हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 92 – “कमर-कमर अंधियारा…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “कमर-कमर अंधियारा…”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 92 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “कमर-कमर अंधियारा”|| ☆

 

एक बहिन गगरी

कलशा एक भाई

लौट रही पनघट से

मुदिता भौजाई

 

प्यास बहुत गहरी पर

उथली घड़ोंची

पानी की पीर जहाँ

गई नहीं पोंछी

 

एक नजर छिछली पर

जगह-जगह पसरी है

सम्हल-सम्हल चलती है

घर की चौपाई

 

कमर-कमर अंधियारा

पाँव-पाँव दाखी

छाती पर व्याकुल

कपोत सदृश पाखी

 

एक छुअन गुजर चुकी

लौट रही दूजी

लम्बाया इन्तजार

जो था चौथाई

 

नाभि-नाभि तक उमंग

क्षण-क्षण गहराती है

होंठों ठहरी तरंग

जैसे उड़ जाती है

 

इठलाती चोटी है पीछे को

उमड़ -घुमड़

आज यह नई सन्ध्या

जैसे बौराई

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

10-05-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – भाषा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – भाषा ??

नवजात का रुदन;

जगत की पहली भाषा,

अबोध की खिलखिलाहट;

जगत का पहला महाकाव्य,

शिशु का अंगुली पकड़ना;

जगत का पहला अनहद नाद,

संतान का माँ को पुकारना;

जगत का पहला मधुर निनाद,

प्रसूत होती स्त्री, केवल

एक शिशु को नहीं जनती,

अभिव्यक्ति की संभावनाओं के

महाकोश को जन्म देती है,

संभवतः यही कारण है;

भाषा स्त्रीलिंग होती है..!

अपनी भाषा में अभिव्यक्त होना अपने अस्तित्व को चैतन्य रखना है।….आपका दिन चैतन्य रहे।

© संजय भारद्वाज

(रात्रि 3:14 बजे, 13.9.19)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 138 ☆ अहसास ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता “अहसास”।)  

☆ कविता # 137 ☆ अहसास ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

अपने गांव की 

पगडंडी पर

चलते हुए

धूप क्यों नहीं

लग रही है ?

 

जबकि शहर में

दुपहरी काटे नही

 कटती चाहे

कितनी भी फेक दे

एसी अपनी हवा,

 

गांव की गली

 में अमलतास

पसर जाता है

हमें देखकर,

 

और शहर के

अमलतास में

चल जाता है

बुलडोजर विकास

के नाम पर,

 

गांव के आंगन में

दाना चुगने आ गई

गौरैया की भीड़

हमें देखकर,

 

जबकि शहर में

गौरैया आंगन से

गायब सी हो गई

नहीं दिखती बहुत

चाहने पर,

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 82 ☆ # ये महानगर है # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “# ये महानगर है #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 82 ☆

☆ # ये महानगर है # ☆ 

ये महानगर है

सपनों का शहर है

दौड़ते हुए पांव है

कहीं धूप कहीं छांव है

कुछ पाने की तड़प है

तपती हुई सड़क है

खाली खाली हाथ है

सपनों का साथ है

आंखों में एक आस है

होंठों पर प्यास है

झुलसाती दोपहर है

ये महानगर है

 

जो दौड़ते दौड़ते गिर गया

वो दुखों से घिर गया

कितने रोज गिरते हैं

कितने रोज मरते हैं

किसको इसकी खबर है

सरकारें बेखबर है

सब अपने में मस्त हैं

रोटी कमाने में व्यस्त हैं

ना सर पर छप्पर

ना रहने को घर है

हां जी यह महानगर है

 

इस शहर के कई रंग है

यहां कदम कदम पर जंग है

यहां अमीर भी है

यहां गरीब भी है

यहां पल पल

बनते बिगड़ते नसीब भी है

ज़मीन से उठकर

कोई सितारा बन गया

लोगों की आंखों का

तारा बन गया

कोई अपनी प्रतिभा से

लोगों के दिलों में घर कर गया

कोई फुटपाथ पर जन्मा

फुटपाथ पे मर गया

ये शहर सबको देता अवसर है

हां भाई! ये महानगर है

 

जिनको यहां आना है

शिक्षित होकर आयें

अपने पसंद के क्षेत्र में जायें

संघर्ष करें, मेहनत करें

ना घबरायें

लक्ष्य को पाने

तन-मन से जुट जाएं

वो ही जीतकर

बाजीगर कहलाए

हार के आगे जीत है

आंसुओं के आगे प्रीत है

जो सदा जीतने के लिए

खेला है

उसके ही आगे पीछे

लगा मेला है

यहां हर रोज बनती

एक नई खबर है

हां भाई हां! यह महानगर है /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 18 (16-20)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 18 (16 – 20) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -18

तब गये अहिनगु लोक त्याग, ‘परियात्र’ उठा सिर नग समान।

राजा हुये वैभवयुक्त सफल, निज पिता अहिनगु से महान।।16।।

 

पारियात्र पुत्र ‘शिल’ नामक था, जिसका था वक्षस्थल विशाल।

उसने अरियों को जीत बाण से भी, निज रक्खा विनत भाल।।17।।

 

तब विनत विवेकी युव ‘शिल’ को युवराज बनाकर राजा ने।

सुख पाया क्योंकि वैसे तो आती रहती सुख बाधायें।।18।।

 

आतृप्ति विषय-भोगो में तो, यौवन में लगती सुखदायी।

सौंदर्य-भोग में अक्षमता पर वृद्धावस्था नित लाई।।19।।

 

उस ‘शिल’ राजा का पुत्र हुआ ‘उन्नाभ’ जो था निश्चय गँभीर।

था विष्णु सदृश राजाओं के समुदाय में अनुपम धीर-वीर।।20।।

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 93 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 93 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 93) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>  कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 93 ?

☆☆☆☆☆

☆☆☆☆☆

आख़िर में हम फ़क़त

दो अजनबी थे…

जो एक दूसरे के बारे में

सब कुछ जानते थे…

☆ 

In the end, we were just

two strangers only…

who knew everything

about each other…!

☆☆☆☆☆

विरह, तो तू भी  अपनी शक्ति,

आयाम और विस्तार के विरुद्ध,

मेरी पुकार भी सुन ले:

“परिवर्तन के लिए तू जो भी करना चाहता है, वो कर…,

पर सच्चे दिल वालों को

वियोग अवश्य ही मिलाता है

और समय भी स्वत: संयोजित हो जाता है..!”

ABSENCE, hear thou my protestation 

Against thy strength,      

Distance and length:       

Do what thou canst for alteration,      

For hearts of truest mettle                 

Absence doth join

and Time doth settle.

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 93 ☆ नवगीत – चलो! कुछ गायें… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित नवगीत – चलो! कुछ गायें… )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 93 ☆ 

☆ नवगीत – चलो! कुछ गायें…  ☆

*

क्यों है मौन?

चलो कुछ गायें…

*

माना अँधियारा गहरा है.

माना पग-पग पर पहरा है.

माना पसर चुका सहरा है.

माना जल ठहरा-ठहरा है.

माना चेहरे पर चेहरा है.

माना शासन भी बहरा है.

दोषी कौन?…

न शीश झुकायें.

क्यों है मौन?

चलो कुछ गायें…

*

सच कौआ गा रहा फाग है.

सच अमृत पी रहा नाग है.

सच हिमकर में लगी आग है.

सच कोयल-घर पला काग है.

सच चादर में लगा दाग है.

सच काँटों से भरा बाग़ है.

निष्क्रिय क्यों?

परिवर्तन लायें.

क्यों है मौन?

चलो कुछ गायें…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 18 (11-15)॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 18 (11 – 15) ॥ ☆

रघुवंश सर्ग : -18

था पिता-पुत्र में नेह बड़ा दोनों थे परस्पर भाग्यवान।

फल पिता-पुत्र होते का पाया दोनों ने अनुपम समान।।11।।

 

थे पिता-पुत्र दोनों सुयोग्य गुणवान, यज्ञविधि जानकार।

इससे सुत को दे राज्य-भार, गये ‘क्षेम’ स्वर्ग निर्भय सिधार।।12।।

 

‘अहिनगु’ आत्मज जो देवनीक का था मधुभाषी मिलनसार।

मोहित हरिणों सम अरि भी जिसको वाणी वश करते थे प्यार।।13।।

 

वह वैभवशाली वीर ‘अहिनगु’ शासक था निर्मल उदार।

था युवा किन्तु नीचों दुर्व्यसनों से था दूर, नित निर्विकार।।14।।

 

वह निपुण पारखी पिता बाद, विष्णु सा अतिशय पूज्य मान्य।

बन गया नीतियाँ अपना कर, चारों दिक, का शासक महान।।15।। 

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #143 – ग़ज़ल-29 – “जमाने ने रहम नहीं किया…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “जमाने ने रहम नहीं किया …”)

? ग़ज़ल # 29 – “जमाने ने रहम नहीं किया …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

अपने अहसासों को लफ़्ज़ पहना रहा हूँ,

अपने ज़ख्मों को खुद ही सहला रहा हूँ।

 

क्या ज़िक्र करूँ ख़ुदगर्ज़ रिश्तेदारों का,

उन्हें अब उनका चेहरा दिखा रहा हूँ।

 

वक़्त ने पाल पोसकर बड़े करम किए,

अब उसी का अक्स बनता जा रहा हूँ।

 

दोस्तों ने सयानेपन में कसर नहीं छोड़ी,

उन्ही के अन्दाज़ में दोस्ती निभा रहा हूँ।

 

जमाने ने रहम नहीं किया ‘आतिश’ पर,

वक़्त ए रूखसत तौफ़ीक़ आज़मा रहा हूँ।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ मुक्तक – करो कोशिश तो मंजिल खुद राहों का पता बताती है…☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना करो कोशिश तो मंजिल खुद राहों का पता बताती है…।)

☆ मुक्तक – ।। करो कोशिश तो मंजिल खुद राहों का पता बताती है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

गिला शिकवा शिकायतें हार बन कर आती हैं।

कोशिश बार बार जीत साकार बन कर आती है।।

इच्छा शक्ति सतत अभ्यास से सम्भव सब कुछ।

ठान ही लो तो मंजिल उपहार बन कर आती है।।

[2]

जीत और हार को लो जीवन में समभाव से।

जीत भी हर जातीअति विश्वास के दवाब से।।

जब तक मन से न हारो हार होती नहीं है।

हार बदल जाती जीत मे हौंसलों के प्रभाव से।।

[3]

बढ़ते चलो कि आये राहों में तुम्हारे कोई पगबाधा।

जीत हाँसिल होगी जो तुमने विश्वास को साधा।।

मंजिल खुद पता बताती है अपने रास्तों का।

जब उम्मीद हटा देती है मन की हर अंतर बाधा।।

[4]

हर चुनौती और समस्या हमारी परीक्षा लेती है।

बस डट कर करो सामना आस ये शिक्षा देती है।।

सकारात्मक सोच अदृश्य के पार भी है देख लेती।

जब ह्रदय में सदैव सफलता की अनुरक्षा रहती है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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