श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “# ये महानगर है #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 82 ☆

☆ # ये महानगर है # ☆ 

ये महानगर है

सपनों का शहर है

दौड़ते हुए पांव है

कहीं धूप कहीं छांव है

कुछ पाने की तड़प है

तपती हुई सड़क है

खाली खाली हाथ है

सपनों का साथ है

आंखों में एक आस है

होंठों पर प्यास है

झुलसाती दोपहर है

ये महानगर है

 

जो दौड़ते दौड़ते गिर गया

वो दुखों से घिर गया

कितने रोज गिरते हैं

कितने रोज मरते हैं

किसको इसकी खबर है

सरकारें बेखबर है

सब अपने में मस्त हैं

रोटी कमाने में व्यस्त हैं

ना सर पर छप्पर

ना रहने को घर है

हां जी यह महानगर है

 

इस शहर के कई रंग है

यहां कदम कदम पर जंग है

यहां अमीर भी है

यहां गरीब भी है

यहां पल पल

बनते बिगड़ते नसीब भी है

ज़मीन से उठकर

कोई सितारा बन गया

लोगों की आंखों का

तारा बन गया

कोई अपनी प्रतिभा से

लोगों के दिलों में घर कर गया

कोई फुटपाथ पर जन्मा

फुटपाथ पे मर गया

ये शहर सबको देता अवसर है

हां भाई! ये महानगर है

 

जिनको यहां आना है

शिक्षित होकर आयें

अपने पसंद के क्षेत्र में जायें

संघर्ष करें, मेहनत करें

ना घबरायें

लक्ष्य को पाने

तन-मन से जुट जाएं

वो ही जीतकर

बाजीगर कहलाए

हार के आगे जीत है

आंसुओं के आगे प्रीत है

जो सदा जीतने के लिए

खेला है

उसके ही आगे पीछे

लगा मेला है

यहां हर रोज बनती

एक नई खबर है

हां भाई हां! यह महानगर है /

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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