हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 172 – “उम्मीदों की आँखों में…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  उम्मीदों की आँखों में...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 172 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “उम्मीदों की आँखों में...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

सूटकेस- चमकीले में कुछ

कपड़ों को लेकर

बढ़ने लगी धूप दुपहर की

दिखा रही तेवर

 

कंघी करती दिखी खोल

रेशम से बालों को

कजरौटी के लिये

छान मारा सब आलों को

 

रही सम्हाल स्वयंका पल्लू

तिरछी आँखों से

यहाँ बादलों के जब देखे

फटे हुये नेकर

 

नई बहू से भाभी बनकर

अभी ओसारे पर

छिछली -छिछली फैल गई

है फिर चौबारे पर

 

क्यों औधे मौसम के रुख

को समझ नहीं पाया

बेचारा लहलह उठा

इसबार नीम-देवर

 

खपरैलो से छन-छन कर

छारके* दिखे सम्हले

आखिर कब तक सहें

सूर्य के आतप के हमले

 

उम्मीदों की आँखों में

बस नई चमक लेकर

लगा अटारी पहन रही है

सम्हल सम्हल जेवर

 

छारके= खपरैल से छनकर आये

धूपके गोले/ धूप विन्दु

 

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

27-01-2024

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – पगडंडी-(2) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – पगडंडी-(2) ? ?

वे खोदते रहे

जड़, ज़मीन, धरातल

महामार्ग बनाने के लिए,

नवजात पादप रौंदे गए

वानप्रस्थी विटप धराशायी हुए,

वह अथक चलता रहा

पगडंडी गढ़ता रहा,

पगडंडी के दोनों ओर

आशीर्वाद बरसाते

अनुभवी वृक्ष खड़े रहे,

चहुँ ओर बिखरी हरी घास से

पगडंडी को आशीष मिले,

महामार्ग और सरपट टायर के

समीकरण विशेष हैं,

पर पग और पगडंडी

शाश्वत हैं, अशेष हैं,

विधाता!

परिवर्तन की अपरिवर्तनीयता से

अमरबेलों को बचाए रखना,

पग और पगडंडी के रिश्तों को

यूँ ही सदाफूली बनाये रखना..!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 162 ☆ # ठंड और कोहरा # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# ठंड और कोहरा #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 162 ☆

☆ # जरा संभल कर चलों #

हवा का रूख बदल रहा है

जरा संभल कर चलो

मौसम बदल रहा है

जरा संभल कर चलो

*

बदल रहीं है ज़मीं

बदल रहा आसमान है

बदलाव की रूत है

बदल रहा इन्सान है

यह बदलाव छल रहा है

जरा संभल कर चलो

*

नफ़रत के बादलों से

आकाश भर गया है

बिजलियों की कड़क से

हर शख्स डर गया है

हर पथ जल रहा है

जरा संभल कर चलो

*

कहीं फैली है रोशनी

तो कहीं पर घना अंधेरा है

कहीं पर है विलासिता

तो कहीं पर फांकों ने डाला डेरा है

भूखा गरीब हाथ मल रहा है

जरा संभल कर चलो

*

अपनों ने जिन्हें ठुकरा दिया

उन्हें गैरों ने संभाला है

बच्चों ने जिन्हें छोड़ दिया

उन्हें वृध्दाश्रमों ने पाला है

हर रिश्ता मतलब में ढल रहा है

जरा संभल कर चलो

*

बर्फीली वादियों में

एक मंदिर बनाया था

बर्फ से मूरत बनाकर

मंदिर में सजाया था

“श्याम” वो हिमखंड पिघल रहा है

जरा संभल कर चलो

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 171 ☆ मुक्तिका – सुभद्रा ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है दोहा सलिला – अक्षर आराधना)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 171 ☆

☆ मुक्तिका – सुभद्रा ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

वीरों का कैसा हो बसंत तुमने हमको बतलाया था।

बुंदेली मर्दानी का यश दस दिश में गुंजाया था।।

*

‘बिखरे मोती’, ‘सीधे सादे चित्र’, ‘मुकुल’ हैं कालजयी। 

‘उन्मादिनी’, ‘त्रिधारा’ से सम्मान अपरिमित पाया था।।

*

रामनाथ सिंह सुता, लक्ष्मण सिंह भार्या तेजस्वी थीं। 

महीयसी से बहनापा भी तुमने खूब निभाया था।।

*

यह ‘कदंब का पेड़’ देश के बच्चों को प्रिय सदा रही। 

‘मिला तेज से तेज’ धन्य वह जिसने दर्शन पाया था।।

*

‘माखन दादा’ का आशीष मिला तुमने आकाश छुआ। 

सत्याग्रह-कारागृह को नव भारत तीर्थ बनाया था।।

*

देश स्वतंत्र कराया तुमने, करती रहीं लोक कल्याण। 

है दुर्भाग्य हमारा, प्रभु ने तुमको शीघ्र बुलाया था।।

*

जाकर भी तुम गयी नहीं हो; हम सबमें तुम ज़िंदा हो। 

आजादी के महायज्ञ को तुमने सफल बनाया था।।

*

जबलपुर की जान सुभद्रा, हिन्दुस्तां की शान थीं।  

दर्शन हुए न लेकिन तुमको सदा साथ ही पाया था।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१५-२-२०२२

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 173 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 173 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 173) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like, WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 173 ?

☆☆☆☆☆

Remembrance ☆

कहीं  बैठकर जरूर कोई

मुझे  याद कर रहा होगा…

ये हिचकी शाम से यूँ ही

तो  नहीं आ रही होगी..!

☆☆

Somewhere someone must be

remembering me for sure…

These hiccups aren’t coming

for nothing since evening..!

☆☆☆☆☆

No Difference whatsover ☆

☆☆

पड़ चुका है

फर्क अब इतना…

कि अब फर्क ही

नहीं पड़ता…!

☆☆

Gone through so much

of aberrations…

That it doesn’t

matter anymore…!

☆☆☆☆☆

Quid Pro Quo ☆

☆☆

अगर तुम बदले तो हम भी

क्यों रहेंगे पुराने वाले,

अगर तुम बेरुखी बरतते रहे तो

हम भी कहाँ बोलने वाले…!

☆☆

If you’ve changed yourself then

Why’ll I remain my old self…

If you keep acting indifferently

Then why’ll I be debonair…!

☆☆☆☆☆

कुछ तो बेवफ़ाई है

मुझ में भी…

जो अब तक ज़िंदा हूँ

तेरे बगैर भी…

☆☆

Some infidelity must be

there in me too..

that’s why I am still

alive without you…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गणतंत्र दिवस… ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

सुश्री रुचिता तुषार नीमा

☆ कविता ☆ गणतंत्र दिवस…🇮🇳  ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆

दिन आज फिर शक्ति प्रदर्शन का आया,,

देखो गणतंत्र दिवस है आया

लागू हुआ था संविधान इसी दिन,

इसी दिन जनता के हाथ में अधिकार है आया,,

देखो गणतंत्र दिवस है आया।।

*

भीमराव का अखण्ड भारत का सपना,,

गणतंत्र में सरोकार हो आया,,,

अनेकता में एकता के सूत्र से,,

भारत देश है जगमगाया,,,

देखो गणतंत्र दिवस है आया।।

*

1950 से लेकर आज तक,,

हर जगह भारत का ध्वज है लहराया,,,

अध्यात्म हो, या मनोरंजक गतिविधियाँ,

हर जगह परचम है पहराया

देखो गणतंत्र दिवस है आया।।।

*

महामारी के इस दौर में भी,

जागरूकता से निजात है पाया,

देकर कोरोना वैक्सीन दुनिया को

एक बार फिर विश्व गुरु है कहलाया

देखो गणतंत्र दिवस है आया।।

*

जल,थल,और वायुसेना का

सर्वश्रेष्ठ सब साधन जुटाया,

ओलम्पिक में भी पाकर स्वर्ण

भारत माँ का गौरव बढ़ाया।।

देखो गणतंत्र दिवस है आया।।।

जय हिंद, जय भारत

© सुश्री रुचिता तुषार नीमा

इंदौर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #221 – 108 – “तुमने मुझ पर नाराज़ होना छोड़ दिया,…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल तुमने मुझ पर नाराज़ होना छोड़ दिया…” ।)

? ग़ज़ल # 108 – “तुमने मुझ पर नाराज़ होना छोड़ दिया…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

तुमको  कहते हैं  लोग  मेरी जाने जाँ,

लेकर मेरा दिल बन गई मेरी जाने जाँ।

*

तुम आग तन बदन में लगाकर जाती हो

लहराती हो जब ज़ुल्फ़ें छत पर जाने जाँ।

*

तुमने मुझ पर नाराज़ होना छोड़ दिया,

नाराज़ी इतनी  ठीक ना  है जाने जाँ।

*

दुनियादारी में खोई हो तुम तो जानम,

तुम खूब बहाने क्यूँ  बनाती जाने जाँ।

*

तुम खुलकर भी तो मिल नहीं पाती हो,

आतिश को रहती हो  भर्माती जाने जाँ।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अमर प्रेम ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अमर प्रेम ? ?

उड़ती वायु

द्रवीभूत हुई,

निर्मल जल

बह निकला,

प्रवाह घनीभूत हुआ

ठोस हिम उभरा,

सिकुड़ी लाजवंती में

दुबका हरापन,

कवच के भीतर

कछुए का जीवन,

जल में अंतर्निहित वायु,

ठोस में अंतर्भूत जल,

शल्क डाल लेने से

भीतर नहीं बदलता,

कितना ही अनदेखा करें

प्रेम कभी नहीं मरता!

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

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नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 98 ☆ मुक्तक ☆ ।। हर धड़कन हिंदी, हिन्द, हिंदुस्तान चाहिये।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 98 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। हर धड़कन हिंदी, हिन्द, हिंदुस्तान चाहिये।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

हर रंग से हमें  रंगीन   हिंदुस्तान चाहिये।

खिलते बाग बहार सा गुलिस्तान  चाहिये।।

चाहिये विश्व में  नाम  ऊँचा  भारत  का।

विश्व गुरु भारत का ऊँचा सम्मान चाहिये।।

[2]

मंगल चांद को  छूता भारत महान चाहिये।

अजेयअखंड विजेता सा हिंदुस्तान  चाहिये।।

दुश्मन नज़र उठा कर देख भी ना   सके।

हर शत्रु का  हमको काम तमाम  चाहिये।।

[3]

हमें गले  मिलते राम और रहमान चाहिये।

एक   दूजे के लिए प्रणाम सलाम चाहिये।।

चाहिये हमें मिल कर रहते हुए सब लोग।

एक दूजे के लिए दिलों में एतराम चाहिये।।

[4]

एक सौ पैंतीस  करोड़  सुखी अवाम चाहिये।

कश्मीर कन्याकुमारी प्रेम का पैगाम चाहिये।।

चाहिये  विविधता  में एकता शक्ति दर्शन।

अपने देश का सम्पूर्ण संसार में यशोगान चाहिये।।

[5]

पुरातन  संस्कार मूल्यों का गुणगान चाहिये।

हर  भारतवासी चेहरे पर गर्व मुस्कान चाहिये।।

चाहिये गौरव अभिमान अपने देश भारत पर।

हर धड़कन हिन्दी, हिन्द का ही पैगाम चाहिये।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 161 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “बलिदानी वीरों की याद…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “बलिदानी वीरों की याद। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “बलिदानी वीरों की याद” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

वतन पर मिटने वालों की लगन जब याद आती है

तो मन हो जाता भारी, साँस दुख में डूब जाती है।

 *

मिटाकर अपनी हस्ती देश को जिनने दिया जीवन

उन्हें सब याद करते, माँ सिसक आँसू बहाती है।

 *

हमेशा आँधी-तूफानों से जो लड़ते रहे भरसक

उन्हें श्रद्धा सुमन की भेंट हर बस्ती चढ़ाती है।

 *

लड़े बेखौफ आगे बढ़ सहे सौ वार दुश्मन के

समर की यही गाथाएँ अमर उनको बनाती हैं।

 *

सुरक्षित स्वर्ण पृष्ठों पर उन्हें इतिहास रखता है

जिन्हें निस्वार्थ जीवन औ’ मरण की रीति आती है।

 *

जिन्होंने जान दी अपनी विजय की भोर लाने को

सदा जनता उन्हीं की वीरता के गीत गाती है।

 *

दिवस, मेले औ’ प्रतिमाएँ सजायी जाती उनकी ही

जिन्हें आदर से मन मंदिर में जनता नित बिठाती है।

 *

उन्हीं के त्याग ने हमको बनाया आज जो हम हैं

विदग्ध’ उनकी विमल स्मृति हमें जीना सिखाती है।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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