हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – चिरंजीव ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – चिरंजीव ??

अदल-बदल कर

समय ने किए

कई प्रयोग, पर

निष्कर्ष वही रहा,

धन, रूप, शक्ति,

जुगाड़ सब खेत हुए,

हर काल में किंतु

ज्ञान चिरंजीव रहा..!

☆☆☆☆☆

सबसे अंधेरी रात अज्ञानता है …भगवान बुद्ध।

तमसो मा ज्योतिर्गमय…!

वैशाख पूर्णिमा/ बुद्धपूर्णिमा की मंगलकामनाएँ।

☆☆☆☆☆

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 81 ☆ # उसका दुःख # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “# उसका दुःख #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 81 ☆

☆ # उसका दुःख # ☆ 

वो जब जीवन में

पहली बार मिली

गले लगी

कांधे पर सर रखकर

सुबक रही थी

मैंने सहलाया

बालों पर हाथ फेरा

आंसू पोंछे

अधरों का बोसा लिया

और पूछा-

क्या हुआ ?

वो आँखें चुराते हुए

चुप रही

मुझसे अलग हुई

और

किचन में चली गई

इतने वर्षों बाद भी

कभी कभी

वो उदास सी

मेरे कांधे पर सर रखकर

धीरे धीरे सुबकती है

मैं उसे सहलाता हूँ

गले लगाता हूँ

आँसू पोंछता हूँ

पीठ थपथपाता हूँ

ढाढस बंधाता हूँ

और

पूछता हूँ –

कहो – क्या हुआ ?

वो चुप रहती है

बस इतना कहती है

कुछ नहीं

मैं उसका मन

पहले

और आज भी

समझ नहीं पाया हूँ

 

शायद उसे पहले

माँ-बाप,

भाई-बहन से

बिछड़ने का गम था

और आज

सभी बच्चे

अपने अपने संसार में

सिमट गये,

वो फिर अकेली रह गई

मेरे साथ रहते हुए भी…?

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 17 (61-65)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (61 – 65) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -17

 

छुपा स्वतः की निर्बलता किया शत्रु पर बार।

नष्ट किया अनुचितों को, रख खुद शुभ व्यापार।।61।।

 

कुश संवर्धित सैन्य बल को देते सम्मान।

पाला उस बल को सदा, निज की देह समान।।62।।

 

नागमणि सम शक्ति नय हर न सके अरि कोई।

बल्कि उसी ने खींच ली चुम्बक सी सब गोई।।63।।

 

नदियों में वापी सदृश, वन में बाग समान।

पर्वत पै घर के सदृश, साथ थे निडर महान।।64।।

 

तप की रक्षा विध्न से, तस्कर से धन-धान्य।

कर उसने पाया स्वतः आश्रम से भी षटांश।।65।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 92 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 92 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 92) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 92 ?

☆☆☆☆☆

नेकियाँ खरीदी हैं हमने

अपनी शोहरतें गिरवी रखकर,

कभी फुर्सत में मिल, ऐ ज़िंदगी

तेरा भी हिसाब कर देंगे…!

 

We have bought goodwill

by mortgaging our name & fame,

O’Life, meet me sometime in

leisure, will settle your dues too…!

☆☆☆☆☆ 

वो लफ्ज़ ही होते हैं किसी की

शख्सियत का हक़ीक़ी आईना

शक्ल तो उम्र और हालात के

साथ-साथ बदल जाती है…

 

Words are the true mirror

of one’s real personality…

Appearances keep changing with

the age and circumstances!

☆☆☆☆☆

 दर्द मुझे ढूंढ ही लेता है

रोज़ एक नये बहाने से

वाकिफ़ हो गया है वो

मेरे हर एक ठिकाने से…

 

Pain finds me everyday

with a new excuse…

It has become aware of

my every whereabouts!

☆☆☆☆☆ 

कम से कम मेरे इतने

करीब  तो  रहा करो…

बात ना भी हो तो क्या

दूरी तो न महसूस हो..!

 

At least stay so close …

that even if no talks…  

Happens to be there,

still distance is not felt!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 92 ☆ नवगीत – करना होगा… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित नवगीत – करना होगा… )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 92 ☆ 

☆ नवगीत – करना होगा…  ☆

हमको कुछ तो

करना होगा…

*

देखे दोष,

दिखाए भी हैं.

लांछन लगे,

लगाये भी है.

गिरे-उठे

भरमाये भी हैं.

खुद से खुद

शरमाये भी हैं..

परिवर्तन-पथ

वरना होगा.

हमको कुछ तो

करना होगा…

*

दीपक तले

पले अँधियारा.

किन्तु न तम की

हो पौ बारा.

डूब-डूबकर

उगता सूरज.

मिट-मिट फिर

होता उजियारा.

जीना है तो

मरना होगा.

हमको कुछ तो

करना होगा…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

10.4.2018

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता – आत्मानंद साहित्य #123 ☆ कविता – राग बासंती ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 123 ☆

☆ ‌कविता – राग बासंती ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

(जहां एक तरफ प्रकृति का सौंदर्य बोध कराती है तो वहीं पर प्रेम व विरह के भावों से बखूबी परिचय भी कराती है। इस रचना में जहां ‌ऋतुराज बसंत को नायक के रूप में चित्रांकित किया गया है वहीं धरती के सौंदर्य को दुल्हन के रूप में वर्णित किया गया है। कहीं संयोग प्रभावी है तो कहीं विरह प्रधान है। प्रकृति का रंग निखरता बिखरता दिखाई देता है, जो यह बताता है कि किस प्रकार मानव जीवन प्रकृति से प्रभावित होता है।)

पतझड़ के होते ही, बसनों का अंत करके।

देखो बसंत ऋतुराज, आज़ आया है।

नवपल्लव वृक्षों में, फूलों की क्यारी में।

अभिनव सुगंध और, रंग भर लाया है।।१।।

 

मंद मंद पुरुआ चले, प्रियतम संग सांझ ढले।

बांसुरी की तान सुनि, गोरिया का मन डोले।

नीली पीली चूनर ओढ़े, दूल्हन सी धरा लगे।

भावों का ज्वार लिए, मानो इस धरा पर।

धरती रिझाने, ऋतु राज उतर आया है।।०२।।    

।।पतझड़ के होते…।।

 

कोई डूबा हास‌ में, कोई परिहास में

कोई रमा भोग में, कोई विलास में।

गोद लिए छौने को, तडपत बिछौने पर।

बिरहिनि का मन तरसे, नैनों से जल बरसे।

राह तकत कटत रात, कंत नाही बुझत बात।

पिउ की पढत पाती पुरान, छलकत प्रेम गागर सा।

बिरह की हिलोर उठत, मन बिकलाया है।

भावों का ज्वार लिए, मानों धरा पर।

धरती रिझाने कामदेव उतर आया है।।०३।।

।। पतझड़ के होते ही…।।

 

नीले नीले अंबर में, डत झुंड बगुलों के।

कोयल की कूक सुनि, नृत्य देख मैना के।

बालियों से लदे खेत, झूमते हवाओं से।

छेड़-छाड़ बिरह प्यार, खुशियों के ले बहार।

फगुआ की स्वर लहरी, ढोलक की थाप सुनि।

मन हरसाया है, पतझड़ के होते ही।।०४।।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 17 (56-60)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #17 (56 – 60) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -17

 

सक्षम हो भी विजय का नहीं किया अभियान।

जहां रोध को हटा, पथ करना था आसान।।56।।

 

अर्थ-धर्म औं’ काम थे पारस्परिक सहाय।

तीनों उसके राज्य में करते थे समवाय।।57।।

 

निबल मित्र कम काम का, प्रबल भय का आधार।

इससे मध्य से मित्रता की पाने सहकार।।58।।

 

देश-काल-गति शत्रु की देख, भविष्य विचार।

योग्य प्रशासक के सदृश थे उसके व्यवहार।।59।।

 

कोश बढ़ाया प्रजाहित, न कि लोभ के भाव।

होते भिन्न जलद-शरद मेघों के बर्ताव।।60।।

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #142 – ग़ज़ल-28 – “तुम महज़ मूक दर्शक हो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तुम महज़ मूक दर्शक हो …”)

? ग़ज़ल # 28 – “तुम महज़ मूक दर्शक हो …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

तारीफ़ों के पुल तले मतलब की नदी बहती है,

मैं नहीं कहता पकी उम्र की समझ कहती है।

 

तेज़ी से बढ़ेगा विश्वगुरु का दावेदार यह देश,

धर्म की नशीली जनता  ख़्यालों में रहती है।

 

चर्च-क़िले मीनार-मेहराब मंदिर-दरबार सजे हैं,

पोप-किंग मुल्ला-मेहरबान की ज़ेब भरती है।

 

राजनीति और धर्म गलबैयां डाल कर चलते हैं,

इतिहास की पुरानी तस्वीर यही सच कहती है।

 

दिमाग़ का ज़ायक़ा बदला लच्छेदार लहजों ने,

कुतर्क समझो जुबाँ पर नफ़ीस पैरहन रहती है।

 

आज नहीं कल सुधर जाएँगे हमारे कर्णधार,

मजबूर तर्क की विवश लाचारी यह कहती है।

 

नेता का दिमाग़ पहुँच रहा सातवें आसमान पर,

नहीं कोई विकल्प इसीलिए महँगाई सहती है।

 

तुम महज़ मूक दर्शक हो हुजूम में ‘आतिश’,

क़ीमत समझदार वोट की महज़ एक रहती है।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – प्रतीक्षा ??

परिस्थितियाँ जितना तपाती गईं ,

उतना बढ़ता गया क्वथनांक* मेरा..,

अब आग के इतिहास में दर्ज़ है,

मेरे प्रह्लाद होने का किस्सा..!

(*क्वथनांक- बॉइलिंग पॉइंट)

© संजय भारद्वाज

श्रीविजयादशमी 2019, अपराह्न 4.27 बजे।

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ग़ज़ल – यह बंदिशें लगा रखी मुस्कराने पर…☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना यह बंदिशें लगा रखी मुस्कराने पर)

☆ ग़ज़ल – यह बंदिशें लगा रखी मुस्कराने पर… ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

हर किसी को अपना बना लीजिए।

हर फांसला अब मिटा लीजिए।।

[2]

दूर करलो अब नफरत की लकीरें।

प्यार खुदा बात यह जता लीजिए।।

[3]

अच्छी बात हीआये दिल के अंदर।

हरबात में खुशी का मज़ा लीजिए।।

[4]

ऊपरवाले ने जिंदगी दी अनमोल है।

इस मौके का जरा नफा लीजिए।।

[5]

यह बंदिशें लगा रखी मुस्कराने पर।

आप इनसे दूर अब दफा लीजिए।।

[6]

रखो बना केअपना सबको दुनिया में।

सबके दिल की दुआ वफ़ा लीजिए।।

[7]

हंस चार दिन की चांदनी यह जिंदगी।

क्यों किसीकी दिल से खफ़ा लीजिए।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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