हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१६॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१६॥ ☆

 

त्वय्य आयन्तं कृषिफलम इति भ्रूविकारान अभिज्ञैः

प्रीतिस्निग्धैर्जनपदवधूलोचनैः पीयमानः

सद्यःसीरोत्कषणसुरभि क्षेत्रम आरुह्य मालं

किंचित पश्चाद व्रज लघुगतिर भूय एवोत्तरेण॥१.१६॥

 

कृषि के तुम्हीं प्राण हो इसलिये

नित निहारे गये कृषक नारी नयन से

कर्षित, सुवासिक धरा को सरस कर

तनिक बढ़, उधर मुड़ विचरना गगन से

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 36 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 36 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 36) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 36☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 बुला  रही  हैं  हमें

 तल्ख़ियाँ हक़ीक़त की

 ख़याल-ओ-ख़्वाब की

 दुनिया से अब निकलते हैं..

 

Calling us are the bitter

 realities  of  the  life…

 It’s time to come out of the

 world of dream n euphoria

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 रास्ता है कि कटता

 चला जाता है…

और फ़ासला है कि

 कम ही नहीं होता…

 

The way keeps  

 on  going  past…

But, the damn distance

 never reduces only…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

आज परछाईं से पूछ ही लिया,

 क्यों चलती हो तुम मेरे साथ

उसने भी हँस कर कहा,

 और कौन है बता तेरे साथ…!!

 

Today I asked the shadow,

 Why d’you accompany me

It retorted laughingly, tell me

 Who else is there with you!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

  उजालों में तो मिल जाएगा

 कोई  साथ  निभाने  वा‌ला

 तलाश  तो  उनकी  करो

 जो अंधेरे में भी साथ दे…

 

You  will  always  find

 someone  in  the  light

Look for someone who’ll be

 with you even in darkness!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 37 ☆ छंद सप्तक ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  ‘छंद सप्तक। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 37 ☆ 

☆ छंद सप्तक ☆ 

दोहा:

उषा गाल पर मल रहा, सूर्य विहँस सिंदूर।

कहे न तुझसे अधिक है, सुंदर कोई हूर।।

*

सोरठा

सलिल-धार में खूब,नृत्य करें रवि-रश्मियाँ।

जा प्राची में डूब, रवि ईर्ष्या से जल मरा।।

*

रोला

संसद में कानून, बना तोड़े खुद नेता।

पालन करे न आप, सीख औरों को देता।।

पाँच साल के बाद, माँगने मत जब आया।

आश्वासन दे दिया, न मत दे उसे छकाया।।

*

कुण्डलिया

बरसाने में श्याम ने, खूब जमाया रंग।

मैया चुप मुस्का रही, गोप-गोपियाँ तंग।।

गोप-गोपियाँ तंग, नहीं नटखट जब आता।

माखन-मिसरी नहीं, किसी को किंचित भाता।।

राधा पूछे “मजा, मिले क्या तरसाने में?”

उत्तर “तूने मजा, लिया था बरसाने में??”

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१५॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१५॥ ☆

 

रत्नच्चायाव्यतिकर इव प्रेक्ष्यमेतत्पुरस्ताद

वल्मीकाग्रात प्रभवति धनुःखण्डम आखण्डलस्य

येन श्यामं वपुर अतितरां कान्तिम आपत्स्यते ते

बर्हेणेव स्फुरितरुचिना गोपवेषस्य विष्णोः॥१.१५॥

 

यथा कृष्ण का श्याम वपु गोपवेशी

सुहाता मुकुट मोरपंखी प्रभा से

तथा रत्नछबि सम सतत शोभिनी

कान्ति पाओगे तुम इन्द्र धनु की विभा से

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 24 ☆ चले गए जो छोड़कर आती उनकी याद ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  के अप्रतिम दोहे “चले गए जो छोड़कर आती उनकी याद।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 24 ☆

☆ चले गए जो छोड़कर आती उनकी याद  ☆

चले गए जो छोड़कर आती उनकी याद

कानों में नित  गूंजते उनके आशीर्वाद

 

सरस्वती की कृपा से जिनको प्रिय साहित्य

दुनिया के उलझाव से दूर वही है नित्य

 

हर एक के मन में सदा उठते अगणित भाव

जो जीवन में डालते रहते कई प्रभाव

 

सदा सत्य होते नहीं सब के सब अनुमान

लक्ष्य प्राप्ति के लिए नित आवश्यक अनुसंधान

 

विपदार्ओ से जूझ जो स्वतः बनाते राह

करने उनका अनुकरण मन नित रख उत्साह

 

रहते सबके साथ भी रहिए जग से दूर

जिसे आत्मविश्वास व सुखी सदा भरपूर

 

कैसे कोई पूर्ण हो उनके मन की चाह

औरों को जो कोसते रह खुद लापरवाह

 

अगर प्रेम का भाव है सुखी तो सब परिवार

दुख चिंता बढ़ती सदा आप पाकर के अधिकार

 

मन को वश में राखिए यदि है खुद से प्यार

मन के वश में हो सदा दुखी हुआ संसार

 

मन की उतनी मानिए सधें जहाँ शुभ काम

सुने न मन की राय वह जिससे हो बदनाम

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ बातूनी ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ बातूनी ☆

नन्ही-सी थी

कितनी बड़ी हो चली है

बूँद-सी लगती थी

धारा बन बह चली है,

जीवन की गति पर

आश्चर्य जता रहा था

दर्पण में दिखती

अपनी उम्र से बतिया रहा था,

 

आश्चर्य पर हँस पड़ी वह

कुछ यूँ कहने लगी वह-

धीमे चलने, पिछड़ जाने

का सोग जीवन भर रहा

आगमन-गमन की घटती दूरी पर

कभी चिंतन ही न हुआ,

बीता कल, आता कल,

कल हुआ हरेक पल

भूत,भविष्य की चर्चा में

हाथ से निकला हर पल,

यह पल यथार्थ है

यह पल भावार्थ है

इस पल को साँसों में उतार लो

इस पल को रक्त में निचोड़ लो,

अन्यथा

दर्पण हमेशा है

बढ़ती उम्र हमेशा है

कल होता पल हमेशा है

और बातूनी तो

तुम हमेशा से हो ही!

 

©  संजय भारद्वाज

(प्रातः 7:19 बजे, 01.01.2019 )

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ताश के महल … ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।)

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी ने अपने उपनाम  प्रवीण ‘आफताब’ उपनाम से  अप्रतिम साहित्य की रचना की है। आज प्रस्तुत है आपकी ऐसी ही अप्रतिम रचना ताश के महल …

ताश के महल …

वहम होता  है लोगों  का ये

सारा जहाँ पा लिया है हमने

जमीं तो  जमीं, सारा आसमां

फ़तह  कर लिया  है  हमने…

 

दास्ताँ  नहीं, हक़ीक़त  है  ये

रेत के आशियाँ कभी टिकते नहीं

लोगों का ये  है भरम लेकिन,

ताश के महल कभी बनते नहीं…

 

गफ़लतों में रहना अब  छूट चुका

बस इक अदना सा  इंसान हूँ  मैं,

मिट्टी की सी अपनी औक़ात जान

राहें इंसानियत पे निकल पड़ा हूँ मैं

 

~प्रवीन आफ़ताब

© कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

पुणे

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ किरायेदार… ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश कुमार वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता किरायेदार…।)

☆ कविता  ☆ किरायेदार… ☆

इस संसार के आप

मालिक ही सही,

हम किराये दार हैं,

 

आप हमें साथ,

लेके चले, ना चले,

समय आपके, साथ है,

 

उड़, जाते है, हर रंग,

गुलिस्ताँ से,

वक़्त की आंधी,

के आगे, किसकी,

क्या बिसात, है,

 

कितने, कबीर,

फकीर, गाते रहे,

सब माटी के पुतले,

उसके ही किरदार हैं,

 

समझगें, दोनों, उस दिन,

जिस दिन,

पुतले, माटी में

मिल जाएंगे,

 

कोंन, रे, मालिक

कौन, किराएदार, रे,

ये मौत ही समझाये,

ये मौत ही समझाये…

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)
मो 7746001236

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१४॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.१४॥ ☆

 

अद्रेः शृङ्गं हरति पवनः किं स्विद इत्य उन्मुखीभिर

दृष्टोत्साहश चकितचकितं मुग्धसिद्धाङ्गनाभिः

स्थानाद अस्मात सरसनिचुलाद उत्पतोदङ्मुखः खं

दिङ्नागानां पथि परिहरन स्थूलहस्तावलेपान॥१.१४॥

 

यहां से दिशा उत्तर प्रति उड़ो

इस तरह से कि लख तेज गति यह तुम्हारी

सिद्धांगनायें भी अज्ञान के वश

भ्रमित हों कि यह वायु गिरितुंगधारी

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ मौन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ मौन  ☆

उनके शब्दों से

उपजी वेदना

शब्दों के परे थी

सो होना पड़ा मौन,

अब अपने मौन पर

शब्दों से उपजी

उनकी प्रतिक्रियाएँ

सुन-बाँच रहा हूँ मैं..!

©  संजय भारद्वाज

(प्रात: 7.09 बजे, 7 जनवरी 21)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

मोबाइल– 9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print