श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# वो #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 160 ☆

☆ # वो #

वो चुप रहता है

लोगों से अलग थलग

पीपल के पेड़ के नीचे

शांत गुमसुम बैठा रहता है

उसकी आंखें

शुन्य में

कुछ ढूंढ़ती रहती है

कभी कभी नीले आसमान में

बादलों के पीछे पहुंच कर

बेरंग वापस लौट आती है

वो हर आवाज़ को

पुरी गंभीरता से सुनता है

चारों तरफ के शोर से

कर्कश ध्वनि से

चिल्लम चिल्लाई से

घबराकर

बेचैन रहता है

उसके मन में

द्वंद्व चलता रहता है

जिव्हा कुछ कहना चाहती है

पर मन रोकता है

वह अपनी बुद्धि से

जरूर कुछ सोचता है

पर परिस्थितियों से हारकर

परेशान होकर

बस चुप रहता है

उसके पेट की अंतड़ियां

सिकुड़ गई है

पसलियां उभर आई है

क्लांत चेहरा

भूख प्यास से

बेबस दिखता है

वो समाज में

व्याप्त विसंगतियों को देख

अंदर ही अंदर

क्रोधित होता है

उत्तेजित होता है

पर मन मारकर

शांत रहने का प्रयास करता है

अगर किसी दिन

उसकी शांति भंग होगी

चुप्पी टूटेगी

तो उसकी आंखों से

बहते आंसुओं से

सैलाब आयेगा

अगर वो बोलेगा तो

राज पाट हिल जायेगा

उसकी एक दहाड़ से

ये शोर थम जायेगा

उसके विद्रोह के शंखनाद से

भूख-प्यास का

यह गंदा खेल मिट जायेगा

वो चुप है

इस में ही

सब की भलाई है

और

उस के जागने में

लड़ने में

हक के लिए

विद्रोह करने में

सिर्फ तबाही,

तबाही और तबाही है /

 © श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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