हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 238 – जाग्रत देवता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 238 ☆ जाग्रत देवता ?

सनातन संस्कृति में  किसी भी मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही मूर्ति जाग्रत मानी जाती है। इसी अनुक्रम में मुद्रित शब्दों को विशेष महत्व देते हुए सनातन दर्शन ने पुस्तकों को जाग्रत देवता की उपमा दी है।

पुस्तक पढ़ी ना जाए, केवल सजी रहे तो निर्रथक हो जाती है। पुस्तकों में बंद विद्या और दूसरों के हाथ गए धन को समान रूप से निरुपयोगी माना गया है। पुस्तक जाग्रत तभी होगी, जब उसे पढ़ा जाएगा। पुस्तक के संरक्षण को लेकर हमारी संस्कृति का उद्घोष है-

तैलाद्रक्षेत् जलाद्रक्षेत् रक्षेत् शिथिलबंधनात।

मूर्खहस्ते न दातव्यमेवं वदति पुस्तकम्।।

पुस्तक की गुहार है, ‘तेल से मेरी रक्षा करो, जल से मेरी रक्षा करो, मेरे बंधन (बाइंडिंग)  शिथिल मत होने दो। मुझे मूर्ख के हाथ मत पड़ने दो।’

संदेश स्पष्ट है, पुस्तक संरक्षण के योग्य है।  पुस्तक को बाँचना, गुनना, चिंतन करना, चैतन्य उत्पन्न करता है। यही कारण है कि हमारे पूर्वज पुस्तकों को लेकर सदा जागरूक रहे। नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय इसका अनुपम उदाहरण रहा। पुस्तकों को जाग्रत देवता में बदलने के लिए  पूर्वजों ने ग्रंथों के पारायण की परंपरा आरंभ की। कालांतर में पराधीनता के चलते समुदाय में हीनभावना घर करती गई। यही कारण है कि पठनीयता के संकट पर चर्चा करते हुए आधुनिक समाज धार्मिक पुस्तकों का पारायण करने वाले पाठक को गौण कर देता है। कहा जाता है, जब पग-पग पर  होटलें हों किंतु ढूँढ़े से भी पुस्तकालय न मिले तो पेट फैलने लगता है और मस्तिष्क सिकुड़ने लगता है। वस्तुस्थिति यह है कि  भारत के घर-घर में धार्मिक पुस्तकों का पारायण करने वाले जनसामान्य ने  इस कहावत को धरातल पर उतरने नहीं दिया।

पुस्तकों के महत्व पर भाष्य करते हुए अमेरिकी इतिहासकार बारबरा तुचमैन ने लिखा,’पुस्तकों के बिना इतिहास मौन है, साहित्य गूंगा है,  विज्ञान अपंग है,  विचार स्थिर है।’ बारबारा ने पुस्तक को  समय के समुद्र में खड़ा दीपस्तम्भ भी कहा। समय साक्षी है कि  पुस्तकरूपी  दीपस्तंभ ने जाने कितने सामान्य जनो को महापुरुषों में बदल दिया। सफ़दर हाशमी के शब्दों में,

किताबें कुछ कहना चाहती हैं,

किताबें तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।

पुस्तकों के संग्रह में रुचि जगाएँ, पुस्तकों के अध्ययन का स्वभाव बनाएँ। अभिनेत्री एमिला क्लार्क के शब्दों में, ‘नेवर ऑरग्यू विथ समवन हूज़ टीवी इज़ बिगर देन देअर बुकशेल्फ।’   छोटे-से बुकशेल्फ और बड़े-से स्क्रिन वाले विशेषज्ञों की टीवी पर दैनिक बहस के इस दौर में अपनी एक कविता स्मरण हो आती है,

केवल देह नहीं होता मनुष्य,

केवल शब्द नहीं होती कविता,

असार में निहित होता है सार,

शब्दों के पार होता है एक संसार,

सार को जानने का

साधन मात्र होती है देह,

उस संसार तक पहुँचने का

संसाधन भर होते हैं शब्द,

सार को, सहेजे रखना मित्रो!

अपार तक पहुँचते रहना मित्रो!

मुद्रित शब्दों का ब्रह्मांड होती हैं पुस्तकें। असार से सार और शब्दों के पार का संसार समझने का गवाक्ष होती हैं पुस्तकें। शब्दों से जुड़े रहने एवं पुस्तकें पढ़ते रहने का संकल्प, हाल ही में सम्पन्न हुए विश्व पुस्तक दिवस की प्रयोजनीयता को सार्थक करेगा।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 श्री हनुमान साधना – अवधि- मंगलवार दि. 23 अप्रैल से गुरुवार 23 मई तक 💥

🕉️ श्री हनुमान साधना में हनुमान चालीसा के पाठ होंगे। संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही। मंगल भव 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 185 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 185 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 185) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 185 ?

☆☆☆☆☆

काश मिल जाये हमें भी

कोई किसी आईने की तरह

जो हँसे भी साथ साथ

और रोये भी साथ साथ…

☆☆

Wish I could also have

Someone like a mirror

Who could laugh together

And  even  cry together …

☆☆☆☆

उन्हें  ठहरे…

समुंदर  ने  डुबोया

जिन्हें  तूफ़ाँ  का…

अंदाज़ा  बहुत  था…

☆☆

Calm seas…

drowned them only…

Who claimed to have great 

experience of braving the storms

☆☆☆☆

तकलीफ खुद ही

कम हो गई…

जब अपनों से…

उम्मीद कम हो गई..

☆☆

The suffering itself got

conclusively reduced,

When expectations from

the loved ones minimized…

☆☆☆☆

पत्तों सी होती है कई रिश्तों

की उम्र, आज हरे कल सूखे….

क्यों  न  हम जड़ों  से  ही

उम्र भर रिश्ते निभाना सीखें…

☆☆

 Age of many relationships is like

leaves; today green, tomorrow dried… 

Why don’t we learn from roots

To maintain the relationship … 

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 185 ☆ नवगीत: हमको कुछ तो करना होगा… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवगीत: हमको कुछ तो करना होगा…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 184 ☆

☆ नवगीत: हमको कुछ तो करना होगा…  ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

 

करना होगा…

हमको कुछ तो

करना होगा…

*

देखे दोष,

दिखाए भी हैं.

लांछन लगे,

लगाये भी है.

गिरे-उठे

भरमाये भी हैं.

खुद से खुद

शरमाये भी हैं..

परिवर्तन-पथ

वरना होगा.

हमको कुछ तो

करना होगा…

*

दीपक तले

पले अँधियारा.

किन्तु न तम की

हो पौ बारा.

डूब-डूबकर

उगता सूरज.

मिट-मिट फिर

होता उजियारा.

जीना है तो

मरना होगा.

हमको कुछ तो

करना होगा…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (29 अप्रैल से 5 मई 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (29 अप्रैल से 5 मई 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

आज हर व्यक्ति है जानना चाहता है कि आगे भविष्य में उसको सफलताएं कब मिलेगी। उसका स्वास्थ्य कब ठीक रहेगा। वह क्या-क्या कार्य करें और क्या-क्या कार्य न करें जिससे उसकी शत-प्रतिशत सफलताएं मिल सके। इन्हीं बातों को ध्यान देते हुए 29 अप्रैल से 5 मई 2024 अर्थात विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 के वैशाख कृष्ण पक्ष की तृतीया से वैशाख कृष्ण पक्ष की द्वादशी तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल को प्रस्तुत किया जा रहा है। पंडित अनिल पाण्डेय का आप सभी को नमस्कार।

इस सप्ताह चंद्रमा प्रारंभ में धनु राशि में रहेगा। 30 अप्रैल को 8:12 दिन से चंद्रमा मकर राशि में प्रवेश करेगा। 2 तारीख को 11:42 दिन से वह कुंभ राशि में गोचर करेगा और 4 मई को 2 :11 दिन से वह मीन राशि का हो जाएगा।

इस पूरे सप्ताह सूर्य और बुध मीन राशि में रहेंगे। मंगल और शनि कुंभ राशि में रहेंगे। इसी प्रकार शुक्र पूरे सप्ताह मेष राशि में रहेगा। राहु पूरे सप्ताह मीन राशि में बक्री रहेगा। बुध प्रारंभ में मेष राशि में रहेगा और 1 मई को 5:30 शाम से वृष राशि में प्रवेश करेगा। गुरु प्रारंभ में मेष राशि में रहेगा तथा 1 मई को 5:30 शाम से वृष राशि में प्रवेश करेगा।

इस सप्ताह 3 मई को अन्नप्राशन का मुहूर्त है। विवाह, नामकरण, व्यापार आदि का कोई मुहूर्त सप्ताह नहीं है।

इस सप्ताह 5 मई को सूर्योदय से 6:06 शाम तक सर्वार्थ सिद्ध योग रहेगा।

आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

अविवाहित जातकों के विवाह के अच्छे प्रस्ताव आएंगे। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। पिताजी के पेट में समस्या हो सकती है। इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में सफलता मिल सकती है। व्यापार भी ठीक चलेगा। धन आने का योग है। भाई बहनों के साथ संबंध में तनाव आ सकता है। कार्यालय में आपको कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हो पाएगी। इस सप्ताह आपके लिए 30 अप्रैल और 1 मई उत्तम है। 30 अप्रैल और 1 मई को आप जो भी कार्य करेंगे अधिकांश कार्यों में आपको सफलता प्राप्त होगी। 5 मई को आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गुरुवार के दिन रामचंद्र जी या कृष्ण भगवान के मंदिर में जाकर उनके दर्शन करें और राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का अच्छा योग है। अगर आप प्रयास करेंगे तो धन की मात्रा बढ़ जाएगी। कार्यालय में आपको सामान्य प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। भाग्य से कोई विशेष सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। आपके स्वास्थ्य में रक्त संबंधी समस्या आ सकती है। आपको अपनी संतान से इस सप्ताह सहयोग प्राप्त नहीं होगा। कचहरी के कार्यों में रिस्क ना लें। माता जी और पिताजी दोनों के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए दो, तीन और चार तारीख शुभ है। 2, 3 और 4 तारीख में आपके अधिकांश कार्य सफल रहेंगे। आपको 30 और 1 तारीख को सतर्क रहना चाहिए। अन्यथा आपको नुकसान हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। पिताजी का स्वास्थ्य सामान्य से अच्छा रहेगा। माता जी का स्वास्थ्य भी ठीक-ठाक रह सकता है। आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। भाग्य से इस सप्ताह आपको थोड़ी बहुत मदद मिलेगी। कचहरी के कार्यों में आपको रिस्क नहीं लेना चाहिए। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 29 अप्रैल और 5 मई फलदायक हैं। इन दोनों तारीखों में आपको कई सफलताएं प्राप्त हो सकती हैं। 30 अप्रैल और 1 मई को आपको सावधान रहकर कोई कार्य करना चाहिए। अन्यथा आप असफल रहेंगे। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा सामान्य रहेगी। भाग्य आपका भरपूर साथ देगा। दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें आपके स्वास्थ्य में थोड़ी बहुत दिक्कत आ सकती है। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके सुख में कमी होगी। आपको अपनी संतान से कोई विशेष सहयोग नहीं मिल पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 30 अप्रैल और 1 मई शुभ परिणाम देने वाले हैं। आपको अपने कार्यों को 30 अप्रैल और 1 जून को करना चाहिए जिससे आपको सफलता मिल सके सके। सप्ताह के बाकी दिन आपको सतर्क रहकर ही कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पांच बार जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

सिंह राशि

भाग्य आपका सामान्य रूप से साथ देगा। आपको गर्दन या कमर में दर्द की शिकायत हो सकती है। आपको अपनी संतान से पर्याप्त सुख प्राप्त होगा। कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा में कमी आ सकती है। छोटी-मोटी दुर्घटनाओं का भी योग है। धन आने की मात्रा में कमी आ सकती है। पिताजी और माताजी दोनों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए दो, तीन और 4 मई लाभदायक है। दो-तीन और 4 मई को आपके अधिकांश कार्य हो जाएंगे। 4 मई को दोपहर के बाद तथा 5 मई को आपको सतर्क रहकर ही कोई कार्य करना है। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह कन्या राशि के अविवाहित जातकों के विवाह के उत्तम संबंध आएंगे। अगर आप थोड़ा सा भी प्रयास करेंगे तो विवाह तय हो जाएगा तथा हो भी सकता है। दुश्मनों पर आप विजय प्राप्त कर सकते हैं। परंतु नए दुश्मन भी बनेंगे। आपके पेट में पीड़ा हो सकती है। आपको ब्लड प्रेशर डायबिटीज या खून की कोई अन्य बीमारी भी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 29 अप्रैल और 5 मई सफलता देने वाले हैं। 29 अप्रैल को आपके अधिकांश कार्य सफल होंगे। 4 मई को 2:12 दोपहर के बाद से 5 मई को आपके सभी कार्य भी संपन्न हो सकते हैं। कृपया इन समयावधियों में कार्य करने का प्रयास करें। दो तीन और चार मई को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह बहुत उत्तम है। उनके विवाह के उत्तम प्रस्ताव आएंगे। आपके पेट में पीड़ा हो सकती है। आपको गले का विकार भी हो सकता है। आपके जीवन साथी, माताजी और पिताजी सभी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। आपको इस सप्ताह भाग्य से कोई विशेष मदद नहीं मिल पाएगी। थोड़ी बहुत मदद मिल सकती है। संतान से आपको मदद मिल सकती है। संतान आपका सहयोग करेगी। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 30 अप्रैल और 1 मई किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। 4 मई के दोपहर से 5 मई तक का समय कम अच्छा है। आपको इस समय में सावधान रहना चाहिए और सचेत होकर के ही कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी और माताजी का स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। आपके जीवनसाथी के पेट में कोई समस्या हो सकती है। छोटी-मोटी दुर्घटना का योग है। भाग्य से कोई विशेष सहायता नहीं मिल पाएगी। संतान से आपको सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए दो-मई के दोपहर के बाद से और तीन और चार तारीख के दोपहर तक का समय की उत्तम है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी। जनता में आपका यश फैलेगा। आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। खर्चे में कमी आ सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। आपको संतान से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। संतान की उन्नति होगी। आपके पेट में परेशानी हो सकती है। भाग्य से आपको कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। इस सप्ताह आपके लिए 29 और 4 तारीख के दोपहर के बाद से 5 तारीख तक शुभ समय है। इस संबंध इस समय में आपके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य सफल होंगे। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह प्रतिदिन भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके सुख में वृद्धि होगी। आपके जीवनसाथी और माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में परेशानी आ सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। संतान से आपको कम सहयोग मिलेगा। सन्तान को परेशानी हो सकती है। आपको भाग्य से कोई विशेष मदद नहीं प्राप्त होगी। इस सप्ताह आपके लिए 30 अप्रैल और 1 मई लाभदायक है। 30 अप्रैल और 1 मई को आपके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य सफल रहेंगे। 29 अप्रैल को आपको सावधान रहकर कोई कार्य करना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपको धन की प्राप्ति होगी। आपको धन की प्रति अच्छे और बुरे दोनों रास्तों से होगी। आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके सुख में थोड़ी कमी आ सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। माता जी का स्वास्थ्य थोड़ा खराब हो सकता है। उनको पेट की परेशानी हो सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। भाग्य से आपको कोई मदद नहीं मिल पाएगी। छात्रों की पढ़ाई में बाधा पड़ेगी। आपको अपनी संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। कचहरी के कार्यों में किसी प्रकार के रिस्क ना लें। इस सप्ताह आपके लिए 2 तारीख की दोपहर के बाद से लेकर 4 तारीख की दोपहर तक का समय उत्तम है। इस समय में आप जो भी कार्य करेंगे उनमें आपको सफलता मिल सकती है। 30 अप्रैल, 1 मई और 2 मई के दोपहर तक का समय आपके लिए थोड़ा कम ठीक है। आपको कोई भी कार्य सतर्क होकर करना चाहिए। आपको चाहिए कि इस सप्ताह गुरुवार का व्रत रखें और प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपका व्यापार अच्छा चलेगा। धन प्राप्त होने का उत्तम योग है। कचहरी के कार्यों में आप गति सामान्य रहेगी। आपके सुख में कमी होगी। आपको छोटी-मोटी दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। भाग्य से आपको कोई विशेष मदद नहीं प्राप्त हो पाएगी। आपके जीवन साथी को शारीरिक कष्ट हो सकता है। माता जी और पिताजी स्वस्थ रहेंगे। भाई और बहनों के साथ आपके संबंध में टकराव हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 29 अप्रैल और 5 मई उत्तम है। 29 अप्रैल और 5 मई को आप जो भी कार्य करेंगे उसमें आपको सफलता मिलेगी। 30 अप्रैल और 1 मई को आपको सचेत रहकर कार्य करना चाहिए अन्यथा आपको अपने कार्यों में असफलता प्राप्त हो सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप गुरुवार का व्रत करें और प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆– “फुले बकुळीची…” – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? – “फुले बकुळीची– ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

कळीच्या रूपाने मुग्ध बाल्य

पुर्ण फुललेल गंधीत तारुण्य 

सृष्टीचक्र हे स्वीकारले तर

सुकल्या  फुलाचे  निर्माल्य ….. 

*

नक्षीदार  हे दोन करंडे

सुगंधाने पूर्ण भरलेले

स्वर्गामघूनी भगवंताने

वसुंधरेस  पाठविलेले ….. 

*

तया संगती मुग्ध कलिका

हात धरूनी खाली आली

रूप उद्याचे आज न्याहळी  

आपसूक लाली येई गाली ….. 

*

 पलीकडचे फुल सुकलेले

 पाहून बकुळ नाही ढळले

 जीवनातील सत्य स्वीकारत

  जगणे इवले तयास कळले ….. 

*

बकुळ म्हणे सुकले तरी मी

इथेच असेन सुगंध रूपाने

कवी लेखक जसे वावरती

अक्षरातुन  साहित्यरुपाने ….. 

*

 माघ्यम कुठलीही भाषा 

जगातील कुठलाही देश

क्षर ना जयाला ते अक्षर

चिरंतन असो वेगळा वेष ….. 

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

मो 8149144177

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संस्मरण – मेरी यादों में जालंधर – भाग-15 – थियेटर की दुनिया के खुबसूरत मोड़ ! ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ संस्मरण – मेरी यादों में जालंधर – भाग-15 – थियेटर की दुनिया के खुबसूरत मोड़ ! ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

(प्रत्येक शनिवार प्रस्तुत है – साप्ताहिक स्तम्भ – “मेरी यादों में जालंधर”)

हाँ, तो मैं कल बात कर रहा था, जालंधर के थियेटर, रंगकर्म और‌ रंगकर्मियों के बारे में ! गुरुशरण भाजी के साथ लम्बा साथ रहा और‌ बहुत सी बातें हैं, यादें हैं! वे वामपंथियों को झिंझोड़ते कहते थे कि एक कामरेड हर बात पे कहता है कि आपको पता नहीं कि हम लोगों के बीच में से आये हैं ! इस पर भाजी का जवाब बड़ा मज़ेदार और चुटीला था- कामरेड! यही तो दुख है कि आप लोगों में से निकल आये हो और अब आप इनकी नब्ज़ नहीं समझ पा रहे  ! फिर‌ वे युवाओं को कहते कि गाने के बोल हैं कि

पिच्छे पिच्छे आईं

मेरी तोर बेहदां आईं

इत्थे नीं मेरा लौंग गवाचा!

बताओ भई ! युवा पीढ़ी का यही काम रह गया कि मुटियारों की नाक का कोका ही खोजते ज़िंदगी बिता दें? हमारे संपादक श्री विजय सहगल को भी गुरुशरण पाजी से दोस्ती का पता था। एक बार वे दिल्ली से अकादमी पुरस्कार लेकर देर शाम लौटे उस दिन मेरी नाइट ड्यूटी थी! अचानक रात के ग्यारह बजे सहगल जी का फोन आया कि आपकी दोस्ती आज आजमानी है कि इसी समय उनका फोन पर इंटरव्यू लो! उसी समय फोन लगाया और उनकी पत्नी ने उठाया और बोलीं कि वे तो थक कर सो गये हैं, मैंने कहा कि किसी भी तरह उनको जगा दीजिए ! भाजी आंखें मलते उठे होंगे पर मुझे अपने पुरस्कार पर इंटरव्यू दे दिया ! ज़रा बुरा नही माना ! वे ‘ समता प्रकाशन” भी चलाते थे और  हर नाटक के बाद वे अपने प्रकाशन की पुस्तकें लहरा कर कहते कि ये पुस्तकें लीजिए ! बहुत कम कीमत और‌ बहुत ही गहरी किताबें ! यह बात मैंने भाजी से सीखी कि किताब आम आदमी तक कैसे बिना किसी संकोच के लागत मूल्य पर पहुँचाई जा सकती है और मैं अपनी किताबें आज भी सीधे मित्रों तक पहुंचा कर लागत मूल्य मांगने से कोई संकोच महसूस नहीं करता ! इसके गवाह मेरे अनेक मित्र हैं !

खैर! भाजी के किस्से अनंत और‌ उनकी गाथा अनंत! अफसोस! एक बार जब वे अपनी टीम के साथ कहीं से नाटक मंचन कर देर रात लौट रहे थे, तब उनकी बैन किसी जगह उल्ट गयी और‌ वे घायल हो गये । हालांकि पाजी ने हिम्मत न हारी, फिर भी वे फिर‌ लम्बे समय तक नहीं रहे हमारे बीच ! इस तरह हमारे पास उनकी यादें ही यादें रह गयीं पर उनका थियेटर के लिए जुनून एक मिसाल है आज तक !

अमृतसर से ही थियेटर करने मेंं नाम कमाने वाले दो और रंगकर्मी हैं,  जिनसे मेरी थोड़ी थोड़ी मुलकातेंं हैं । ‌पहले केवल धालीवाल, जिनसे मेरी एक ही मुलाकात है और वह है प्रसिद्ध लेखक स्वदेश दीपक के घर‌ अम्बाला छावनी में ! तब मैं स्वदेश दीपक का इंटरव्यू लेने गया था और‌ केवल धालीवाल ‘कोर्ट मार्शल’ को पंजाबी में मंचित करने की अनुमति लेने पहुंचे हुए थे ! पाजी के बाद केवल धालीवाल ने भी खूब काम किया और नाटक को ऊंची पायदान पर पहुंचाने में योगदान दिया ! अमृतसर से ही नीलम मान सिंह भी आईं थियेटर में ! वे पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के थियेटर विभाग की अध्यक्ष भी रहीं और‌ ‘कंपनी’ नाम से अपना थियेटर ग्रुप भी बनाया, उन्होंने विदेशों तक पंजाबी थियेटर को पहुंचाया ! उन्होंने राॅक गार्डन में भी धियेटर किया !

बरसों बाद अचानक एक अस्पताल से बाहर आते मैंने इन्हें इनकी चमकतीं आंखों के चलते पहचाना ! मेरा छोटा भाई तरसेम वहां एक्सीडेंट के बाद दाखिल‌ था और‌ मैं उसकी कुशल मंगल पूछने आया था ! अचानक वे दिखीं और‌ मैं इनकी कार तक गया और मेरे मुंह से नीलम मान सिंह की बजाय सोनल मान सिंह निकल गया और वे नाराज़ होकर बोलीं-नो और कार स्टार्ट की लेकिन शायद उन्हें भी कुछ याद आई और वे कार से उतर कर आईं और‌ बोलीं – आई एम नीलम मान सिंह! पर आपने क्यों पूछा? मैंने “क़पनी’ का जिक्र करते बताया कि मैं उन दिनों आपके परिचय में आया था जिन दिनों आप राॅक गार्डन में थियेटर का एक्सपेरिमेंट कर रही थीं ! उन्हें भी मेरी हल्की सी याद आई और पूछा कि आज यहा कैसे? मैंने कहा कि आप यह बात छोड़िये ! आजकल मैं हिसार‌ रहता हूँ और वहाँ एक सांध्य दैनिक में कलाकारों के इ़टरव्यू छापता हूँ। ‌आप अपना नम्बर दे दीजिए, किसी दिन फोन पर ही इंटरव्यू कर लूंगा ! आखिर एक दिन उनकी इ़टरव्यू हुई और‌ उन्होंने अपना थियेटर का सफर बताया ! उनकी हीरोइन जो मोहाली रहती थी, रमनदीप की याद दिलाई और बताया कि आजकल वह कोलकाता में रहती है और उसका इंटरव्यू भी कर चुका हूँ । यहीं मैंने एक बार पंजाब के प्रसिद्ध नाटक ‘ लोहा कुट्ट ‘ के रचनाकार बलवंत गार्गी से नवांशहर की कलाकार बीबा कुलवंत के साथ उनके सेक्टर 28 स्थित आवास पर मिला था! बीबा कुलवंत ने ही इस नाटक की हीरोइन का रोल‌ निभाया था, जिसे खटकड़ कलां में ही नहीं पंजाब भर में जसवंत खटकड़ ने पहुंचाया! मैंने बलवंत गार्गी से मज़ाक में कहा कि आप पंजाब में बस लोहा ही कूटते रहे और कूटते कूटते इसे स्टील बना दिया। वे बहुत हंसे और कहि कि एक पैग इसी बात पर‌!

इस तरह मैं चंडीगढ़ में भी थियेटर के लोगों से मिलता रहा ! यहीं थियेटर विभाग में छात्र थे राजीव भाटिया और हिमाचल के धर्मशाला की वंदना, जो बाद में आपस में जीवन साथी बने और स़ंयोग देखिये कि जब हिसार ट्रांसफर हुई तब मैंने जो घर किराये पर  लिया वह राजीव भाटिया की गली में मिला ! इस तरह बरसों बाद देखा कि राजीव भाटिया हरियाणवी फिल्मों में योगदान दे रहे हैं और इसकी फिल्म – पगड़ी द ऑनर’ को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला ! हालांकि राजीव भाटिया और‌ वंदना मुम्बई रहते हैं लेकिन जब जब हिसार आते हैं, तब तब खूब महफिल जमती है हमारी ! खैर! मित्रो! मैं कहां से कहां पहुंच गया । खाली और रिटायर आदमी के पास समय बिताने के लिए, सिवाय किस्सों के कुछ नहीं होता !

आज का किस्सा इतना ही, कल मिलते हैं! यह कहते हुए कि – 

जो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन

उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर‌ भूलना अच्छा!

आज की जय जय!

क्रमशः…. 

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #234 – 121 – “मुफ़लिस  मुद्दत से  हिसाब लगा रहा…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल मुफ़लिस  मुद्दत से  हिसाब लगा रहा…” ।)

? ग़ज़ल # 119 – “मुफ़लिस  मुद्दत से  हिसाब लगा रहा…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

क़िस्मत  अमीर की है  सिकंदर साहिब,

नहीं  होता ग़रीब का  मुक़द्दर साहिब। 

*

मुफ़लिस  मुद्दत से  हिसाब लगा रहा,

उस तक  चपाती आई  छनकर साहिब।

*

जन्नत की  सैर को मैं भी निकल लेता,

ग़र नसीब में  बदा होता कलंदर साहिब।

*

छलनी में  हाक़िम  दूध छानता रहता है,

रखे  इल्ज़ाम  आख़िर  किस पर साहिब।

*

तुम दिखते एक रंग में रंगने को आमादा,

अध्याय चार लिख गए हैं दिनकर साहिब।

*

हरेक   तकलीफ़  को  आँसू  नहीं मिलते,

ग़मों  का  भी  होता  है  समंदर साहिब।

*

उन्होंने  तो  ख़ाली  नज़र  बिछा राह तकी,

ख़ुद  बना  आतिश कालीन बिछकर साहिब।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 112 ☆ गीत – ।। मैं तो भारत भाग्य  विधाता हूँ, मैं इक कर्तव्यनिष्ठ मतदाता हूँ ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 112 ☆

☆ गीत – ।।मैं तो भारत भाग्य  विधाता हूँ, मैं इक कर्तव्यनिष्ठ मतदाता हूँ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

तू भारत भाग्य विधाता रखता मताधिकार है।

तेरे वोट से ही तो चुनी जातीअच्छी सरकार है।।

मतदान के दिन परम कर्तव्य है यह तुम्हारा।

वोट देकर दिखाना तुझे   अपना सरोकार है।।

[2]

मैं भारत भाग्य विधाता हूँ,मैं इक  मतदाता हूँ।

वोट से अपने देश की   पहचान मैं बनाता हूँ।।

उँगली का काला निशान भाग्य रेखा  देश की।

देकर वोट अपना मैं     पहला फ़र्ज़ निभाता हूँ।।

[3]

राष्ट्र के उत्थान का मुख्य आधार ही मतदान है।

इसी में निहित तेरा मेरा और सबका सम्मान है।।

वोट की शक्ति जानो  और उसका प्रयोग  करो।

नहीं वोट देने का अर्थ कि देश प्रेम सुनसान है।।

[4]

वोट  उसको  दें   जो कि स्वप्न साकार   करे।

जो हमारे  सुख   दुःख कोअपना स्वीकार करे।।

लोकतंत्र यज्ञ चुनाव पर्व मेंआहुति परमावश्यक।

दें वोट उसको ही   जो जनहित में उद्धार  करे।।

[5]

अब हमें शत  प्रतिशत ही  मतदान  चाहिए।

अपने राष्ट्र की विश्व में ऊंची आनबान चाहिए।।

अपने से देश   हमको रखना     सबसे ऊपर।

बस एकता के रंग   में रंगा हिंदुस्तान चाहिए।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 174 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “गुण बढ़ा नाम जग में कमाना” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “गुण बढ़ा नाम जग में कमाना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “गुण बढ़ा नाम जग में कमाना” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

सोचो, समझो औ’ मन को टटोलो तुम्हें किस राह जीवन में जाना?

राहें कई हैं जो मन को लुभाती औरों के कहे में तुम न आना ॥1

पहले तौलो तुम्हें क्या है भाता काम क्या लगता तुमको सुहाना।

बनना क्या लगता तुमको है अच्छा रुचि है क्या? माँगता क्या जमाना? ॥2॥

इच्छा घर में सबो की भी क्या है? चाहते वे तुम्हें क्या बनाना?

राय लेके कई अनुभवी की राह में खुद कदम तब बढ़ाना ॥3॥

जिन्दगी एक है बहती सरिता समय के संग जिसे बढ़ते जाना।

जो कि बढ़ जाती जब जितना आगे कठिन होता है फिर लौट पाना ॥4॥

ध्यान रख नर्मदा की विमलता खुद को निर्मल जल जैसा बनना

बनो जिस क्षेत्र में कार्यकर्त्ता गुण बढ़ा नाम अपना कमाना ॥ 5 ॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #229 ☆ अधूरी ख़्वाहिशें… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का  मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख बहुत तकलीफ़ होती है। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 229 ☆

अधूरी ख़्वाहिशें… ☆

‘कुछ ख़्वाहिशों का अधूरा रहना ही ठीक है/ ज़िंदगी जीने की चाहत बनी रहती है।’ गुलज़ार का यह संदेश हमें प्रेरित व ऊर्जस्वित करता है। ख़्वाहिशें स्वप्न की भांति हैं, जिन्हें साकार करने में हम अपनी सारी ज़िंदगी लगा देते हैं। यह हमें जीने का अंदाज़ सिखाती हैं और जीवन-रेखा के समान हैं, जो हमें मंज़िल तक पहुंचाने की राह दर्शाती है। इच्छाओं व ख़्वाहिशों के समाप्त हो जाने पर ज़िंदगी थम-सी जाती है; उल्लास व आनंद समाप्त हो जाता है। इसलिए अब्दुल कलाम जी ने खुली आंखों से स्वप्न देखने का संदेश दिया है। ऐसे सपनों को साकार करने हित हम अपनी पूरी शक्ति लगा देते हैं और वे हमें तब तक चैन से नहीं बैठने देते; जब तक हमें अपनी मंज़िल प्राप्त नहीं हो जाती। भगवद्गीता में भी इच्छाओं पर अंकुश लगाने की बात कही गई है, क्योंकि वे दु:खों का मूल कारण हैं। अर्थशास्त्र  में भी सीमित साधनों द्वारा असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति को असंभव बताते हुए उन पर नियंत्रण रखने का सुझाव दिया गया है। वैसे भी आवश्यकताओं की पूर्ति तो संभव है; इच्छाओं की नहीं।

इस संदर्भ में मैं यह कहना चाहूंगी कि अपेक्षा व उपेक्षा दोनों मानव के लिए कष्टकारी व उसके विकास में बाधक हैं। उम्मीद मानव को स्वयं से रखनी चाहिए, दूसरों से नहीं। प्रथम मानव को उन्नति के पथ पर अग्रसर करता है; द्वितीय निराशा के गर्त में धकेल देता है। सो! गुलज़ार की सोच भी अत्यंत सार्थक है कि कुछ ख़्वाहिशों का अधूरा रहना ही कारग़र है, क्योंकि वे हमारे जीने का मक़सद बन जाती हैं और हमारा मार्गदर्शन करती हैं। जब तक ख़्वाहिशें ज़िंदा रहती हैं; मानव निरंतर सक्रिय व प्रयत्नशील रहता है और उनके पूरा होने के पश्चात् ही सक़ून प्राप्त करता है। 

‘ख़ुद से जीतने की ज़िद्द है/ मुझे ख़ुद को ही हराना है/ मैं भीड़ नहीं हूं दुनिया की/ मेरे अंदर एक ज़माना है।’ जी हां! मानव से जीवन में संघर्ष करने के पश्चात् मील के पत्थर स्थापित करना अपेक्षित है। यह सात्विक भाव है। यदि हम ईर्ष्या-द्वेष को हृदय में धारण कर दूसरों को पराजित करना चाहेंगे, तो हम राग-द्वेष में उलझ कर रह जाएंगे, जो हमारे पतन का कारण बनेगा। सो! हमें अपने अंतर्मन में स्पर्द्धा भाव को जाग्रत करना होगा और अपनी ख़ुदी को बुलंद करना होगा, ताकि ख़ुदा भी हमसे पूछे कि तेरी रज़ा क्या है? विषम परिस्थितियों में स्वयं को प्रभु-चरणों में समर्पित करना सर्वश्रेष्ठ उपाय है। सो! हमें वर्तमान के महत्व को स्वीकारना होगा, क्योंकि अतीत कभी लौटता नहीं और भविष्य अनिश्चित है। इसलिए हमें साहस व धैर्य का दामन थामे वर्तमान में जीना होगा। इन विषम परिस्थितियों में हमें आत्मविश्वास रूपी धरोहर को थामे रखना है तथा पीछे मुड़कर कभी नहीं देखना है।

संसार में असंभव कुछ भी नहीं। हम वह सब कर सकते हैं, जो हम सोच सकते हैं और हम वह सब सोच सकते हैं; जिसकी हमने आज तक कल्पना नहीं की। कोई भी रास्ता इतना लम्बा नहीं होता, जिसका अंत न हो। मानव की संगति अच्छी होनी चाहिए और उसे ‘रास्ते बदलो, मुक़ाम नहीं’ में विश्वास रखना चाहिए, क्योंकि पेड़ हमेशा पत्तियां बदलते हैं, जड़ें नहीं। जीवन संघर्ष है और प्रकृति का आमंत्रण है। जो स्वीकारता है, आगे बढ़ जाता है। इसलिए मानव को इस तरह जीना चाहिए, जैसे कल मर जाना है और सीखना इस प्रकार चाहिए, जैसे उसको सदा ज़िंदा रहना है। वैसे भी अच्छी किताबें व अच्छे लोग तुरंत समझ में नहीं आते, उन्हें पढ़ना पड़ता है। श्रेष्ठता संस्कारों से मिलती है और व्यवहार से सिद्ध होती है। ऊंचाई पर पहुंचते हैं वे लोग, जो प्रतिशोध नहीं, परिवर्तन की सोच रखते हैं। परिश्रम सबसे उत्तम गहना व आत्मविश्वास सच्चा साथी है। किसी से धोखा मत कीजिए; न ही प्रतिशोध की भावना को पनपने दीजिए। वैसे भी इंसान इंसान को धोखा नहीं देता, बल्कि वे उम्मीदें धोखा देती हैं, जो हम किसी से करते हैं। जीवन में तुलना का खेल कभी मत खेलें, क्योंकि इस खेल का अंत नहीं है। जहां तुलना की शुरुआत होती है, वहां अपनत्व व आनंद भाव समाप्त हो जाता है।

ऐ मन! मत घबरा/ हौसलों को ज़िंदा रख/ आपदाएं सिर झुकाएंगी/ आकाश को छूने का जज़्बा रख। इसलिए ‘राह को मंज़िल बनाओ,तो कोई बात बने/ ज़िंदगी को ख़ुशी से बिताओ तो कोई बात बने/ राह में फूल भी, कांटे भी, कलियां भी/ सबको हंस के गले से लगाओ, तो कोई बात बने।’ उपरोक्त स्वरचित पंक्तियों द्वारा मानव को निरंतर कर्मशील रहने का संदेश प्रेषित है, क्योंकि हौसलों के जज़्बे के सामने पर्वत भी नत-मस्तक हो जाते हैं। ऐ मानव! अपनी संचित शक्तियों को पहचान, क्योंकि ‘थमती नहीं ज़िंदगी, कभी किसी के बिना/ यह गुज़रती भी नहीं, अपनों के बिना।’ सो! रिश्ते-नातों की अहमियत समझते हुए, विनम्रता से उनसे निबाह करते चलें, ताकि ज़िंदगी निर्बाध गति से चलती रहे और मानव यह कह उठे, ‘अगर देखना है मेरी उड़ान को/ थोड़ा और ऊंचा कर दो मेरी उड़ान को।’

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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