हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 104 ☆’’हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक रचना “हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा #104 ☆’’हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

हे सदा शिव शंभु शंकर, दुखहरण मंगल करण

सुख, विभव, आनंद-दायक, शांति प्रद प्रभु तव चरण।।

 

कामना तव कृपा की ले नाथ हम आये शरण

आशुतोष अपारदानी कीजिये सब दुख हरण।।

 

हृदय की सब जानते हो भक्त के, भगवान तुम

तुम्हीं संरक्षक जगत के प्राणियों के प्राण तुम।।

 

विधि न मालूम अर्चना की भावना के हैं सुमन

नेह आलोकित हृदय है, धवल हिम सा शुद्ध मन।।

 

तमावृत हर पथ जगत का मोह के अंधियार से

बढ़ रहे हैं कष्ट नित नव स्वार्थ के विस्तार से।।

 

है भयावह रात काली, कहीं न दिखती है किरण

तव कृपा की कामना ले हैं बिछे पथ में नयन।।

 

दीजिये वर अब हो सत्यं शिवं शुभ सुंदरम

मन में करूणा का उदय हो, क्लेश, प्रभु हो जायें कम।।

 

अश्रु- जल कर सके उठती द्वेष- लपटों का शमन

विनत तव चरणों में शंकर हमारा शत शत नमन।।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – करवा चौथ विशेष – मैली चाँदनी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ नवरात्र  साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – मैली चाँदनी ??

(करवाचौथ के दिन रचित 2007, कवितासंग्रह ‘योंही’ से।)

गैर घरों में

झाड़ू-पोछा करती,

अपने बच्चों की

फीस भरती,

परायी किचन में

चपाती सेकती;

अपनी रसोई चलाती,

जुआरी पति की

भद्दी गालियाँ सुनती,

शराबी मर्द के

लात-घूँसे खाती,

हर रात बलत्कृत होती,

फिर भी

करवा चौथ का व्रत करती…!

काश चाँद औरत होता..!

इन बदनसीब कालिमाओं

के जीवन में

थोड़ी चाँदनी होती…!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #141 ☆ एक पूर्णिका – अहसास का रिश्ता ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “एक पूर्णिका – अहसास का रिश्ता । आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 141 ☆

 ☆ एक पूर्णिका – अहसास का रिश्ता ☆ श्री संतोष नेमा ☆

कैसे अब  हम  प्यार   लिखें

कैसे  दिल    बेकरार   लिखें

 

प्रश्न  उठाते   जो  नियत  पर

कैसे   उन्हें   सत्कार    लिखें

 

गल  रहा उल्फत  का कागज

अब  कैसे  हम  श्रृंगार   लिखें

 

लिखता   रहा   खतायें    मेरी

उस  पर  क्या अशआर  लिखें

 

है “संतोष” अहसास का रिश्ता

कैसे   आखिर   इंकार    लिखें

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 131 ☆ पाँच दोहे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 131 ☆

☆ पाँच दोहे ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

दुर्लभ छवि है कामिनी, कर तन का सिंगार।

देख झरोखा मन करे, मिलने को अभिसार।।

 

गौ माता के क्षीर से, हो तन – मन रहते शुद्धि।

कहता आर्युवेद यह,  शक्ति बढ़े  और बुद्धि।।

गंगा कल – कल बह रही, मन की हरती पीर।

तीर बैठ कर सुख मिला, ठंडी चले समीर।।

गोदी में माँ झल रही, बिजना से सुख प्रीति।

सुत सोया है चैन से, बहे मधुर संगीत।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – व्यास ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ नवरात्र  साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – व्यास ??

आँखों देखी भी

अनदेखी कर देते हैं वे,

श्रुतियाँ-किंवदंतियाँ

खींचती हैं पोर्ट्रेट

मेरी पुतलियों पर,

अनुभूति का

अपना-अपना भास है

हर आँख का

अपना व्यास है।

© संजय भारद्वाज

शाम 6:49 बजे, 2.9. 2019

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#153 ☆ तन्मय के दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  “तन्मय के दोहे…”)

☆  तन्मय साहित्य # 153 ☆

☆ तन्मय के दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

कुछ दोहे….

फूलों जैसा दिल कहाँ, पैसा हुआ दिमाग।

दिल दिमाग गाने लगे, मिल दरबारी राग।।

 

भीतर की बेचैनियाँ, भाव-हीन संवाद।

फीकी मुस्कानें लगें, चेहरे पर बेस्वाद।।

 

संबंधों  के  बीच में,  मजहब की  दीवार।

देवभूमि, इस देश में, यह कैसा व्यवहार।।

 

निश्छल सेवाभाव से,  मिले परम् संतोष।

मिटे ताप मन के सभी, संचित सारे दोष।।

 

शुभ संकल्पों की सुखद, गागर भर ले मीत।

जितना बाँटें  सहज हो,  बढ़े  सभी से प्रीत।।

 

कर्म अशुभ करते रहे, दुआ न आये काम।

मन की निर्मलता बिना, नहीं मिलेंगे राम।।

 

चार बरस की जिंदगी, पल-पल क्षरण विधान।

साँस-साँस नित मर रहे, मूल्य समय का जान।

 

जब-जब सोचा स्वार्थहित, तब-तब हुए उदास।

जब भूले हित स्वयं के,  हुआ सुखद अहसास।।

 

सत्य मार्ग पर जब चले, कठिनाइयाँ अनेक।

अंत मिले संतोष धन, दृढ़ता विनय, विवेक।।

 

यह जीवन फिर हो न हो, आगे सब अज्ञात।

भेदभाव की  बेड़ियाँ, छोड़ें  जात – कुजात।।

 

रंग-रूप छोटे-बड़े, अलग/अलग सब लोग।

भिन्न-भिन्न मत-धर्म हैं,  यही सुखद संयोग।।

 

सत्कर्मों के पेड़ पर, यश-सुकीर्ति फलफूल।

ध्यान  रहे  यह  सर्वदा, रहें  सींचते  मूल।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 43 ☆ पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन पर विशेष – ग़ज़ल – मोहम्मद से प्यारा-… ग़ज़ल – मोहम्मद से प्यारा-… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ सलमा जमाल जी द्वारा 9 अक्तूबर को पैगंबर मोहम्मद साहब  के जन्मदिन पर रचित विशेष ग़ज़ल मोहम्मद से प्यारा-…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 41 ✒️

? पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन पर विशेष – ग़ज़ल – 🕋 मोहम्मद से प्यारा-… 🕋 ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

मोहम्मद से प्यारा ,

कोई नहीं है ।

नबी जैसा दुलारा ,

कोई नहीं है ।।

 

आमना की बेटे ,

हलीमा के तारे ।

आज तुमसा सहारा ,

कोई नहीं है ।।

 

जो भी करूं उसमें ,

रब की रज़ा हो ।

क़ुरआन से प्यारा ,

कोई नहीं है ।।

 

बचा लो नबी बड़ी ,

ज़ालिम है दुनिया ।

मुझसे गुनहगार ,

कोई नहीं है ।।

 

नवासे तुम्हारे ,

हुसैनो – हसन से ।

फ़ातिमा सी बेटी ,

कोई नहीं है ।।

 

दमें वापसी ,

सामने हो मदीना ।

अब ख़ुश क़िस्मत मुझसा,

कोई नहीं है ।।

 

अदब से कहूं सलमा ,

उम्मत तुम्हारी ।

बरसाओ रहमत ,

अब कोई नहीं है ।।

 

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 54 – मनोज के दोहे…. ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  द्वारा आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को श्री मनोज जी की भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं।

✍ मनोज साहित्य # 54 – मनोज के दोहे….  

1 नेकी

नेकी खड़ी उदास है, लालच का बाजार ।

मूरत मानवता बनी, दिखती है लाचार ।।

2 परिधान

बैठ गया यजमान जब, पहन नए परिधान।

देख रहा ईश्वर उसे, मन में है अभिमान।।

3 अनाथ

देखो किसी अनाथ को, उसका दे दो साथ।

अगर सहारा मिल गया, होगा नहीं अनाथ।।

4 सौजन्य

मित्र सभी सौजन्य से, मिलते हैं हर बार।

दुश्मन खड़ा निहारता, मन में पाले खार।।

5 सरपंच

गाँवों के सरपंच ने, दिया सभी को ज्ञान।

फसलों की रक्षा करें, प्राण यही भगवान।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

24-9-2022

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – शब्दकोश ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ नवरात्र  साधना सम्पन्न हुई 🌻

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – शब्दकोश ??

वह लिखती रही विरह,

मैं बाँचता रहा मिलन,

चलो शोध करें,

दृष्टि बदलने से

शब्द का अर्थ

बदल जाता है क्या?

…और पता नहीं कैसे

मेरे पास बदले अर्थों का

एक शब्दकोष

संचित हो गया है..!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 109 – सुमित्र के दोहे ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके सुमित्र के दोहे।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 109 – सुमित्र के दोहे  ✍

*

ब्रह्म तुम ही हो नियंता, तुम ही हो मन-मारीच ।

धनुष-मुरलिका साँस की, तुम्हीं रहे हो खींच।।

*

शंकर, तुलसी, सूर में, करते शब्द निनाद ।

मीरा के नुपुरों में, करते हो संवाद ।।

*

ओ! लीलामय सुदर्शन, गोकुल मुक्ति धाम ।

मेरे मन में आ बसो, ओ! मीरा के श्याम।।

*

मीरा गिरधर प्रिया का, भक्त करें गुणगान।

 मीरा की समता नहीं, अद्वितीय प्रतिमान।।

*

मीरा का सुमिरन करूँ, ध्याऊँ श्याम सुजान ।

वर्णन क्षमता दीजिए, वाणी का वरदान।।

*

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares
image_print