हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 81 ☆ गजल – ’’यहाँ आदमी-आदमी जब बनेगा…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण  ग़ज़ल  “यहाँ आदमी-आदमी जब बनेगा…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 81 ☆ गजल – यहाँ आदमी-आदमी जब बनेगा…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मोहब्बत से नफरत की जब मात होगी,

तो दुनिया में सचमुच बड़ी बात होगी।

 

यहाँ आदमी-आदमी जब बनेगा,

तभी दिल से दिल की सही बात होगी।

 

हरेक घर में खुशियों की होंगी बहारें,

कहीं भी न आँसू की बरसात होगी।

 

चमक होगी आँखों में, मुस्कान मुंह पै,

सजी मन में सपनों की बारात होगी।

 

सुस्वागत हो सबके सजे होंगे आँगन,

सुनहरी सुबह, रूपहली रात होगी।

 

न होगा कोई मैल मन में किसी के,

जहाँ पे ये अनमोल सौगात होगी।

 

सभी मजहब आपस में मिल के रहेंगे,

नई जिंदगी की शुरूआत होगी।           

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 17 (51-55)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (51 – 55) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -17

सोता जगता था नृपति सदा नियम अनुसार।

ज्ञात थी कण कण की खबर और दूत-संचार।।51।।

 

गज भय से न, स्वभाव वश गुफा में सोता सिंह।

अरि अवरोधी दुर्ग त्यों थे उसके दुर्लध्य।।52।।

 

जनहित कारी कार्य सब थे उसके फलदायी।

जैसे धान में आप चुप चावल बढ़ते जाँये।।53।।

 

जैसे जलधि समृद्धि पा, नदी मुख में ही जाय।

तैसे कभी कुमार्ग में उसने रखे न पाँव।।54।।

 

क्रोध शमन हित, सबल भी हो, किये शांत उपाय।                   

लगा दाग धोये से भी क्योंकि न धोया जाय।।55।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #131 ☆ कविता – माहिया ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना  “माहिया।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 131 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कविता – माहिया ☆

अहसास सुखों का माँ

देती आशीषें

हो नाश दुखों का माँ..

 

ममता का सागर है

देना जाने माँ

भरती गागर है.

 

रिश्तों को जीती है

मेरी माँ छिप छिप

अश्कों को पीती है.

..

 

भजनों का गायन है

काबा काशी माँ

गीता रामायन है..

 

 

माँ हल्दी -चंदन है

दर्द न जीवन में

शत् शत् माँ वंदन है..

 

घर माँ से पुलकित है

महके चंदन-सा

आँगन आलोकित है।

 

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आँखें ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – आँखें ??

आँखें

देखती हैं वर्तमान,

बुनती हैं भविष्य,

जीती हैं अतीत,

त्रिकाल होती हैं आँखें…!

 

© संजय भारद्वाज

श्रीविजयादशमी 2019, अपराह्न 4.27 बजे।

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #121 ☆ गोकुल बाजत खूब बधैया ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.  “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  भावप्रवण रचना “गोकुल बाजत खूब बधैया। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 121 ☆

☆ गोकुल बाजत खूब बधैया 

परम् दिव्य प्रभु मधुर मनोहर, बंसुरी मधुर बजैया

जब से प्रकट भये मन मोहन, हर्षित यशुमति मैया

धन्य धन्य भई ब्रज की भूमि, बढ़तो प्रेम रवैया

दाउ लुटावें सोना चांदी, बाँटत खूब मिठैया

घर-घर में आनन्द समायो, आओ हरष समैया

पुलकित हो “संतोष” झूमता, नाचे था था थैया

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दोस्त, तुम जब भी जाना… ☆ श्री जयेश वर्मा

श्री जयेश वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता दोस्त, तुम जब भी जाना…)

☆ कविता  ☆ दोस्त, तुम जब भी जाना… ☆ श्री जयेश वर्मा ☆

(आप इस कविता को इस यूट्यूब लिंक पर क्लिक कर देख / सुन सकते हैं 👉  दोस्त, तुम जब भी जाना… )

तुम जब भी जाना,

शहर छोड़, या

मुझसे दूर, यूँ  ही,

 

ऐ मेरे दोस्त,

तुम पौरुष हृदय हो

या स्त्रीत्व मन

दोस्त, मेरे

मुझे गले लगा

के ही जाना

संतृप्त कर देना

मेरा हृदय…

 

उड़ेंल जाना अपना

सारा नेह..

आने वाले वक्त तक

जो मेरे काम आये,

 

मेरे प्रति

जो भी हो भाव, तुम्हारें

तुम मुझे ही दे जाना,

ताकि जाकर…

तुम्हे रहे सिर्फ

हमारे मिलन की याद,

 

वो क्षण जिसमे

गले लगकर,

में तुम्हे सोच रहा था,

सोच रहे थे

तुम मुझे भी शायद…

 

यह भी सँभव है,

तुम गले ना लगो,

मेरे पास आकर

कुछ दूर रहो,तुम

हाथ मलो,

और आँखों से

बाँध फूट पड़ें

 

बस निर्मिमेष

देखो, तुम मुझे,

में तुम्हे, औऱ

संजों कर रखें

विछोह का यह पल

हम, हमेशा के लिये,

 

इसलिये

तुम जब भी जाना,

शहर छोड़, या

मुझसे दूर, यूँ  ही,

 

ऐ मेरे दोस्त,

तुम मर्द हो

या औरत,

दोस्त, मेरे.…

 

मुझे गले लगा

के ही जाना

संतृप्त कर देना

मेरा हृदय…

संतृप्त कर देना

मेरा हृदय…

मिलकर गले

दोस्त मेरे…

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)

मो 7746001236

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 17 (46-50)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (46 – 50) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -17

 

चंचल लक्ष्मी भी रही, उस हँस-मुख के पास।

जैसे रेखा स्वर्ण की तजे न निकष-निवास।।46।।

 

राजनीति सह शौर्य से हुआ अतिथि विख्यात।

बिना शौर्य नृप भीरू है, बिना नीति पशु ज्ञात।।47।।

 

ज्यों निरभ्र आकाश में रवि को सब कुछ ज्ञात।

त्योंही उसको चरों से रहा न कुछ अज्ञात।।48।।

 

समय विभाजन कार्य हित करके शास्त्रानुसार।

मनोयोग से करता था नृप सारे व्यवहार।।49।।

 

सचिवों से होती रही गूढ़ मंत्रणा नित्य।

किन्तु न खुल पाया कभी कोई निहित रहस्य।।50।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – वह ??

( कवितासंग्रह ‘वह’ से)

जैसे शैवाली लकड़ी,

ऊपर से एकदम हरी,

कुरेदते जाओ तो

भीतर निविड़ सूखापन,

कुरेदना औरत का मन कभी,

औरत और शैवाली लकड़ी

एक ही प्रजाति की होती हैं..!

© संजय भारद्वाज

(रात्रि 8:37, 15.7.19)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 156 ☆ कविता – पड़ोसन…! ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। )

आज प्रस्तुत है एक विचारणीय  कविता  पड़ोसन…! इस आलेख में वर्णित विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं जिन्हें सकारात्मक दृष्टिकोण से लेना चाहिए।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 156 ☆

? कविता  – पड़ोसन..! ?

वर्तुल ऐंठन ये,

सख्त कंटीली,

बाड़ी वाले तारों की,

चुभन भरी,

है बनी, आपाधापी

थपेड़ों झंझावातों से ।

 

नई पड़ोसन

हरित बेल ने

अपने मृदुल वर्तुल

सर्पालिंगन से

बना लिया है

उसी राह को

विकास का अवलंबन ।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 109 ☆ बाल कविता – सुंदर प्यारा समय न खोओ… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 120 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 109 ☆

☆ बाल कविता – सुंदर प्यारा समय न खोओ… ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

शीतल – शीतल हवा चल रही

     प्रातः का कर लें अभिनंदन।

 

शरद ऋतु है, पर्व दशहरा

      करें ईश का हम सब वंदन।।

 

पंछी जगकर करें किलोलें।

       मीठे स्वर में मिसरी घोलें।।

 

पूरव में लाली है छाई।

       मौसम बड़ा सुहाना भाई।।

 

आलस त्यागें जगें भोर में

       नित्यकर्म कर , हम सैर करें।

 

योग औ’ व्यायाम भी कर लें

       शक्ति, जोश को हम सदा भरें ।।

 

पुष्प खिल गए झूमी डालें।

     स्वर्णिम – सी धानों की बालें।।

 

सैर करें पंछी भी नभ में।

      ईश्वर को देखें हम सबमें।।

 

गोल लाल सूरज उग आए।

       हम सबको वह ऊर्जा लाए।।

 

सुंदर प्यारा समय न खोओ।

     प्यारे बच्चो ! अब मत सोओ।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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