श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता “अहसास”।)  

☆ कविता # 137 ☆ अहसास ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

अपने गांव की 

पगडंडी पर

चलते हुए

धूप क्यों नहीं

लग रही है ?

 

जबकि शहर में

दुपहरी काटे नही

 कटती चाहे

कितनी भी फेक दे

एसी अपनी हवा,

 

गांव की गली

 में अमलतास

पसर जाता है

हमें देखकर,

 

और शहर के

अमलतास में

चल जाता है

बुलडोजर विकास

के नाम पर,

 

गांव के आंगन में

दाना चुगने आ गई

गौरैया की भीड़

हमें देखकर,

 

जबकि शहर में

गौरैया आंगन से

गायब सी हो गई

नहीं दिखती बहुत

चाहने पर,

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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Shyam Khaparde

भाई, बहुत ही शानदार अभिव्यक्ति बधाई