हिन्दी साहित्य – नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 1 ☆ नर्मदा की आवहवा ☆ – श्री प्रयास जोशी

श्री प्रयास जोशी

(श्री प्रयास जोशी जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आदरणीय श्री प्रयास जोशी जी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स  लिमिटेड भोपाल से सेवानिवृत्त हैं।  आपको वरिष्ठ साहित्यकार  के अतिरिक्त भेल हिंदी साहित्य परिषद्, भोपाल  के संस्थापक सदस्य के रूप में जाना जाता है। 

ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  करेंगे ।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने यात्रा संस्मरण श्री सुरेश पटवा जी की कलम से आप तक पहुंचाई एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक सतत पहुंचा रहे हैं।  हमें प्रसन्नता है कि  श्री प्रयास जोशी जी ने हमारे आग्रह को स्वीकार कर यात्रा  से जुडी अपनी कवितायेँ  हमें,  हमारे  प्रबुद्ध पाठकों  से साझा करने का अवसर दिया है। इस कड़ी में प्रस्तुत है उनकी कविता  “नर्मदा की आवहवा”। 

☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण – कविता # 1 – नर्मदा की आवहवा ☆

बेटे ने,

सामान उठाते हुये कहा-

पापा! अपनी आदत के बोझ को

थोड़ा कम करिये

—पिता ने, हंसते हुये कहा-

बेटा! समय के उधड़े होने के बावजूद

इस झोले में मुझे

यादों का भार बिल्कुल नहीं लगता…

—मैं, तो सिर्फ इसलिये कह रहा हूँ पापा

कि जब आप पिछली बार आये थे

तो होशंगाबाद, इटारसी की

कितनी सारी सब्जियाँ लाद लाये थे

परेशानी उठाने की कोई

फालतू जरूरत नहीं है पापा

यहां बेंगलौर में,

सब मिलता है

इस बार मम्मी ने कहा-

लेकिन बेटा ! इस बार हम

करेली का गुड़,

नरसिंहपुर की मटर

और

जबलपुर के सिंघाड़े लाये हैं…

—बेटा, हँसा….

— पिता ने कहा-

मैं, क्या यह नहीं जानता कि

दुनिया में हर जगह,

हर चीज मिलती है?

लेकिन इन में नर्मदा का पानी

मिट्टी और आवहवा है

जिसके दम पर तुम

दुनिया भर में उड़ते-फिरते हो,

समझे …

पापा! आप भी बस..

—पापा ने बहू से कहा—

मेरे इस झोले को

संभाल कर रखना, संध्या!

लौटते समय मैं/

इसी झोले में

कावेरी का पानी

मिट्टी और आवहवा लेकर

भोपाल जांउगा मैं…

 

©  श्री प्रयास जोशी

भोपाल, मध्य प्रदेश

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हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # सात ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # सात ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

11.11.2019 सुबह-सुबह घुघरी से यात्रा पुनः प्रारंभ हुई। नदी किनारे रास्ता सफर करने लायक न था सो गांव से होकर निकले।

कोई दो किलोमीटर दूर एक गौड़ परिवार के आशियाने में रुके। उसने सीताफल खाने को दिया और भैंस का ताजा दूध पीने को। उनके भोजन में शाकाहार और मांसाहार दोनों हैं। बटेर, खरगोश और मछली भोजन हेतु आसानी से मिल जाते हैं। आगे बढ़े  तो अन्नीलाल लोधी पत्नी व दो पुत्रों के साथ अपने खेत में आलू बोते दिखे।  उन्होंने नर्मदे हर के साथ हमारा स्वागत किया और चाय पिलाई ।

डांगर टीले पार करते हुए महादेव पिपरिया गांव पहुंचे। गांव में नर्मदा तट पर भगवान शंकर की विशालकाय लिंग है और यह  शिव मंदिर इस गांव की पहचान बन गया है।  लोग इसे मोटा महादेव भी कहते हैं। अन्य देवी देवताओं के  भी मंदिर हैं पर वे अपेक्षाकृत नये हैं।

यहां से हमें पुनः नदी के किनारे पर चलने का मौका मिला। उत्तरी तट की ओर एक छोटी पर्वत माला ने हमें आकर्षित किया। ग्रामीणों ने बताया यह झिल्पी ढाना है, भोपाल तक गई है। हमें मैकलसुता के दादा विन्ध्य पर्वत की एक और श्रृंखला के दर्शन हो गये। पौराणिक कथाओं के अनुसार नर्मदा का उद्गम स्थल मैकल, विन्ध्य पर्वत का पुत्र है।  कुछ दूर चले होंगे कि एक अद्भुत चट्टाननुमा आकृति ने आकृष्ट किया। समीप जाकर देखा तो समझ में आया कि यह करोड़ों वर्ष पूर्व किसी प्राकृतिक हलचल का साक्षी वृक्ष का जीवाश्म है।

नदी किनारे खेती-बाड़ी की तैयारियों में अब तेजी दिखने लगी है। जगह जगह किसानों ने तट पर बबूल आदि कंटीले वृक्षों की बारी लगा दी है तो कहीं कहीं बोनी के पहले स्प्रिकंलर से सिंचाई भी  हो रही है। रास्ता फिसलन भरा होने से सम्भल कर चलना पड़ता है। कहीं कहीं छोटे छोटे नाले भी हैं वहां जमीन दलदली है, हमारे एक साथी असावधानी वश ऐसे ही दलदल में फंस गये और किसी तरह बाहर निकलने में सफल हुए।

नदी किनारे चलते चलते-चलते हम करहिया गांव पहुंचे। नदी का तट रेतीला था अतः हम सबने स्नान किया और समीप ही  ग्राम पंचायत द्वारा निर्मित सामुदायिक भवन में विश्राम हेतु व्यवस्था की। गांव का मिडिल स्कूल भी सामने था व स्कूल की शिक्षिका रजनी मेहरा से अपना प्रयोजन बता बच्चों से गांधी चर्चा की इच्छा जताई वे सहर्ष तैयार हो गई। मैंने और प्रयास जोशी ने मोर्चा संभाला बच्चों को गांधी जी की जीवनी और संस्मरण सुनाए। सामने प्राथमिक शाला के बच्चों ने अविनाश को घेर लिया और पढ़ाने का आग्रह किया। बच्चों की बात भला कौन टालता है। हमने स्मार्ट कक्षा का टीव्ही देखा। कमलेश पटैल, शिक्षक ने बताया कि बच्चे स्कूल आते नहीं हैं और वे स्मार्ट टीवी से कार्टून आदि दिखाकर बच्चों को स्कूल आने आकर्षित करते हैं।

मेरे पास गांधी जी एक पुस्तक ‘ रचनात्मक कार्यक्रम’ बची थी वह मैंने कमलेश पटेल को दे दी।  उधर सामुदायिक भवन में हमें मुन्नालाल लोधी मिल गये, उन्होंने दोपहर के भोजन दाल बाटी की व्यवस्था कर दी। हमने कुछ देर आराम किया और नदी किनारे चलते चलते गरारु घाट पहुंचे। यहां तट पर नरेश लोधी मिल गये। वे गांव में नर्मदा पुराण कथा के आयोजन में शामिल हैं। हमें आग्रह पूर्वक चांदनी पंडाल के नीचे रात्रि विश्राम हेतु रोक लिया। बिछाने को गद्दे लेकर हम लेट गये। जब करहिया में दाल बाटी बनी तो अविनाश के पास घी था उसे गुड़ में मिलाकर चूरमा बना लिया था। यहीं चूरमा हमारा डिनर था ।

गरारू तट से नर्मदा की कल-कल करती प्रवाहमान थी, कल-कल की यह ध्वनि केवल घाट पर ही सुनाई देती थी। उधर आकाश में चौदहवीं का चांद अपनी छटा बिखेरते हुए दर्शन दे रहा था। हमने कोई एक बजे रात उसे अपने कैमरे में कैद किया।आज परिक्रमा में तट पर सोने का आनंद लिया।

 

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हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # छह ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # छह ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

10.11.2019 सुबह अविनाश भाई दवे जबलपूर से चलकर नरसिंहपुर होते हुए सांकल आने वाले थे, अतः हम सभी साहू जी से विदा लेकर बस स्टैंड आ गये गुड़ की जलेबी और समोसे का नाश्ता किया और उस चबूतरे पर बैठ गए जहां कल सायंकाल ग्रामीण जन चौपड़ खेल रहे थे।

पैंट शर्ट धारी परिक्रमावासियों के विषय में कल से ही गांव में चर्चा थी अतः हमें देखते ही ग्रामीण एकत्रित हो गए। पटवाजी ने पुनः महाभारत की कथा सुनाना शुरू कर दिया। यह जोशी जी को पसंद नहीं आया और उन्होंने धीरे से इसे रोजगारपरक शिक्षण-प्रशिक्षण की दिशा दी, गांधी चर्चा भी हुई और कुछ प्रतीकात्मक सफाई भी। बस स्टैंड के दुकानदारों ने कचरा संग्रहण हेतु डब्बे रखें हैं पर इसका सार्वजनिक डिस्पोजल नहीं होता है अतः यह कचरा दुकानों के पीछे फेंक दिया जाता है।

मेरी इच्छा हुई कि सरपंच से इस संबंध में बात करनी चाहिए पर उनसे मुलाकात असंभव ही रही। यहां संतोष सेन मिले, वे पेशे से नाई हैं, और दंबगों से उन्होंने बैर लिया, जिससे रुष्ट हो दंबगों ने उन पर तेजाब फेंक दिया था। लेकिन इस दुर्घटना के बाद वहां दंबगई खत्म हुई और लोगों की दुकानें खुली।

धानू सोनी मिले। वे परिक्रमा करने वालों को चाय नाश्ता उपलब्ध कराते हैं। हमें भी उन्होंने चाय पिलाई पर मूल्य न लिया। हमने उनकी पुत्री के हाथ कुछ रुपये रख विदा ली। यहीं सिलावट परिवार से मुलाकात हो गई,  उन्होंने मुआर घाट से परिक्रमा उठाई थी। मैंने उनसे पुश्तैनी पेशा के बारे में पूंछा, वे न बता सकें, खेती-बाड़ी करते हैं, ऐसा बताया। शरद तिवारी, सोशल वर्कर हैं, नर्मदा में प्रदूषण, अतिक्रमण, तराई में फसल आदि को लेकर चिंतित दिखाई दिये।

कोई साढ़े नौ बजे अविनाश की बस आ गई और हम नहर मार्ग से अगले पड़ाव की ओर चल पड़े। थोड़ी दूर चले होंगे कि राजाराम पटैल मिल गये, उन्होंने प्रेम के साथ अपने खेत का गन्ना हमें चूसने को दिया। हम लोगों में से केवल पटवाजी ही गन्ने को दांत से छीलकर चूस सके बाकी ने उसे पहले हंसिया से चिरवाया फिर चूसा।  रास्ते भर गन्ने के खेत और बेर की झाड़ियां मिली। पके मीठे बेर खूब तोड़ कर खाते हुए हम आगे बढे।

गुढवारा के रास्ते में हमें आठवीं फेल कैलाश लोधी मिल गये। वे बड़े प्रेम से हम सबको घर ले आए चाय पिलाई और अपने पुत्र रंजीत लोधी से मिलवाया। रंजीत ने इंदौर के निजी कालेज से बी ई किया है और पीएससी की तैयारियों में लगे हैं। कहते हैं कि जनता की सेवा करने शासकीय सेवा में जाना चाहते हैं। पटवाजी ने उन्हें अपनी पुस्तक गुलामी की कहानी से कुछ उद्धरण सुनाये।

गांव से निकलकर हम पुनः नर्मदा के किनारे आ गये। तट पर रेत पत्थर न थे सो नहाया नहीं और आगे बढ़ चले।  कुछ दूर चले होंगे कि नर्मदा की कल-कल ध्वनि सुनाई देने लगी। आश्चर्य हुआ, झांसी घाट से अभी तक हमने शांत होकर बहती नर्मदा के दर्शन किये थे, यहां नर्मदा संगीतमय लहरियों के साथ बह रही थी। यह घुघरी घाट है। यहां नर्मदा पत्थरों के बीच कोलाहल करती प्रवाहमान है। उत्तरी तट की ओर से विन्ध्य पर्वत माला की हीरापुर श्रृंखला के दर्शन होते हैं। तट पर हम सबने विश्राम किया और नहाया। कल-कल ध्वनि इतनी मधुर थी कि उठने का मन ही न हुआ।

हम सबने अविनाश भाई के द्वारा लाई गई मेथी की भाजी की पूरियां, आवलें के अचार और घी के साथ खाई और कुछ विश्राम किया। अविनाश स्वादिष्ट भोजन के प्रेमी हैं। यह गुण उन्हें उनके माता व पिता से विरासत में मिला है। बाबूजी बताते थे कि हमारे फूफा, अविनाश के पिता, स्वादिष्ट खेडावाडी व्यंजनों के बड़े प्रेमी थे। अविनाश के बैग का एक खंड खाद्य सामग्री से भरा है। उसके पास चाय काफी से लेकर पोहा,नमकीन, अचार, मैगी मसाला लड्डू सब मिल जायेगा। हमने घुघरी घाट में नर्मदा के साथ कोई दो घंटे बिताए और फिर  रात्रि विश्राम के लिए ठौर ढूंढने घुघरी गांव की ओर चल पड़े। यहां चढ़ाई सांकल घाट की तुलना में कम थी।

एक जगह टीलों के कटाव की मैं फोटो खींचने लगा। इतने में एक गौड़ अधेड़ दिखा चर्चा चली कि पेड़ लगे होते तो यह टीले ऐसे न कटते। उसने बताया कि यह नदी की बाढ का नहीं मनुष्य की लालच का फल है। नहर में मिट्टी भराई कार्य हेतु जेसीबी मशीनों के तांडव का नतीजा है। दुःखी मन ने सोचा कि हम ईशोपनिषद के श्लोकों को भी भूल गये हैं। गांधीजी ने हिंद स्वराज में मशीनों का उपयोग सोच समझकर करने कहा था। उनकी चेतावनी हमने नहीं मानी और यह  अब पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रही है। थोड़ी दूर पर बम-बम बाबाजी द्वारा संचालित श्री राधाकृष्ण मंदिर धर्मशाला है। बाबा की उम्र अस्सी के आसपास है और परिक्रमा पश्चात घर-बार छोड़कर यहां बस गये हैं। परिजन व पत्नी अक्सर मिलने आते रहते हैं। वहीं रात कटी बाबा ने भोजन व्यवस्था की और हम लोगों ने मोटे-मोटे टिक्कड मूंग की दाल के साथ उदरस्त किये।

आश्रय स्थल  के सामने स्थित विशालकाय बरगद वृक्ष देखा। पेड़ काफी पुराना है और लगभग सात आठ स्तंभ हैं। नर्मदा तट के निवासियों ने जगह जगह बट, पीपल, इमली आदि के वृक्ष लगाए हैं इससे कटाव रूकता है। पर यह वृक्षारोपण दो पीढ़ियों के पहले का है अब तो युग अपना और केवल अपना भला सोचने का है। परहित सरिस धर्म नहिं भाई का जमाना हम बहुत पीछे छोड़ आए हैं।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # पाँच ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # पाँच ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

09.11.2019 कल शाम को लगभग पांच सौ मीटर की चढ़ाई चढ़कर जब ब्रह्म कुंड पहुंचे तो खाने और सोने के अलावा कुछ न सूझा।

सुबह उठकर एक नजर दौड़ाई ।  सामने विशाल बरगद का वृक्ष आकर्षित कर रहा था तो कुटी के आसपास पालिथीन की थैलियां,  गिलास और थर्मोकोल की खाने की प्लेटों का अंबार लगा था। मैंने और मुंशीलाल पाटकर ने  सफाई अभियान शुरू किया तो आधे घंटे में ही आश्रम के आसपास से गंदगी साफ हो गई। निवृत हुए ही थे कि मनोज पाराशर दूध लेकर आ गये हम सबने  चाय पी और वहां से एक किलोमीटर चलकर सिद्ध घाट पहुंचे, रमणीय स्थल है और नर्मदा नदी काफी गहरी है व बहाव कुछ इस तरह का है कि आकृति गोलाकार होकर कुंड का आभास देती है।

यही स्थल ब्रह्म कुंड है जहां देवासुर संग्राम के पहले देवताओं ने तपस्या की थी। चारों ओर सघन वन हैं और उनसे मंद मंद बहती सुगन्धित वायु मन को शांति देती है। यहां प्राचीन शिव मंदिर और राम जानकी मंदिर है। मूर्तिया आकर्षक हैं। पुजारी के परिवार ने कल एकादशी का पूजन किया था और पूजा स्थल को बड़ी सुंदरता से सजाया था। आगे नदी के तीरे तीरे मार्ग कठिन था तो गांव से बाहर निकल नहर के किनारे किनारे आगे बढ़े। मार्ग संगम पर दाहिने हाथ की ओर मुड़ गये और बुध गांव से होते हुए घाट  पहुंचे।

बुध घाट के बारे में ख्याति है बुध ग्रह ने यहां तपस्या की थी। यहां एक आश्रम काफी ऊंचाई पर स्थित है और चढ़ाई कठिन। बाबा ने किसी भी प्रकार का सहयोग न किया। बाबा आश्रम में निर्माण कार्य की माया में लिप्त थे। हमने नहाने की इच्छा जताते हुए अनुमति मांगी तो अपने सेवक को बोलकर पंप बंद करा दिया। चाय बनाई पर केवल अग्रवालजी को दी। भोजन के लिए तो साफ मना कर दिया।

दुःखी हो हम आश्रम से नीचे उतरे और कोई तीन बजे नदी के किनारे चलते चलते सांकल घाट पहुंचे। सांकल गांव दक्षिणी तट पर है और उत्तरी तट पर शंकराचार्य की तपोस्थली की साक्षी एक गुफा है।  शायद यहीं पद्मासन में विराजमान शंकराचार्य ने नर्मदाष्टक की रचना की होगी।सांकल गांव भी काफी ऊंचाई पर है और कोई एक किलोमीटर की कठिन चढ़ाई चढ़कर, पीपल वृक्ष के नीचे स्थित शिव व शनि मंदिर के दर्शन करते हुए हम और पटवाजी साहू जी की धर्मशाला में विश्राम हेतु पहुंच गये। स्नानादि से निवृत्त हुए ही थे कि शेष साथी भी धर्मशाला पहुंच गये। हमने दोपहर को लौकी की सब्जी और रोटी  आम के अचार के साथ खाई। पहले तो साहू परिवार की महिलाओं ने पका पकाया भोजन देने से मना कर दिया। यहां तक कि अस्सी वर्षीय स्वसुर सिब्बू साहू के आदेश को भी न माना पर जब हमें अनाड़ीपन के साथ सब्जी काटते देखा तो वे भोजन पकाने तैयार हो गई। भोजन बनने में देरी थी तो मैं गांव का चक्कर लगाने निकल पड़ा।

स्कूल वगैरह बंद थे पता चला कि अयोध्या के मामले फैसला आ गया है। हम चिंता ग्रस्त हो गये। घर पर फोन से संपर्क किया और राजी खुशी के समाचार प्राप्त किये।

यहीं बरगद के पेड़ के नीचे मेरी मुलाकात राजाराम पटैल से हो गई। मैंने उन्हें नर्मदा यात्रा के दौरान हम लोगों के सामाजिक सरोकारों के विषय में बताया और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता तथा सरपंच से मुलाकात की इच्छा जताई। सरपंच से तो मुलाकात न हो सकी पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सावित्री मेहरा से मुलाकात हो गई। मैंने उन्हें श्री ए डी खत्री द्वारा रचित बाल कविताओं की पुस्तक ‘अनय हमारा’ भेंट की और अनुरोध किया कि छोटे छोटे बच्चों को इससे कविताएं सुनाकर पढायें। सावित्री ने एक दो कविताएं बच्चों को सुनाई जिसे सुनकर बच्चे प्रसन्न हो गए। मैंने श्री खत्री से तुरंत फोन पर बात की व उनसे कुछ कहने का आग्रह किया। श्री खत्री ने मुझ अपरिचित का यह अनुरोध तत्काल स्वीकार कर लिया।

रात्रि में हमने दूध पिया कुछ नवयुवकों के साथ पढ़ाई लिखाई के अपने व उनके अनुभव साझा किये और साहू परिवार को पटवाजी ने रामचरित मानस की कथा सुनाई। सिब्बू साहूजी की धर्मशाला, जहां हम रुके थे, वह  उनके बड़े भाई कनछेदी साहू ने सन् 2000 में बनवाई थी। धर्मशाला में पानी की व्यवस्था नहीं है कारण साहू परिवार के अनेक प्रयासों के बाद भी  गांव के लोगों ने वहां हैंडपंप न लगने दिया। रात अच्छी कटी पहली बार गेंहू  से भरे बोरों के बीच सोते हुये चूहों और सांपों का डर न लगा।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # चार ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # चार ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

 

08.11.2019 सुबह सबेरे सात बजे हम सब छोटी गंगई से आगे बढ़े। छोटी के बाद बड़ी गंगई आती है पर बीच में मुआर घाट है। पक्का घाट था सो यहां हम लोगों ने स्नान किया, चना चबैना खाया और कोई एक घंटे विश्राम भी किया। घाट पर आठ दस स्कूली बच्चे धमा चौकड़ी मचा रहे थे। पटवा जी ने मजाकिया लहजे में उन्हें छेड़ा तो वे सब खिंचे चले आए, हमारे इर्द-गिर्द जमा हो गये। बतियाते बतियाते  उनसे अपनी अपनी पानी की बोतल भरने का आग्रह किया और वे हंसते हुए हैंडपंप से भर लाये।

हमने उनसे गांधी जी के बारे में पूंछा और फिर गांधी जीवनी सुनाई। बच्चों को गांधी बाबा के बारे में काफी जानकारी थी उन्होंने हमारे कतिपय प्रश्नों के सटीक उत्तर भी दिए। मैंने  सर्वाधिक अंक पाने वाले छात्र को गांधी जी की पुस्तक मंगल प्रभात पढ़ने  भेंट की।यह सभी बच्चे जमुनिया गांव के हैं और बेनी प्रसाद सिलावट, अजमेर , कमला बाई, धना बाई, गोमती बाई जो सब आपस में रिश्तेदार हैं, बेनी प्रसाद के पुत्र को सरपंच के चुनाव में सफलता मिलने के कारण परिक्रमा उठा रहे हैं, के भोज कार्यक्रम में सम्मिलित होने आये हैं। मुआर घाट का पौराणिक महत्व है। यहीं भैंसासुर का वध हुआ था और राजा मयुरेश्वर के नाम पर ही इसका नाम मुआर घाट हो गया।

बड़ी गंगई के आगे चले तो बेलखेड़ी घाट और तट के उस पार सामने जालौन घाट दिखाई दिया। आज एकादशी है तो जगह जगह घाटों पर लोग स्नान के लिए उमड़ रहे हैं। अनेक घाटों से परिक्रमा उठाने का पूजन हो रहा है और बहुसंख्य लोग पंचकोसी परिक्रमा करते दिखाई दिए। आगे बढ़ते हुए हमने अनेक स्थानों पर विसर्जित मूर्तियों  के अवशेष देखे। गनीमत है कि मूर्तियां मिट्टी से बनी थी अतः मिट्टी तो नर्मदा में समाहित हो गई पर बांस, पयार, रस्सी आदि नदी ने अस्वीकार कर तट पर बाहर फेंक दी। मोटर साइकिल धोने वाले भी बहुत मिले।

ब्रह्म कुंड से कोई दो किलोमीटर पहले दूभा घाट है यहां मशीनों से रेत खनन का काम हो रहा था। हमारी सौ किलोमीटर की यात्रा में केवल यहीं हमने पोकलेन मशीन का प्रयोग देखा। नदी को बुरी तरह खोदा जा रहा है और उत्खनित रेत के ढेर जगह जगह लगा दिए गए हैं। रेत के यह ढेर बांध का एहसास कराते हैं ,ऐसा होने से जल प्रवाह में बाधा आ रही है। अनेक जगह मल्लाह भी बीच नदी से रेत निकालने के काम में संलग्न हैं पर इस विधि से रेत खनन उतना नुकसान दायक नहीं है जितना मशीनों के प्रयोग से है।

ब्रह्म कुंड पहुंचने के पहले ही दिवाकर अस्त हो चले, रक्ताभ रवि रश्मियां नर्मदा  से ऐसी घुल मिल गई की सम्पूर्ण जलराशि  स्वर्णिम हो गई।  इस दिन कोई 18 किलोमीटर की यात्रा कर थकान से चूर चूर हो ब्रह्म कुंड पहुंचे इसे बरम कुंड भी कहते हैं। रात में कुटी में रुके। रामप्रसाद लोधी ठाकुर  इसे संचालित करते हैं उनकी पत्नी पुद्दा बाई  लकवा ग्रस्त हैं तीन साल से पति  ही बीमार पत्नी की सेवा करते हैं। कुटी में जगह बहुत है पर सब कुछ बेतरतीब है।कुटी की दीवाल पर  ‘नदि नहीं ये जननी है। रक्षा हमको करनी है।’ नारा लिखा देखा। दिसम्बर 16से भी 17के दौरान तत्तकालीन भाजपा सरकार ने नमामि देवि नर्मदे  सेवा यात्रा का बहुचर्चित आयोजन किया था उसी दौरान ऐसे नारे लिखे गये थे। तब शिवराज सिंह चौहान भी यहां आये थे।  प्रहलाद सिंह पटेल के स्वागत का बोर्ड दिखा। वे इसी क्षेत्र के निवासी हैं और केन्द्र में पर्यटन मंत्री, चाहें तो परिक्रमा पथ की  व्यवस्थाओं में सुधार कर सकते हैं।

रात के भोजन की व्यवस्था, गांव के पुजारी, मनोज पाराशर ने कर दी, वे  हमें ब्रह्म घाट पर ही मिल गये थे और थोड़ी देर में कुटी आ गये। आलू की सब्जी और रोटी वे अपने घर से बनवा लाये।यहां हमारी मुलाकात टीका राम गौंड परकम्मा वासी से फिर हो गई।

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # तीन ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस -ग्यारह  कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आपको उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # तीन ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

07.11.2019 की सुबह एक गिलास दूध पीकर गांव का भ्रमण करते हुए पुनः नर्मदा के तीरे तीरे चलने को निकले। स्कूल के पास कुछ बच्चे खेल रहे थे, उन्हें बुलाकर परिसर में फैली पालीथिन की थैलियों को एकत्रित कर आग लगा दी, यह हमारा नर्मदा तट पर प्रथम प्रतीकात्मक सफाई अभियान था। आगे बढ़े तो ज्योति बर्मन नामक बालिका धूप में बैठ पढ़ रही थी, उसे पढ़ने लिखने हेतु प्रोत्साहित किया और बैग से गांधीजी की पुस्तक ‘राम नाम’  भेंट की।

आगे चले तो एक युवा अपनी मां के साथ खेत में बखर चला रहा था। मुंशीलाल पाटकार भी स्वंय  बखर चलाने आगे बढ़े पर दो पल में ही वापिस आकर सुस्ताने लगे। सच खेती-बाड़ी बहुत मेहनत मांगती है और हम शहरी बाबूओं के बस का यह रोग नहीं है। हम आराम कर ही रहे थे कि बाकी सदस्य भी आ पहुंचे। जोशी जी ने अपने थैले से सेव फल निकाले पर उसे काटने चाकू हमारे पास नहीं था और हंसिया किसान के पास भी न था। उसकी मां ने झट से आदेश दिया कि बखर चलाने में प्रयुक्त पेरनी धो लें और फिर उससे सेव काट लो। आज्ञाकारी पुत्र ने ऐसा ही किया, हम सबने मीठे सेव का आनंद लिया।

चलते-चलते कोई बारह बजे हम सिद्ध घाट पहुंचे। भारी भीड़ एकत्रित थी। पता चला कि सिंचाई हेतु अवैध विद्युत कनेक्शन ने  एक युवक की जान ले ली, युवक पास के ही गांव का था और सभी लोग उसकी खारी बहाने तट पर आये थे। दुखी मन के साथ हम सबने नर्मदा स्नान किया और फिर थोड़ा स्वल्पाहार बची हुई पूरी सब्जी खा कर आगे चल दिये।

रास्ते में मछली पकड़ते दो बर्मन युवक दिखे। ठेकेदार को मछली बेचते हैं, बदले में एक सौ पचास रुपए प्रति किलो की दर से भुगतान और अंग्रेजी विहस्की शराब अलग से मिलती है। अब हम समझे कि नर्मदा के किनारे जगह जगह जो शराब की बोतलें बिखरी हुई थी, उसका राज क्या है।

खेतों की मेड़ पर चलते हुए, लगभग दस किलोमीटर की यात्रा कर, शाम पांच बजे छोटी गंगई पहुंचे। यहां बाबा धुरंधर दास के आश्रम में जगह मिल गई। बाबा के सेवक कड़क मिजाज थे। उनकी बातें सुनकर अग्रवालजी क्रोधित हो गए और फिर आगे की यात्रा में हम सब उन्हें बारात के फूफा संबोधित करते रहे। गौड़ ठाकुरों की बस्ती में कोई खाना बनाने वाला न मिला। बड़ी मुश्किल से एक किसान से आलू, टमाटर व भटे खरीद वापस आश्रम आये तो बाबा धुरंधर दास ने हमें अपने हाथ से चाय पिलाई और भोजन बनाने की चिंता न करने को कहा।  रात में जब हम भोजन करने बैठे तो पता चला सब्जी तो बाबा ने खुद बनाई थी और रोटियां दो अन्य परिक्रमा वासियों की मदद से बाबा के सेवक ने। बाबा धुरंधर दास बड़े दंबग स्वभाव के हैं, चालीस वर्षों से इसी आश्रम में हैं और गौड़ आदिवासियों के बीच लोकप्रिय हैं। दिन भर गांजा और चाय पीना भोजन में एकाध रोटी खाना और रामकथा को सीडी के जरिए सुनना उनकी दिनचर्या है। उनकी जटायें काफी लंबी हैं। पांच फुट के शरीर के बाद कोई दो तीन फुट तो जमीन में पड़ी रहती हैं। एक बार अवैध गांजा की खेती के आरोप में पुलिस पकड़ कर ले गई थी बाद में छोड़ दिया। बाबा ने न केवल ग्रामीणों को गांजे की लत लगा दी है वरन् आश्रम के कुत्ते भी गांजे की पत्तियां चबाते रहते हैं या उसके पकौड़े खाते हैं।

रात में विश्राम करने जा ही रहे थे कि कुछ ग्रामीण आ गये। नब्बे वर्षीय नर्मदा प्रसाद गौड़ ने अंग्रेजों का शासन देखा है। वे कहते हैं कि पुराने समय में भोजन पानी शुद्ध था। अब तो रासायनिक खाद ने अन्न को जहरीला बना दिया है। उनकी तीन संतान हैं, वे कहते हैं कि पहले लोग संयम से रहते थे। गांधीजी का नाम सुनते ही उनकी आंखों में चमक आ गई, कहने लगे फोटो में देखा है। जिंदगी भर कांग्रेस को वोट दिया है।

सांझ ढले दो और परिक्रमावासी आश्रम में आ गये। दोनों ममरे- फुफेरे भाई हैं। एक का नाम टीका राम गौंड है। वे दूसरी बार परिक्रमा कर रहे हैं। पिछली परिक्रमा में आंवलीघाट के पास कुछ त्रुटियां हो गई सो इस बार उसका प्रायश्चित है। दोनों वक्त नर्मदा का भजन पूजन और एक वक्त भोजन यही दिन उनकी दिनचर्या है। भिक्षाटन कर जो कुछ मिल जाता है वहीं उनका भोजन है और शेष बचा आटा आदि वे जहां ठहरते हैं वहीं दान कर देते हैं।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण # 5 – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ – श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण  के अंतर्गत हमने  श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने  ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा  जी और उनके साथियों द्वारा भेजे  गए  ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में  आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ  रहे होंगे।

इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास कर रहे हैं। उनके सहयात्री  तथा गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा नर्मदा यात्रा संस्मरण उनके दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रहे हैं। आज के ही अंक में उनके संस्मरण की दूसरी कड़ी प्रकाशित की गई है। निश्चित ही आपको नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इन पंक्तियों के लिखे जाते तक  यह यात्रा पूर्ण हो चुकी है। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण पर श्री सुरेश पटवा जी  के यात्रा संस्मरण की पांचवी एवं अंतिम कड़ी।  )  

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण # 5  – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ 

☆ झाँसी घाट से सतधारा घाट ☆
(104  किलोमीटर) 

नर्मदा अमरकण्टक से निकलकर डिंडोरी-मंडला से आगे बढ़कर पहाड़ों को छोड़कर दो पर्वत शृंखलाओं दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में कैमोर से आते विंध्य के पहाड़ों के समानांतर दस से बीस किलोमीटर की औसत दूरी बनाकर अरब सागर की तरफ़ कहीं उछलती-कूदती, कहीं गांभीर्यता लिए हुए, कहीं पसर के और कहीं-कहीं सिकुड़ कर बहती है। उसके अलौकिक सौंदर्य और आँचल में स्निग्ध जीवन के स्पंदन की अनुभूति के लिए पैदल यात्रा पर निकलना भाग्यशाली को नसीब होता है।

यह यात्रा वानप्रस्थ के द्वारा सभ्रांत मोह से मुक्ति का अभ्यास भी है। जिस नश्वर संसार को एक दिन अचानक या रोगग्रस्त होकर छोड़ना है क्यों न उस मोह को धीरे-धीरे प्रकृति के बीच छोड़ना सीख लें और नर्मदा के तटों पर बिखरे अद्भुत प्राकृतिक जीवन सौंदर्य का अवलोकन भी करें।

पीछे टाँगने वाले  हल्के बैग में एक जींस या पैंट के साथ फ़ुल बाहों की तीन शर्ट एक जोड़ी पजामा कुर्ता, एक शाल, तोलिया और अंडरवेयर, साबुन तेल रखकर कर चले। वैसे तो आश्रम और धर्मशालाओं में भोजन की व्यवस्था हो  जाती है फिर भी रास्ते में ज़रूरत के लिए समुचित मात्रा में खजूर, भूनी मूँगफली, भुना चना और ड्राई फ़्रूट, पानी की बोतल और एक स्टील लोटा के साथ एक छोटा चाक़ू भी रख उतर पड़े समर में।

कहीं कुछ न मिले तो परिक्रमा वासियों का मूलमंत्र “करतल भिक्षु-तरुतल वास” भी आज़माना जीवन का एक विलक्षण अनुभव रहा।

 

हम सभी परिक्रमा वासियों में जगमोहन अग्रवाल सबसे वरिष्ठ हैं, लेकिन वे सबसे ज़्यादा मज़बूती और जूझारूपन से यात्रा में भाग लेते हैं। उनके पैरों में तकलीफ़ है इसलिए घुटने ज़मीन पर टेककर पंद्रह किलो का भार खड़े हो पाते हैं। अन्य शारीरिक दिक़्क़तों के बावजूद वे निरंतर यात्रा करते रहे। उन्होंने कभी भी नहीं कहा कि वे परेशानी में हैं, नर्मदा जी में उनकी उनकी आस्था प्रबल है। नरसिंहपुर जिले की गाड़रवाडा तहसील के कौंडिया ग्राम के मूल निवासी हैं। जहाँ कभी कौंड़िल्य ऋषि का आश्रम हुआ करता था। जीवंतता, जीवटता और जूझारूपन उनकी सबसे बड़ी पूँजी है।

नर्मदा परिक्रमा दुनिया की सबसे कठिन यात्राओं में से दुरुह यात्रा है। हिंदू हज़ारों सालों से इस यात्रा को करते आ रहे हैं। इस यात्रा के सामने डिस्कवरी चैनल की नक़ली साहसिक यात्राएँ कहीं नहीं लगतीं क्योंकि उनमें ड्रोन केमरा, सैटलायट इमेज, फ़ोटो ग्राफ़र दल और सपोर्ट के रूप में मेडिकल टीम वहाँ साथ चलते हैं, उनके पास बेहतरीन जीवन रक्षक दवाएँ और आकस्मिक जोखिम से निपटने के अस्त्र होते हैं।

नर्मदा यात्रा का कोई तैयार रास्ता नहीं होता क्योंकि प्रत्येक वर्ष नर्मदा के भीषण प्रवाह में सारे किनारे कट कर रास्तों को धो डालते हैं। नर्मदा तेज़ बहाव से कहीं किनारों को तोड़ डालती है, कहीं कँपा छोड़ जाती है, कहीं किसान कछारी खेतों को बखर कर पैदल चलना दूभर कर देते हैं, कहीं स्प्रिंकलर की सिंचाई के कारण कीचड़ से से सने खेतों में क़दम रखने से ऐडी तक पैर गंपते हैं, कहीं नुकीली धारदार पहाड़ी पर चलना ठीक वैसा ही है जैसे खड़ी दीवार पर छिपकली जैसे पैर जमाकर खिसकना, कहीं पहाड़ी नालों की गहराई को फिसल कर पार करना।

उस पर भोजन और ठहरने की व्यवस्था का कोई ठिकाना नहीं, ऐसी विषम परिस्थितियों में नौ दिनों में 104 किलोमीटर की पदयात्रा सारा अहंकार तोड़ कर रख देती है। इसके सामने यूथ होस्टल की ट्रैकिंग बच्चों का मन बहलाव है।

1,65,181 क़दम की यात्रा के दौरान जिन आश्रमों और उनके स्वामियों संचालकों के आश्रय और भोजन दिया वे साधुवाद के पात्र हैं।

 

© श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)

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हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # दो ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

 

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि – इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है ।

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आज से दस अंकों में आप तक उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ नागरिक मित्र यात्री दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # दो ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

हम श्रीधाम स्टेशन से बाहर आए और मुंशीलाल पाटकार  टिकट बुक करने बुकिंग आफिस चले गये, उन्हें अपनी पुत्री की सासू मां की त्रयोदशी में शामिल होने एक दिन के लिए आमला जाना था। हम बाहर आकर आटो में बैठे ही थे कि एक पैंट शर्ट पहने लगभग अधेड़ उम्र का पुरुष हमारे पास आया, उसने नमस्कार कर हाथ मिलाया और नर्मदे हर के उदघोष के साथ पूंछा कि परिक्रमा कहां से उठानी है। हमने बताया कि झांसी घाट खमरिया से उठायेंगे और हम बिना किसी धार्मिक कर्मकांड के नर्मदा यात्रा कतिपय सामाजिक सरोकारों की पूर्ति हेतु करते हैं। यह सुन वह कुछ पल बैठकर चला गया। बाद में हमें समझ में आया कि वह किसी स्थानीय पंडा का एजेंट रहा होगा और परिक्रमा के कर्मकांड करवाने के उद्देश्य से हमसे संपर्क कर रहा था। हम पांच आटो रिक्शा में सवार होकर कोई तीन बजे  अपने गंतव्य स्थल पहुंचे चाय पी, अगरबत्ती और नारियल लिया, तट पर गये।  नर्मदा पूजन की जिम्मेदारी अग्रवालजी ने उठाई, हम सबने मां नर्मदा को प्रणाम किया और तीरे-तीरे आगे बढ़ चले। रास्ते भर फसल बोने के लिए तैयार खेत तो कहीं मत्स्याखेट करते, सुर्ख काले रंग पर सुगठित शरीर धारी, बर्मन युवक दिखे।

साढ़े तीन बजे चले होंगे और लगभग छह बजे छह किलोमीटर की यात्रा कर बेलखेड़ी गांव के शिव मंदिर पहुंच गए। मंदिर पुराना है और लगता है गौंडकालीन है। अधेड़ रघुवीर सिंह लोधी इसकी देखभाल करते हैं। युवावस्था में उनकी बांह के उपर से ट्रेक्टर निकल गया था, फ्रैक्चर तो ठीक हो गये पर सारे दांत गिर गये। उन्होंने शिवमन्दिर के बरामदे में चटाई बिछा दी और हम लोगों ने अपना बिस्तर जमाया। भोजन बनाने वे गांव से एक दो लोगों को ले आये। अरहर की दाल, चावल और मोटे टिक्कड़ का भोजन किया। लकड़ी के चूल्हे पर पकी रोटियों का स्वाद अलग ही होता है।

भोजन कर विश्राम की तैयारी में थे ही कि गांव से आठ-दस लोग आ गये, गांधी चर्चा और महाभारत की कथाएं सुनाने का दायित्व सुरेश पटवा ने लिया, मैंने भी गांधीजी के दो चार संस्मरण सुनाये। बड़े दिनों बाद जमीन में सोये तो नींद न आई। सुबह सबेरे नर्मदा के पूर्वी तट से सूर्योदय देख मन आनंदित हो गया। चटक लाल रंग की अरुणिमा बिखेरते आदित्य की किरणों ने जब नर्मदा के आंचल को छुआ तो सम्पूर्ण जलराशि कंचन हो गई। मनोहर दृश्य था, अफसोस कि मोबाइल पास न था और फोटो न ले सका।

कंचनजंघा की प्रसिद्धि सुनी थी यह तो कंचन नीर  है। उधर शिवमन्दिर के गर्भगृह में शिव पिंडी के अलावा तीन मूर्तियां  हैं, सूर्य अपने सात घोड़ों के साथ  प्रतिमा में विराजित हैं, आदित्य की किरणें सबसे पहले इसी मूर्त्ति का चुंबन करती हैं। एक अन्य प्रतिमा मां सरस्वती की है तो तीसरी प्रतिमा में मकर वाहिनी नर्मदा के दर्शन होते हैं। कोई आठ बजे हमने शिव मंदिर को छोड़ा तो रघुवीर सिंह ने दिन भर रुकने का आग्रह किया पर दिन में रुकना कहां सम्भव है और हम उनके मुख से रमता जोगी बहता पानी जे रुकें तो गाद हो जायं लोकोक्ति सुनकर अगले ठौर की ओर निकल पड़े। 06.11.2019 की  भ्रमण कहानी यहीं समाप्त हो गई।

 

नर्मदे हर!

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # एक ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

 

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है । उनकी विगत दो कड़ियाँ आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं :-

  1. हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण  – श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से ☆ – अरुण कुमार डनायक  (3 नवम्बर 2019) http://bit.ly/2Nd143o
  2. हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #2 – श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से ☆ – अरुण कुमार डनायक (5 नवम्बर 2019) http://bit.ly/2oOausH

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आज से दस अंकों में आप तक उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ यात्री मित्र दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # एक ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

गत वर्ष  13 से 17अक्टूबर की यात्रा के बाद हम सभी वर्ष पर्यन्त नर्मदा परिक्रमा की योजना बनाते रहे पर भौतिक जगत की आपाधापी और किसी न किसी बहाने के कारण  यात्रा  की तिथियां निर्धारित न की जा सकी। अंततः यह तय हुआ कि इस वर्ष एकादशी के आसपास पुनः परिक्रमा में चला जाय और झांसी घाट खमरिया से, जहां हमने पिछली यात्रा समाप्त की थी, सांडिया तक की कोई दो सौ किमी से अधिक की यात्रा पन्द्रह दिनों में पूरी कर नरसिंहपुर जिले  होते हुये दूधी नदी को पार कर होशंगाबाद जिले में प्रवेश किया जाय। जब मैंने और सुरेश पटवा ने आपस में चर्चा कर योजना बना ली तो हमारा नर्मदा परिक्रमा वाला निष्क्रिय व्हाट्स ऐप ग्रुप पुनः सक्रिय हो गया। सूचनाओं का आदान-प्रदान किया गया और 04.11.2019को यात्रा प्रारंभ करने का निश्चय किया गया पर अचानक सुरेश पटवा के यहां कुछ पारिवारिक कार्यक्रम आ गया और मुझे भी तीन तारीख को हिन्दी भवन द्वारा सम्मानित किया जाना था सो यात्रा  06.11.2019 से  18.11.2019 के बीच किया जाना तय हो गया।

जैसे ही तिथियों की घोषणा हुई सबसे पहले तेहत्तर वर्षीय  श्री जगमोहन अग्रवाल ने अपनी सहमति दी और बरमान में अपने साढू भाई तथा अपने पैत्रिक गांव  कौन्डिया में एक-एक रात विश्राम का आग्रह  भी कर डाला। फिर 62वर्षीय  एडव्होकेट मुंशीलाल पाटकर की खबर आ गई कि वे भी चलेंगे। भाई अविनाश दबे को एक विवाह में जाना था सो उन्होंने आगे बरमान में 12.11.2019  को सम्मिलित होने की स्वीकृति दी। हम पांच तो तैयार थे पर प्रयास जोशी की कोई खबर न थी। अतः दिंनाक 06.11.2019को सोमनाथ एक्सप्रेस से आरक्षण करवाने की जिम्मेदारी मुझे दी गई और मैंने भी तत्काल हम चार लोगों की टिकिट बुक करा दी,  कोच नंबर एस-4की बर्थ सात कन्फर्म बाकी सब प्रतीक्षा सूची में। यात्रा की तैयारी में सामान कम से कम हो इस हेतु भी हम सबने आपस में तय किया कि भोजन सामग्री  साथ में  ले जाने हेतु जिम्मेदारी सभी को अलग-अलग सौंप दी जाय। मैंने चार पैकेट पूरी सब्जी के तैयार करवाये तो अग्रवालजी ने गुड़ में पगे खुरमें लाने की ठानी, पटवाजी ने सूखे मेवा खरीदें और मुंशीलाल पाटकर ने दो तीन प्रकार के नमकीन बनवा लिए।

विगत यात्रा के अनुभवों से सीख लेते हुए सामान को कम करते करते कोई इक्कीस नग तो हो ही गये। इस बार मैंने गांधी साहित्य में कुछ पतली पुस्तकें ले जाना तय किया कारण मेरे सपनों का भारत या आत्मकथा वजनी हो जाती हैं। पिछली यात्रा में एक दिन मोजे गीले  हो गये थे सो मैंने जूते बिना जुराबों के ही पहन लिये नतीजा पैरों में छाले हो गये, अतः इस बार एक जोड़ा अतिरिक्त मोजे भी रख लिये।

यात्रा में लाठी का बड़ा सहारा होता है, परिक्रमा वासी और ग्रामीण उसे सम्मान के साथ सुखनाथ कहते हैं अतः बांस खेड़ी से चार लाठियां भी मैं ले आया। अब तैयारी पूरी हो गई तो मानस की चौपाई याद आ गई कि ‘अब विलंबु केहि कारन कीजै। तुरंत कपिन्ह कहुं आयसु दीजै ।।’ पर तिथि तो तय थी और हम सब 06.11.2019को हबीबगंज स्टेशन पहुंच गए वहां अचानक पूरी तैयारी के साथ प्रयास जोशी भी खड़े दिख गये, मन  प्रफुल्लित हुआ और हम सब प्रेम से गले मिले। ठीक समय पर कोई आठ बजे सोमनाथ एक्सप्रेस चार नंबर प्लेटफार्म पर आ गई। जगमोहन अग्रवाल भोपाल से गाड़ी में बैठ गये थे और हम चार हबीबगंज स्टेशन से चढ़े। शेष टिकटें भी कन्फर्म हो गई थी पर अलग-अलग कोच में। इटारसी आते आते रेलगाड़ी लगभग खाली हो गई और हम पांचों एक ही जगह बैठ गये,पूरी और आलू की सब्जी से कलेवा किया और कोई एक घंटे के विलंब से लगभग दो बजे श्रीधाम स्टेशन में उतरकर आटो रिक्शा की तलाश में लग गये।

नर्मदे हर!
©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #4 – गंगई से ब्रह्म घाट ☆ – श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण  के अंतर्गत हमने  श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने  ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा  जी और उनके साथियों द्वारा भेजे  गए  ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में  आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ  रहे होंगे।

इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण में  गंगई से ब्रह्म घाट  का यात्रा वृत्तांत। )

  ☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #4  – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ 

☆ 08.11.2019 गंगई से ब्रह्म घाट ☆
(17 किलोमीटर 26266 क़दम) 

हम सभी लोगों की परिक्रमा किसी मन्नत या जन्नत की लालसा से नहीं की जा रही है अपितु यह हिंदू जिज्ञासुओं की एक सांस्कृतिक परिक्रमा है जिसका उद्देश्य परिक्रमा की भावना, क्षेत्र, विस्तार और लक्ष्य की सीधी जानकारी संग्रहित करना है ताकि उन्हें संहिताबद्ध किया जा सके।

(नर्मदा यात्रा द्वितीय चरण का शुभारम्भ – तीसरा दिवस)

शाहपुरा के मनकेडी गाँव से दो व्यक्तियों ने आज विधिवत अखंड परिक्रमा ऊठाई है। एक की बेटी का हाथ बंदर ने चबा लिया था उसे डाक्टर ठीक  न कर सके नर्मदा मैया ने दर्शन देकर उसे आशीर्वाद दिया और बेटी का हाथ ठीक हो गया। दूसरे ने घरेलू वाद-विवाद से मुक्ति हेतु परिक्रमा व्रत लिया है। वे भिक्षा में सीधा लेकर भोजन बनाते हैं और अतिरिक्त सामग्री दान कर देते हैं। प्रतिदिन पाँच घर भिक्षा माँगते हैं। समान्यत: लोग पाप मुक्ति, मान्यता या स्वर्ग कामना से परिक्रमा करते है। बिना किसी कामना के बहुत कम लोग इस अत्यंत दुरुह यात्रा पर निकलते है।

सनातन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नर्मदा के अमरकण्टक से नेमावर के बहाव को देवी नर्मदा की देह का ऊपर का हिस्सा माना जाता है, तदानुसार नेमावर नाभिकुंड है। नेमावर को विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्मस्थान माना जाता है। इसका मतलब हुआ कि ऋषि जमदग्नि और रेणुका का आश्रम नेमावर में रहा होगा। भृगु, मार्कंडे, वशिष्ठ, कौंडिल्य, पिप्पल, कर्दम, सनत्कुमार अत्रि नचिकेता, कश्यप, कपिल जैसे अनेकों सनातन ऋषियों के आश्रम जबलपुर के भेड़ाघाट से नेमावर के बीच रहे हैं जहाँ वेदों का पठन-पाठन, उपनिषद, अरण्यकों, ब्राह्मण ग्रंथों और पुराणों के साथ स्मृतियों का लेखन कार्य उन ऋषि आश्रमों में हुआ है।

आर्य-अनार्य सिद्धांत को ठीक माने तो आर्यों के आगमन के बाद से अनार्य याने असुर विन्ध्याचल और सतपुडा पर्वतों के बीच सघन जंगलों में प्रवाहित सदानीरा नर्मदा के किनारों बस गए थे। उत्तर भारत का इलाक़ा उन्होंने आर्यों के लिए छोड़ दिया था। नरसिंहपुर के नृसिंह मंदिर में भगवान नरसिंह की  मूर्ति प्रह्लाद ने स्थापित की थी। इसी क्षेत्र में हिरण्यकश्यप का राज्य था, शोणितपुर अर्थात वर्तमान सोहागपुर में प्रह्लाद की एक बहन के पुत्र बाणासुर की राजधानी थी। देवासुर संग्राम के पूर्व देवताओं ने ब्रह्मकुण्ड में शिव आराधना की थी। गराडू घाट पर गरूँड़ पर गरूँड़ ने युद्ध काल में तपस्या की थी। नर्मदा की परिक्रमा में इन सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा हो जाती है।

जयचंद विद्यालंकार के कालबद्ध पौराणिक इतिहास लेखन के बाद से पौराणिक साहित्य को हिंदुओं का ऐतिहासिक साहित्य माना जाने लगा है। नर्मदा घाटी का भेड़ाघाट से नेमावर का क्षेत्र देव-असुर संग्राम का साक्षी रहा है। 08.11.2019 गंगई से ब्रह्म घाट

तक की अबतक की सबसे दुरुह पदयात्रा की। रास्ता बहुत ख़राब कही कीचड़, कहीं नुकीले पत्थर और कहीं रेत के  अलावा कटे किनारे जानलेवा हो सकते थे। सुबह आठ बजे आश्रम के स्वामी धुरंधर बाबा से विदा लेकर नर्मदा किनारे-किनारे चल पड़े। क़रीबन तीन किलोमीटर चलकर मुआर घाट पहुँचे, मान्यता है कि दुर्गा देवी ने भेंसासुर का वध इसी घाट पर किया था। उस दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारस थी और आज भी वही ग्यारस पड़ी। घाट पर स्नान चल रहा था, हम सभी ने भी स्नान किए और जो कुछ चना-चबैना था उसे ग्रहण किया। घाट पर चार व्यक्ति अखंड परिक्रमा उठा रहे थे उनके परिजन उन्हें छोड़ने आए थे। आज कई लोग दोनों किनारे के घाटों से परिक्रमा उठा रहे थे शाम के चार बजे तक सफ़ेद कपड़ों में क़तारबद्ध होकर परिक्रमा वासी चल पड़े, नर्मदा के सौंदर्य में चार चाँद लग गए।

ब्रह्म घाट पर एक 93 वर्षीय बुज़ुर्ग लक्वाग्रस्त पत्नी सहित मिले, वे बड़ी आत्मीयता से पत्नी सेवा में रत हैं। उनके दालान ने ठिकाना जमाया, वे भोजन सामग्री देने को तत्पर थे बनाना हमें था परंतु थकान से शरीर टूट रहे थे। एक पंडित जी के घर से तीस रोटी और आलू की सब्ज़ी का ठेका तीन सौ रुपयों में तय हुआ और सुबह से ख़ाली पेट भर गए।

© श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)

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