श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “नकल का अधिकार।)

?अभी अभी # 351 ⇒ नकल का अधिकार? श्री प्रदीप शर्मा  ?

नकल का अधिकार © copyright

नकल कभी असल नहीं होती। असल में नकल हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। बिना नकल किए आप कुछ सीख नहीं सकते। हमें बचपन में जो पट्टी पढ़ाई गई, वही तो हम सीख पाए। जो ब्लैकबोर्ड पर लिखाया गया, हमने उसकी नकल की। जब पट्टी से पीछा छूटा, तो कॉपी में लिखना पड़ा। नाम भले ही कॉपी हो, लेकिन लिखना तो हमने ही सीखा। पहले रफ कॉपी में जो बोला, वह लिखा, और बाद में उसकी फेयर कॉपी में नकल की।

सीखना नकल नहीं होता। किसी का अनुसरण करना क्या बुरा है। नकल तो बंदर करता है। हम भी तो वानर से ही नर बने हैं। वनमानुष से ही मानुस बने हैं। कितने मानुस बन पाए, यह अलग बात है। आदि मानव से सभ्य मानव की यात्रा है यह। आज भी वानर श्रेष्ठ महावीर बजरंगी हनुमान हमारे आराध्य हैं, संकटमोचक हैं। ।

सिर्फ परीक्षा में हमें नकल का अधिकार नहीं था। नकल को ही तो कॉपी करना कहते हैं। पीठ पीछे हमने अपने गुरुजनों की बहुत नकल की है। बाद में कागज की नकल करना बड़ा आसान हो गया। दो कागज़ के बीच एक कार्बन पेपर रख दो, उसकी कॉपी हो जाती थी। जब भी कोई रसीद काटी जाती थी, असली सामने वाले को दे दी जाती थी, और कॉपी सुरक्षित रख ली जाती थी।

बाद में पहले टाइपराइटर आए, कार्बन लगाकर तीन चार कॉपी आराम से निकल जाती थी। फिर gestetner (गेस्टेटनर) कंपनी एक डुप्लिकेटिंग मशीन लाई, जिसे सायक्लोस्टाइलिंग मशीन भी कहते थे। प्रिंटिंग की तरह जितनी चाहो कॉपियां निकाल लो। आज तो आपके पास कैमरा और स्मार्ट फोन ऑल इन वन है। कॉपी इज योर राईट, नो कॉपीराइट।।

लेकिन हर जगह हमारा कॉपी करने का अधिकार काम नहीं आता। सरकार ने कॉपीराइट एक्ट जो बना रखा है। कॉपीराइट का तात्पर्य बौद्धिक संपदा के मालिक के कानूनी अधिकार से है। सरल शब्दों में कहें तो कॉपीराइट कॉपी करने का अधिकार है। इसका मतलब यह है कि उत्पादों के मूल निर्माता और वे जिस किसी को भी प्राधिकरण देते हैं, उनके पास ही काम को पुन: पेश करने का विशेष अधिकार है।

फिल्म, किताब, गीत, रेकार्ड, किसका कॉपीराइट नहीं होता। और तो और उत्पादों के टाइटल पर भी कॉपीराइट का शिकंजा कसा रहता है। अलग अलग समयावधि तक यह बाध्य होता है। लेकिन चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से ना जाए। आपको तो अमूल घी भी नकली मिल सकता है। ।

नकल में भी अगर नकल लगाई जाए तो नकल बुरी नहीं और उस पर कोई कॉपीराइट भी नहीं। शास्त्रीय संगीत का एक ही राग सभी संगीतज्ञ अलापते रहते हैं, फिर भी उनकी प्रस्तुति मौलिक कहलाती है और वे तालियां बटोरते हैं।

नाटक में अभिनय क्या है, जो आप नहीं हो, वह बनकर अभिनय कर रहे हो। नकली बाल, दाढ़ी मूंछ, नाम भी हर बार बदला हुआ, फिर भी कोई नाट्य सम्राट तो कोई अभिनय सम्राट। नायक नहीं खलनायक हूं मैं। आप जानते नहीं, सबसे बड़ा महानायक हूं मैं। आजकल मिमिक्री आर्टिस्ट की राजनीति में बहुत डिमांड हैं।।

कृत्रिम और दिखावटी जीवन जीते हुए, वैचारिक और पर्यावरण के प्रदूषण में सुख की सांस लेते हुए, जहरीली दवाइयां और रासायनिक खाद से पैदा हुई खाद्य सामग्री के सेवन से संतुष्ट होते हुए, अपनी बौद्धिक सम्पदा पर गर्व करने से हमें कौन रोक सकता है। साहिर को तो मानो कॉपीराइट हासिल है अपनी कलम के जरिए, आज के इंसान को आइना दिखाने में; क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे।

नकली चेहरा सामने आए

असली सूरत छुपी रहे।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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