हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ बाल उपन्यास ‘गोलू -भोलू और जंगल का रहस्य‘ – डॉ. शशि गोयल ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है डॉ. शशि गोयल जी  के बाल कहानी संग्रह “गोलू -भोलू और जंगल का रहस्य” की पुस्तक समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ बाल उपन्यास ‘गोलू -भोलू और जंगल का रहस्य‘ – डॉ. शशि गोयल ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’’  ☆

उपन्यासगोलूभोलू और जंगल का रहस्य 

उपन्यासकार डॉ. शशि गोयल 

प्रकाशक जीएस पब्लिशर्स डिस्ट्रीब्यूटर, एफ7, गली नंबर 1, पंचशील गार्डन एक्सटेंशन, नवीन शाहदरा, दिल्ली110032 मोबाइल नंबर 99717 33123

पृष्ठ संख्या52 

मूल्य₹195

समीक्षकओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

☆ समीक्षा- रहस्य से भरपूर उपन्यास है यह ☆

बच्चों के उपन्यास में रहस्य-रोमांच हो तो पढ़ने का मजा दुगुना हो जाता है। उसके साथ रोचक संवाद हो तो उपन्यास की पठनीयता में वृद्धि हो जाती है।

बाल उपन्यास में चंचल बालपात्र हो तो वह बच्चों को बहुत ज्यादा अच्छा लगता है। उसकी चंचलता और चपलता उपन्यास के आनंद का मजा बढ़ा देती है।

इस कला में उपन्यासकार डॉ. शशि गोयल को महारत हासिल है। इनका नवीनतम उपन्यास गोलू-भोलू और जंगल का रहस्य, इस कसौटी पर खरा उतरता है। उपन्यास के शीर्षक के अनुसार उपन्यास में जंगल का रहस्य और रोमांच भरा पड़ा है।

गोलू एक चंचल और चपल बाल पात्र है। वह शहर से गांव अपनी नानी के यहां आता है। यहां वह अपने साथी भोलू के साथ जंगल, नदी, गुफा, पहाड़ आदि की सैर करता है।

सैर-सपाटा के दौरान वह संदिग्ध गतिविधियों को पकड़ लेता है। उसी से दो-चार होता है। परिस्थितियां ऐसी निर्मित होती है कि वह उन सभी का रहस्योद्घाटन करता चला जाता है।

मगर अंत में जाकर वह एक घटना में उलझ जाता है। तब वह और उसके पिताजी एक नई तरकीब अपनाते हैं। इससे गोलू-भोलू के साथ अन्य पात्रों पर आई मुसीबत टल जाती है। इस तरह पूरा उपन्यास रहस्य रोमांच के साथ आगे बढ़ता है।

उपन्यास की भाषा सरल व सीधी है। इसी के साथ ठेठ ग्रामीण भाषा के उपयोग से उपन्यास में रोचकता का समावेश होता है। इसकी यह भाषा उपन्यास की रोचकता में वृद्धि करती है। पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ उपन्यास को पढ़ता चला जाता है।

बाल सुलभ जिज्ञासा का असर पूरे उपन्यास में है। इसी जिज्ञासा की वजह से उपन्यास के पात्र निरंतर जोखिम उठाते हुए आगे बढ़ते हैं। फलस्वरुप उसके रहस्य को उजागर करते हुए एक नई मुसीबत का सामना करते हैं।

इस तरह उपन्यास के साथ-साथ मुख्य कथा के साथ उपन्यास उत्तरोत्तर आगे बढ़ता है। अंततः उसकी रोचकता का अंत उपन्यास के अंत के साथ हो जाता है।

उपन्यास का परिवेश ग्रामीण नदी के किनारे फैले हुए जंगल का है। इसी परिवेश में कुछ ऐसी परिस्थितियां निर्मित होती है उपन्यास के पात्रों के सामने नई-नई चुनौतियां आती जाती है।

चुनौतियों का सामना करने में मुक पशु-पक्षी का प्रयोग बखूबी किया गया है। पृष्ठ संख्या के हिसाब से दाम कुछ ज्यादा है। इस पर विचार किया जाना चाहिए। वैसे उपन्यास की साज-सज्जा व पृष्ठ सज्जा के साथ त्रुटि रहित छपाई ने उपन्यास की गुणवत्ता में श्री वृद्धि की है।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

16-04-2023

मित्तल मोबाइल के पास, रतनगढ़,  जिला- नीमच (मध्य प्रदेश), पिनकोड-458226 

मोबाइल नंबर 7024047675, 8827985775

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 156 ☆ बाल कविता – जागो-जागो हुआ सवेरा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 156 ☆

☆ बाल कविता – जागो-जागो हुआ सवेरा ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ 

सूर्य रश्मियाँ लिए हजारों

         आया अपने द्वार

जागो-जागो हुआ सबेरा

         लुटा रहा है प्यार

 

पंछी चहके, बगिया महके

     शीतल मन्द चले पुरवाई

उठो लाल अब आँखें खोलो

       वासंती सुषमा मुस्काई

 

दर्शन कर लो शुभ है बेला

            देखो सृष्टि अपार

सूर्य रश्मियाँ लिए हजारों

           आया अपने द्वार

 

 

बुलबुल गाए नए तराने

       सौरभ सुख भर जाता

कोयलिया गाती हैं स्वर में

       शुक भी गीत  सुनाता

 

लावण्या इस वसुंधरा का

         दुल्हन-सा शृंगार

सूर्य रश्मियाँ लिए हजारों

         आया अपने द्वार

 

 

योग कर रहे दादा- दादी

        स्वस्थ मना मुस्काते

खेलें-कूदें योग करें हम

       आलस कभी न लाते

 

पढ़ लें, लिख लें, हँसें-हँसाएँ

        तन-मन हो उजियार

सूर्य रश्मियाँ लिए हजारों

           आया अपने द्वार

 

 

सरसों महके, गेंहूँ सरसे

       जौ की नर्तित बालें

महक रही हैं आम्र डालियाँ

        बजा रहीं करतालें

 

सैर करें हम बिन अलसाए

        मिलता जीवन-सार

सूर्य रश्मियाँ लिए हजारों

        आया अपने द्वार

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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सूचनाएँ/Information ☆ अमृतकाल में भारत के स्वास्थ्य एवं मीडिया की भूमिका विषय पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ करेंगे अमृत-मंथन ☆ प्रस्तुति – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

 ☆ सूचनाएँ/Information ☆

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

🌹अमृतकाल में भारत के स्वास्थ्य एवं मीडिया की भूमिका विषय पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ करेंगे अमृत-मंथन🌹

स्वास्थ्य संसद के सभापति होंगे प्रो. (डॉ.) के.जी. सुरेश, उपसभाति बनें पूर्व डीजीपी एस.के.राउत

• भोपाल में लगेगा स्वास्थ्य संसद

• अमृतकाल में भारत के स्वास्थ्य एवं मीडिया की भूमिका विषय पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ करेंगे अमृत-मंथन

नयी दिल्ली/ स्वास्थ्य संसद के सभापति माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्याय के कुलपति एवं वरिष्ठ संचारकर्मी प्रो.के.जी. सुरेश को बनाया गया है जबकि उपसभापति का दायित्व मध्यप्रदेश के पूर्व डीजीपी एस.के.राउत को मिला है।

श्री सुरेश जहां स्वास्थ्य संचार में एक स्थापित नाम है, वहीं 1974 बैच के आइ.पी.एस. अधिकारी एस.के.राउत 2008-12 तक मध्यप्रदेश के डीजीपी रह चुके हैं। इस बावत मीडिया से बात करते हुए आयोजकों ने बताया कि दोनों वरिष्ठों के मार्गदर्शन एवं निर्देशन में तीन दिवसीय स्वास्थ्य संसद का आयोजन होगा।

‘अमृतकाल में भारत का स्वास्थ्य और मीडिया की भूमिका’ विषय पर तीन दिनों तक अमृत मंथन चलेगा। अमृत-मंथन से निकले सार को देश के स्वास्थ्य संबंधित नीति-निर्धारकों के साथ साझा किया जाएगा। उक्त जानकारी स्वास्थ्य संसद के संयोजक व स्वस्थ भारत (न्यास) के चेयरमैन आशुतोष कुमार सिंह ने दी।

साभार –  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

भोपाल, मध्यप्रदेश   

 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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सूचना/Information ☆ सम्पादकीय निवेदन – सौ.ज्योत्स्ना तानवडे – अभिनंदन ☆ सम्पादक मंडळ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सूचना/Information 

(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)

सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

💐अ भि नं द न 💐

आपल्या समुहातील ज्येष्ठ लेखिका व कवयित्री सौ. ज्योत्स्ना तानवडे यांना साकव्य विकास मंच आयोजित अभंग लेखन स्पर्धेत  सर्वोउत्कृष्ट क्रमांक प्राप्त झाला आहे.

💐 सौ.तानवडे यांचे ई अभिव्यक्ती मराठी समुहातर्फे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि पुढील लेखनासाठी शुभेच्छा 💐

संपादक मंडळ

ई अभिव्यक्ती मराठी

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ || आरती श्रीशंकराची || ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆

सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ आरती श्रीशंकराची ☆ सौ.ज्योत्स्ना तानवडे ☆ 

(साकव्य विकास मंच आयोजित अभंग लेखन स्पर्धेत  सर्वोउत्कृष्ट क्रमांक प्राप्त रचना)

     🙏 || आरती श्रीशंकराची || 🙏

जय देव जय देव शिव शंभो त्रिपुरारी

भवतारक देवा हे त्रिनेत्रधारी ||

जय देव जय देव || ध्रु ||

त्रिशूळ डमरू शोभे सर्पमाळ गळा

रुद्राक्षधारी हा शिवशंकर भोळा

भोलेनाथासी भक्तांचा लळा

अभयदान देई त्याचा तिसरा डोळा ||

 जयदेव जयदेव || १ ||

कैलासाधिपती गिरिजावर देवा

कृपा करावी तुझी नित्य घडो सेवा

शिव शिव स्मरता भुक्ति मुक्तिचा ठेवा

नाम जपो वैखरी ही तुझे सदाशिवा ||

जय देव जय देव || २ ||

लयतत्त्व स्वामी तू विश्व नियंता

तुझ्या कृपाप्रसादे लाभो शांतता

बुद्धी दे शक्ति दे देई तुष्टता

श्रीविश्वनाथा देई सौख्य या जगता ||

जय देव जय देव || ३ ||

प्राशुनी हलाहलासी रक्षिली अवनी

तुज सम नाही त्राता अवघ्या त्रिभुवनी

गौरीहरा तव कृपेने आश्वस्थ हो धरणी

विश्वदयाळा ज्योत्स्ना लीन तुझ्या चरणी || ४ ||

जय देव जय देव शिव शंभो त्रिपुरारी

भवतारक देवा हे त्रिनेत्रदारी ||

जय देव जय देव ||

© सौ.ज्योत्स्ना तानवडे

वारजे, पुणे.५८

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #157 ☆ माणसाने माणसे जपावी… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 157 ☆ माणसाने माणसे जपावी… ☆ श्री सुजित कदम ☆

माणसाने माणसे जपावी

भीमशक्ती जगाला कळावी…|| धृ. ||

 

शिकावे लढावे  धम्मवाणी

दीन दलितांची जिंदगानी

नको अस्पृश्य विश्वात कोणी

मान सन्मान जागा मिळावी…|| १. ||

 

माणसें वाचली कौतुकाने

सुख दुःखे झेलली भीमाने

तोडली बंधने कर्मठांची

ध्येयवादी धोरणे दिसावी…|| २. ||

 

रमाई भीमाई ध्यास सारा

संविधानी दिला एक नारा

विश्व केले खुले नीलरंगी

लोकशाही घटना रूजावी…|| ३. ||

 

नको संकटे वळचणीला

दिशा लाभली चळवळीला

काय सांगू थोरवी भीमाची

नाव घेता मस्तके झुकावी….|| ४. ||

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ भाषा…— ☆ श्री उमेश सूर्यवंशी ☆

श्री उमेश सूर्यवंशी

? विविधा ?

☆ भाषा…— ☆ श्री उमेश सूर्यवंशी ☆

!! शब्दजाणीव !!

जगात मनुष्याने अधिकाधिक घातक अशी शस्त्रे निर्माण करून दाखवलीत. एकापेक्षा एक धारदार , हिंसक आणि थरारक अशी शस्त्रे जगाने आजवर पाहिली आहेत. मानवी समुदायाची मोठी कत्तल या घातकी शस्त्रे चालवूनच झाली. कुणी न्यायासाठी शस्त्र उचलले तर कुणी अन्याय करण्यासाठी शस्त्र पारजले. एकाहून एक अशी ही शस्त्रे बाळगणारी मानवी जमातीकडे आणखी एक महत्त्वाचे शस्त्र उपलब्ध आहे याची फारशी दखल घेतली जात नाही . या शस्त्राची एकच बाजू मोठ्या गौरवाने सांगितली गेली आणि त्याची दुसरी धारदार बाजू दुर्लक्षीत होत गेली. भलेभले चांगले लोक या शब्दाला शस्त्र देखील मानतील का ? माझ्यापुढे प्रश्न आहे.

भाषा ….हे मानवी समाजाकडे उपलब्ध असे शस्त्र आहे. भाषा मनुष्याला जोडण्याचे काम करते, योग्यपणे व्यक्त होण्याचे भाषा हे माध्यम आहे , भाषा मनुष्याच्या विकासात सर्वाधिक महत्त्वाची भुमिका बजावते ही सत्ये कुणीही नाकारणार नाहीच. मात्र भाषा शस्त्र म्हणून जेव्हा वार करते तेव्हा त्या जखमा वर्षानुवर्षे फक्त चिघळत राहतात , राज्य व राष्ट्रे यांचे अवयव कुरतडत राहतात , बहुतांशी वेळा दोन माणसांमध्ये , राज्यांमध्ये आणि राष्ट्रांमध्ये देखील जोडण्याऐवजी तोडपाणीचे काम करते ती भाषाच. मानवी समाजात अनेक वेगवेगळ्या विविधतेने भरलेल्या भाषा आहेत. प्रत्येक भाषेला एक गोडवा आहे .इतर काही बलस्थाने आहेत. प्रत्येक मानवी जीवाला त्याची मातृभाषा अत्यंत प्रिय असते हे देखील निखालस नैसर्गिक सत्य आहे. तरीही भाषा शस्त्र म्हणूनच नव्हे तर घातक शस्त्र म्हणून काम करते हे देखील कटूपणाने नोंद करावे लागतेच. भाषेचा वापर ( गैर ? ) करून वर्चस्ववादी वृत्ती आपल्या धारणा शोषीतांवर लादतात. आपलीच भाषा ” प्रमाण ” व शोषीतांची भाषा ” तुच्छ ” अशी घातकी भाषीक मांडणी करून शोषीतांची गुलामगिरी कायदेशीर बनवू पाहतात. जगभर ही अवस्था भूतकाळात होती , वर्तमानात आहे आणि भविष्यात देखील दिर्घकाळ जिवंत असेल हे कटू वास्तव आहे. मग भाषेची नेमकी कोणती जाणीव आपल्याला कळली पाहिजे ? मुद्दा हा आहे. कोणत्याही भाषेला दुधारी धार असते .यापैकी एक विधायक असते आणि दुसरी विघातक. विधायक बाजू वाढवत नेणे हे योग्य .याचवेळी विघातक बाजू संपवत नेणे हे अधिक योग्य असते. स्वभाषेचा रास्त अभिमान जितका योग्य असतो त्याचबरोबर इतर भाषांविषयी आणि त्या भाषा बोलणारे समूहांविषयी देखील रास्त आदरभाव असावा.भाषेचे शुद्ध रुप आणि तथाकथित अशुद्ध रुप ही विभागणी टाळली पाहिजे .

भाषा…बोलण्यात सौम्य पण स्पष्ट , वर्तनात स्वच्छ पण आदरभावी , लिहिण्यात नेमकेपणा पण सच्चेपणा जपणारी असावी. खरा दोष भाषेचा नसतोच…तो असतो भाषावाद्यांचा. हे भाषावादी लोक अत्यंत संकुचित मात्रेने भाषा हाताळतात आणि भाषेची विघातक धार तेज करु पाहतात. अशावेळी जबाबदारी असते ती भाषेच्या संवादाकर्त्यांची. जे संवादकर्ते भाषेची विधायक बाजू अधिकाधिक उजळवीत राहतील आणि मानवी समूहात संवादप्रियता वाढवत राहतील. भाषेचे हे सामर्थ्य जपले पाहिजे .

©  श्री उमेश सूर्यवंशी

मो 9922784065

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ केमो तिची… थेरपी कोणाची?…भाग 2 ☆ श्री मकरंद पिंपुटकर ☆

श्री मकरंद पिंपुटकर

? जीवनरंग ❤️

☆ केमो तिची… थेरपी कोणाची?…भाग 2 ☆ श्री मकरंद पिंपुटकर ☆ 

(पूर्णतः सत्य घटनेवर आधारित)

(मागील भागात आपण पाहिले, सर, आईबद्दल एक विचारायचं होतं.” – आता इथून पुढे )

“बोला ना. काकू म्हणजे तुमची आई एकदम ok आहे. छान progress आहे त्यांची.”

“नक्की ना ?” हिच्या आवाजात कंप.

“म्हणजे ? मी समजलो नाही. काही त्रास होत आहे का त्यांना घरी ? पण इथं काही बोलल्या नाहीत त्या तसं. आणि रिपोर्ट्ससुद्धा छान आहेत त्यांचे.” आता बुचकळ्यात पडण्याची पाळी डॉक्टरांची होती. 

“तिच्यात जर चांगली सुधारणा होत असेल, तर मग तुम्ही सगळेच जण इतरांपेक्षा इतका जास्त वेळ का तिच्यापाशी थांबलेले असता ? काहीतरी बिनसलं असल्याशिवाय थोडी असं होणार आहे ?” तिनं आपल्या मनातली खदखद शेवटी बोलून दाखवलीच.

डॉक्टर क्षणभर गप्प झाले, आणि मग जणू स्वतःलाच स्पष्टीकरण (explanation) दिल्यासारखं ते बोलू लागले.

“तुला जेव्हा कळलं की तुझ्या आईला कॅन्सर झाला आहे, तेव्हा तुला त्याचा मानसिक त्रास झाला ना ? आम्ही सगळे तुझ्या आईची जास्तच काळजी घेत आहोत हे पाहिल्यावर तुझा जीव घाबरा झाला ना ?

अग, तुझ्यासाठी तुझी आई ही एकच पेशंट आहे जिची तुला काळजी आहे, फिकीर आहे. आणि त्यामुळे तुझ्यावर हे दडपण आलं. आमचं तसं नाही. रात्रंदिवस, दररोज, आपल्या या केंद्रावर असंख्य रुग्ण येत असतात. आम्हाला त्या सगळ्यांचीच, तुला तुझ्या आईची जितकी आहे ना, तेवढीच, किंबहुना त्यापेक्षा कांकणभर जास्तच काळजी असते.

काकू सुदैवी आहेत. त्यांचा रोग लवकर ध्यानात आला. त्यांची काळजी घ्यायला तुम्ही सगळे त्यांच्या अवतीभवती आहात. सगळेच जण असे भाग्यवान नसतात. काहींचे रोग उशीरा detect झालेले असतात, आपले उपचारांचे – औषधांचे दर खूप कमी असूनही काहींना आर्थिक अडचणींमुळे तेवढे पैसे उभे करणंही कठीण असतं.

आणि मग हे सगळे रुग्ण, त्यांचे सगेसोयरे ही सगळी दुःखं आमच्यापाशी मोकळी करतात. तक्रार करायची म्हणून नव्हे, कोणावर खापर फोडायचं म्हणून नव्हे पण निदान बोलून भार हलका करण्यासाठी – रितं होण्यासाठी.

पण या सगळ्याचा आम्हाला खूप ताण येतो, खूप दडपण येतं. प्रयत्नांची पराकाष्ठा करूनही जेव्हा रुग्ण हताश होतात किंवा प्राण सोडतात, ते बघून आतमध्ये तुटतं खूप काही. नाऊमेद व्हायला होतं. नैराश्य येतं.

अशा सगळ्या वातावरणात, तुझी आई – आमच्या काकू, आमच्यासाठी एक आशेचा किरण आहेत, प्रसन्न करणारी एक सुखद झुळूक आहे. इतरजण मिळालेल्या उत्तरांमध्ये (solution) प्रॉब्लेम शोधत बसतात, तुझी आई प्रॉब्लेममध्ये उत्तर (solution) शोधून काढते.

इतर सर्व पेशंट आमच्यासाठी सर किंवा मॅडम असतात, तुझी आई दुसऱ्या वेळेपासूनच आमची सर्वांचीच काकू झाली.

पहिल्या केमोच्यावेळी काकूंची हाताची नस सापडत नव्हती, टेक्निशियन पंधरा मिनिटे भोसकाभोसकी करत होता. पण या माऊलीने हूं का चू केलं नाही.

नंतर एकदा ते इंजेक्शन / सलाईन out गेल्याने (शीरेतून बाहेर आल्याने) हात सुजला, पण no complaints. औषध ऊष्ण पडल्याने आग आग झाली, तरी काही निषेध नाही. ‘अरे, माझ्या भल्यासाठीच करताय ना तुम्ही हे सगळं !’ उलट हे सर्टिफिकेट आम्हाला.

फॉलो अपच्या इंजेक्शनच्या वेळी काकूंच्या फॅमिली डॉक्टरांचा हात जरा जड लागला. खूप दुखत राहिलं – तरीही त्यांची तक्रार नाही.

साईड इफेक्टमुळे पहिल्याच केमोनंतर भसाभस केस गळले, पण तोंडावर नाराजीची खुणसुद्धा नाही.

पण दुसऱ्या केमोनंतर फॉलो अपच्या इंजेक्शनच्या वेळी आमच्या सिस्टरने हलक्या हातानं इंजेक्शन दिलं तर केवढं गौरवलं तुझ्या आईने तिला.

एवढ्या तेवढ्या कारणावरून डायरेक्टरना तक्रारी करणारे पेशंट आणि नातेवाईक सवयीचे आहेत आमच्या, पण दरवानापासून डॉक्टरपर्यंत आम्ही सगळे कसे “मस्त” आहोत (हा तुझ्या आईचा शब्द, बरं का) हे कौतुकाने सांगायला आमचे प्रमुख डॉ. श्रीकांतदादा बडवे यांना फोन करणारी तुझी आई एकटीच.

पहिले प्रथम त्यांनी कौतुक केलं ते केंद्रातील स्वच्छतेचं. अल्प दरात सुविधा उपलब्ध करून दिली असली तरी टापटीप, स्वच्छता अप्रतिम आहे असं सर्टिफिकेटच देऊन टाकलं त्यांनी.

बरं हा नुसता वरवरचा पोशाखी फोन नव्हता बरं. आमच्या केंद्राचं सविस्तर समालोचनच होतं ते.

डॉक्टर असूनही दुर्गेश काटकर सरांचं अक्षर कसं सुंदर आहे, त्यांनीच कशी त्यांना काकू म्हणायला सुरुवात केली हे त्यांनी सांगितलं.

डॉ. निधी कशा प्रसन्न वदनाने पेशंटचे टेन्शन दूर करतात, अगदी पराग तावडेदादांची झुबकेदार मिशी, प्रशांतसर प्रभूदेसाईंची भिकबाळी, मितभाषी पण कार्यतत्पर स्वप्निल, अक्षता – कविता – सुनयना – सीमा या आमच्या सिस्टर, वॉचमन दुबेकाका – या सगळ्या सगळ्यांचं नावासकट, त्यांच्या प्रत्येकाच्या चांगुलपणासकट इत्थंभूत वर्णन काकूंनी सरांकडे केलं.

आम्ही स्टाफ सगळे इतकी वर्षे एकमेकांबरोबर आहोत. आम्हाला माहीत नाही, पण कोणाचा मुलगा कितवीत आहे, कोणाची परीक्षा आहे, कोणाच्या सासूला – वडिलांना बरं नाहीये – हे सगळं सगळं काकूंना ठाऊक आहे. आणि दर वेळी आवर्जून त्या त्याप्रमाणे चौकशी करतात.

आणि हे आमच्यासाठी खूप नवीन आहे, आणि खूप सुखावणारं आहे.

तुला वाटतंय की तुझ्या आईला बरं नाही आणि म्हणून तिच्या उपचारांसाठी आम्ही तिच्याभोवती गराडा घालून असतो, पण वास्तव त्याच्या एकदम उलटं आहे.

आम्ही आम्हाला बरं वाटावं यासाठी तिच्याभोवती रुंजी घालत असतो.

देवळात बसलं की कसं प्रसन्न वाटतं, बॅटरी रिचार्ज होते, तसं आमचं आहे, म्हणून आम्ही जास्तीत जास्त वेळ तिच्याजवळ थांबतो.

केमो तिची चालू आहे, पण थेरपी आम्हाला मिळत आहे.”

डॉक्टर सांगत होते आणि लेक आपले डोळे पुसत होती.  

 – समाप्त –

© श्री मकरंद पिंपुटकर

चिंचवड, पुणे.  मो 8698053215

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ काही राहून तर नाही ना गेलं…अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री प्रभा हर्षे ☆

सुश्री प्रभा हर्षे

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☆ काही राहून तर नाही ना गेलं…अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री प्रभा हर्षे

तीन महिन्याच्या बाळाला  दाईपाशी ठेवून कामावर जाणाऱ्या आईला 

दाईनं विचारलं ~ “ काही राहून तर नाही ना गेलं ?  पर्स, किल्ल्या सगळं घेतलंत ना ?

— आता ती कशी हो, हो म्हणेल ?

पैशापाठी पळता-पळता,  सगळं काही मिळविण्याच्या महत्वाकांक्षेपोटी —

ती जिच्यासाठी एवढा आटापिटा करतेय —  तीच तर राहून गेलीय !

 

लग्नात नवऱ्यामुलीस सासरी पाठवताना –  लग्नाचा हाॅल रिकामा करून देताना 

मुलीच्या आत्यानं विचारलं ~ “ दादा, काही राहून तर नाही गेलं ना ? चेक कर जरा नीट..!

— बाप चेक करायला गेला, तर वधूच्या खोलीत काही फुलं सुकून पडलेली दिसली.

— सगळंच तर मागं राहून गेलंय…. २१ वर्षे जे नाव घेऊन आपण जिला लाडानं हाक मारत होतो,

… ते नाव तिथंच सुटून गेलंय, आणि …. त्या नावापुढे आतापर्यंत अभिमानानं जे नाव लागत होतं, 

— ते नावही आता तिथंच राहून गेलंय.

 

“ दादा, बघितलंस ? काही मागे राहून तर नाही ना गेलं ?”

— बहिणीच्या या प्रश्नावर, भरून आलेले डोळे लपवत बाप काही बोलला तर नाही, 

पण त्याच्या मनात विचार आला~

—  सगळं काही तर इथंच राहून गेलंय .!

 

मोठी मनिषा मनी बाळगून मुलाला शिक्षणासाठी परदेशात पाठवलं होतं,

– आणि तो शिकून तिथंच सेटल झाला.

नातवाच्या जन्मावेळी मोठ्या मुश्किलीनं तीन महिन्यांचा  व्हिसा मिळाला होता,

– आणि निघतेवेळी मुलानं विचारलं ~ “ बाबा सगळं काही चेक केलंय ना ?—

काही राहून तर नाही ना गेलं ?” 

— काय सांगू त्याला, की आता…. “आता राहून जाण्यासारखं  माझ्यापाशी उरलं तरी काय आहे ..!”

 

सेवानिवृत्तीचे दिवशी पी.ए. नं आठवण करून दिली ~

— “ चेक करून घ्या सर ..! काही राहून तर नाही ना गेलं ?”

– थोडं थांबलो, आणि मनात विचार आला, “ सगळं जीवन तर इथंच येण्या-जाण्यात निघून गेलं.

— आता आणखी काय राहून गेलं असणार आहे?”

 

स्मशानातून परतताना ….. मुलानं मान वळवली पुन्हा एकदा, चितेकडे पाहण्यासाठी …

—   पित्याच्या चितेच्या भडकत्या आगीकडे पाहून त्याचं मन भरून आलं.

—  धावतच तो गेला — पित्याच्या चेहऱ्याची एक  झलक पाहण्याचा असफल प्रयत्न केला….

—  आणि तो परतला…….  मित्रानं विचारलं ~-  “ काही राहून गेलं होतं कां रे ?”

—    भरल्या डोळ्यांनी तो बोलला ~  “ नाही , काहीच नाही राहिलं आता — आणि जे काही राहून गेलंय,

ते नेहमीच माझ्या सोबत राहील !”

 

एकदा… थोडा वेळ काढून वाचा—कदाचित …जुना काळ आठवेल, डोळे भरून येतील, आणि

– आणि आज मन भरून जगण्याचं.. कारण मिळेल   ..

 

मित्रांनो !  कुणास ठाऊक ? केव्हा या जीवनाची संध्याकाळ होईल….. 

 

— असं काही होण्याआधी सर्वांना जवळ घ्या, 

              त्यांच्या पाठीवर हात फिरवा.

              त्यांच्याशी प्रेमानं बोलून घ्या

              जेणेकरुन काही राहून जाऊ नये ..!!!                                      

लेखक : अज्ञात

संग्राहिका –  सुश्री प्रभा हर्षे 

पुणे, भ्रमणध्वनी:-  9860006595

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ “श्री सखी राज्ञी जयति…” ☆ सौ राधिका भांडारकर ☆

सौ राधिका भांडारकर

? इंद्रधनुष्य ?

☆ “श्री सखी राज्ञी जयति…” ☆ सौ राधिका भांडारकर

युवराज शंभुने कविता लिहिली 

प्राणप्रिय पत्नीसाठी शब्द स्फुरले

 श्री सखी राज्ञी जयति

 ओळीतून या त्यांचे भार्या प्रेम प्रकटले १

 

 स्वराज्याच्या धगधगत्या निखाऱ्याला 

समजून घेत जपले आपल्या पदरात 

कणखर, हळवी ,प्रेमळ सोशिक

 कधी न डगमगली वादांच्या प्रवाहात ..२

 

 पत्नीच असते लक्ष्मी, सखी, राणी 

भावना पतीची आहे गौरवा समान

 या शब्दांच्या अर्थांना जाणले  येसुने

 सदा मानले स्वराज्याचे कर्तव्य महान ..३

 

आज वळून पाहता इतिहासाकडे 

काळाने  दिल्या किती  रणरागिणी

 मूर्तीमंत जणू लखलखत्या तलवारी

 दुःखात हसल्या  या शूर विरहिणी…४

 

 झळकले चार शब्द राजमुद्रेवर

धन्य तो  शिवरायांचा  छावा 

ज्याने केला जय जयकार स्त्रीचा 

शब्द भावनेतून केवळ कसा वर्णवा ?..५

© सौ. राधिका भांडारकर

ई ८०५ रोहन तरंग, वाकड पुणे ४११०५७

मो. ९४२१५२३६६९

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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