हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #246 – 131 – “रूहे उदास को कुछ लगा यूँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल रूहे उदास को कुछ लगा यूँ…” ।)

? ग़ज़ल # 130 – “रूहे उदास को कुछ लगा यूँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

एक ख़ास ने आज आम भेजे,

दिल से सखा को पयाम भेजे।

*

रूहे उदास को कुछ लगा यूँ,

संदेश मुझे आज शाम भेजे।

*

वह दूर बैठ करे याद मुझको,

मीठे फल दिल को थाम भेजे।

*

बाज़ार में तो बहुत मिलते हैं,

उसने मगर बिना दाम भेजे।

*

यारी मिठास बनी रहे यूँ ही,

आतिश चखने को जाम भेजे।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुप्पी – 30 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  चुप्पी – 30 ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

चुप्पी के रंग

गिनते-गिनते

सोया था,

चुप्पी के रंग

गिनते-गिनते

उठा हूँ,

पलकों में

मुंदी हैं

सागर की लहरें

सूरज की किरणें

मन की छटाएँ

देखता हूँ

सृष्टि के रंग-बिरंगे

कुंतल घनराशि,

मैं गिनती

भूल गया हूँ मित्रो!

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 11:37 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रवण मास साधना में जपमाला, रुद्राष्टकम्, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना करना है 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 123 ☆ ।। मुक्तक ।। ☆ ।। मेरा भारत महान, कारगिल विजय दिवस जयगान (26 जुलाई) ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 123 ☆

।। मुक्तक ।। ☆ ।। मेरा भारत महान, कारगिल विजय दिवस जयगान (26 जुलाई) ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

नभ, थल,  जल, शत्रु अब तो हर जगह तुझे    ललकार है।

सीमा पार भी मार करने को हर मिसाइल अब तैयार  है।।

कारगिल युद्ध विजय के बाद भारत बन गया महाशक्ति।

अब   करना  हमको  शत्रु  का  हर  वार  बेकार   है।।

[2]

सक्षम,    अद्भुत,    अजेय,   अखंड   भारत    महान   चाहिये।

विश्व  पटल   पर   गूँजता  अब  अपने   राष्ट्र  का  नाम  चाहिये।।

यश    सुकीर्ति  की   पताका  लहराये  चंहु  ओर  भारत    की।

कारगिल युद्ध जैसी अद्भुत विजय वाला यही हिंदुस्तान चाहिये।।

[3]

नमन उन  शहीदों  को  जो  देश  पर कुर्बान   हो   गये।

देकर वतन के लिए   प्राण   वह   बेजुबान   हो    गये।।

उनके प्राणों की   आहुति  से  ही सुरक्षित  देश  हमारा।

वह जैसे जमीन से उठ  कर  ऊपर आसमान   हो   गये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 187 ☆ ‘दुनियां में अकेले हैं…’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “दुनियां में अकेले हैं। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 187 ☆ ‘अनुगुंजन’ से – दुनियां में अकेले हैं… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

दुनियाँ में अकेले हैं नहीं कोई हमारा, तकदीर के मारों का भला कौन सहारा ?

सरिता ने बुझाई मुझे जीवन की पहेली, देती रही हैं हौसला बस लहरें अकेली ।

दिखता जिन्हें है दूर का भी पास किनारा ।।१।।

*

दुनियाँ में अकेले हैं

थक के हों चूर, ओठों में होंगी नहीं आहें ये पग न डगमगायेंगे चलते हुये राहें

मिलती उसी को जीत जो मन से नहीं हारा ।।२।।

*

दुनियाँ में अकेले

कहते हैं उसे राह दिखाते हैं सितारे, चलता चले आगे कभी हिम्मत न जो हारे

सबसे बड़ा दुनियाँ में है अपना ही सहारा ।।३।।

*

दुनियाँ में अकेले

आ पहुंचे यहाँ तक जो तो फिर देर कहाँ है ? पाना है जिसे वो तो सभी पास यहां है।

देती है मुझे हर घड़ी मंजिल ये इशारा ।।४।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ Poem of Capt. Pravin Raghuvanshi is to be recited in the BYRON 200 Poetry event at Nottingham, U K ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

☆ Capt. Pravin Raghuvanshi, NM ☆

💐 Poem of Capt. Pravin Raghuvanshi is to be recited in the BYRON 200 Poetry event at Nottingham, U K 💐

☆ Bicentennary Celebration of Lord Byron – BYRON 200 Poetry Event by Kavyrang ☆ 

It is with great pride and pleasure, We would like to inform that poem लावण्यपूर्ण रात्रि अभिसारिका (Lavanya poorn Ratri Abhisarika) of Capt. Pravin Raghuvanshi has been chosen to be recited in the BYRON 200 Poetry Event, which is being organised by Kavya Rang with NAAC as a part of Multilingual Poetry Event to commemorate the Bicentennary Celebrations of Lord Byron in Nottingham, England. This poem is based on Lord Byron’s legendary poem She Walks in Beauty.

Byron 200 is a varied programme of exhibitions, events and activities that celebrate the sensational life and legacy of Lord Byron through the year, focussed at Newstead Abbey, his inspirational home.

Date: Saturday 27th July 2024, 1pm-4pm

Venue: Newstead Abbey, Nottingham, U K

इस सन्दर्भ में हम आपसे एक महत्वपूर्ण जानकारी साझा करना चाहेंगे। डॉ विजय कुमार मल्होत्रा जी (पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय,भारत सरकार) को इसी जून  2023 में  यूनाइटेड किंगडम  के प्रसिद्ध शहर  नॉटिंघम  जाने का अवसर मिला। प्रवास के दौरान उन्हें हिन्दी कवयित्री और काव्यरंग की अध्यक्षा श्रीमति जय वर्मा जी ने अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध कवि लॉर्ड बायरन की विरासत से भी परिचित कराया. रॉबिनहुड और लॉर्ड बायरन के नाम से प्रसिद्ध इस शहर में महात्मा गाँधी भी कुछ समय तक रुके थे. जहाँ बायरन ने  Don Juan जैसी कविताएँ लिखीं, वहीं  She Walks in Beauty जैसी प्रेम और प्रकृति की मिली-जुली कल्पनाओं पर आधारित कविताएँ भी लिखीं.

डॉ विजय कुमार मल्होत्रा जी के ही शब्दों में “कालजयी रचनाओँ को हिंदी-अंग्रेज़ी में अनूदित करने का बीड़ा उठाने वाले मेरे मित्र कैप्टन प्रवीण रघुवंशी ने “चलती-फिरती सौंदर्य प्रतिमा” शीर्षक से इसका हिंदी में अनुवाद भी कर दिया. मैंने पावर-पॉइंट (PPT) के माध्यम से दी गई अपनी प्रस्तुति में इस कविता को मूल अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी में भी प्रतिभागियों को सुनाया. सभी ने इसके हिंदी अनुवाद की भूरि-भूरि प्रशंसा की.”

 

यह अनुवाद इंग्लैंड में हिन्दी प्रोफेसरों को बहुत पसंद आया था। उन्होने कई देशों में इसका अपने भाषणों में उपयोग भी किया है जिसका सबसे सहृदय प्रतिसाद प्राप्त हुआ।

 

आइए…हम लोग भी इस कविता का मूल अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी में भी रसास्वादन करें और अपनी प्रतिक्रियाओं से इसके हिंदी अनुवादक कैप्टन प्रवीण रघुवंशी  को परिचित कराएँ.   

Original English Poem By Lord Byron

☆ She Walks in Beauty 

She walks in beauty, like the night

Of cloudless climes and starry skies;

And all that’s best of dark and bright

Meet in her aspect and her eyes;

Thus mellowed to that tender light

Which heaven to gaudy day denies.

 

One shade the more, one ray the less,

Had half impaired the nameless grace

Which waves in every raven tress,

Or softly lightens o’er her face;

Where thoughts serenely sweet express,

How pure, how dear their dwelling-place.

 

And on that cheek, and o’er that brow,

So soft, so calm, yet eloquent,

The smiles that win, the tints that glow,

But tell of days in goodness spent,

A mind at peace with all below,

A heart whose love is innocent!

 – Lord Byron

 

लार्ड बायरन की मूल कविता का कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा हिंदी अनुवाद  

☆ लावण्यपूर्ण रात्रि-अभिसारिका ☆

अप्सरा की भाँति, वो  सौन्दर्य-प्रतिमा,

बादलों से विहीन, तारों भरी रात्रि में

अतिशय प्रकाश की अप्रतिम छटा लिये

वो निरंतर चहलकदमी करती रही…

 

आकर्षक डील-डौल, मृगनयनी चक्षु

भीनी-भीनी चाँदनी में पिघलता यौवन

ऐसी लावण्यपूर्ण वो दिव्य अनामिका

वो रमनीय सौन्दर्य जो कदापि 

ईश्वर प्रदत्त भी संभव नहीं,

 

एक स्वर्गिक रंगीन छटा लिए,

लहराती स्याह वेणियां से युक्त

अर्ध-प्रच्छादित मुखाकृति को

और भी निखारती हुई…

अभिलाषा की वो परम उत्कटेच्छा…

 

जहाँ विचार मात्र ही मधु-सुधा टपकाते…

कितना पवित्र, कितना प्यारा उसका संश्रय…!

दैवीय कपोलों, के मध्यास्थित,

उन वक्र भृकुटियों  में वो इतनी निर्मल, शांत,

फिर भी नितांत चंचल एक विजयी मुस्कान लिए!

 

वो दैदीप्यमान आभा,

सौम्यता में व्यतीत क्षणों को

अभिव्यक्त करते हुए

एक शांतचित्त मन

एक निष्कपट प्रेम परितृप्त

वो कोमल हृदय धारिणी नवयौवना…!

–  कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, पुणे

💐 The e-abhivyakti family congratulates Capt. Pravin Raghuvanshi ji for this great achievement. 💐

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 14 – नवगीत – कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – नवगीत – कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी

? रचना संसार # 14 – नवगीत – कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

जन-मानस को मोहित करती,

कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी।

 *

नाथ हाथ में वंशी लेकर,

वंशीवट पर हैं जाते।

नटवर नागर लीला करते,

ग्वाल बाल सब हर्षाते।।

धेनु चराते हैं गोकुल में,

चक्र सुदर्शन हरि धारी।

 *

जन-मानस को मोहित करती,

कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी।

 *

सुन वंशी की तान निराली,

थिरके ब्रज की हर बाला।

ग्वाल-बाल सब झूम रहे हैं,

जादू सब पर कर डाला।।

मोहन के अधरों पर शोभित,

वंशी सम्मोहक न्यारी ।

 *

जन-मानस को मोहित करती,

कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी।

 *

युगल करों में सजे मुरलिया

सबके मन को है भाती।

मंत्र मुग्ध स्वर करें रसीले,

सुध-बुध सारी खो जाती।।

गोप -गोपियों का मन भटके,

जब-जब आते बनवारी।

 *

जन-मानस को मोहित करती,

कान्हा-मुख-सुषमा प्यारी।

 

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected][email protected]

≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #242 ☆ भावना के मुक्तक ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के मुक्तक)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 242 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के मुक्तक ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

चमकती बूंदे बारिश की आया मौसम सावन का।

काले काले छाए बदरा मौसम है मन भावन का ।

छाई है हरियाली  इनकी  सुंदरता  बड़ी  न्यारी।

करते महिमा शिव की गान आया है सावन पावन। का – –

*

आया तीज का त्यौहार करते सबसे है व्यवहार।

बड़ा पावन महीना है मनाते सब है घर परिवार।

चमकती बूंदे बारिश की झलक दिखती है पत्तों पे।

लगी मेंहदी है हाथों पर दिखते है सब संस्कार।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #224 ☆ एक पूर्णिका – बात रूह  से  रूह तक जब पहुंचे… ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – बात रूह  से  रूह तक जब पहुंचे आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 224 ☆

☆ एक पूर्णिका – बात रूह  से  रूह तक जब पहुंचे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

दिलों में  जब  भी  खाई  होती  है

प्रीत  अपनी  नहीं  पराई  होती  है

*

मिल जाएं अगर दिल से दिल जहां

वहां ही तब  सच्ची खुदाई होती है

*

बात रूह  से  रूह तक जब पहुंचे

दिलों  में  तभी  सच्चाई  होती है

*

उसे  क्या  मिलेगा सुकून  जहां  में

साख जिसने अपनी गवाई होती है

*

रुलाती है  जो यहां हर  किसी  को

वो कुछ और नहीं महंगाई होती  है

*

रखते हैं वफा में मिलने की जुस्तजू

मंजूर  उन्हें  कहां  जुदाई  होती  है

*

याद लाती है जब भी करीब उनको

संतोष मैं और मेरी तनहाई होती है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

रिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चुप्पी – 29 ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  चुप्पी – 29 ? ?

(लघु कविता संग्रह – चुप्पियाँ से)

उच्चरित शब्द

अभिदा है,

शब्द की

सीमाएँ हैं

संज्ञाएँ हैं

आशंकाएँ हैं,

चुप्पी

व्यंजना है,

चुप्पी की

दृष्टि है

सृष्टि है

संभावनाएँ हैं!

© संजय भारद्वाज  

प्रातः 10:44 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रवण मास साधना में जपमाला, रुद्राष्टकम्, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना करना है 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 213 ☆ बाल गीत – ढमढम बजे नगाड़ा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा – संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य श्री सम्मान’ और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मानबाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंतउत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत। 

 आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य प्रत्येक गुरुवार को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 213 ☆

बाल गीत – ढमढम बजे नगाड़ा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

सुन्न हो रहे हाथ सभी के

दस्तक देता जाड़ा।

दाँत किटकिटी चले सैर के पर

पढ़ते सभी पहाड़ा।।

सूरज दादा छिपे कोहरे

ओस ठंड में अलसाई।

ठंडी – ठंडी हवा कह रही

अब ओढ़ो शीघ्र रजाई।

 *

ठंड ,  कोरोना पास न आए

पीओ प्रतिदिन काढ़ा।।

 *

काजू , पिस्ता और मूंगफली

गरम पकौड़ी हैं भातीं।

अदरक, तुलसी चाय जो पीएं

ठंडी दूर भाग जाती।

 *

काम करें व्यायाम , योग भी

ढमढम बजे नगाड़ा।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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