हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य #151 – आलेख – “बर्फ की आत्मकथा” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” (सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक शिक्षाप्रद आलेख - “बर्फ की आत्मकथा”) ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 151 ☆  ☆ आलेख - “बर्फ की आत्मकथा” ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆ मैं पानी का ठोस रूप हूं. द्रव्य रूप में पानी बन कर रहता हूं. जब वातावरण का ताप शून्य तक पहुंच जाता है तो मैं जम जाता हूं. मेरे इसी रूप को बर्फ कहते हैं. मेरा रासायनिक सूत्र (H2O) है. यही पानी का सूत्र भी है. यानी मेरे अंदर हाइरड्रोजन के दो अणु और आक्सीजन के एक अणु मिले होते हैं. जब पेड़ पौधे वातावरण से कार्बन गैस से कार्बन लेते हैं तब मेरे पानी से हाइड्रोजन ले कर शर्करा बनाते हैं. इसे ही पौधों की भोजन...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 177 ☆ बाल गीत – जय – जय गणेश ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र’ (हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक कुल 148 मौलिक  कृतियाँ प्रकाशित। प्रमुख  मौलिक कृतियाँ 132 (बाल साहित्य व प्रौढ़ साहित्य) तथा लगभग तीन दर्जन साझा - संग्रह प्रकाशित। कई पुस्तकें प्रकाशनाधीन। जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा बाल साहित्य के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान 'बाल साहित्य श्री सम्मान' और उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान द्वारा बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान 'बाल साहित्य भारती' सम्मान, अमृत लाल नागर सम्मान, बाबू श्याम सुंदर दास सम्मान तथा उत्तर प्रदेश राज्यकर्मचारी संस्थान  के सर्वोच्च सम्मान सुमित्रानंदन पंत, उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान सहित पाँच दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं गैर साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित एवं पुरुस्कृत।   आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक...
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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #174 ☆ बाप्पा… ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम  कवितेचा उत्सव  ☆ सुजित साहित्य # 174 ☆ बाप्पा... ☆ श्री सुजित कदम ☆ बाप्पा तुझा देवा घरचा पत्ता मला तू ह्या वर्षी तरी देऊन जायला हवा होतास.. कारण.., आता खूप वर्षे झाली बाबांशी बोलून बाबांना भेटून... ह्या वर्षी न चूकता तुझ्याबरोबर बांबासाठी आमच्या खुशालीची चिठ्ठी तेवढी पाठवलीय बाबा भेटलेच तर त्यांना ही त्याच्यां खुशालीची चिठ्ठी माझ्यसाठी पाठवायला सांग... बाप्पा..., त्यांना सांग त्याची चिमूकली त्यांची खूप आठवण काढते म्हणून आणि आजही त्यांना भेटण्यासाठी आई जवळ नको इतका हट्ट करते म्हणून..., बाप्पा तू दरवर्षी येतोस ना तसच बाबांनाही वर्षातून एकदातरी मला भेटायला यायला सांग.., तुझ्यासारखच...,त्यांना ही पुढच्या वर्षी लवकर या.. अस म्हणण्याची संधी मला तरी द्यायला सांग..., बाप्पा.., पुढच्या वर्षी तू... खूप खूप लवकर ये.. येताना माझ्या बाबांना सोबत तेवढ घेऊन ये...! © श्री सुजित कदम संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30 मो. 7276282626 ≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #200 – कविता – ☆ माना कि हम इतने बड़े नहीं हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ (सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  “रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक विचारणीय कविता “माना कि हम इतने बड़े नहीं हैं...”।) ☆ तन्मय साहित्य  #200 ☆ ☆ माना कि हम इतने बड़े नहीं हैं...... ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆ ☆ माना कि हम इतने बड़े नहीं हैं पर ये भी सच नहीं कि, हम अपने पैरों पर खड़े नहीं हैं।   गिरते-गिरते उठे, चले आगे सत्पथ पर चलते रहे निरंतर ,कभी न बैठे हम दूजों के रथ पर, जीवन में अपनी मनवाने कभी किसी से लड़े नहीं हैं पर ये भी सच.........   संघर्षों से रहे जूझते हँसते-हँसते मन वीणा के तारों को हम रहे एक लय-स्वर में कसते, कभी बेसुरे गीत भीड़ में बेशर्मी से पढ़े नहीं हैं पर ये भी सच.........   दर्प भरे चेहरों से कभी नहीं बन पाई उनसे रखा दूर अपने को रहे दिखाते जो प्रभुताई, द्वेषभाव से राह किसी की कंटक बन कर अड़े नहीं...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 25 ☆ नई पीढ़ियाँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव (संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “नई पीढ़ियाँ…” ।) जय प्रकाश के नवगीत # 25 ☆ नई पीढ़ियाँ… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆ सीख बड़ों की टँगी अरगनी बंजर जोतें ऩई पीढ़ियाँ ।   कटा हुआ दिन ठूँठ पेड़ का सूरज डूबा बुढ़ा मेंड़ का   रात उनींदी आलस भरती उतर रही कुलवधू सीढ़ियाँ ।   खेत उठाकर माटी कूटे बाँध रहा है रिश्ते टूटे   बरगद दादा रगडे़ं दिन भर बैठे बैठे फटी एड़ियाँ ।   खरपत उपजी घर आँगन में खड़ी दिवारें सबके मन में   गाय रँभाती बँधी खूँट से बछिया लाँघे रोज ड्योढ़ियाँ । *** © श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.) मो.07869193927, ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈...
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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ प्यार जब रूह नहीं सूरत से… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे (वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा - एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य - काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना "प्यार जब रूह नहीं सूरत से...") प्यार जब रूह नहीं सूरत से... ☆ श्री अरुण कुमार दुबे  ☆ ☆ वो करे रंक व राजा बाबा ऐसा उस यार का जलवा बाबा ☆ नेवले साँप में जो यारी है ये सियासत का तमाशा बाबा ☆ अपना अस्तित्व बचाने लड़िये वक़्त का है ये तक़ाज़ा बाबा ☆ हिज़्र का दोष न देना उसको मेरी किस्मत में लिखा था बाबा ☆ प्यार जब रूह नहीं सूरत से आज है हीर न राँझा बाबा ☆ बाँट बिरसा लिया है बेटों ने रह अकेली गई अम्मा बाबा ☆ ये अरुण को है सिखाई किस्मत साथ देती न हमेशा बाबा ☆ © श्री अरुण कुमार दुबे सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी)...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आलेख # 84 – प्रमोशन… भाग –2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव (श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आलेखों की एक नवीन शृंखला “प्रमोशन…“ की प्रथम कड़ी। )  ☆ आलेख # 84 – प्रमोशन… भाग –2 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆ हमारे बैंक के सामने जो बैंक था उसके लिये "प्रतिद्वंद्वी" शब्द का प्रयोग जरूर किया है पर हकीकत यही थी कि कोई दुर्भावना नहीं थी और उनके और हमारे बीच भाईचारा था, एक सी इंडस्ट्री में काम करने के कारण. जब हम लोग आते थे उसी समय वो लोग भी अपने बैंक...
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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 200 ☆ ॥ गजानन ॥ ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे कवितेच्या प्रदेशात # 200 ☆ ॥ गजानन ॥ ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆ ☆ आले घरोघर  वाजत गाजत बुद्धीचे दैवत गजानन ॥   केली पूजाअर्चा आर्पिली जास्वंद झाले की प्रसन्न गजानन ॥   मोदक साजूक खीर तांदळाची तृप्त की जहाले गजानन ॥   खिरापत रोज आवडेच भारी लाडू पेढे खाती गजानन ॥   आरती म्हणता रात्रंदिन आम्ही झाले की प्रसन्न गजानन ॥   दहा दिवसाचे असती पाहुणे दरवर्षी येती गजानन ॥ ☆ © प्रभा सोनवणे संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011 मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- sonawane.prabha@gmail.com ≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 21 – विपदा हुई सगी… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे (संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – विपदा हुई सगी…।)   साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 21 – विपदा हुई सगी… ☆ आचार्य भगवत दुबे  ☆ जब विलासिता के साधन  सारे उपलब्ध हुए  केवल जिव्हा...
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 98 – मनोज के दोहे…शिक्षा ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे... शिक्षा”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। मनोज साहित्य # 98 – मनोज के दोहे... शिक्षा ☆ ☆ शिक्षा का मंदिर जहाँ, सबको मिलता ज्ञान। देवतुल्य शिक्षक रहें, हरते हर अज्ञान।। ☆ शिक्षा वह अनमोल धन, जीवन भर का साथ। लक्ष्मी जी का वरद हस्त,जग का झुकता माथ।। ☆ मानव के निर्माण में, शिक्षक रहा महान। बचपन को संयोजना, नव पीढ़ी को ज्ञान।। ☆ शिक्षक की कर वंदना, सुदृढ़ बने समाज। शिक्षित मानव ही गढ़े, नैतिक-धर्म-सुराज ।। ☆ ज्ञान और विज्ञान से , भरता प्रखर प्रकाश। मानव हित को साधकर, करे तिमिर का नाश।। ☆ शिक्षा पाने के लिए, मानव गया विदेश। थाह नहीं भंडार का, है अमूल्य विनिवेश।। ☆ शिक्षित मानव देश की, नींव करे मजबूत। रखे सुरक्षित देश को, बुने प्रगति के सूत।। ☆  ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002 मो  94258 62550 ≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री...
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