हिंदी साहित्य – कविता ☆ दो क्षणिकाएं… ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ दो क्षणिकाएं ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

[१] – चुनाव

*

चुनाव आते ही

उनके चेहरे

खुशी से खिल गए !

सुनते हैं

वो बंदूक बनाते हैं

रोटी के लिए !!

[२] – विंडो शाॅपिंग

*

मंहगाई का नाम सुनकर

गरीबों का

कलेजा करता है धकधक !

धन्य है सरकार

जिसने विंडो शाॅपिंग का तो

दिया है हक !!

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 242 – शत शत वंदन मातु शारदे! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है मातु शारदा वंदन  – शत शत वंदन मातु शारदे!)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 242 ☆

☆ शत शत वंदन मातु शारदे! ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

☆ 

शत शत वंदन मातु शारदे!

भव बाधा हर नव विचार दे।।

.

जो जैसे तेरी संतति हैं

रूठ न मैया! हँस दुलार दे।।

.

नाद अनाहद सुनवा दे माँ!

काम-क्रोध-मद से उबार दे।।

.

मोह पंक में पड़े हुए हैं

पंकज कर नूतन निखार दे।।

.

हुईं अनगिनत त्रुटियाँ हमसे

अनुकंपा कर झट बिसार दे।।

.

सलिल करे अभिषेक निरंतर

माता! कर आचमन तार दे।।

.

पद प्रक्षालन कर पाऊँ नित

तम हरकर जीवन सँवार दे।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८.५.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – कविता ☆ मेरी काव्य-प्रेरणा… ☆ डॉ जसवीर त्यागी ☆

डॉ जसवीर त्यागी

(ई-अभिव्यक्ति में  प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ जसवीर त्यागी जी का स्वागत। प्रकाशन: साप्ताहिक हिन्दुस्तान, पहल, समकालीन भारतीय साहित्य, नया पथ,आजकल, कादम्बिनी,जनसत्ता,हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा,कृति ओर,वसुधा, इन्द्रप्रस्थ भारती, शुक्रवार, नई दुनिया, नया जमाना, दैनिक ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ व लेख प्रकाशित।  अभी भी दुनिया में- काव्य-संग्रह। कुछ कविताओं का अँग्रेजी, गुजराती,पंजाबी,तेलुगु,मराठी,नेपाली भाषाओं में अनुवाद। सचेतक और डॉ. रामविलास शर्मा (तीन खण्ड)का संकलन-संपादन। रामविलास शर्मा के पत्र- का डॉ विजयमोहन शर्मा जी के साथ संकलन-संपादन। सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के नवोदित लेखक पुरस्कार से सम्मानित।)

☆ कविता ☆ मेरी काव्य-प्रेरणा… डॉ जसवीर त्यागी 

बहुत सारे काव्य-पाठक

मुझसे कवि की काव्य-प्रेरणा के विषय में पूछते हैं

 

मैं उनके सवाल पर

मौन होकर मन-ही-मन मंद-मंद मुस्कुराता हूँ

जैसे नींद में

कोई नवजात शिशु मुस्कुराता है

 

वे अपने सवालों के शब्दों का क्रम बदलकर

पुनःउत्सुकता से पूछते हैं

मैं उनको अपनी काव्य-प्रेरणा का

कोई साफ़ स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाता

 

वे हार नहीं स्वीकारते

किसी रोमांचक और सनसनीखेज उत्तर की आशा में

मेरे दिल-दिमाग का दरवाजा बार-बार खटखटाते हैं

 

यह दुनिया नये की चाह में

हर शरीफ़ आदमी की सच्चाई को

सरेआम उजागर कर देना चाहती है

उसे ख़बरों के बाज़ार में

मन-मुताबिक कीमतों पर बेचना चाहती है

 

मैं कविता लिखता-जीता हूँ

अपनी काव्य-प्रेरणा को

ऐसे संभालता हूँ

 

जैसे तेज आंधी-तूफान आने पर

कोई गौरैया छुपाती है अपने बच्चे।

©  डॉ जसवीर त्यागी  

सम्प्रति: प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजधानी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) राजा गार्डन नयी दिल्ली-110015

संपर्क: WZ-12 A, गाँव बुढेला, विकास पुरी दिल्ली-110018, मोबाइल:9818389571, ईमेल: drjasvirtyagi@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – रासायनिक सूत्र ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – रासायनिक सूत्र ? ?

ऊपर से भले दिखते हों

एक से तत्व, एक-सा स्तर,

आदमी का रासायनिक सूत्र,

गुणधर्म बदलता रहता है निरंतर,

नश्वरता को टिकाये रखने का भय,

प्राय: उत्पन्न करता है गहरा मत्सर,

मिटा नहीं पाता किसीकी प्रतिभा

तो आदमी छीनने लगता है अवसर !

?

© संजय भारद्वाज 

अपराह्न 12:28, 17.9.21

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रावण साधना रविवार ११ जुलाई 2025 से रक्षाबंधन तदनुसार शनिवार 9 अगस्त तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगासाथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे। 💥 

💥 101 से अधिक मालाजप करने वाले महासाधक कहलाएंगे 💥

💥 संभव हो तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी इससे जोड़ें💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रेयस साहित्य # १४ – कविता – प्रकृति का प्यार भरा पैगाम ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆

श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # १४ ☆

☆ कविता ☆ ~ प्रकृति का प्यार भरा पैगाम ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆ 

सूर्य किसी से कहाँ पूछता,

तुम मेरी पहचान बता दो l

वक्ष खोल कर अम्बर कहता,

मुझ में तुम अभिमान दिखा दो ll

*

सागर की गहराई कहती,

हम रत्नों से भरे पडे है

मेरे अंतस के अंदर तुम,

क्षुद्र भाव अरमान दिखा दो ll

*

प्यारी धरती माता कहती,

खेत और खलिहान दिखा दो l

कल कल करती नदियां कहती,

प्यासा एक इंसान दिखा दो ll

*

बड़े प्यार से प्रकृति कह रही,

क्यों घुट घुट कर मरते हो

मेहनत कश भूखे कब सोते l

गांव का तुम भगवान दिखा दो ll

*

हरे भरे जंगल है कहते है,

पशु, पक्षी मेहमान दिखा दो l

फल देकर झुकना सीखा ,

यह मेरा स्वाभिमान दिखा दो ll

*

जल, जंगल, जमीन, हवाएं

सब कुछ ईश्वर की नेमत है l

परोपकारी प्रकृति के दिल का

प्यार भरा पैगाम दिखा दो ll

♥♥♥♥

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

लखनऊ, उप्र, (भारत )

दिनांक 22-02-2025

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 166 ☆ मुक्तक – ।। जीवन गणित, बबूल पर आम लगता नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 166 ☆

☆ मुक्तक – ।। जीवन गणित, बबूल पर आम लगता नहीं है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

=1=

वही सबको  काटना   है।

अच्छे बुरे कर्म सबको ही बांटना है।।

प्रभु की नजर है तेरे  हर   काम पर।

तुझको ही कर्म – कुकर्म  छांटना है।।

=2=

बबूल के पेड़ पर आम लगता नहीं है।

वही करो तुम जो कि  चलता सही है।।

जैसी करनी वैसी ही भरनी होती सदा।

फल-कुफल वैसा ही  मिलता यहीं है।।

=3=

जान लो प्रभु की लाठी बेअवाज होती है।

जब पड़ती तो कोई आवाज नहीं होती है।।

ईश्वर रखता  तेरे हर   काम  का हिसाब।

उसकी दी हर सजा लाईलाज होती है।।

=4=

विधि का विधान तो  सबको ही भरना है।

शपथ ले हर कोई कि गलत नहीं करना है।।

यही अच्छा कि समय से चेत जाए आदमी।

मान ले कि परमात्मा  से जरूर  डरना है।।

=5=

खाली हाथ आया और खाली हाथ जाना है।

चलता नहीं यहां पर तो  कोई भी बहाना है।।

पल भर में उड़ जाते  हैं   यह  प्राण पखेरू।

वक्त से डरो जाता खाली नहीं कोई निशाना है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #231 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – बड़ा कौन है?… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – बड़ा कौन है?। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 231

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – बड़ा कौन है? ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

बड़ा नहीं बनता है कोई पद से या अधिकार से

बड़ा कहा जाता है मानव मन के सोच-विचार से।

*

जिनके मन में दया भाव और करुणा का आगार है

उनका आदर करता आया सदा सकल संसार है।

*

महावीर, गौतम और गाँधी तीनों बड़े उदार थे

इससे माने जाते सबसे बड़े संत संसार के ।

*

मिला बड़प्पन कभी न राजा, सिंहासन या ताज को

दिया बड़प्पन दुनिया ने मन की मीठी आवाज को।

*

कभी झलकता नहीं बड़प्पन कोई आकार प्रकार से

पर सौंदर्य निखरता दिखता मन के ममता-प्यार से।

*

छोटा हो भी बड़ा वही है जिसके प्रेमल भाव रहे

जिसके मन परिवार पड़ौसी और जग की परवाह।

*

छोटा-बड़ा हुआ करता है मानव निज व्यवहार से

नहीं कभी भी धन संग्रह से, पद से या अधिकार से।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

vivek1959@yahoo.co.in

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #56 – गीत – संकल्प… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतसंकल्प

? रचना संसार # 56 – गीत – संकल्प…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

संकल्पों को शीश झुकाकर,

संस्कार को ग्रहण करो।

सद्गुण की माला फेरो तुम,

सत्कर्मों को वरण करो।।

*

मर्दन करके सदा दंभ का,

एक नया इतिहास गढ़ो।

पौरुष से जीतो इस जग को,

सत्य राह पर सदा बढ़ो।।

कुंठित मन के भाव त्याग कर,

नित उत्तम आचरण करो।

*

अंतर्मन विश्वास जगा कर,

साहस संयम धैर्य रहे।

शोषित जन के दग्ध हृदय में,

शीतल जल भी स्निग्ध बहे।।

दीनों के तुम बनो मसीहा,

तन की पीड़ा हरण करो।

*

स्वारथ के बादल उमड़े हैं,

मानवता की ज्योति जगा।

चीर-हरण रोको धरती का,

चंदन माटी माथ लगा।।

दुष्ट दानवों का वध करके,

वीरों का अनुसरण करो।

*

मायावी आँधी को रोको,

छल- प्रपंच से सदा बचो।

निष्ठाओं की डोर पकड़कर,

कोमल सुर संगीत रचो।।

सद्भावों की बाजे सरगम,

यह प्रण तुम आमरण करो।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- meenabhatt18547@gmail.com, mbhatt.judge@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शोषण ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – शोषण ? ?

मीलों यात्रा करती हैं,

फूल-फूल भटकती हैं,

बूँद-बूँद संचित करती हैं,

परिश्रम की पराकाष्ठा से

छत्ते का निर्माण करती हैं,

मधुमक्खियाँ…,

 

मनुष्य, तोड़कर

निकाल लाता है छत्ता,

चट कर जाता है शहद,

देखती रह जाती हैं

हताश, निराश मधुमक्खियाँ..,

 

आदिकाल से शोषित हैं

मधुमक्खियाँ,

पर अफ़सोस,

शोषण के इतिहास में

मधुमक्खी का उल्लेख नहीं मिलता..!

?

© संजय भारद्वाज  

(प्रात: 7:51 बजे, 10 जुलाई 2024)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रावण साधना रविवार ११ जुलाई 2025 से रक्षाबंधन तदनुसार शनिवार 9 अगस्त तक चलेगी। 🕉️

💥 इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगासाथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे। 💥 

💥 101 से अधिक मालाजप करने वाले महासाधक कहलाएंगे 💥

💥 संभव हो तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी इससे जोड़ें💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #283 ☆ भावना के दोहे – विवाह ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे – विवाह)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 283 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे – विवाह ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

धूम मचाने आ रहे, तुझे बधाई आज।

शादी तेरी हो रही, बजता उत्सव  साज।।

हम तो गाते आ रहे, जीवन का हर राग।

मना रहे उत्सव सभी, पिया मिलन का भाग।।

 *

फूल सजे हैं राह में, होता तुम पर नाज।

मिलने तुमसे आ गए, मनता उत्सव  आज।।

 *

रंगोली  द्वारे सजी, मन में उठी उमंग।

बाजे गाजे बज रहे, है उत्सव का रंग।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : bhavanasharma30@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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