डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-५ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(पिछला मॉलीन्नोन्ग, चेरापुंजी और भी कुछ)

प्रिय पाठकगण,

कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

लिव्हींग रूट ब्रिज

इन सबमें “नव नवीन नयनोत्सव” का नयनाभिराम दृश्य दर्शाने वाला, परन्तु ट्रेकिंग करनेवाले धुरन्धर पर्यटकों को दातों तले चने चबाने के लिए मजबूर करने वाला पुल यानि “चेरापुंजी का डबल डेकर (दो मंजिला) लिव्हींग रूट ब्रिज!” मित्रों, आपके लिए अगर संभव हो तो यह जो (एक के नीचे एक ऋणानुबंध रखनेवाले) चमत्कार का शिखर और मेघालय की शान है, वह “डबल डेकर लिव्हींग रूट ब्रिज” नामक महदाश्चर्य जरूर देखें! परन्तु वहां पहुँचने के लिए जबरदस्त ट्रेकिंग करना पड़ता है| मैंने तो केवल उसका फोटो देखते ही उसे मन ही मन साष्टांग कुमनो कर डाला! ‘Jingkieng Nongriat’ इस नाम का, सबसे लम्बा (तीस मीटर) यह जिन्दा पुल २४०० फ़ीट की ऊंचाई पर है, चेरापुंजीसे ४५ किलोमीटर दूर Nongriat इस गांव में! ये पुल “विश्व विरासत स्थल” के रूप में घोषित किये गए हैं|

मित्रों, ऐसा कोई भी जिन्दा पुल नदीपर लटकता रहता है| नदी के निकट पहुँचने के लिए ऊंचाई पर स्थित पर्वतश्रृंखला से (उपलब्ध) राह से नीचे उतरिये, पुल देखिये, हो सके तो ईश्वर और पथदर्शक (गाईड) का नामस्मरण करते हुए पुल पार कीजिये, वन प्रकृति सम्पदा का आनंद जरूर लें, परन्तु गाईड या स्थानिकों के आदेश का पालन करते हुए ही पानी के निकट जाना, पानी में उतरना आदि कार्यक्रम सम्पन्न करें और फिर पर्वत पर चढ़ाई कीजिये! यह है अधिक थकाने वाला, क्योंकि, उत्साह की कमी और थकावट ज्यादा! साथ में पेय जल तथा जंगल की ही लाठी रहने दें| कैमरा और अपना संतुलन सम्हालिए और जितना बस में हो, उतने ही फोटो खींचिए! (सेल्फी का काम सावधानी से करें| वहाँ जगह जगह पर सेल्फी के लिए डेंजर झोन निर्देशित किये हैं, “लेकिन कौन कम्बख्त ध्यान देता है!!!”)

मॉलीन्नोन्ग से रास्ता है सिंगल डेकर लिव्हिंग रूट ब्रिज देखने का! मेघालय की यह अनोखी संरचना पहली बार देखने के बाद और उस पुल पर चलते हुए मुझे सचमुच ही यह अहसास हुआ जैसे मैं अपने पैरों से किसी का दिल तार तार करते हुए जा रही हूँ! हमने सिंगल रूट ब्रिज देखा, वहाँ जाने के दो रास्ते हैं, मॉलीन्नोन्ग से जाने वाला कठिन, बहुत ही फिसलन भरा और टेढ़ामेढ़ा, ऐसा जहाँ सीढ़ियां तथा बॅरिकेड भी नहीं, रास्ते में छोटे बड़े चट्टान भरे हैं! मैनें वह बड़े मुश्किल से पार किया| दूसरे ही दिन एक और ब्रिज देखने की तैयारी से मालिनॉन्ग के बाहर निकले! Pynursa पार किया, यहाँ के होटल में खाने के लिए काफी सारी चीजें दिखीं| इस बड़े गांव में ATM तो है, लेकिन वह कभी बंद रहता है, कभी मशीन में पैसे नहीं होते| इसीलिये अपने साथ नकद राशि जरूर रखें! ‘Nohwet’ इस स्थान से नीचे बॅरिकेड सहित अच्छी तरह बनी हुई सीढ़ियों से उतर कर देखा तो अचरज से देखते ही रहे हम, कल का ही सिंगल रूट ब्रिज नज़र आया! यह डबल दर्शन लुभावना तो था ही, परन्तु यहाँ लेकर आने वाला यह आसान सा रास्ता (आपको मालूम हो इसलिए) भी मिल गया!

हमने Mawkyrnot नामक गांव से रास्ता पकड़ते हुए एक और सिंगल रूट ब्रिज देखा| यह गांव पूर्व खासी पर्वतों के Pynursla सब डिव्हिजन यहाँ बसा हुआ है| नदी किनारे पहुँचने को अच्छी बनी हुई बैरिकेड समेत सीढ़ियां हैं| करीबन १००० से भी अधिक सीढ़ियां उतरकर हम नीचे पहुंचे| पुल के नाम पर (नदी के ऊपर हवा में तैरता हुआ) ४-५ बांसों का बना हुआ झूलता पुल देख मैं इसी किनारे पर रुक गई! मेरे परिवार के सदस्य (बेटी, दामाद और पोती) स्थानीय गाईडकी सहायता से उस-पार पहुंचे और वहां का प्रकृति दर्शन करने के बाद वहां से (करीब २० मीटर अन्तर पर बने) दूसरे वैसे ही पुल से इस-पार वापस आ गए| उनके आने तक मैंने इधर ईश्वर का नाम लेते हुए जैसे-तैसे उनके और पुल के फोटो खींचे| इस स्थानीय गाइड ने सीढ़ियां चढ़ने और उतरने में मेरी बहुत मदद तो की ही, परन्तु मेरा मनोबल कई गुना बढ़ाया| इस अत्यंत नम्र और शालीन लड़के का नाम है Walbis, उम्र केवल २१ साल! दोपहर के भोजन के पश्चात् मेरे घर वालों को इससे भी अधिक कठिनतम शिलियांग जशार (Shilliang Jashar) इस गांव के बांस के ब्रिज पर जाना था, परन्तु मैंने गाइड की सलाह और मेरी सीमित क्षमता को ध्यान में रख कर उस पुल की राह को अनदेखा किया|

डॉकी/उम्न्गोट (Dawki/Umngot) नदीपर नयनरम्य नौकानयन

हम सैली के सुन्दर “साफी होम कॉटेज (Safi home cottage) को अलविदा करते हुए अगले सफर पर निकल पड़े| हम मॉलीन्नोन्ग से लगभग ३० किलोमीटर दूर डॉकी (Dawki) के तरफ निकले| मित्रों, मुंबई से गुवाहाटी की यात्रा हवाई जहाज से तय करने के बाद मेघालय का पूरा सफर हमने कार से ही किया| यह ध्यान रखें कि, यहाँ रेल यात्रा नहीं है| यह गांव मेघालय के पश्चिम जयन्तिया हिल्स जिले में है| डॉकी(उम्न्गोट) नदी पर एक कर्षण सेतु (traction bridge) बना है| १९३२ में अंग्रेजों ने इस पुल का निर्माण किया| इस नदी का जल इतना स्वच्छ है कि, कभी कभी अपनी नाव हवा में तैरने का आभास हो सकता है| यहाँ का नयनाभिराम दृश्य तथा नौका विहार यहीं प्रमुख आकर्षण है! यह गांव भारत और बांग्ला देश की सीमा पर है! नदी भी दोनों देशों में इसी तरह विभाजित हुई है। एक ही नदी पर विहार करती हैं बांग्लादेश की मोटर बोट और भारत देश की नाविकों द्वारा ‘चप्पा चप्पा’ चलाई गई सरल बोट! यह है दोनों देशों को जोड़ने वाला एक रास्ता! जाते हुए दोनों देशों की चेक पोस्ट दिखती हैं| डॉकी यह भारत की चेकपोस्ट तो तमाबील है बांग्ला देश की चेकपोस्ट!

मित्रों, इस नौकाविहार का स्वर्गसुख कुछ अलग ही है, ह्रदय और नेत्रों में सकल संपूर्ण संचय कर लें ऐसा! नाविक द्वारा चलायी हुई विलंबित ताल जैसी डोलते डोलते धीरे धीरे आगे सरकती हुई नौका, यहाँ वहाँ नौका से टकराकर निर्मल से भी निर्मल और संगीतमय बने जल-तरंग, दोनों किनारों पर नदी को मानों कस कर जकड़ने वाले वृक्षवल्लरियों की हरितिमा के बाहुपाश! निर्मल नीर के कारण उनकी छाया हरियाली सी, तो उससे सटकर नीलमणी सी या मेघाच्छादित गहरे रंग की छाया, बीच बीच में नदी के तल के अलग अलग पाषाण भी अपनी छटा बिखेर रहे थे! सारांश में कहूं तो सिनेमास्कोपिक पॅनोरमा! कहीं भी कॅमेरा लगाइये और प्रकृति के रंगों की क्रीडा छायांकित कर लीजिये! बीच में इस सिनेमास्कोप सिनेमा का चाहे तो इंटर्वल समझ लीजिये, छोटा सा रेतीला किनारा, वहां भी मॅगी, चिप्स तथा तत्सम पदार्थों की सर्विस देने के लिए एक मेघालय सुंदरी हाज़िर थी| कोल्ड ड्रिंक को अति कोल्ड बनाने के लिए नदी के किनारे छोटेसे फ्रिज जैसा जुगाड करने वाला उसका पति खास ही था ! नदी किनारे पर छोटे बड़े पर्यटक सुन्दर पत्थर (और क्या कहूं) या चट्टान इकठ्ठा करने में जुट गए| वापसी की यात्रा बिलकुल भी सुहा नहीं रही थी, परन्तु नाविक को “ना-ना” कहते हुए भी आखिरकार उसने नांव किनारे लगा ही दी|

टाइम प्लीज!!!      

प्रिय पाठकों, यूँ समझिये एक घडी आपकी कलाई पर बंधी है और एक आसानी से दिखने वाली घडी आप के स्मार्ट फोन पर मौजूद है, होगी तो जरूर! आप जो आसान होगा वहीं देखेंगे ना! परन्तु अगर आप बांग्ला देश की सीमा के आसपास घूम रहे हों, तो मजेदार किस्सा देखने को मिलेगा| हमें स्थानीय लोगों ने बतलाया इसलिए अच्छा हुआ, वर्ना बहस तो होनी ही थी| बांग्ला देश की (केवल) घडी हमारे देश से ३० मिनट आगे है और अपुन के स्मार्ट फ़ोन को (अनचाहे वक्त पर ही) ज्यादा स्मार्टनेस दिखाने की आदत तो है ही! उसने अगर उस देश का नेटवर्क पकड़ा तो स्मार्ट फ़ोन की घडी आगे और कलाई वाली घडी यहाँ का समय बताएगी! इसलिए ऐसे स्थानों पर (बांग्ला देश की सीमा के आसपास) भारत के सुजान तथा देशभक्त नागरिक के नाते आप कलाई वाली घडी की मर्जी सम्हालें और स्मार्ट फ़ोन को थोड़ा कण्ट्रोल में रखें! हमने काफी जगहों पर यह अनुभव लिया! थोडासा और किस्सा अभी भी बाकी है जी! बांग्ला देश की सीमा और हमारे बीच के अंतर के अनुसार स्मार्ट घडी तय करती है कि वह कितनी आगे जाएगी|

अगले भाग में हम साथ साथ सफर करेंगे मेघजल से सरोबार चेरापूंजी ! आइये, तब तक हम और आप सर्दियों की रजाई को ओढ़ आनन्द विभोर होते रहें!

फिर एक बार खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!

टिप्पणी

  • लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें और वीडियो (कुछ को छोड़) व्यक्तिगत हैं!
  • गाने और विडिओ की लिंक साथ में जोड़ रही हूँ, उन्हें सुनकर और देखकर आपका आनंद द्विगुणित होगा ऐसी आशा करती हूँ!

https://photos.app.goo.gl/ECQMhQH2MeDsvZjD9

डॉकी नदी पर नौकानयन

https://photos.app.goo.gl/FkaX8dvATm2vCDkF9

डॉकी नदीकिनारे पर बनाया हुआ टेम्पररी फ्रिज, एक लोकल जुगाड!

क्रमशः -6

© डॉ. मीना श्रीवास्तव

८ जून २०२२     

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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