हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 242 – बुन्देली कविता – कानी रे कानी… ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – कानी रे कानी।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 242 – कानी रे कानी… ✍

(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से) 

(स्व डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के बुंदेली गीत कानों में आज भी गूंज रहे हैं। आदरणीय श्री शिब्बू  दादा, श्री रवि श्रीवास्तव और श्री बैजनाथ गौतम जी के द्वारा गए गीत पूरे जबलपुर शहर में विख्यात हुए। उन गीतों में एक ‘कानी रे कानी’ आज प्रस्तुत है।)

कानी रे कानी । कानी रे कानी ।

 *

उदना मिल गये टोकन लाल

बिन्ने पूँछौ एक सवाल।

मोंडा हो गये तुमरे चार

नसबंदी कौ करो विचार |

 *

चार हमारे परे   खियाल

पर उपदेसन बनी मिसाल ।

याद आई कहनात कहनात पुरानी

कानी रे कानी । कानी रे कानी ।

 *

बिनकी ऊँची है ससुरार

खैंचें खायें बिना डकार।

हमें बताबें जीवन-सार

सादाँ जीवन उच्च विचार ।.

 *

रोजड़ भैया करें कमाल

कछू न व्यापॆ मोटी खाल ।

(सौ) याद आई कहनात पुरानी

कानी रे कानी । कानी रे कानी ।

 *

भासन दै रये भासन बीर

मेंगाई कौ स्वेंचें चीर |

चिल्लाउत हैं बीच बजार

नैंचें दाबैं भिस्टाचार I

 *

हमसें कहें गम्म तो खाव

भैराने से ना चिल्याव

सो कैसे बिसरै बात पुरानी

कानी रे कानी । कानी रे कानी ।

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 242 – “अम्मा मत रोओ मैं हूँ…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत अम्मा मत रोओ मैं हूँ...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 242 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “अम्मा मत रोओ मैं हूँ...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

(“जहाँ दरक कर गिरा समय भी” से)

बापू के चौथे की चिन्ता

बेटा करता है

अच्छा लगता बुड्ढा मर,

घर खाली करता है

 

खाँस – खखार सुना करती

थी जब जब घर वाली

ताने दे दे कर परोसती

थी वह हर थाली

 

“इनको आग तपा कर धोना”

कहती महरी से –

चीजें स्वच्छ रहें घर में तब

घर, घर लगता है

 

छोटे बच्चों को आज्ञा थी

उधर नहीं जाना

इस बुड्ढे में बुरी आत्मा है

सब ने यह माना

 

तभी इस उमर तक जिन्दा है

कब का मर जाता

बिना मरे ही नर्क भोगता

यह यम लगता है

 

बाप मरे के अग्रिम धन के

चक्कर में बेटा

सोच रहा , किस तरह झटक ले

पैसा, अधलेटा

 

माँ के कंगन बेच समस्या

का निदान सम्भव

“अम्मा मत रोओ मैं हूँ”

यह बेटा कहता है

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

 संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – हम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – हम ? ?

मैं,

तुम,

हम,

आँच का मद्धम होना,

मैं का फिर मैं होना,

तू का फिर तू होना,

तू-तू, मैं-मैं,

तू-तू, मैं-मैं..,

 

तू-तू, मैं-मैं में

हम की आँच तपाए रखना

युग्मराग का आधार है,

सुनो साथी,

हम, सहजीवन का सार है‌!

?

© संजय भारद्वाज  

दोपहर 2:27 बजे, 3 जुलाई, 2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रावण साधना रविवार ११ जुलाई 2025 से रक्षाबंधन तदनुसार शनिवार 9 अगस्त तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगासाथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे। 💥 

💥 101 से अधिक मालाजप करने वाले महासाधक कहलाएंगे 💥

💥 संभव हो तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी इससे जोड़ें💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ पिया गए, सीमा पे… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता पिया गए, सीमा पे।)

☆ कविता – पिया गए, सीमा पे☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

हरे रामा, कैसे काटूं रात, हमें छोड़,

पिया गए, सीमा पे,

कैसी मिलन की रात, हमें, छोड़,

पिया गए, सीमा पे,

 

कल ही तो मैं, बिदा होके आई,

आंचल में खुशियां भर लाई

किस की लग गई बात, हमें, छोड़,

पिया गए सीमा पे,

 

कितनी सुहानी शुभ घड़ी आई,

रात में बारिश की झड़ी आई,

बुंदिया गिरीं सारी रात, हमें छोड़,

पिया गए सीमा पे,

 

अबके सावन कितना बरसा,

पर मेरा मन कितना तरसा,

भीग गए जज्बात, हमें छोड़,

पिया गए सीमा पे,

*

हरे रामा, कैसे काटूं रात, हमें छोड़,

पिया गए सीमा पे….

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 225 ☆ # “सावन…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सावन…” ।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 225 ☆

☆ # “सावन…” # ☆

आ गया है सावन

आप भी आ जाइए

सुहाना है मौसम

मत शरमाइए

 

मंदिरों में बज रही है

घंटियाँ रात दिन

रात कट रही है

तारों को गिन गिन

चुभती हवाएं डस रही हैं  

बनकर नागिन

आ जाओ जीना है

मुश्किल तुम बिन

भीगी भीगी काया की  

अगन को बुझाइए

आ गया है सावन

आप  भी आ जाइए

 

सावन की देखो लगी है झड़ी

बूंदो ने प्रीत की रचना है गढ़ी

कब तक रहोगी तुम दूर यूं खड़ी

बीत ना जाए मिलन की यह घड़ी

बूंदों की माला को तन पर सजाइये

आ गया है सावन

आप भी आ जाइए

 

कलियों पर देखो कितना निखार है

भंवरो को देखो कितना प्यार है

कण कण में देखो कितना खुमार है

 बगिया को देखो तुम्हारा इंतज़ार है

सावन के झूलों में झूलने आ जाइए

आ गया है सावन आप भी आ जाइए

 

सावन कुदरत का अनमोल उपहार है

भक्ति-शक्ति प्रीत-गीत संगीत-श्रृंगार है

प्रियतम से मिलने की मादक पुकार है

उमंग में डूबा हुआ सारा संसार है

ईश्वर के वरदान को गले से लगाइए

आ गया है सावन आप भी आ जाइए

सुहाना है मौसम मत शरमाइए

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ दो क्षणिकाएं… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ दो क्षणिकाएं ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

[१] – चुनाव

*

चुनाव आते ही

उनके चेहरे

खुशी से खिल गए !

सुनते हैं

वो बंदूक बनाते हैं

रोटी के लिए !!

[२] – विंडो शाॅपिंग

*

मंहगाई का नाम सुनकर

गरीबों का

कलेजा करता है धकधक !

धन्य है सरकार

जिसने विंडो शाॅपिंग का तो

दिया है हक !!

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 242 – शत शत वंदन मातु शारदे! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है मातु शारदा वंदन  – शत शत वंदन मातु शारदे!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 242 ☆

☆ शत शत वंदन मातु शारदे! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

☆ 

शत शत वंदन मातु शारदे!

भव बाधा हर नव विचार दे।।

.

जो जैसे तेरी संतति हैं

रूठ न मैया! हँस दुलार दे।।

.

नाद अनाहद सुनवा दे माँ!

काम-क्रोध-मद से उबार दे।।

.

मोह पंक में पड़े हुए हैं

पंकज कर नूतन निखार दे।।

.

हुईं अनगिनत त्रुटियाँ हमसे

अनुकंपा कर झट बिसार दे।।

.

सलिल करे अभिषेक निरंतर

माता! कर आचमन तार दे।।

.

पद प्रक्षालन कर पाऊँ नित

तम हरकर जीवन सँवार दे।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८.५.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ मेरी काव्य-प्रेरणा… ☆ डॉ जसवीर त्यागी ☆

डॉ जसवीर त्यागी

(ई-अभिव्यक्ति में  प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ जसवीर त्यागी जी का स्वागत। प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ,आजकल, कादम्बिनी,जनसत्ता,हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा,कृति ओर,वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।  अभी भी दुनिया में- काव्य-संग्रह। कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी,नेपाली भाषाओं में अनुवाद। सचेतक और डॉ. रामविलास शर्मा (तीन खण्ड)का संकलन-संपादन। रामविलास शर्मा के पत्र- का डॉ विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन। सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।)

☆ कविता ☆ मेरी काव्य-प्रेरणा… डॉ जसवीर त्यागी 

बहुत सारे काव्य-पाठक

मुझसे कवि की काव्य-प्रेरणा के विषय में पूछते हैं

 

मैं उनके सवाल पर

मौन होकर मन-ही-मन मंद-मंद मुस्कुराता हूँ

जैसे नींद में

कोई नवजात शिशु मुस्कुराता है

 

वे अपने सवालों के शब्दों का क्रम बदलकर

पुनःउत्सुकता से पूछते हैं

मैं उनको अपनी काव्य-प्रेरणा का

कोई साफ़ स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाता

 

वे हार नहीं स्वीकारते

किसी रोमांचक और सनसनीखेज उत्तर की आशा में

मेरे दिल-दिमाग का दरवाजा बार-बार खटखटाते हैं

 

यह दुनिया नये की चाह में

हर शरीफ़ आदमी की सच्चाई को

सरेआम उजागर कर देना चाहती है

उसे ख़बरों के बाज़ार में

मन-मुताबिक कीमतों पर बेचना चाहती है

 

मैं कविता लिखता-जीता हूँ

अपनी काव्य-प्रेरणा को

ऐसे संभालता हूँ

 

जैसे तेज आंधी-तूफान आने पर

कोई गौरैया छुपाती है अपने बच्चे।

©  डॉ जसवीर त्यागी  

सम्प्रति: प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015

संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018, मोबाइल:9818389571, ईमेल: drjasvirtyagi@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – रासायनिक सूत्र ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – रासायनिक सूत्र ? ?

ऊपर से भले दिखते हों

एक से तत्व, एक-सा स्तर,

आदमी का रासायनिक सूत्र,

गुणधर्म बदलता रहता है निरंतर,

नश्वरता को टिकाये रखने का भय,

प्राय: उत्पन्न करता है गहरा मत्सर,

मिटा नहीं पाता किसीकी प्रतिभा

तो आदमी छीनने लगता है अवसर !

?

© संजय भारद्वाज 

अपराह्न 12:28, 17.9.21

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रावण साधना रविवार ११ जुलाई 2025 से रक्षाबंधन तदनुसार शनिवार 9 अगस्त तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगासाथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे। 💥 

💥 101 से अधिक मालाजप करने वाले महासाधक कहलाएंगे 💥

💥 संभव हो तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी इससे जोड़ें💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रेयस साहित्य # १४ – कविता – प्रकृति का प्यार भरा पैगाम ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆

श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # १४ ☆

☆ कविता ☆ ~ प्रकृति का प्यार भरा पैगाम ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

सूर्य किसी से कहाँ पूछता,

तुम मेरी पहचान बता दो l

वक्ष खोल कर अम्बर कहता,

मुझ में तुम अभिमान दिखा दो ll

*

सागर की गहराई कहती,

हम रत्नों से भरे पडे है

मेरे अंतस के अंदर तुम,

क्षुद्र भाव अरमान दिखा दो ll

*

प्यारी धरती माता कहती,

खेत और खलिहान दिखा दो l

कल कल करती नदियां कहती,

प्यासा एक इंसान दिखा दो ll

*

बड़े प्यार से प्रकृति कह रही,

क्यों घुट घुट कर मरते हो

मेहनत कश भूखे कब सोते l

गांव का तुम भगवान दिखा दो ll

*

हरे भरे जंगल है कहते है,

पशु, पक्षी मेहमान दिखा दो l

फल देकर झुकना सीखा ,

यह मेरा स्वाभिमान दिखा दो ll

*

जल, जंगल, जमीन, हवाएं

सब कुछ ईश्वर की नेमत है l

परोपकारी प्रकृति के दिल का

प्यार भरा पैगाम दिखा दो ll

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 22-02-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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