☆ अवयवदान – जनजागृती… लेखक : अज्ञात ☆ प्रस्तुती – श्री सुनील देशपांडे ☆
अवयव आणि देहदान महासंघ म्हणजेच Federation of Organ and Body Donationही संस्था ऊतीदान, देहदान व अवयवदानासाठी आपल्या अनेक जिल्हा शाखांमार्फत संपूर्ण महाराष्ट्र राज्यात काम करते. जसं नेत्रदान आणि त्वचा दान करता येतं, तसंच हृदय, यकृत, किडनी, पॅनक्रियाज, इंटेस्टाईन, फुफ्फुसे , गर्भाशय वगैरे अवयवांचेही दान करता येतं.
अर्थात वरील पैकी देहदान आणि त्वचा व नेत्रदान सोडता बाकीच्या गोष्टींचं दान फक्त ब्रेनडेड या मृतावस्थे पर्यंत पोहोचू शकणारे पुण्यवानच करु शकतात.
एक किडनी, यकृताचा काही भाग, गर्भाशय वगैरे काही जीवित व्यक्ती देखील दान करु शकते पण त्यासाठीचे कांही वेगळे नियम आहेत.
आपण गेल्यावर आपले देता येण्यासारखे अवयव दान देऊन आपण काही व्यक्तींना जीवनदान देऊ शकलो तर त्यापेक्षा अधिक आनंदाचे असे काय असेल?
अवयवदान केल्यानंतर देखील पार्थिवाचे, संबंधितांच्या धार्मिक प्रथेप्रमाणे अंत्यसंस्कार करता येऊ शकतात. तेव्हा धार्मिक क्रियाकर्म शक्य होतील का नाही, हा विचार मनात येत असेल तर त्याचं उत्तर निश्चीतच तुमच्या तुमच्या धर्मात लिहिल्याप्रमाणे अंत्यविधी करता येतील असंच आहे.
मुळात अशी इच्छा व्यक्त करुन डोनर कार्ड भरले तरी काही ठरावीक केसेस मधे ती इच्छा पुर्णत्वास नेणे अशक्य होते. (जसं कॅन्सर, एडस्, हेपाटायटिस वगैरे) तरी देखील आपली इच्छा नोंदवून तसे आपल्या जवळच्या कुटूंबियांस सांगणे व या संबंधी कुटुंबातील व्यक्ती व नातेवाईक यांचेशी वारंवार चर्चा करीत रहाणे केव्हाही उत्तमच.*
आपल्यापैकी कोणाला जर ह्या विषयी अधिक माहिती जाणून घ्यायची असेल, मनात असलेल्या शंकांचे समाधान करून घ्यायचे असेल,
आणि
आपणाकडे माईकची सोय असेल अथवा नसेल……
बंदिस्त सभागृह असेल अथवा नसेल……
मानधन देण्याची तयारी असेल अथवा नसेल……
कार्यकर्त्यांची फौज असेल अथवा नसेल……
पॉवर पॉइंट सादरीकरणाची सोय असेल अथवा नसेल……
अशा कोणत्याही अनुकूल अथवा प्रतिकूल परिस्थितीत अवयवदानाच्या जागृती / प्रबोधन कार्यक्रमासाठी महाराष्ट्रात कोठेही आपण कमितकमी १०० व जास्तीतजास्त ५००० श्रोते जमा करू शकत असाल
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपके “लो, फिर से एक साल रीत गए…”।)
☆ तन्मय साहित्य #211 ☆
☆ लो, फिर से एक साल रीत गए… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
(आँग्ल नव वर्ष की आप सभी साथियों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ एक काव्य रचना..)
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “भोर…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 35 ☆ भोर… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – दुनिया
समारोह के आमंत्रितों की सूची बनकर तैयार थी। जुगाड़ लगाकर प्रदेश के एक राज्यमंत्री को बुला लिया था। शहर के प्रमुख अख़बार के संपादक और एक चैनल के एक्जिक्यूटिव एडिटर थे। सूची में कलेक्टर थे, डीएसपी थे। कई बड़े उद्योगपति, जाने-माने वकील थे। अभिनेत्री को तो बाकायदा पेमेंट देकर ‘सेलिब्रिटी इनवाइटी’ बनाया था।
‘वे सब लोग आ रहे हैं जिनके दम पर दुनिया चलती है..’ लोअर डिवीजन की क्लर्की से रिटायर हुए अपने वयोवृद्ध पिता को लिस्ट दिखाते हुए इतरा कर साहब ने कहा।
‘ देखूँ ज़रा.., पर इसमें ईश्वर का नाम तो दिखता ही नहीं कहीं जिसके दम पर..,’ पिता ने चश्मे की गहरी नजर से एक-एक शब्द ध्यान से पढ़ते हुए अधूरा वाक्य कहकर अपनी बात पूरी की थी।
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(वरिष्ठ साहित्यकारश्री अरुण कुमार दुबे जी,उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “न पहले से मौसम, न अब वो फ़ज़ाएँ…“)
न पहले से मौसम, न अब वो फ़ज़ाएँ … ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय आलेखों की शृंखला – रामचरित मानस में स्थापत्य एवं वास्तु शास्त्रीय वर्णन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 251 ☆
आलेख – रामचरित मानस में स्थापत्य एवं वास्तु शास्त्रीय वर्णन – भाग-2
लंका :-
अयोध्या, जनकपुर के बाद जो एक बड़ी नगरी मानस में वर्णित है, वह हे रावण की सोने की लंका। लंका में एक स्वतंत्र भव्य प्राचीन बाटिका है, “अशोक वटिका” जहाँ रावण ने अपहरण के बाद माँ सीता को रखा था। लंका का वर्णन एक किले के रूप में है –
गिरि पर चढ़ी लंका तह देखी ।
कहि न जाइ अति दुर्ग विशेषी ।।
कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदराय तना घना ।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीशीं, चारूपुर बहु बिधि बना ।।
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गने ।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहीं बनें ॥
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापी सोहहिं ।
नर नाग सुर गंधर्व कन्या रूप मुनि मन मोहहिं ।।
सुन्दर काण्ड 5/3 लंका सोने की है। वहां सुन्दर-सुन्दर घर है। चौराहे, बाजार, सुन्दर मार्ग और गलियां है। नगर बहुत तरह से सजा हुआ है। नगर की रक्षा हेतु चारों ओर सैनिक तैनात है। नगर में एक प्रवेश द्वार है। लंका में विभीषण के महल का वर्णन करते हुये गोस्वामी जी ने लिखा है कि –
रामायुध अंकित गृह शोभा वरनि न जाय । नव तुलसिका वृंद तहं देखि हरषि कपिराय ।।
रावण के सभागृह का वर्णन, लंकादहन एवं श्रीराम दूत अंगद के प्रस्ताव के संदर्भ में मिलता है। इसी तरह समुद्र पर तैरता हुआ सेतु बनाने का प्रसंग वर्णित है जिसमें समुद्र स्वयं सेतु निर्माण की प्रक्रिया श्रीराम को बताता है।
भी “नाथ नील” नल कपि दो भाई। लरकाई ऋषि आसिष पाई ।
तिन्ह के परस किए गिरि भारे। तरहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे ।।
‘एडम्स ब्रिज’ के रूप में आज भी भौगोलिक नक्शे पर इसके अवशेष विद्यमान है। यांत्रिकीय उन्नति के उदाहरण स्वरूप पुष्पक विमान, आयुध उन्नति के अनेक उदाहरण युद्धों में प्रयुक्त उपकरणों के मिलते हैं। स्थापत्य जो आधारभूत अभियांत्रिकी है, के अनेक उदाहरण विभिन्न नगरों के वर्णन में मिलते है। ये उदाहरण गोस्वामी तुलसीदास के परिवेश एवं अनुभव जनित एवं भगवान राम के प्रति उनके प्रेम स्वरूप काव्य कल्पना से अतिरंजित भी हो सकते है, किन्तु यह सुस्पष्ट है कि मानस के अनुसार राम के युग में स्थापत्य कला सुविकसित थी। अंत में यह आध्यत्मिक उल्लेख आवश्ययक जान पड़ता है कि सारे सुविकसित वास्तु और स्थापत्य के बाद भी श्रीराम बसते है मन मंदिर में।
☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-५ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
(पिछला मॉलीन्नोन्ग, चेरापुंजी और भी कुछ)
प्रिय पाठकगण,
कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)
फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)
लिव्हींग रूट ब्रिज
इन सबमें “नव नवीन नयनोत्सव” का नयनाभिराम दृश्य दर्शाने वाला, परन्तु ट्रेकिंग करनेवाले धुरन्धर पर्यटकों को दातों तले चने चबाने के लिए मजबूर करने वाला पुल यानि “चेरापुंजी का डबल डेकर (दो मंजिला) लिव्हींग रूट ब्रिज!” मित्रों, आपके लिए अगर संभव हो तो यह जो (एक के नीचे एक ऋणानुबंध रखनेवाले) चमत्कार का शिखर और मेघालय की शान है, वह “डबल डेकर लिव्हींग रूट ब्रिज” नामक महदाश्चर्य जरूर देखें! परन्तु वहां पहुँचने के लिए जबरदस्त ट्रेकिंग करना पड़ता है| मैंने तो केवल उसका फोटो देखते ही उसे मन ही मन साष्टांग कुमनो कर डाला! ‘Jingkieng Nongriat’ इस नाम का, सबसे लम्बा (तीस मीटर) यह जिन्दा पुल २४०० फ़ीट की ऊंचाई पर है, चेरापुंजीसे ४५ किलोमीटर दूर Nongriat इस गांव में! ये पुल “विश्व विरासत स्थल” के रूप में घोषित किये गए हैं|
मित्रों, ऐसा कोई भी जिन्दा पुल नदीपर लटकता रहता है| नदी के निकट पहुँचने के लिए ऊंचाई पर स्थित पर्वतश्रृंखला से (उपलब्ध) राह से नीचे उतरिये, पुल देखिये, हो सके तो ईश्वर और पथदर्शक (गाईड) का नामस्मरण करते हुए पुल पार कीजिये, वन प्रकृति सम्पदा का आनंद जरूर लें, परन्तु गाईड या स्थानिकों के आदेश का पालन करते हुए ही पानी के निकट जाना, पानी में उतरना आदि कार्यक्रम सम्पन्न करें और फिर पर्वत पर चढ़ाई कीजिये! यह है अधिक थकाने वाला, क्योंकि, उत्साह की कमी और थकावट ज्यादा! साथ में पेय जल तथा जंगल की ही लाठी रहने दें| कैमरा और अपना संतुलन सम्हालिए और जितना बस में हो, उतने ही फोटो खींचिए! (सेल्फी का काम सावधानी से करें| वहाँ जगह जगह पर सेल्फी के लिए डेंजर झोन निर्देशित किये हैं, “लेकिन कौन कम्बख्त ध्यान देता है!!!”)
मॉलीन्नोन्ग से रास्ता है सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज देखने का! मेघालय की यह अनोखी संरचना पहली बार देखने के बाद और उस पुल पर चलते हुए मुझे सचमुच ही यह अहसास हुआ जैसे मैं अपने पैरों से किसी का दिल तार तार करते हुए जा रही हूँ! हमने सिंगल रूट ब्रिज देखा, वहाँ जाने के दो रास्ते हैं, मॉलीन्नोन्ग से जाने वाला कठिन, बहुत ही फिसलन भरा और टेढ़ामेढ़ा, ऐसा जहाँ सीढ़ियां तथा बॅरिकेड भी नहीं, रास्ते में छोटे बड़े चट्टान भरे हैं! मैनें वह बड़े मुश्किल से पार किया| दूसरे ही दिन एक और ब्रिज देखने की तैयारी से मालिनॉन्ग के बाहर निकले! Pynursa पार किया, यहाँ के होटल में खाने के लिए काफी सारी चीजें दिखीं| इस बड़े गांव में ATM तो है, लेकिन वह कभी बंद रहता है, कभी मशीन में पैसे नहीं होते| इसीलिये अपने साथ नकद राशि जरूर रखें! ‘Nohwet’ इस स्थान से नीचे बॅरिकेड सहित अच्छी तरह बनी हुई सीढ़ियों से उतर कर देखा तो अचरज से देखते ही रहे हम, कल का ही सिंगल रूट ब्रिज नज़र आया! यह डबल दर्शन लुभावना तो था ही, परन्तु यहाँ लेकर आने वाला यह आसान सा रास्ता (आपको मालूम हो इसलिए) भी मिल गया!
हमने Mawkyrnot नामक गांव से रास्ता पकड़ते हुए एक और सिंगल रूट ब्रिज देखा| यह गांव पूर्व खासी पर्वतों के Pynursla सब डिव्हिजन यहाँ बसा हुआ है| नदी किनारे पहुँचने को अच्छी बनी हुई बैरिकेड समेत सीढ़ियां हैं| करीबन १००० से भी अधिक सीढ़ियां उतरकर हम नीचे पहुंचे| पुल के नाम पर (नदी के ऊपर हवा में तैरता हुआ) ४-५ बांसों का बना हुआ झूलता पुल देख मैं इसी किनारे पर रुक गई! मेरे परिवार के सदस्य (बेटी, दामाद और पोती) स्थानीय गाईडकी सहायता से उस-पार पहुंचे और वहां का प्रकृति दर्शन करने के बाद वहां से (करीब २० मीटर अन्तर पर बने) दूसरे वैसे ही पुल से इस-पार वापस आ गए| उनके आने तक मैंने इधर ईश्वर का नाम लेते हुए जैसे-तैसे उनके और पुल के फोटो खींचे| इस स्थानीय गाइड ने सीढ़ियां चढ़ने और उतरने में मेरी बहुत मदद तो की ही, परन्तु मेरा मनोबल कई गुना बढ़ाया| इस अत्यंत नम्र और शालीन लड़के का नाम है Walbis, उम्र केवल २१ साल! दोपहर के भोजन के पश्चात् मेरे घर वालों को इससे भी अधिक कठिनतम शिलियांग जशार (Shilliang Jashar) इस गांव के बांस के ब्रिज पर जाना था, परन्तु मैंने गाइड की सलाह और मेरी सीमित क्षमता को ध्यान में रख कर उस पुल की राह को अनदेखा किया|
हम सैली के सुन्दर “साफी होम कॉटेज (Safi home cottage) को अलविदा करते हुए अगले सफर पर निकल पड़े| हम मॉलीन्नोन्ग से लगभग ३० किलोमीटर दूर डॉकी (Dawki) के तरफ निकले| मित्रों, मुंबई से गुवाहाटी की यात्रा हवाई जहाज से तय करने के बाद मेघालय का पूरा सफर हमने कार से ही किया| यह ध्यान रखें कि, यहाँ रेल यात्रा नहीं है| यह गांव मेघालय के पश्चिम जयन्तिया हिल्स जिले में है| डॉकी(उम्न्गोट) नदी पर एक कर्षण सेतु (traction bridge) बना है| १९३२ में अंग्रेजों ने इस पुल का निर्माण किया| इस नदी का जल इतना स्वच्छ है कि, कभी कभी अपनी नाव हवा में तैरने का आभास हो सकता है| यहाँ का नयनाभिराम दृश्य तथा नौका विहार यहीं प्रमुख आकर्षण है! यह गांव भारत और बांग्ला देश की सीमा पर है! नदी भी दोनों देशों में इसी तरह विभाजित हुई है। एक ही नदी पर विहार करती हैं बांग्लादेश की मोटर बोट और भारत देश की नाविकों द्वारा ‘चप्पा चप्पा’ चलाई गई सरल बोट! यह है दोनों देशों को जोड़ने वाला एक रास्ता! जाते हुए दोनों देशों की चेक पोस्ट दिखती हैं| डॉकी यह भारत की चेकपोस्ट तो तमाबील है बांग्ला देश की चेकपोस्ट!
मित्रों, इस नौकाविहार का स्वर्गसुख कुछ अलग ही है, ह्रदय और नेत्रों में सकल संपूर्ण संचय कर लें ऐसा! नाविक द्वारा चलायी हुई विलंबित ताल जैसी डोलते डोलते धीरे धीरे आगे सरकती हुई नौका, यहाँ वहाँ नौका से टकराकर निर्मल से भी निर्मल और संगीतमय बने जल-तरंग, दोनों किनारों पर नदी को मानों कस कर जकड़ने वाले वृक्षवल्लरियों की हरितिमा के बाहुपाश! निर्मल नीर के कारण उनकी छाया हरियाली सी, तो उससे सटकर नीलमणी सी या मेघाच्छादित गहरे रंग की छाया, बीच बीच में नदी के तल के अलग अलग पाषाण भी अपनी छटा बिखेर रहे थे! सारांश में कहूं तो सिनेमास्कोपिक पॅनोरमा! कहीं भी कॅमेरा लगाइये और प्रकृति के रंगों की क्रीडा छायांकित कर लीजिये! बीच में इस सिनेमास्कोप सिनेमा का चाहे तो इंटर्वल समझ लीजिये, छोटा सा रेतीला किनारा, वहां भी मॅगी, चिप्स तथा तत्सम पदार्थों की सर्विस देने के लिए एक मेघालय सुंदरी हाज़िर थी| कोल्ड ड्रिंक को अति कोल्ड बनाने के लिए नदी के किनारे छोटेसे फ्रिज जैसा जुगाड करने वाला उसका पति खास ही था ! नदी किनारे पर छोटे बड़े पर्यटक सुन्दर पत्थर (और क्या कहूं) या चट्टान इकठ्ठा करने में जुट गए| वापसी की यात्रा बिलकुल भी सुहा नहीं रही थी, परन्तु नाविक को “ना-ना” कहते हुए भी आखिरकार उसने नांव किनारे लगा ही दी|
टाइम प्लीज!!!
प्रिय पाठकों, यूँ समझिये एक घडी आपकी कलाई पर बंधी है और एक आसानी से दिखने वाली घडी आप के स्मार्ट फोन पर मौजूद है, होगी तो जरूर! आप जो आसान होगा वहीं देखेंगे ना! परन्तु अगर आप बांग्ला देश की सीमा के आसपास घूम रहे हों, तो मजेदार किस्सा देखने को मिलेगा| हमें स्थानीय लोगों ने बतलाया इसलिए अच्छा हुआ, वर्ना बहस तो होनी ही थी| बांग्ला देश की (केवल) घडी हमारे देश से ३० मिनट आगे है और अपुन के स्मार्ट फ़ोन को (अनचाहे वक्त पर ही) ज्यादा स्मार्टनेस दिखाने की आदत तो है ही! उसने अगर उस देश का नेटवर्क पकड़ा तो स्मार्ट फ़ोन की घडी आगे और कलाई वाली घडी यहाँ का समय बताएगी! इसलिए ऐसे स्थानों पर (बांग्ला देश की सीमा के आसपास) भारत के सुजान तथा देशभक्त नागरिक के नाते आप कलाई वाली घडी की मर्जी सम्हालें और स्मार्ट फ़ोन को थोड़ा कण्ट्रोल में रखें! हमने काफी जगहों पर यह अनुभव लिया! थोडासा और किस्सा अभी भी बाकी है जी! बांग्ला देश की सीमा और हमारे बीच के अंतर के अनुसार स्मार्ट घडी तय करती है कि वह कितनी आगे जाएगी|
अगले भाग में हम साथ साथ सफर करेंगे मेघजल से सरोबार चेरापूंजी ! आइये, तब तक हम और आप सर्दियों की रजाई को ओढ़ आनन्द विभोर होते रहें!
फिर एक बार खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!
टिप्पणी
लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!
गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ, उन्हें सुनकर और देखकर आपका आनंद द्विगुणित होगा ऐसी आशा करती हूँ!
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आड़े तिरछे लोग…“।)
अभी अभी # 241 ⇒ एक लोटा जल… श्री प्रदीप शर्मा
सन् १९७१ में के. ए.अब्बास की एक फिल्म आई थी, दो बूंद पानी, जिसमें परवीन सुल्ताना और मीनू पुरुषोत्तम का एक बड़ा प्यारा सा गीत था ;
पीतल की मोरी गागरी,
दिल्ली से है मोल मंगाई !
यहां विरोधाभास देखिए, कहां दो बूंद पानी और कहां पीतल की गागरी, यानी वही ऊंट के मुंह में जीरा।
एक लोटा जल, हमारा आदर्श सनातन माप है, एक लोटे जल में प्यासे की प्यास भी बुझ जाती है, और रसोई के भी कई काम निपट जाते हैं। लाठी में गुण की तो बहुत बात कर गए गिरधर कविराय, लेकिन कभी किसी भले आदमी ने एक लोटा जल के महत्व पर प्रकाश नहीं डाला।।
लोटा और बाल्टी किस घर में नहीं होते। बचपन में सुबह नहाते वक्त ठंडा गरम, जैसा भी जल उपलब्ध हो, जब लोटे से स्नान किया जाता था, तो मुंह से ॐ नमः शिवाय निकल ही जाता था। एक पंथ दो काज, खुद का स्नान और शिव जी का अभिषेक भी। आत्म लिंग शिव तो सर्वत्र व्याप्त और विराजमान है, मुझमें भी और तुझ में भी।
शिव जी ने गंगा को अपनी जटा में स्थान दिया और जटाशंकर कहलाए। नर्मदा नदी का हर कंकर एक शंकर है, जिसका हर पल नर्मदा मैया की लहरों द्वारा अभिषेक होता है। महाकाल उज्जैन में रोज प्रातः भस्म आरती होती है, और तत्पश्चात् शिव जी का अभिषेक होता है। जिसका लाइव दर्शन व्हाट्सएप पर करोड़ों श्रद्धालु नियमित रूप से करते हैं।।
सब एक लोटा जल की महिमा है। सभी मंदिरों में आपको शिवजी और नंदी महाराज भी प्रतिष्ठित मिलेंगे। श्रद्धालु जाते हैं, एक लोटा जल से शिवजी का अभिषेक करते हैं, और नंदी के कान में भी कुछ कहने से नहीं चूकते।
कर्पूरगौरं करूणावतारं
संसारसारं भुजगेन्द्रहारं।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानि सहितं नमामि।।
पूजा आरती कहां इस मंत्र के बिना संपन्न होती है।
संत महात्मा जगत के कल्याण का बीड़ा उठाते हैं, कथा, सत्संग, प्रवचन, निरंतर चला ही करते हैं। कुछ लोग सुबह एक लोटा जल सूर्यनारायण को भी नियमित रूप से अर्पित करते हैं। जल ही जीवन है, एक लोटा जल के साथ यह जीवन भी आपको समर्पित है। तेरा तुझको अर्पण। ईश्वर और प्रकृति में कहां भेद है।।
सीहोर के संत ने तो एक लोटा जल की मानो अलख ही जगा दी है। चमत्कार को नमस्कार तो हम करते ही हैं। शिवजी को समर्पित एक लोटा जल का चमत्कार देखिए, उनके प्रवचन में लाखों भक्तों की भीड़ देखी जा सकती है। साधारण सी बात असाधारण तरीके से समझाए वही तो होते हैं, संत ही नहीं राष्ट्रीय संत।
आप इनकी महिमा और करुणा तो देखिए, लाखों भक्तों को मुफ्त में रुद्राक्ष वितरित कर रहे हैं। श्रद्धालुओं की भीड़ संभाले नहीं संभल रही है। बेचारे शिक्षकों को भी स्वयंसेवक बन अपनी सेवा देनी पड़ रही है।।
आप भी शिव जी को एक लोटा जल तो चढ़ाते ही होगे। उनकी कथाएं शिव पुराण पर ही आधारित होती हैं। संसार में अगर दुख दर्द ना होता, तो कौन ईश्वर और इन संतों की शरण में जाता। भक्ति, विवेक और वैराग्य अगर साथ हो, तो शायद इंसान इतना हर जगह ना भटके। आखिर किसी की शरण में तो जाना ही पड़ेगा इस इंसान को ;
लाख दुखों की एक दवा
सिर्फ एक लोटा जल ….
पहले किसी प्यासे को एक लोटा जल पिलाइए, उसका दुख दर्द मिटाइए, फिर प्रेम से शिवजी को भी जल चढ़ाइए।।
कितने भोले होते हैं ये भोले भंडारी के कथित देवदूत, इतनी यश, कीर्ति और प्रचार के बावजूद बस इतना ही विनम्र भाव से गाते रहते हैं ;