(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय आलेखों की शृंखला – रामचरित मानस में स्थापत्य एवं वास्तु शास्त्रीय वर्णन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 251 ☆

? आलेख – रामचरित मानस में स्थापत्य एवं वास्तु शास्त्रीय वर्णन – भाग-2 ?

लंका :-

अयोध्या, जनकपुर के बाद जो एक बड़ी नगरी मानस में वर्णित है, वह हे रावण की सोने की लंका। लंका में एक स्वतंत्र भव्य प्राचीन बाटिका है, “अशोक वटिका” जहाँ रावण ने अपहरण के बाद माँ सीता को रखा था। लंका का वर्णन एक किले के रूप में है –

गिरि पर चढ़ी लंका तह देखी ।

कहि न जाइ अति दुर्ग विशेषी ।।

कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुंदराय तना घना ।

चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीशीं, चारूपुर बहु बिधि बना ।।

गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गने ।

बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहीं बनें ॥

बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापी सोहहिं ।

नर नाग सुर गंधर्व कन्या रूप मुनि मन मोहहिं ।।

सुन्दर काण्ड 5/3 लंका सोने की है। वहां सुन्दर-सुन्दर घर है। चौराहे, बाजार, सुन्दर मार्ग और गलियां है। नगर बहुत तरह से सजा हुआ है। नगर की रक्षा हेतु चारों ओर सैनिक तैनात है। नगर में एक प्रवेश द्वार है। लंका में विभीषण के महल का वर्णन करते हुये गोस्वामी जी ने लिखा है कि –

 रामायुध अंकित गृह शोभा वरनि न जाय । नव तुलसिका वृंद तहं देखि हरषि कपिराय ।।

रावण के सभागृह का वर्णन, लंकादहन एवं श्रीराम दूत अंगद के प्रस्ताव के संदर्भ में मिलता है। इसी तरह समुद्र पर तैरता हुआ सेतु बनाने का प्रसंग वर्णित है जिसमें समुद्र स्वयं सेतु निर्माण की प्रक्रिया श्रीराम को बताता है।

 भी “नाथ नील” नल कपि दो भाई। लरकाई ऋषि आसिष पाई ।

तिन्ह के परस किए गिरि भारे। तरहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे ।।

‘एडम्स ब्रिज’ के रूप में आज भी भौगोलिक नक्शे पर इसके अवशेष विद्यमान है। यांत्रिकीय उन्नति के उदाहरण स्वरूप पुष्पक विमान, आयुध उन्नति के अनेक उदाहरण युद्धों में प्रयुक्त उपकरणों के मिलते हैं। स्थापत्य जो आधारभूत अभियांत्रिकी है, के अनेक उदाहरण विभिन्न नगरों के वर्णन में मिलते है। ये उदाहरण गोस्वामी तुलसीदास के परिवेश एवं अनुभव जनित एवं भगवान राम के प्रति उनके प्रेम स्वरूप काव्य कल्पना से अतिरंजित भी हो सकते है, किन्तु यह सुस्पष्ट है कि मानस के अनुसार राम के युग में स्थापत्य कला सुविकसित थी। अंत में यह आध्यत्मिक उल्लेख आवश्ययक जान पड़ता है कि सारे सुविकसित वास्तु और स्थापत्य के बाद भी श्रीराम बसते है मन मंदिर में।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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