श्री अरुण कुमार डनायक

 

(ई- अभिव्यक्ति में हमने सुनिश्चित किया था कि इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के सन्दर्भ में हमने कुछ कड़ियाँ श्री सुरेश पटवा जी एवं श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से आप तक  पहुंचाई ।  हमें प्रसन्नता है कि यात्रा की समाप्ति पर श्री अरुण जी ने तत्परता से नर्मदा यात्रा  के द्वितीय चरण की यात्रा का वर्णन दस कड़ियों में उपलब्ध करना प्रारम्भ कर दिया है । उनकी विगत दो कड़ियाँ आप निम्न लिंक पर पढ़ सकते हैं :-

  1. हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण  – श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से ☆ – अरुण कुमार डनायक  (3 नवम्बर 2019) http://bit.ly/2Nd143o
  2. हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #2 – श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से ☆ – अरुण कुमार डनायक (5 नवम्बर 2019) http://bit.ly/2oOausH

श्री अरुण कुमार डनायक जी द्वारा इस यात्रा का विवरण अत्यंत रोचक एवं उनकी मौलिक शैली में हम आज से दस अंकों में आप तक उपलब्ध करा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह यात्रा हमारे वरिष्ठ नागरिक मित्रों द्वारा उम्र के इस पड़ाव पर की गई है जिसकी युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती। आपको भले ही यह यात्रा नेपथ्य में धार्मिक लग रही हो किन्तु प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक मित्र का विभिन्न दृष्टिकोण है। हमारे युवाओं को निश्चित रूप से ऐसी यात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिए और फिर वे ट्रैकिंग भी तो करते हैं तो फिर ऐसी यात्राएं क्यों नहीं ?  आप भी विचार करें। इस श्रृंखला को पढ़ें और अपनी राय कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। )

ई-अभिव्यक्ति की और से वरिष्ठ यात्री मित्र दल को नर्मदा परिक्रमा के दूसरे चरण की सफल यात्रा पूर्ण करने के लिए शुभकामनाएं। 

☆हिंदी साहित्य – यात्रा-संस्मरण  ☆ नर्मदा परिक्रमा – द्वितीय चरण # एक ☆ – श्री अरुण कुमार डनायक ☆

गत वर्ष  13 से 17अक्टूबर की यात्रा के बाद हम सभी वर्ष पर्यन्त नर्मदा परिक्रमा की योजना बनाते रहे पर भौतिक जगत की आपाधापी और किसी न किसी बहाने के कारण  यात्रा  की तिथियां निर्धारित न की जा सकी। अंततः यह तय हुआ कि इस वर्ष एकादशी के आसपास पुनः परिक्रमा में चला जाय और झांसी घाट खमरिया से, जहां हमने पिछली यात्रा समाप्त की थी, सांडिया तक की कोई दो सौ किमी से अधिक की यात्रा पन्द्रह दिनों में पूरी कर नरसिंहपुर जिले  होते हुये दूधी नदी को पार कर होशंगाबाद जिले में प्रवेश किया जाय। जब मैंने और सुरेश पटवा ने आपस में चर्चा कर योजना बना ली तो हमारा नर्मदा परिक्रमा वाला निष्क्रिय व्हाट्स ऐप ग्रुप पुनः सक्रिय हो गया। सूचनाओं का आदान-प्रदान किया गया और 04.11.2019को यात्रा प्रारंभ करने का निश्चय किया गया पर अचानक सुरेश पटवा के यहां कुछ पारिवारिक कार्यक्रम आ गया और मुझे भी तीन तारीख को हिन्दी भवन द्वारा सम्मानित किया जाना था सो यात्रा  06.11.2019 से  18.11.2019 के बीच किया जाना तय हो गया।

जैसे ही तिथियों की घोषणा हुई सबसे पहले तेहत्तर वर्षीय  श्री जगमोहन अग्रवाल ने अपनी सहमति दी और बरमान में अपने साढू भाई तथा अपने पैत्रिक गांव  कौन्डिया में एक-एक रात विश्राम का आग्रह  भी कर डाला। फिर 62वर्षीय  एडव्होकेट मुंशीलाल पाटकर की खबर आ गई कि वे भी चलेंगे। भाई अविनाश दबे को एक विवाह में जाना था सो उन्होंने आगे बरमान में 12.11.2019  को सम्मिलित होने की स्वीकृति दी। हम पांच तो तैयार थे पर प्रयास जोशी की कोई खबर न थी। अतः दिंनाक 06.11.2019को सोमनाथ एक्सप्रेस से आरक्षण करवाने की जिम्मेदारी मुझे दी गई और मैंने भी तत्काल हम चार लोगों की टिकिट बुक करा दी,  कोच नंबर एस-4की बर्थ सात कन्फर्म बाकी सब प्रतीक्षा सूची में। यात्रा की तैयारी में सामान कम से कम हो इस हेतु भी हम सबने आपस में तय किया कि भोजन सामग्री  साथ में  ले जाने हेतु जिम्मेदारी सभी को अलग-अलग सौंप दी जाय। मैंने चार पैकेट पूरी सब्जी के तैयार करवाये तो अग्रवालजी ने गुड़ में पगे खुरमें लाने की ठानी, पटवाजी ने सूखे मेवा खरीदें और मुंशीलाल पाटकर ने दो तीन प्रकार के नमकीन बनवा लिए।

विगत यात्रा के अनुभवों से सीख लेते हुए सामान को कम करते करते कोई इक्कीस नग तो हो ही गये। इस बार मैंने गांधी साहित्य में कुछ पतली पुस्तकें ले जाना तय किया कारण मेरे सपनों का भारत या आत्मकथा वजनी हो जाती हैं। पिछली यात्रा में एक दिन मोजे गीले  हो गये थे सो मैंने जूते बिना जुराबों के ही पहन लिये नतीजा पैरों में छाले हो गये, अतः इस बार एक जोड़ा अतिरिक्त मोजे भी रख लिये।

यात्रा में लाठी का बड़ा सहारा होता है, परिक्रमा वासी और ग्रामीण उसे सम्मान के साथ सुखनाथ कहते हैं अतः बांस खेड़ी से चार लाठियां भी मैं ले आया। अब तैयारी पूरी हो गई तो मानस की चौपाई याद आ गई कि ‘अब विलंबु केहि कारन कीजै। तुरंत कपिन्ह कहुं आयसु दीजै ।।’ पर तिथि तो तय थी और हम सब 06.11.2019को हबीबगंज स्टेशन पहुंच गए वहां अचानक पूरी तैयारी के साथ प्रयास जोशी भी खड़े दिख गये, मन  प्रफुल्लित हुआ और हम सब प्रेम से गले मिले। ठीक समय पर कोई आठ बजे सोमनाथ एक्सप्रेस चार नंबर प्लेटफार्म पर आ गई। जगमोहन अग्रवाल भोपाल से गाड़ी में बैठ गये थे और हम चार हबीबगंज स्टेशन से चढ़े। शेष टिकटें भी कन्फर्म हो गई थी पर अलग-अलग कोच में। इटारसी आते आते रेलगाड़ी लगभग खाली हो गई और हम पांचों एक ही जगह बैठ गये,पूरी और आलू की सब्जी से कलेवा किया और कोई एक घंटे के विलंब से लगभग दो बजे श्रीधाम स्टेशन में उतरकर आटो रिक्शा की तलाश में लग गये।

नर्मदे हर!
©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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