हिंदी साहित्य – कविता ☆ टैटू… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ टैटू☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

कुछ स्त्रियों को

कहते हुये सुना

ये जो टैटू हैं ना

स्वर्ग तक साथ जाते हैं !

देह तो राख हो जाती है !

 

मेरी अंतरात्मा की

बाँहों पर

जंगल पहाड़

नदी निर्झर

चिड़िया तितली

सुरधनु बिजली

सूरज और उल्काएं

सारे

चाँद तारे

 

पाँवों पर नाव

पीठ पर समय की दीठ के

टैटू बने हैं

 

दो आँखों से दिखाई नहीं देते

तीसरी आँख की

दरकार है

 

मेरी रचनाओं में वो

आखर आखर

नज़र आयेंगे।

ये टैटू

सफर में मेरा

हर पल साथ निभाएंगे।।

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of social media # 209 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of social media # 209 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 209) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..! 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 209 ?

☆☆☆☆☆

मुझको तो दर्द-ए-दिल का

मज़ा याद आ गया

तुम क्यों हुए उदास

तुम्हें क्या याद आ गया…

☆☆

Remembered the bliss filled

Anguish of my lovelorn heart

Why did you become sad

Did you also miss something

☆☆☆☆☆

कहने को जिंदगी थी

बहुत मुख़्तसर मगर

कुछ यूँ बसर हुई कि

खुदा याद आ गया…

☆☆

Had a life so to say

Though much ephemeral

Passed in such away that

Made me remember the God..!

☆☆☆☆☆

अगर इश्क़ करो तो

अदब ए  वफ़ा भी सीखो

ये चंद दिनों की बेकरारी

मोहब्बत नहीं होती..

☆☆

If you love someone then

Learn to practise loyalty too

A few days of restlessness

Is not construed as love…!

☆☆☆☆☆

उनके हाथों में मेहंदी लगाने का

ये फायदा हुआ…

की रात भर उनके चेहरे से

ज़ुल्फ हम हटाते रहे…

☆☆

Reward of applying mehndi on her

Hands was that I was privileged 

To remove the bangs of hair from 

Her face throughout the night…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 507 ⇒ एक कविता ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हमारे पास भी भेजा है ।)

?अभी अभी # 507 ⇒ एक कविता ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

कविता कभी पूरी नहीं होती

जिंदगी कविता है,

प्रकृति भी तो कविता ही है ।

 

लय,छंद,ताल

खुला आकाश,

बहती कलकल नदी

आकाश को छूते विहंग

क्या कविता हो गई पूरी ?

 

रोज उगता सूरज

जुड़ता एक नया पृष्ठ

कितने अध्याय जीवन के

एक यात्रा अनंत ।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 209 ☆ गीत – गिनती कर किससे क्या पाया? ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है गीत  गिनती कर किससे क्या पाया? …।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 209 ☆

☆ गीत – गिनती कर किससे क्या पाया?  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

जो थक-चुका वृद्ध वह ही है

अपना मन अब भी जवान है

अगिन हौसले बहुत जान है…

*

जब तक श्वासा, तब तक आशा

पल में तोला, पल में माशा

कटु झट गुटको, बहुत देर तक

मुँह में घुलता रहे बताशा

खुश रहना, खुश रखना जाने

जो वह रवि सम भासमान है

उसका अपना आसमान है…

*

छोड़ बड़प्पन बनकर बच्चा

खुद को दे तू खुद ही गच्चा

मिले दिलासा झूठी भी तो

ले सहेज कह जुमला सच्चा

लेट बिछा धरती की चादर

आँख मुँदे गायब जहान है

आँख खुले जग भासमान है…

*

गिनती कर किससे क्या पाया?

जोड़ कहाँ क्या लुटा गँवाया?

भुला पहाड़ा संचय का मन

जोड़ा छूटा काम न आया

काम सभी कर फल-इच्छा बिन

भुला समस्या, समाधान है

गहन तिमिर ही नव विज्ञान है

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.१०.२०२४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि –शिल्पी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – शिल्पी ? ?

?

पहले पूजता है उसे,

फिर अपनी मन्नत रखता है,

कमाल का शिल्पी है आदमी,

ज़रूरत के मुताबिक देवता गढ़ता है।

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 दीपावली निमित्त श्री लक्ष्मी-नारायण साधना,आश्विन पूर्णिमा (गुरुवार 17 अक्टूबर) को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी (मंगलवार 29 अक्टूबर) तक चलेगी 💥

🕉️ इस साधना का मंत्र होगा- ॐ लक्ष्मी नारायण नम: 🕉️ 

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मै… ☆ सुश्री अपर्णा परांजपे  ☆

सुश्री अपर्णा परांजपे 

? कविता – मै… – सुश्री अपर्णा परांजपे ? ?

?

मैने मेरे श्याम को

मेरे लिये लड़ते देखा है

मैने मेरे राम को

मेरे लिये लड़ते देखा है..

 

सुख मे तो समझा नही

पर संकट मे यह जाना है

मैने मेरे राम को

मेरे लिये लड़ते देखा है..

 

उसका सहारा पाकर ही

“मैंने” “मुझे” संभाला है

“मै” कुछ न कर सका

उसने ही उठाया है…

 

स्वयम् राम ही आते है

संकट बुरा कैसे बोलू?

राम न दिखे सुख मे

तो सुख अच्छा कैसे बोलू?

 

मुझे गोद मे बिठाकर

दुख पार किया मेरा

बिगडी हुयी नैया को

चलाकर साथ दिया मेरा..

 

सुख दुख के परे

मै भी हू यह जाना जब

राम श्याम, श्याम राम

सत्य यही मन मे बसा तब…

 

नासमझ मन को सुख का

आभास हुवा

समझ जब आ गयी

“रामरुप” स्पष्ट हुआ…

 

भीतर की आवाज को

जिस क्षण पहचाना मैने

मे तू है, तूही मै हूँ 

परम सत्य जाना मैने…

 

मान हो या अपमान

“मै” वो नही जो समझता था

इस सबसे उपर “मै”

मेरे ही भीतर का “श्याम” था…

 

जीवन का यही अनमोल क्षण

जिसमे था “राम ही राम”

वो ही तो सत्य है

मेरे हृदय का विश्राम…

 

भार मेरा खुद लेकर

“मुझे” स्वतंत्र किया

ऐसा यह राम मेरा

मुझे ही “उसमे” समा गया…

 

मेरा राम मेरा श्याम

ब्रह्मरूप सत्यता

दुःख निवृत्ती देना ही

जीवन की सिध्दता …

 

मैने मेरे श्याम को

मेरे लिये लड़ते देखा है

मैं ने मेरे राम को

मेरे लिये लड़ते देखा है…

?

 🙏 भगवंत हृदयस्थ हैं 🙏

चित्र गूगल से…

© सुश्री अपर्णा परांजपे

पुणे

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 506 ⇒ चैनसिंह का बगीचा ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है कविता – “चैनसिंह का बगीचा।)

?अभी अभी # 506 ⇒ चैनसिंह का बगीचा ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

नदी हमें नहीं बांटती

हम नदी को बांटते हैं

पानी में लकीर खींचते हैं

सरहद बनाते हैं ;

हमने धरती बांटी

अम्बर बांटा

समंदर बांटा

कभी मंदर तो कभी

हरमंदर बांटा ।

बस प्यार नहीं बांटा

नफरत और गुस्सा बांटा

थप्पड़ का जवाब चांटा

पत्थर का जवाब भाटा ;

भूल गए इंसानियत

फैलाई सिर्फ दहशत

नहीं सहमत,तो सह मत

जहां नहीं चैन,वहां रह मत ।।

हम इस पार और उस पार

को नहीं मानते

बस,आरपार को मानते हैं,

कभी खुद को खुदा और

गधे को रहनुमा मानते हैं;

वैसे तो हम बहुत जानते हैं

लेकिन सयानों की कभी,

बात नहीं मानते,

स्वार्थ,खुदगर्जी,अवसरवाद और मस्ती को ही

अपना आदर्श मानते हैं।

फिर भी हम इतने अच्छे

और लोग इतने बुरे क्यों हैं

यह भ्रम पालते हैं,

गाय तो पाल सकते नहीं

लेकिन इतने बड़े भक्त हैं कि,

स्वामिभक्ति के लिए कुत्ता पालते हैं ;

शासन ही अनुशासन

जिसकी लाठी,उसकी भैंस

पैसा फेंक,तमाशा देख,

दु:शासन गिन रहा अंतिम सांसें,सुशासन में चैन

फिर भी मूढ़मति

तेरा क्यूं मन बैचेन ।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 135 ☆ मुक्तक – ।।इसी धरती को ही स्वर्ग समान बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 135 ☆

☆ मुक्तक – ।।इसी धरती को ही स्वर्ग समान बनाना है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

कुछ का नहीं सबका हालात बदलना है।

जीने का कुछ अंदाज ख्याल बदलना है।।

नईपीढ़ी को सौंपके जानी विरासत अच्छी।

दुनिया का यह बदहाल हाल बदलना है।।

[2]

हर समस्या का   कुछ   निदान   पाना है।

जन जन जीवन को    आसान बनाना है।।

बदलनी  पूरे समाज की सूरत और सीरत।

हर दिल से हर दिल का   तार  जुड़ाना है।।

[3]

शत्रु के नापाक इरादों पर   भी काबू पाना है।

उन्हें ध्वस्त करना  खुद को मजबूत बनाना है।।

दुनिया को देना है विश्व गुरु भारत का पैगाम।

शांति का संदेश सम्पूर्ण  संसार में फैलाना है।।

[4]

वसुधैव कुटुंबकम् सा यह   संसार बनाना है।

मानवता का सबको    ही प्रण   दिलाना है।।

नर नारायण सेवा का भाव है सब में जगाना।

इस धरा को ही  स्वर्ग से भी सुंदर बनाना है।।

[5]

जीवन शैली खान पान का  रखना है ध्यान।

आचरण वाणी को भी करना है मधु समान।।

प्रगति  प्रकृति मध्य रखना सामजस्य भाव।

विविधता में एकता   बनाना एक अभियान।।

[6]

माला में हर गिर   गया मोती  अब पिरोना है।

अब हर टूटा   छूटा   रिश्ता   पाना खोना है।।

आंख में आंसू  आए हर किसीके दर्दों गम में।

हर कंटीली राह पर फूलों को अब बिछौना है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 199 ☆ होती प्रीति की भावना… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “होती प्रीति की भावना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 199 ☆ होती प्रीति की भावना☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चेहरा है शरीर का ऐसा अंग प्रधान

जिससे होती आई है हर जन ही पहचान।

 *

द्वेष भाव संसार में है एक सहज स्वभाव

जाता है बड़ी मुश्किल से कर ढेरों उपाय ।

 *

स्वार्थ, द्वेष हैं शत्रु दो सबके प्रबल महान

जो उपजाते हृदय में लोभ और अभियान |

 *

होती प्रीति की भावना गुण-दोषों अनुसार

पक्षपात होता जहाँ दुखी वही परिवार

 *

जिनका मन वश में सदा औ खुद पर अधिकार

उन्हें डरा सकता नहीं कभी भी यह संसार ।

 *

इस दुनियाँ में हरेक का अलग अलग संसार

वैसा करता काम जन जैसा सोच विचार

 *

बहुतों को होता नहीं खुद का पूरा ज्ञान

क्योंकि उनकी बुद्धि को हर लेता अभिमान।

 *

हर एक जैसा सोचता वैसे करता काम

सहना पड़ता भी किये करमो का परिणाम ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ ‘बीज’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Seed…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poetry “बीज.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना

? संजय उवाच – बीज ? ?

जलती सूखी ज़मीन,

ठूँठ से खड़े पेड़,

अंतिम संस्कार की

प्रतीक्षा करती पीली घास,

लू के गरम शरारे,

दरकती माटी की दरारें,

इन दरारों के बीच पड़ा

वो बीज…

मैं निराश नहीं हूँ,

ये बीज मेरी आशा का केंद्र है,

ये, जो अपने भीतर समाए है

विशाल संभावनाएँ-

वृक्ष होने की,

छाया देने की,

बरसात देने की,

फल देने की,

और हाँ,

फिर एक नया बीज देने की,

मैं निराश नहीं हूँ,

ये बीज मेरी आशा का केंद्र है…!

(लगभग 25 वर्ष पुरानी रचना। कवितासंग्रह ‘योंही’ से )

© संजय भारद्वाज  

मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]

☆☆☆☆☆

English Version by – Captain Pravin Raghuvanshi

?~ Seed ~??

On blazing dry arid land,

Trees standing with stumps,

Yellow grass waiting for its last rites,

Scorching flashes of the sun,

Cracks in the fractured soil

That seed is still lying

between these cracks…

 

I am not at all crestfallen…

 

This seed is the center of my hope,

This tiny seed contains within itself

enormous possibilities of

—becoming a tree

— giving shade,

—bringing rains

—giving fruits,

And yes, above all

—giving a new seed again,

 

I am not disappointed,

This seed is the center of my hope…!

??

~ Pravin Raghuvanshi

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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