हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – रासायनिक सूत्र ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

समूह को कुछ दिनों का अवकाश रहेगा।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – रासायनिक सूत्र ??

ऊपर से भले दिखते हों

एक से तत्व, एक-सा स्तर,

आदमी का रासायनिक सूत्र

गुणधर्म बदलता रहता है निरंतर,

नश्वरता को टिकाये रखने का भय

प्राय: उत्पन्न करता है गहरा मत्सर,

मिटा नहीं पाता किसीकी प्रतिभा

तो आदमी छीनने लगता है अवसर !

© संजय भारद्वाज

अपराह्न 12:28, 17.9.21

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कविता # 155 ☆ “आदिवासी औरतें” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी  की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में  सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता – “आदिवासी औरतें”)  

☆ कविता # 155 ☆ “आदिवासी औरतें” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

पुरखों का आशीष

लिए वे गातीं हैं 

जंगल के गीत,

 

पहाड़ी नदी के

उफान से बह जाता 

 है उनका काजल,

 

वे नहीं लगातीं

गोरेपन की 

कोई मंहगी क्रीम,

 

सौन्दर्य सहेज कर

रखतीं हैं नाक नक्श में

अपनी सच्चाई के साथ,

 

उनकी हंसी से

खिलखिलाते हैं साल 

फूल जाता है महुआ,

 

 उनकी आंखों के

 कोरों से बह जाती

 है जंगली नदी ,

 

वे जूड़े में गुथ

 लेतीं है जंगल का

 नैसर्गिक सौन्दर्य,

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 98 ☆ # भोजन के पैकेट… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# भोजन के पैकेट… #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 98 ☆

☆ # भोजन के पैकेट… # ☆ 

गांव का एक गरीब

जिसके सोए थे नसीब

भूख से बेहाल

बेरोजगार और कंगाल

काम के तलाश में

शहर आया

शहर की चकाचौंध में घबराया

किस्मत से उसे

एक रैली में

शामिल होने का काम मिला

हाथ में झंडा

नाश्ता का पैकेट

पानी की बोतल के साथ

कुछ नगदी रुपए देख

उसका मन प्रसन्नता से खिला

सब के साथ वह भी

रैली में शामिल होकर

नारे लगाने लगा

साथियों के आवाज़ में

आवाज़ मिलाने लगा

वह रैली में, दिनभर

पूरे शहर में घूमकर

शाम को पार्क में वापस आया

बैठकर थोड़ा सा सुस्ताया

तभी, वहां एक सभा होने लगी

जमकर नारे बाजी होने लगी

कुछ लोग भाषण दे रहे थे

रैली में शामिल लोग

भोजन के पैकेट

ले रहे थे

उस गरीब को

किस बात की

रैली है या सभा है

समझ नहीं आया

वह प्रसन्न था कि वह

बिना मेहनत किए ही

आज अपना पेट भर पाया

उसने हाथ जोड़े

सर झुकाया

और बस इतना कह पाया

हे प्रभु!

आपकी यह अद्भुत लीला है

बिन मांगे ही अन्न मिला है

गांव में दिनभर

मेहनत करके भी

हम, अन्न के दाने-दाने को

तरसते हैं

और

शहर में बिना मेहनत किए ही

भगवान!

भोजन के पैकेट

हम पर बरसते हैं /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 109 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 110 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 110) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media# 110 ?

रात क्या होती है

हमसे पूछिए ना

आप तो सोये और…

बस सुबह हो गई…

What is the night,

just ask me,

You just sleep

and it’s morning…

☆☆☆☆☆

तलब करें तो मैं अपनी

आँखें भी उन्हें दे दूँ ,

मगर लोग तो मेरी आँखों

के  ख़्वाब  माँगते  हैं…

If you desire, I’m willing

to give my eyes to them,

but people ask for the

dreams of my eyes…

☆☆☆☆☆

मैं अभी से किस तरह से

उसको  बेवफ़ा  कहूँ,

बात तो मंज़िलों की है

रास्ते में क्या बयां करूं…

How can I just call her

unfaithful now itself,

It’s a matter of destination,

why to comment while enroute…!

☆☆☆☆☆

जलते सूरज ने गुरूर से कहा,

है क्या कोई मेरे जैसा…

तभी एक नन्हा सा दीया बोला,

जब शाम होगी तब देखेंगे…!

The burning sun said proudly,

Is there anyone like me…

Then a small lamp said,

We’ll see when it is evening!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 108 ☆ अभियंता दिवस विशेष : हम अभियंता… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित अभियंता दिवस विशेष : हम अभियंता…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 108 ☆ 

☆ अभियंता दिवस विशेष : हम अभियंता… ☆

(छंद : हरिगीतिका)

*

हम अभियंता!, हम अभियंता!!

मानवता के भाग्य-नियंता…

*

माटी से मूरत गढ़ते हैं,

कंकर को शंकर करते हैं.

वामन से संकल्पित पग धर,

हिमगिरि को बौना करते हैं.

नियति-नटी के शिलालेख पर

अदिख लिखा जो वह पढ़ते हैं.

असफलता का फ्रेम बनाकर,

चित्र सफलता का मढ़ते हैं.

श्रम-कोशिश दो हाथ हमारे-

फिर भविष्य की क्यों हो चिंता…

*

अनिल, अनल, भू, सलिल, गगन हम,

पंचतत्व औजार हमारे.

राष्ट्र, विश्व, मानव-उन्नति हित,

तन, मन, शक्ति, समय, धन वारे.

वर्तमान, गत-आगत नत है,

तकनीकों ने रूप निखारे.

निराकार साकार हो रहे,

अपने सपने सतत सँवारे.

साथ हमारे रहना चाहे,

भू पर उतर स्वयं भगवंता…

*

भवन, सड़क, पुल, यंत्र बनाते,

ऊसर में फसलें उपजाते.

हमीं विश्वकर्मा विधि-वंशज.

मंगल पर पद-चिन्ह बनाते.

प्रकृति-पुत्र हैं, नियति-नटी की,

आँखों से हम आँख मिलाते.

हरि सम हर हर आपद-विपदा,

गरल पचा अमृत बरसाते.

‘सलिल’ स्नेह नर्मदा निनादित,

ऊर्जा-पुंज अनादि-अनंता…

*

अभियांत्रिकी:

कण जोड़ती तृण तोड़ती पथ मोड़ती अभियांत्रिकी

बढ़ती चले चढ़ती चले गढ़ती चले अभियांत्रिकी

उगती रहे पलती रहे खिलती रहे अभियांत्रिकी

रचती रहे बसती रहे सजती रहे अभियांत्रिकी।

*

तकनीक:

नवरीत भी, नवगीत भी, संगीत भी तकनीक है 

कुछ प्यार है, कुछ हार है, कुछ जीत भी तकनीक है 

गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी तकनीक है 

श्रम-मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है 

*

भारत :

यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है 

कर दें सभी मिल देश का, निर्माण नव अभियान है 

गुणयुक्त हो अभियांत्रिकी, शर्म-कोशिशों का गान है 

परियोजना त्रुटिमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखक ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’ ☆

डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’

 

 ☆ कविता ☆ लेखक ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’ ☆ 

अनुभवों की पोटली

पीठ पर लादकर

कोई लेखक नहीं बनता

लेखक बनने के लिए

जरूरी नहीं कि तुमने

किसी युद्ध में भाग लिया है।

या की भूकंप की खबरें

देखी पड़ी हो

माना कि नदी के पूर ने

नहीं बहाया तुम्हारा कुछ

ना तो तुम

घड़ा बनाते हो ना बारिश

हां बारिश को

घड़े में भरकर

पानीदार होने का मुगालता

पाल सकते हो।

जरूरी नहीं कि तुम

लकड़हारे या मछुआरे बनो ।

बिना कुछ हुए भी तुम

रच सकते हो कविता

बशर्ते

तुम्हें भावनाएं हो

तो तुम भद्र हो

वरना अभद्र हो

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’

मो 9479774486

जबलपुर मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #157 – ग़ज़ल-43 – “सबका इलाज़ तो किया…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “सबका इलाज़ तो किया …”)

? ग़ज़ल # 43 – “सबका इलाज़ तो किया …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

वीरान खंडहरों की सैर को दो मायूस दिल गये,

ज़माने से उलझे दोज़ख़ के दरवाज़े मिल गये।

ज़िंदगी तब ख़ुशनुमा लिबास में मुसकाती थी,

चढ़ती उम्र के झौंके में वजूद के पत्ते हिल गये।

ग़म सलीके में रहे जब तलक लब खामोश थे,

हमारी ज़ुबां क्या खुली दर्द बेशुमार मिल गये।

सबका इलाज़ तो किया बस अपना न कर सके,

ज़माने के गरेबां रफ़ू किए ख़ुद के फटे मिल गये।

दर्द के फटे गलीचे सिलवाने जा रहा था शायर,

खुर्दबीन नुक़्ताचीं मगर नुक्कड़ पर मिल गये।

मैं ढूँढता रहा आस्तीन के साँपों को इर्द गिर्द,

ठीक से देखा ‘आतिश’ ने ज़हन में मिल गये।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 34 ☆ मुक्तक ।। झूठ  के पाँव  नहीं  होते हैं ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।। झूठ  के पाँव  नहीं  होते हैं।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 34 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। झूठ  के पाँव  नहीं  होते हैं ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

यही सच  कि  सत्य  का  कोई  जवाब नहीं है।

एक सच ही जिसके चेहरे पर नकाब नहीं है।।

सच   सा  नायाब  कोई  और  नहीं  है  दूसरा।

इक  सच  ही  तो   झूठा  और  खराब  नहीं  है।।

[2]

सच   मौन   हो   तो   भी   सुनाई   देता है।

सात परदों के पीछे से भी दिखाई देता है।।

फूस में चिंगारी सा छुप कर आता है बाहर।

सच ही हर मसले की सही सुनवाई देता है।।

[3]

चरित्र   के   बिना   ज्ञान  इक  झूठी  सी  ही  बात है।

त्याग   बिन   पूजन   तो   जैसे   दिन   में   रात है।।

सिद्धांतों बिन राजनीति भी विवेकशील होती नहीं।

मानवता बिन विज्ञान  भी  इक  गलत  सौगात   है।।

[4]

सत्य  स्पष्ट  सरल  नहीं   इसमें  कोई  दाँव  होता  है।

जैसे   धूप   में   लगती  शीतल सी   छाँव   होता   है।।

गहन   अंधकार   को   भी   सच  का सूरज चीर देता।

सच के सामने नहीं टिकता झूठ का पाँव नहीं होता है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मौन ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

समूह को कुछ दिनों का अवकाश रहेगा।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – मौन ??

उनके शब्दों से

उपजी वेदना,

शब्दों के परे थी,

सो होना पड़ा मौन,

अब अपने मौन पर

शब्दों से उपजी,

उनकी प्रतिक्रियाएँ

सुन-बाँच रहा हूँ मैं..!

© संजय भारद्वाज

(प्रात: 7.09 बजे, 7 जनवरी 21)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 100 ☆ ’’अपना भाग्य बनाइये…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “अपना भाग्य बनाइये…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 100 ☆ गज़ल – अपना भाग्य बनाइये” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

कोसिये मत भाग्य को, निज भाग्य को पहचानिये

भाग्य अपने हाथ में है, कुछ तो, इतना जानिये।

 

ज्ञान औ’ विज्ञान हैं आँखें दो, इनसे देखिये

भाग्य अपना, अपने हाथों, आप स्वयं सजाइये।

 

बीत गये वे दिन कि जब सब आदमी मजबूर थे

अब तो है विज्ञान का युग, हर खुशी घर लाइये

 

एक मुँह तो हाथ दो-दो, दिये हैं भगवान ने

बात कम, श्रम अधिक करने को तो आगे आइये।

 

अब न दुनियाँ सिर्फ, अब तो चाँद-तारे साथ हैं

क्या, कहाँ, कब, कैसे, क्यों प्रश्नों को भी सुलझाइये।

 

जरूरी है पुस्तकों से मित्रता पहले करें

हम समस्या का सही हल उनको पढ़कर पाइये।

 

पढ़ना-लिखना है जरूरी जिससे बनता भाग्य है

जिंदगी को नये साँचे में समझ के सजाइये।

 

बदलती जाती है दुनियॉ अब बड़ी रफ्तार से

आप पीछे रह न जायें तेज कदम बढ़ाइये

 

जो बढ़े, बन गये बड़े, हर जगह उनका मान है

आप भी पढ़ लिख के खुद सबकों यही समझाइये।

 

सोच श्रम औ’ योजनायें बदलती परिवेश को

खुद समझ सब, अपने हाथों अपना भाग्य बनाइये।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

 

मो. 9425484452

 

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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