॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (51 – 55) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -17

सोता जगता था नृपति सदा नियम अनुसार।

ज्ञात थी कण कण की खबर और दूत-संचार।।51।।

 

गज भय से न, स्वभाव वश गुफा में सोता सिंह।

अरि अवरोधी दुर्ग त्यों थे उसके दुर्लध्य।।52।।

 

जनहित कारी कार्य सब थे उसके फलदायी।

जैसे धान में आप चुप चावल बढ़ते जाँये।।53।।

 

जैसे जलधि समृद्धि पा, नदी मुख में ही जाय।

तैसे कभी कुमार्ग में उसने रखे न पाँव।।54।।

 

क्रोध शमन हित, सबल भी हो, किये शांत उपाय।                   

लगा दाग धोये से भी क्योंकि न धोया जाय।।55।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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