(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “जड़ों पर हो वार…… ”।)
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – लघुकथा –काल
घातक हथियार लिए वह मेरे सामने खड़ा था। चिल्लाकर बोला, “मैं तुम्हें मार दूँगा। तुम्हारा काल हूँ मैं।”
मैं हँस पड़ा। मैंने कहा, “तुम मेरी अकाल मृत्यु का कारण भर हो सकते हो पर काल नहीं हो सकते।”
” क्यों, मैं क्यों नहीं हो सकता काल? मैं खुद नहीं मरूँगा पर तुम्हें मार दूँगा। मैं ही हूँ काल?”
” सुनो, काल शाश्वत तो है पर अमर्त्य नहीं है। ऊर्जा की तरह वह एक देह से दूसरी देह में जाकर चेतन तत्व हर लेता है। हारा हुआ अवचेतन हो जाता है, काल चेतन हो उठता है। खुद जी सकने के लिए औरों को मारता है काल।… याद रखना, जीवन और मृत्यु व्युत्क्रमानुपाती होते हैं। जीवन का हरण अर्थात मृत्यु का वरण। मृत्यु का मरण अर्थात जीवन का अंकुरण। तुम आज चेतन हो, अत: कल तुम्हें मरना ही पड़ेगा। संभव हो तो चेत जाओ।”
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही💥
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ हर साहित्यिक आंदोलन के साथ समाज का परिवर्तन सामने आता है : रचना यादव ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
फिर चाहे वह नयी कहानी आंदोलन हो या कोई और ! यह कहना है प्रसिद्ध लेखक राजेंद्र यादव व मन्नू भंडारी की बेटी रचना यादव का ! उन्होंने कहा कि साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब है और समय के साथ समाज भी बदलता है। समय के बदलाव के साथ नयी दृष्टि और नयी दिशा भी बनती है।
रचना यादव का जन्म कोलकाता में हुआ और इनकी पढ़ाई लिखाई दिल्ली में हुई। दिल्ली के तीसहजारी स्थित क्वीन मेरी में स्कूलिंग तो हिंदू काॅलेज से ग्रेजुएशन। इसके बाद इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन, नयी दिल्ली से विज्ञापन व जनसम्पर्क में डिप्लोमा।
– आप तो क्लासिकल डांसर हैं तो वह कहां और कितना सीखा?
– प्रयाग विश्वविद्यालय से छह साल का प्रभाकर सर्टिफिकेट। वैसे रवि जैन, अदिति मंगलदास और पंडित जैकिशन महाराज से बाकायदा कत्थक सीखा।
– स्कूल काॅलेज में किन गतिविधियों में रूचि रही आपकी?
– डांस, भाषण के साथ साथ हैड गर्ल भी रही। स्पोर्ट्स में बास्केटबॉल और एथलीट भी रही। काॅलेज कलर भी मिला।
– कब पता चला कि इतने बड़े सेलिब्रिटी मम्मी पापा की बेटी हो?
– बाहर वालों से धीरे धीरे ! एक बार काॅलेज में एडमिशन लेने बस में जा रही थी। बाॅयोडाटा था जो पारदर्शी कवर में था तो एक ने पढ़ लिये मम्मी- पापा के नाम और सभी मुझे देखने लगे हैरान होकर ! उनको जब अवार्ड्स मिलते थे तब पता चलता था।
– ये बताइये कि पापा राजेंद्र यादव के क्या क्या गुण याद हैं?
– पापा अपने काम व लेखन को लेकर बहुत ही समर्पित थे। जो ठान लिया वह किया, फिर किसी की परवाह कम ही करते थे। बड़े फैसले लेते समय उन्हें खुद पर विश्वास होता था।
– और मम्मी मन्नू भंडारी के बारे में?
– मम्मी उसूलों की बहुत पक्की थीं। बहुत पारदर्शी , ईमानदार और कुछ भी गलत बर्दाश्त नहीं कर पाती थीं। अंदर व बाहर से एक।
– मम्मी पापा से क्या ग्रहण किया?
– पापा से अनुशासन और समर्पण। देर से फैसला किया था क्लासिकल डांसर बनने का। पहले थोड़ी डांवाडोल सी थी , फिर पापा की सीख से कि करना है तो करना है और कर लिया ! बन गयी क्लासिकल डांसर। मम्मी से सीखा दूसरों के दुख को समझना। वादे की पक्की रहना !
– अब बताइये कि पापा राजेंद्र यादव के साहित्य में से क्या पसंद है?
– शह और मात व प्रेत बोलते हैं। जिस उम्र में ये रचनायें लिखीं वह भी महत्वपूर्ण है।
– और मम्मी के साहित्य में से क्या पसंद है आपकी?
– महाभोज और आपका बंटी उपन्यास। महाभोज में जिस तरह से राजनीति की परतें उधेड़ी हैं , वह हैरान करती हैं। मेरे ख्याल से इससे पहले यह उनके लेखन का स्टाइल नहीं था।
– और मन्नू भंडारी की फिल्मों और धारावाहिकों में कौन सा पसंद?
– रजनी धारावाहिक जिससे वे घर घर तक पहुंच गयीं थीं।
– आपको कोई पुरस्कार मिला?
– क्लासिकल डांस में और स्पोर्ट्स में।
– परिवार के बारे में?
– पति दिनेश खन्ना फोटोग्राफर। दो बेटियां – मायरा योगा टीचर तो माही पोस्ट ग्रेजुएट।
– आप हंस के अतिरिक्त क्या करती हैं?
– गुरुग्राम में रचना यादव कत्थक स्टुडियो चलाती हूं और कोरियोग्राफर भी।
– पापा के बाद हंस के प्रकाशन की जिम्मेदारी कैसी लगी?
– हंस का हिस्सा बन कर अच्छा लगा। सोचती हूं यदि पापा के समय से ही जुड़ी होती तो और भी कुछ सीखने को मिलता और बेहतर कर पाती। हंस की टीम बहुत अच्छी है और पापा के समय की है।
– हंस की ओर से कौन कौन से समारोह किये जाते हैं?
– पहला 31 जुलाई को प्रेमचंद जयंती। दूसरा 28 अगस्त पापा के जन्मदिन पर कथा सम्मान। तीसरा 28 अक्तूबर को साहित्य समारोह।
– कथा आंदोलनों का क्या योगदान?
– हर साहित्यिक आंदोलन के साथ परिवर्तन आता है। साहित्य समाज का प्रतिबिंब ही तो है और इसमे समाज का बदलाव दिखता है। इसके साथ साथ साहित्य का बदलाव भी दिखता है।
– इन दिनों किन रचनाकारों को पढ़ रही हैं?
– अलका सरावगी पसंद है। अनिल यादव की कहानियां खूब हैं और गीतांजलिश्री का बुकर पुरस्कार प्राप्त उपन्यास ‘रेत की समाधि’ पढ़ रही हूं।
हमारी शुभकामनाएं रचना यादव को। आप इस नम्बर पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं – 011- 41050047
(श्री घनश्याम अग्रवाल जी वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि हैं. आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “राजनीति”.)
☆ लघुकथा ☆ “राजनीति” ☆ श्री घनश्याम अग्रवाल ☆
अंधो की सभा थी.
विषय था किसे राजा बनाया जाय.
” मुझे बनाइये, मैं काना हूँ ” .एक अंधा बोला. ” चाहे तो आप देख लीजिए. “
” मगर हम देख नहीं सकते.” अंधे बोले.
” पर सुन तो सकतै हो ! आपने कहावत सुनी ही होगी कि ” अंधों में काना राजा होता है ” वैसे मैंने अपने घोषणापत्र में ब्रेललिपि में साफ लिख दिया है कि मेरे राजा बनते ही ” सरकारी आइ कॅम्पो” मे आपकी आंखों का मुफ्त इलाज होगा. तब देख भी लेना. “
सारे अंधे चुपचाप वोट देने चले गृए यह जानते हुए भी कि “सरकारी आइ कॅम्पो” के करण ही वे अंधे हुए थे। पर लोकतंत्र की मजबूती के लिए वोट देना उनका कर्तव्य है और संविधान की कहावत को मानना उनकी विवशता।
चुनावी विश्लेषण:- ” अंधो में “काना” राजा नहीं; अंधों में “सयाना” राजा होता है।”
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य – “जीवन बीमा पर जीएसटी”।)
अभी अभी ⇒ व्यंग्य – जीवन बीमा पर जीएसटी… श्री प्रदीप शर्मा
आय, बचत और कर, यही एक नौकरपेशा व्यक्ति का धर्म है, ईमान है। न वह अपनी आय बढ़ा सकता, न ही बचत बढ़ा सकता, और न ही करभार से मुक्त हो सकता। वह देश की व्यवस्था में जुता हुआ एक बैल है, जिसकी आँख पर पट्टी पड़ी है। वह फिर भी एक अच्छे भविष्य के सपने देखता है। हर माह अपनी आय में से कुछ पैसे जीवन बीमा के लिए सुरक्षित छोड़ देता है।
हर माह एक सीमित वेतन ले जाने वाला वेतनभोगी मार्च के पहले से ही एनएससी और इन्शुरन्स में निवेश करना शुरू कर देता था। कुछ कमीशन एनएससी वाला एजेंट तो कुछ जीवन बीमा का एजेंट दे देता था। बड़ी खुशी होती थी, जब हाथ में पाँच सौ, हज़ार के कड़क नोट आ जाते थे।।
मेरी नौकरी को जुम्मे जुम्मे कुछ ही माह हुए थे, कि एक मित्र के भाई घर तशरीफ़ लाये। उनके साथ जीवन बीमा का प्लान भी था। बोले आपने एलआईसी की पॉलिसी ली ? मैं कुछ समझा नहीं ! मैंने जवाब दिया, अभी तक तो किसी ने नहीं दी। वे और खुश हुए, कोई बात नहीं, अब ले लीजिए। वे मुझे ज़िन्दगी का छोड़, मरने का गणित समझाने लगे। मुझे लगा यह इन्शुरन्स एजेंट नहीं, चित्रगुप्त के एजेंट हैं। मुझे मरने के फायदे समझा रहे हैं।
वे थोड़े आहत हुए। देखिये ! हमें आपकी बीवी बच्चों की फिक्र है। ( तब मेरी शादी नहीं हुई थी ! ) उन्हें अपना टारगेट पूरा करना था। मैंने कहा, काम की बात कीजिये। कोई भी सस्ती सी पॉलिसी दे दीजिये, और वे बेचारे उस ज़माने में एक छोटी सी पॉलिसी मुझे देकर चले गए, जिसका प्रीमियम कुछ 18.29 पैसे मेरी तनख्वाह में से कटना शुरू हो गया।।
उम्र के इस आखरी पड़ाव में फिर मुझे एक जीवन बीमा की पॉलिसी लेनी पड़ी। मुझे घोर आश्चर्य हुआ जब एक लाख पॉलिसी पर मुझे 18% जीएसटी भी चुकाना पड़ा। जीते जी भरिए मरने का टैक्स, अगर आपको बचाना इनकम टैक्स।
एक राजा हरिश्चन्द्र हुए थे, जो अपनी पत्नी से कफ़न पर टैक्स लेते थे, और एक यह सतयुगी हरिश्चन्द्र की सरकार है जो जीवन बीमा पर भी जीएसटी लेती है। कुछ भी खरीदो, ज़िन्दगी या मौत !
दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा। जीवन बीमा है अगर, जीएसटी तो देना ही पड़ेगा।।
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तुमसे हारी हर चतुराई…”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 04 ☆ तुमसे हारी हर चतुराई… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆