श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “सबका इलाज़ तो किया …”)

? ग़ज़ल # 43 – “सबका इलाज़ तो किया …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

वीरान खंडहरों की सैर को दो मायूस दिल गये,

ज़माने से उलझे दोज़ख़ के दरवाज़े मिल गये।

ज़िंदगी तब ख़ुशनुमा लिबास में मुसकाती थी,

चढ़ती उम्र के झौंके में वजूद के पत्ते हिल गये।

ग़म सलीके में रहे जब तलक लब खामोश थे,

हमारी ज़ुबां क्या खुली दर्द बेशुमार मिल गये।

सबका इलाज़ तो किया बस अपना न कर सके,

ज़माने के गरेबां रफ़ू किए ख़ुद के फटे मिल गये।

दर्द के फटे गलीचे सिलवाने जा रहा था शायर,

खुर्दबीन नुक़्ताचीं मगर नुक्कड़ पर मिल गये।

मैं ढूँढता रहा आस्तीन के साँपों को इर्द गिर्द,

ठीक से देखा ‘आतिश’ ने ज़हन में मिल गये।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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