श्री जयेश वर्मा

(श्री जयेश कुमार वर्मा जी  बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता दोस्त, तुम जब भी जाना…)

☆ कविता  ☆ दोस्त, तुम जब भी जाना… ☆ श्री जयेश वर्मा ☆

(आप इस कविता को इस यूट्यूब लिंक पर क्लिक कर देख / सुन सकते हैं 👉  दोस्त, तुम जब भी जाना… )

तुम जब भी जाना,

शहर छोड़, या

मुझसे दूर, यूँ  ही,

 

ऐ मेरे दोस्त,

तुम पौरुष हृदय हो

या स्त्रीत्व मन

दोस्त, मेरे

मुझे गले लगा

के ही जाना

संतृप्त कर देना

मेरा हृदय…

 

उड़ेंल जाना अपना

सारा नेह..

आने वाले वक्त तक

जो मेरे काम आये,

 

मेरे प्रति

जो भी हो भाव, तुम्हारें

तुम मुझे ही दे जाना,

ताकि जाकर…

तुम्हे रहे सिर्फ

हमारे मिलन की याद,

 

वो क्षण जिसमे

गले लगकर,

में तुम्हे सोच रहा था,

सोच रहे थे

तुम मुझे भी शायद…

 

यह भी सँभव है,

तुम गले ना लगो,

मेरे पास आकर

कुछ दूर रहो,तुम

हाथ मलो,

और आँखों से

बाँध फूट पड़ें

 

बस निर्मिमेष

देखो, तुम मुझे,

में तुम्हे, औऱ

संजों कर रखें

विछोह का यह पल

हम, हमेशा के लिये,

 

इसलिये

तुम जब भी जाना,

शहर छोड़, या

मुझसे दूर, यूँ  ही,

 

ऐ मेरे दोस्त,

तुम मर्द हो

या औरत,

दोस्त, मेरे.…

 

मुझे गले लगा

के ही जाना

संतृप्त कर देना

मेरा हृदय…

संतृप्त कर देना

मेरा हृदय…

मिलकर गले

दोस्त मेरे…

 

©  जयेश वर्मा

संपर्क :  94 इंद्रपुरी कॉलोनी, ग्वारीघाट रोड, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

वर्तमान में – खराड़ी,  पुणे (महाराष्ट्र)

मो 7746001236

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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