधारित एक भक्ति गीत  “नव दूर्गा की आराधना”।) 

श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 139 ☆

☆ भक्ति गीत 🌿 🔥 नव दूर्गा की आराधना 🔥

 कर नव दुर्गा आराधना, भाव भक्ति के साथ।

सकल मनोरथ पूर्ण हो, बने बिगड़ी बात।

🕉️

आज भवानी चल पड़ी, होके शेर सवार।

भक्तों का करती कल्याण, दुष्टों का संहार।

🕉️

श्वेत वस्त्र हैं धारणी, कमल पुष्प लिए हाथ।

बटुक भैरव चल पड़े, माँ भवानी के साथ।

🕉️

शक्ति का है रुप निराला, भक्ति से भवपार।

श्रद्धा से सुमिरन करें, भर देती माँ भंडार।

🕉️

ऊँचे पर्वत वासिनी, कहीं गुफा में निवास।

आन पडे जो शरण में, पूरण करती आस । 

🕉️

कालचक्र इनकी गति, आगम निगम बखान।

होते दिन अरु रात हैं, सब पर कृपा महान।

🕉️

लाल ध्वजा लहरा रहीं, ओढ़े चुनरियां लाल।

अस्त्र शस्त्र लिए हाथ में, अर्ध चन्द्रमा भाल।

🕉️

कहीं होती शक्ति पूजा, कहीं गरबे की रात।

ढोल मंजीरे बज उठे, कहीं बाँटे प्रसाद।

🕉️

कर सोलह श्रृंगार माँ, बैठी आसन बीच।

सबका मन मोह रही, मधुर मुस्कान खींच।

🕉️

बोए जवारे भाव से, माँ भवानी से प्रार्थना।

सुख शांति वैभव लक्ष्मी, पूरी हो आराधना।

🕉️

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈




सूचनाएँ/Information ☆ 1. अंतरराष्ट्रीय हिंदी महोत्सव, बैंकॉक में श्री राजेश पाठक प्रवीण एवं संतोष नेमा द्वारा प्रतिनिधित्व 2. श्री सुरेश पटवा को स्व हजारीलाल जैन वांगमय पुरस्कार ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ अंतरराष्ट्रीय हिंदी महोत्सव, बैंकॉक में जबलपुर भारत से श्री राजेश पाठक प्रवीण एवं संतोष नेमा द्वारा प्रतिनिधित्व☆ 

अंतरराष्ट्रीय थाई हिंदी परिषद बैंकॉक एवं थाई भारत आश्रम  द्वारा आयोजित हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी महोत्सव में जबलपुर भारत से हिंदी का प्रतिनिधित्व श्री राजेश पाठक प्रवीण एवं संतोष नेमा ने किया ।  

इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के विविध साहित्यकार हिंदी महोत्सव में शामिल हुए जिन्होंने हिंदी में आलेख एवं कविताओं का वाचन किया. अत्यंत हर्ष का विषय है की थाईलैंड में विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा हिंदी के तमाम कोर्स शामिल किए गए हैं जहां पर वहां के छात्रों द्वारा विशेष रुचि से हिंदी सीखी जा रही है उनका हिंदी के प्रति अनुराग एवं उत्साह हम सबके लिए अत्यंत हर्षित करने वाला है. इस अवसर पर हम लोगों ने हिंदी की महत्ता पर अपना उद्बोधन देते हुए काव्य पाठ किया. समारोह में भारतीय दूतावास के प्रतिनिधियों सहित अनेक विश्वविद्यालयों के शिक्षाविद भी शामिल रहे.

हम लोगों को गौरवमयीअनुभूति हुई कि बैंकॉक में हिंदी भाषा को बोलने और समझने का प्रयत्न किया जाता है। यहां के साहित्यकारों ने थाईभाषा के साथ हिंदी में आलेख एवं कविताओं का प्रस्तुतीकरण किया ।आयोजन के अतिथि श्री संतोष नेमा एवं राजेश पाठक प्रवीण ने हिंदी के महत्व पर प्रकाश डाला।

☆ श्री सुरेश पटवा को स्व हजारीलाल जैन वांगमय पुरस्कार की घोषणा ☆

सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री सुरेश पटवा जी को हिन्दी भवन, भोपाल  द्वारा स्व हजारीलाल जैन वांगमय पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई है। सूचनानुसार आपको मध्यप्रदेश के राज्यपाल महामहिम श्री मंगू भाई पटेल के कर कमलों से दिनांक १० अक्तूबर २०२२ को पूर्वान्ह ११ बजे हिन्दी भवन सभागार, भोपाल  में प्रदान किया जाएगा।

💐 ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से श्री राजेश पाठक प्रवीण, संतोष नेमा ‘संतोष’ एवं  श्री सुरेश पटवा जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈




ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २७ सप्टेंबर – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? ई-अभिव्यक्ती – संवाद ☆ २७ सप्टेंबर – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

कविता महाजन

मराठी साहित्यात वैचारिक बंड करून स्वतःचे निशाण अल्पायुष्यात फडकवणा-या कविता महाजन यांनी काव्यलेखनाने प्रारंभ  करून  पुढे साहित्याच्या विविध प्रांतात लेखन केले. कविता, कादंबरी, कथा, बालसाहित्य व अनुवादित साहित्याची निर्मिती करून त्यांनी मराठी साहित्यात मोलाची भर घातली आहे. त्यांच्या बालसाहित्याचे वैशिष्ट्य असे की त्यांनी ते लेखन, चित्रे, फोटोग्राफी, कॅलिग्राफी अशा विविध माध्यमातून सादर केले आहे. तसेच ‘भारतीय लेखिका ‘या पुस्तकातून त्यांनी अनेक भारतीय भाषांतील लेखिकांचा परिचय करून दिला आहे. त्यामुळे मराठी साहित्यातील हे एक महत्त्वाचे पुस्तक म्हणावे लागेल. त्यांनी आदिवासी प्रदेशात काम करून तेथील समाजजीवनाचा अभ्यास केला होता. त्यातूनच पुढे वारली आणि आदिवासी लोकगीतांचे संकलन त्यांच्या कडून पूर्ण झाले. आणखी एक वेगळा पैलू म्हणजे त्यांनी पाकशास्त्रासंबंधीही लेखन केले व तेही अत्यंत गांभीर्याने लिहीलेले आहे. ‘समुद्रच आहे एक विशाल जाळं’ या दीर्घकवितेने त्यांचे काव्यलेखन उच्च पातळीवर जाऊन पोहोचलो आहे.

‘ब्र’ आणि ‘भिन्न’ या त्यांच्या दोन कादंब-यांनी   त्यांना कादंबरी विश्वात मानाचे स्थान मिळवून दिले आहे. ब्र ही कादंबरी महिला सरपंच व त्यांचे अनुभव विश्व या विषयावर आहे. भिन्न या कादंबरीतील त्यांनी एच्. आय. व्ही. बाधित व एडस् ग्रस्तांचे चित्रण केले आहे. अत्यंत वेगळ्या विषयावरील या दोन कादंब-यांमुळे एक बंडखोर लेखिका म्हणून त्या प्रकाशात आल्या.

या लेखना बरोबरच त्यांनी अन्य भाषांतील साहित्यही अनुवादित केले आहे. शिवाय संपादनाचे कामही केले आहे.

कविता महाजन यांची साहित्य संपदा याप्रमाणे :

काव्यसंग्रह:

तत्पुरुष, धुळीचा आवाज, मृगजळीचा मासा

कादंबरी:

ठकी आणि मर्यादित पुरूषोत्तम, ब्र, भिन्न.

बालसाहित्य:

कुहू(मल्टीमिडीया कादंबरी), जोयानाचे रंग, वाचा जाणा करा, बकरीचं पिलू(जंगल गोष्टी)

कथासंग्रह:(अनुवादित)

अनित्य, अन्या ते अनन्या, अंबई:तुटलेले पंख, आग अजून बाकी आहे, रजई, वैदेही यांच्या निवडक कथा  इ.

लेखसंग्रह:

ग्राफिटीवाॅल, तुटलेले पंख(संपादित)

चरित्र: तिमक्का, पौर्णिमादेवी बर्मन.

अन्य:

वारली लोकगीते

पाकशास्त्र:

समतोल खा, सडपातळ रहा

प्राप्त पुरस्कार:

न. चि. केळकर पुरस्कार

काकासाहेब गाडगीळ पुरस्कार

ना. ह. आपटे पुरस्कार

कवयित्री बहणाई पुरस्कार

यशवंतराव चव्हाण उत्कृष्ट वाड्मयनिर्मिती पुरस्कार,

साहित्य अकादमीचा अनुवाद पुरस्कार(रजई),

साहित्य अकादमी पुरस्कार. (ब्र या कादंबरीसाठी)

त्यांचे हेही अन्य भाषांत अनुवादीत झाले आहे.

“बायकांचे पाय भूतासारखे उलटे असतात, कुठेही जात असले तरी ते घराकडेच वळत असतात.”

‘ब्र’ या कादंबरीतील हे वाक्य त्यांच्या लेखनातील वेगळेपण दाखवून देते.

भिन्न वृत्तीच्या या लेखिकेचे वयाच्या अवघ्या एकवनाव्या वर्षी 2018मध्ये निधन झाले. आज त्यांचा स्मृतीदिन आहे. त्यांच्या स्मृतीस अभिवादन! 🙏

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श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ: विकिपीडिया, महाराष्ट्र टाईम्स.काॅम, कविता कोश

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ दातृत्व… ☆ सौ. विद्या पराडकर ☆

सौ. विद्या पराडकर

? कवितेचा उत्सव ?

☆ दातृत्व… ☆ सौ. विद्या पराडकर ☆

रत्नाकराचया गर्भातून,गाभिर्याचे रत्न घ्यावे

धरित्रीचया उदरातून, औदार्याचे लेणे घ्यावे

 

काळ्या ‌काळया ढगांकडून, पर्जन्याच दान घ्यावे

मोठ मोठ्या वृक्षाकडून, समानतेचे बोध घ्यावे

 

जाईजुईचया फुलांपासून, धुंद मस्त सुवास घ्यावा

मृगोदरीतील कस्तुरीचा, दरवळणारा सुगंध घ्यावा

 

अंधार दूर करणारया,दिनपतीचे तेज घ्यावे

अष्टमीच्या चंद्रकिरणांपासून, अमृताचे कण‌ घ्यावे

 

निसर्गाने मुक्त हस्ताने, मानवाला देणे द्यावे

बदल्यात मानवाने निसर्गाचे दातृत्व घ्यावे.    

 

© सौ. विद्या पराडकर

वारजे  पुणे..

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ फार मस्त वाटतंय… ☆ कविता महाजन ☆

? कवितेचा उत्सव ?

☆ फार मस्त वाटतंय… 

फार मस्त वाटतंय

थांबवताच येत नाहीय हासू

इतकं कोसळतय….इतकं..

नाचावसही वाटतंय

उडावसही

 

तू का असा,काही सुचत

नसल्यासारखा

पाहतो आहेस नुसता गप्प

खांबासारखा ताठ उभा राहून

काय झालय असं संकोचल्यासारख ?

 

खर तर तूही एकदा

पसरून बघ असे हात

घेऊन बघ गर्रकन गिरकी

 एका पायावर

विस्कटू दे केस थोडे विसकटले तर

 

बघ तर

तुझ्याही आत दडलं असेल

हसणं नाचणं उडणं

तुझ्या नकळत

 – कविता महाजन

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #157 ☆ खडा मिठाचा… ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे ☆

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 157 ?

खडा मिठाचा

तो आकाशी भिरभिरणारा पतंग होता

रस्त्यावरती आला झाला भणंग होता

 

मठ नावाचा महाल त्याने उभारलेला

काल पाहिले तेव्हा तर तो मलंग होता

 

गंमत म्हणुनी खडा मारुनी जरा पाहिले

क्षणात उठला त्या पाण्यावर तरंग होता

 

काय जाहले भाग्य बदलते कसे अचानक

तरटा जागी आज चंदनी पलंग होता

 

चार दिसाची सत्ता असते आता कळले

आज गुजरला खूपच बाका प्रसंग होता

 

माझी गरिबी सोशिक होती तुझ्यासारखी

मुखात कायम तू जपलेला अभंग होता

 

घरात माझ्या तेलच नव्हते फोडणीस पण

खडा मिठाचा वरणामधला खमंग होता

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈




मराठी साहित्य – विविधा ☆ डोळ्यांतले पाणी…भाग 9 ☆ सौ. अमृता देशपांडे ☆

सौ. अमृता देशपांडे

? विविधा ?

☆ डोळ्यांतले पाणी…भाग – 9 ☆ सौ. अमृता देशपांडे  

सध्याच्या digital युगाच्या झपाट्याने बदलत असलेल्या वेगानं पुढे जाणा-या जगात धावताना माणसाच्या संवेदना बोथट झाल्या आहेत की काय असे वाटू लागले आहे. जे नैसर्गिक होतं ते कृत्रिम झाले आहे. हल्ली रडावंसं वाटतं असताना रडलं तर लोक हसतील किंवा आपण कमकुवत ठरू म्हणून लोक रडण्याचं टाळतात, डोळ्यातलं पाणी परतवून लावतात. तेव्हा ते रडणारं ह्रदय घाबरतं आणि आपलं काम करताना त्याचाही तोल ढळतो. ह्रदयाच्या आजाराचं आणि अकार्यक्षमतेचं हे सुद्धा एक कारण असू शकतं. मन व शरीर यांची एकरूपता म्हणजे तंदुरुस्ती. अशी निरामय तंदुरुस्ती हवी असेल तर संवेदना बोथट होणार नाहीत याची काळजी घेतली पाहिजे. शारिरीक व मानसिक सुदृढतेसाठी आचार-विचार, आहार-विहार या सह हसू आणि आसू दोन्ही आवश्यक आहेत.

देवाने सृष्टी निर्माण करताना डोळ्यात पाण्याची देणगी दिली आहे. 

गाई म्हशी, कुत्रे घोडे, याकडे, हत्ती असे पशू रडून आपल्या भावना व्यक्त करतात. त्यांना अश्रू आवरण्याची बुद्धी नाही म्हणून ह्रदयाचे दुखणे नाही. या दैवी देणगी चा प्रसंगी अडवणूक  करून,  नाकारून आपण अपमान तर करत नाही ना असा विचार मनात येतो.

थोडक्यात काय तर आपल्या भावना आणि मन खुलेपणाने योग्य वेळी योग्य प्रकारे व्यक्त होणे महत्वाचे. सुख-दुःख, हसू-आसू, ऊन- सावली यांचं कुळ एकच. नैसर्गिकता. दुःख न मागता येतंच, सावली आपल्याला हवीच असते. मग आसू का नाकारायचे? ते सकारात्मतेने अंगिकारून व्यक्त करावेत. मन हलकं होतं……..

(क्रमशः… प्रत्येक मंगळवारी)

© सौ. अमृता देशपांडे 

पर्वरी – गोवा

9822176170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈