हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #200 ☆ श्री गणेशाय नमः ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल (डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक कविता श्री गणेशाय नमः।) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 200 – साहित्य निकुंज ☆ ☆ श्री गणेशाय नमः ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆ ☆ प्रथम पूज्य हैं आप तो, हे गणपति महराज। विघ्न विनाशक देवता, बना रहे हर काज।। ☆ श्री गणेश को पूजते, हैं वो ही सर्वेश। विघ्नविनाशक देवता, देते है आदेश।। ☆ करते गणपति वंदना, आज  पधारो आप। धन्य धन्य हम हो रहे, दूर करो संताप।। ☆ करते हैं हम आचमन, पंचामृत गणराज। मोदक भोग लगा रहे, स्वीकारो प्रभु आज।। ☆ तुम दाता इस सृष्टि के, हे गणपति महराज। विनती इतनी मैं करूँ, करो सफल सब काज।। ☆ मन मंगलमय हो रहा, झूम उठा है चंद। हुआ आगमन आपका, छाया है आनंद।। ☆ मन आनंदित हो गया, देख आपका रूप। करते वंदन आपका, रोज जलाकर धूप।। ☆ गणपति की आराधना, करते...
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English Literature – Poetry ☆ ‘लोभ…’ श्री संजय भारद्वाज (भावानुवाद) – ‘Greed…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM (Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “लोभ”.  We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.) श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना संजय दृष्टि – लोभ   दूर तक लिख रहा हूँ ख़ामोशी..! सब...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #185 ☆ संतोष के दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष” (आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।) ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 185 ☆ ☆ - संतोष के दोहे - ☆ श्री संतोष नेमा ☆ ☆ आजादी आजादी मिलती नहीं, बिना किये संघर्ष वीरों के बलिदान से, मना रहे हम हर्ष ☆ उत्कर्ष प्रगति सदा होती रहे, जीवन में हो हर्ष जब हो सच्ची साधना, होता तब उत्कर्ष ☆ लोकतंत्र कर्तब्यों को भूल कर, याद रखें अधिकार लोकतंत्र में अब दिखे, इसकी ही भरमार ☆ मूल्य आज समय के साथ अब, गिरते नैतिक मूल्य स्वारथ बस भूले सभी, जीवन बहुत...
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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संतुलन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज (श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) संजय दृष्टि – संतुलन लालसाओं का अथाह सिंधु, क्षमताओं का किंचित-सा चुल्लू, सिंधु और चुल्लू का संतुलन तय करता है सिमटकर आदमी का ययाति रह जाना या विस्तार पाकर अगस्त्य हो जाना! © संजय भारद्वाज  अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ मोबाइल– 9890122603 संजयउवाच@डाटामेल.भारत [email protected] ☆ आपदां अपहर्तारं ☆ श्रीगणेश साधना, गणेश चतुर्थी मंगलवार दि. 19 सितंबर को...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात #17 ☆ कविता – “अलविदा…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

श्री आशिष मुळे ☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 17 ☆ ☆ कविता ☆ “अलविदा…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆ आयेगा वो दिन कहूंगा अलविदा रस्म दुनियां की यह भी निभाऊंगा   हसूँगा तुझ से यूहीं आंखें मिला के देख ले जी भर के धागे कच्चे तोड़ दे   गर है तेरी ख़ुशी तो चूम लूँ ये जुदाई जान ले इक बार इस दिल की गहराई   दिल है बड़ा यारा है प्यार ये खरा सजाले गले में तोहफ़ा ये हमारा   मौत तेरी कैसे बनूँ  कहते है जां तुझे जा जी ले मेरी जां है अलविदा तुझे © श्री आशिष मुळे ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 177 ☆ बाल गीत – जय – जय गणेश ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र’ (हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा - संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान 'बाल साहित्य श्री सम्मान' और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान 'बाल साहित्य भारती' सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत।   आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #200 – कविता – ☆ माना कि हम इतने बड़े नहीं हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ (सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  “रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “माना कि हम इतने बड़े नहीं हैं...”।) ☆ तन्मय साहित्य  #200 ☆ ☆ माना कि हम इतने बड़े नहीं हैं...... ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆ ☆ माना कि हम इतने बड़े नहीं हैं पर ये भी सच नहीं कि, हम अपने पैरों पर खड़े नहीं हैं।   गिरते-गिरते उठे, चले आगे सत्पथ पर चलते रहे निरंतर ,कभी न बैठे हम दूजों के रथ पर, जीवन में अपनी मनवाने कभी किसी से लड़े नहीं हैं पर ये भी सच.........   संघर्षों से रहे जूझते हँसते-हँसते मन वीणा के तारों को हम रहे एक लय-स्वर में कसते, कभी बेसुरे गीत भीड़ में बेशर्मी से पढ़े नहीं हैं पर ये भी सच.........   दर्प भरे चेहरों से कभी नहीं बन पाई उनसे रखा दूर अपने को रहे दिखाते जो प्रभुताई, द्वेषभाव से राह किसी की कंटक बन कर अड़े नहीं...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 25 ☆ नई पीढ़ियाँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव (संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “नई पीढ़ियाँ…” ।) जय प्रकाश के नवगीत # 25 ☆ नई पीढ़ियाँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆ सीख बड़ों की टँगी अरगनी बंजर जोतें ऩई पीढ़ियाँ ।   कटा हुआ दिन ठूँठ पेड़ का सूरज डूबा बुढ़ा मेंड़ का   रात उनींदी आलस भरती उतर रही कुलवधू सीढ़ियाँ ।   खेत उठाकर माटी कूटे बाँध रहा है रिश्ते टूटे   बरगद दादा रगडे़ं दिन भर बैठे बैठे फटी एड़ियाँ ।   खरपत उपजी घर आँगन में खड़ी दिवारें सबके मन में   गाय रँभाती बँधी खूँट से बछिया लाँघे रोज ड्योढ़ियाँ । *** © श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.) मो.07869193927, ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈...
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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लोभ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज (श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) संजय दृष्टि – लोभ दूर तक लिख रहा हूँ ख़ामोशी..! सब पढ़ना, सब गुनना, अपना-अपना अर्थ बुनना, लोभी हूँ, हरेक का अर्थ घटित होते देखना चाहता हूँ, अपनी कविता को बहुआयामी फलित होते देखना चाहता हूँ..! © संजय भारद्वाज  अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ मोबाइल– 9890122603 संजयउवाच@डाटामेल.भारत [email protected] ☆ आपदां अपहर्तारं ☆ श्रीगणेश साधना, गणेश चतुर्थी मंगलवार दि. 19 सितंबर...
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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्यार जब रूह नहीं सूरत से… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे (वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा - एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य - काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना "प्यार जब रूह नहीं सूरत से...") प्यार जब रूह नहीं सूरत से... ☆ श्री अरुण कुमार दुबे  ☆ ☆ वो करे रंक व राजा बाबा ऐसा उस यार का जलवा बाबा ☆ नेवले साँप में जो यारी है ये सियासत का तमाशा बाबा ☆ अपना अस्तित्व बचाने लड़िये वक़्त का है ये तक़ाज़ा बाबा ☆ हिज़्र का दोष न देना उसको मेरी किस्मत में लिखा था बाबा ☆ प्यार जब रूह नहीं सूरत से आज है हीर न राँझा बाबा ☆ बाँट बिरसा लिया है बेटों ने रह अकेली गई अम्मा बाबा ☆ ये अरुण को है सिखाई किस्मत साथ देती न हमेशा बाबा ☆ © श्री अरुण कुमार दुबे सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी)...
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