हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 33 ☆ मुक्तक ।। यहीं इसी धरती को हमें, स्वर्ग बनाना है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में एक भावप्रवण मुक्तक ।। यहीं इसी धरती को हमें, स्वर्ग बनाना है।। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 33 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। यहीं इसी धरती को हमें, स्वर्ग बनाना है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆ 

[1]

हो विरोध कटुता फिर बात प्यार की नहीं होती।

हो मतभेद मनभेद तो बात इकरार की नहीं होती।।

जब दिल का कोना कोना नफरत में लिपटता है।

तो कोई बात आपस में सरोकार की नहीं होती।।

[2]

हम भूल जाते कोई अमर नहीं एक दिन जाना है।

जाकर प्रभु से कर्मों का खाता जंचवाना है।।

ऊपर जाकर स्वर्ग नरक चिंता मत करो अभी।

हो तेरी कोशिश हर क्षण यहीं स्वर्ग बनाना है।।

[3]

एक ही मिला जीवन कि बर्बाद नहीं करना है।

मन में नकारात्मकता भाव आबाद नहीं करना है।।

चाहें सब के लिए सुख तो हम सुख ही पायेंगे।

भूल से किसी के लिए गलत फरियाद नहीं करना है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – वर्जनाएँ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

श्रीगणेश साधना कल सम्पन्न हुई। अगली साधना के लिए समय पूर्व आपको जानकारी प्रदान की जवेगी।  

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – वर्जनाएँ  ??

इस रचना की दृष्टश्रव्य प्रस्तुति >> वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं शब्द- संजय भारद्वाज  स्वर- सतीश कुमार

ऊहापोह में बीत गया समय,

पाप-पुण्य की परिभाषाएँ,

जीवन भर मन मथती रहीं,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं…

 

इक पग की दूरी पर था जो,

आजीवन पा न सके वो,

पग-पग साँकल कसती रही,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं…

 

जाने कितनी उत्कंठाएँ,

जाने कितनी जिज्ञासाएँ,

अबूझ जन्मीं, अबूझ मरती रहीं,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं…

 

सीमित जीवन, असीम इच्छाएँ,

पूर्वजन्म, पुनर्जन्म की गाथाएँ,

पल-पल जीवन हरती रहीं,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं…

 

साँसों पर है जीवन टिका,

हर साँस में इक जीवन बसा,

साँस-साँस पर घुटती रही,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं…

 

अवांछित ठुकरा कर देखो,

अपनी तरह जीकर देखो,

चकमक में आग छुपी रही,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं.!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 99 ☆ ’’हे नाथ तुम्हीं जग के स्वामी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “कल्पना का संसार…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 99 ☆ गज़ल – कल्पना का संसार” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मनुज मन को हमेशा कल्पना से प्यार होता है

बसा उसके नयन में एक सरस संसार होता है।

जिसे वह खुद बनाता है, जिसे वह खुद सजाता है

कि जिसका वास्तविकता से अलग आकार होता है।

जहाँ हरयालियां होती, जहाँ फुलवारियां होती

जहाँ रंगीनियों से नित नया अभिसार होता है।

जहाँ कलियां उमगतीं है जहाँ पर फूल खिलते हैं

बहारों से जहाँ मौसम सदा गुलजार होता है।

जहाँ पर पालतू बिल्ली सी खुशियां लोटती पग पै

जहाँ पर रेशमी किरणों का वन्दनवार होता है।

अनोखी होती है दुनियां सभी की कल्पनाओं की

जहाँ संसार पै मन का मधुर अधिकार होता है।

जहाँ सब होते भी सच में कहीं कुछ भी नहीं होता

मगर सपनों में बस सुख का सुखद संचार होता है।      

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार # 106 – लक्ष्मी नारायण और स्वर्ग ☆ श्री आशीष कुमार ☆

श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। 

अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से  सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से  बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)

☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #106  🌻 लक्ष्मी नारायण और स्वर्ग 🌻 ☆ श्री आशीष कुमार

लक्ष्मी नारायण बहुत भोला लड़का था। वह प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी दादी से कहानी सुनाने को कहता था। दादी उसे नागलोक, पाताल, गन्धर्व लोक, चन्द्रलोक, सूर्यलोक आदि की कहानियाँ सुनाया करती थी।

एक दिन दादी ने उसे स्वर्ग का वर्णन सुनाया। स्वर्ग का वर्णन इतना सुन्दर था कि उसे सुनकर लक्ष्मी नारायण स्वर्ग देखने के लिये हठ करने लगा। दादी ने उसे बहुत समझाया कि मनुष्य स्वर्ग नहीं देख सकता, किन्तु लक्ष्मीनारायण रोने लगा। रोते- रोते ही वह सो गया।

उसे स्वप्न में दिखायी पड़ा कि एक चम-चम चमकते देवता उसके पास खड़े होकर कह रहे हैं- बच्चे ! स्वर्ग देखने के लिये मूल्य देना पड़ता है। तुम सरकस देखने जाते हो तो टिकट देते हो न? स्वर्ग देखने के लिये भी तुम्हें उसी प्रकार रुपये देने पड़ेंगे।

स्वप्न में लक्ष्मीनारायण सोचने लगा कि मैं दादी से रुपये माँगूँगा। लेकिन देवता ने कहा- स्वर्ग में तुम्हारे रुपये नहीं चलते। यहाँ तो भलाई और पुण्य कर्मों का रुपया चलता है।

अच्छा, काम करोगे तो एक रुपया इसमें आ जायगा और जब कोई बुरा काम करोगे तो एक रुपया इसमें से उड़ जायगा। जब यह डिबिया भर जायगी, तब तुम स्वर्ग देख सकोगे।

जब लक्ष्मीनारायण की नींद टूटी तो उसने अपने सिरहाने सचमुच एक डिबिया देखी। डिबिया लेकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उस दिन उसकी दादी ने उसे एक पैसा दिया। पैसा लेकर वह घर से निकला।

एक रोगी भिखारी उससे पैसा माँगने लगा। लक्ष्मीनारायण भिखारी को बिना पैसा दिये भाग जाना चाहता था, इतने में उसने अपने अध्यापक को सामने से आते देखा। उसके अध्यापक उदार लड़कों की बहुत प्रशंसा किया करते थे। उन्हें देखकर लक्ष्मीनारायण ने भिखारी को पैसा दे दिया। अध्यापक ने उसकी पीठ ठोंकी और प्रशंसा की।

घर लौटकर लक्ष्मीनारायण ने वह डिबिया खोली, किन्तु वह खाली पड़ी थी। इस बात से लक्ष्मी नारायण को बहुत दुःख हुआ। वह रोते- रोते सो गया। सपने में उसे वही देवता फिर दिखायी पड़े और बोले- तुमने अध्यापक से प्रशंसा पाने के लिये पैसा दिया था, सो प्रशंसा मिल गयी।

अब रोते क्यों हो ? किसी लाभ की आशा से जो अच्छा काम किया जाता है, वह तो व्यापार है, वह पुण्य थोड़े ही है। दूसरे दिन लक्ष्मीनारायण को उसकी दादी ने दो आने पैसे दिये। पैसे लेकर उसने बाजार जाकर दो संतरे खरीदे।

उसका साथी मोतीलाल बीमार था। बाजार से लौटते समय वह अपने मित्र को देखने उसके घर चला गया। मोतीलाल को देखने उसके घर वैद्य आये थे। वैद्य जी ने दवा देकर मोती लाल की माता से कहा- इसे आज संतरे का रस देना।

मोतीलाल की माता बहुत गरीब थी। वह रोने लगी और बोली- ‘मैं मजदूरी करके पेट भरती हूँ। इस समय बेटे की बीमारी में कई दिन से काम करने नहीं जा सकी। मेरे पास संतरे खरीदने के लिये एक भी पैसा नहीं है।’

लक्ष्मीनारायण ने अपने दोनों संतरे मोतीलाल की माँ को दिये। वह लक्ष्मीनारायण को आशीर्वाद देने लगी। घर आकर जब लक्ष्मीनारायण ने अपनी डिबिया खोली तो उसमें दो रुपये चमक रहे थे।

एक दिन लक्ष्मीनारायण खेल में लगा था। उसकी छोटी बहिन वहाँ आयी और उसके खिलौनों को उठाने लगी। लक्ष्मीनारायण ने उसे रोका। जब वह न मानी तो उसने उसे पीट दिया।

बेचारी लड़की रोने लगी। इस बार जब उसने डिबिया खोली तो देखा कि उसके पहले के इकट्ठे कई रुपये उड़ गये हैं। अब उसे बड़ा पश्चाताप हुआ। उसने आगे कोई बुरा काम न करने का पक्का निश्चय कर लिया।

मनुष्य जैसे काम करता है, वैसा उसका स्वभाव हो जाता है। जो बुरे काम करता है, उसका स्वभाव बुरा हो जाता है। उसे फिर बुरा काम करने में ही आनन्द आता है। जो अच्छा काम करता है, उसका स्वभाव अच्छा हो जाता है। उसे बुरा काम करने की बात भी बुरी लगती है।

लक्ष्मीनारायण पहले रुपये के लोभ से अच्छा काम करता था। धीरे- धीरे उसका स्वभाव ही अच्छा काम करने का हो गया। अच्छा काम करते- करते उसकी डिबिया रुपयों से भर गयी। स्वर्ग देखने की आशा से प्रसन्न होता, उस डिबिया को लेकर वह अपने बगीचे में पहुँचा।

लक्ष्मीनारायण ने देखा कि बगीचे में पेड़ के नीचे बैठा हुआ एक बूढ़ा साधु रो रहा है। वह दौड़ता हुआ साधु के पास गया और बोला- बाबा ! आप क्यों रो रहे है? साधु बोला- बेटा जैसी डिबिया तुम्हारे हाथ में है, वैसी ही एक डिबिया मेरे पास थी। बहुत दिन परिश्रम करके मैंने उसे रुपयों से भरा था।

बड़ी आशा थी कि उसके रुपयों से स्वर्ग देखूँगा, किन्तु आज गंगा जी में स्नान करते समय वह डिबिया पानी में गिर गयी। लक्ष्मी नारायण ने कहा- बाबा ! आप रोओ मत। मेरी डिबिया भी भरी हुई है। आप इसे ले लो।

साधु बोला- तुमने इसे बड़े परिश्रम से भरा है, इसे देने से तुम्हें दुःख होगा। लक्ष्मी नारायण ने कहा- मुझे दुःख नहीं होगा बाबा ! मैं तो लड़का हूँ। मुझे तो अभी बहुत दिन जीना है। मैं तो ऐसी कई डिबिया रुपये इकट्ठे कर सकता हुँ। आप बूढ़े हो गये हैं। आप मेरी डिबिया ले लीजिये।

साधु ने डिबिया लेकर लक्ष्मीनारायण के नेत्रों पर हाथ फेर दिया। लक्ष्मीनारायण के नेत्र बंद हो गये। उसे स्वर्ग दिखायी पड़ने लगा। ऐसा सुन्दर स्वर्ग कि दादी ने जो स्वर्ग का वर्णन किया था, वह वर्णन तो स्वर्ग के एक कोने का भी ठीक वर्णन नहीं था।

जब लक्ष्मीनारायण ने नेत्र खोले तो साधु के बदले स्वप्न में दिखायी पड़ने वाला वही देवता उसके सामने प्रत्यक्ष खड़ा था। देवता ने कहा- बेटा ! जो लोग अच्छे काम करते हैं, उनका घर स्वर्ग बन जाता है। तुम इसी प्रकार जीवन में भलाई करते रहोगे तो अन्त में स्वर्ग में पहुँच जाओगे।’ देवता इतना कहकर वहीं अदृश्य हो गये।

© आशीष कुमार 

नई दिल्ली

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

Please share your Post !

Shares

ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (12 सितंबर से 18 सितंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (12 सितंबर से 18 सितंबर 2022) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

मेरा कहना है कि आप अपने भाग्य को कभी भी दोषी ना कहें क्योंकि यह मानव शरीर आपके बड़े भाग्य से मिला है। तुलसीदास जी ने भी कहा है “बड़े भाग मानुष तन पावा” । परंतु यह भी सही है कि कभी भाग्य आपके साथ होता है और कभी नहीं होता है । 12 सितंबर से 18 सितंबर 2022 अर्थात विक्रम संवत 2079 शक संवत 1944 के अश्वनी कृष्ण पक्ष की द्वितीया से अश्वनी कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक के सप्ताह में कब-कब आपका भाग्य किन किन कार्यों में आपकी मदद करेगा यह बताने का मैं पंडित अनिल पाण्डेय प्रयास कर रहा हूं ।

इस सप्ताह में चंद्रमा प्रारंभ में मीन राशि में रहेगा । फिर मेष और वृष में गोचर करता हुआ 17 तारीख को 3:03 रात अंत से मिथुन राशि का हो जाएगा । सूर्य प्रारंभ में सिंह राशि का रहेगा तथा 17 सितंबर को 10:46 से कन्या राशि में प्रवेश करेगा। बुध गुरु और शनि क्रमशः कन्या मीन और मकर राशि में वक्री रहेंगे । शुक्र सिंह राशि में रहेगा तथा राहु मेष राशि में वक्री रहेगा । आइए अब राशि वार साप्ताहिक राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपको अपनी संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा । आपके संतान के भाग्य में परिवर्तन आ सकता है । छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी । धन आने में कमी आएगी । शत्रुओं की संख्या में वृद्धि होगी । 13, 14 और 15 सितंबर को आप अधिकांश कार्यों में सफल रहेंगे । 12 सितंबर को आपको कोई भी कार्य सोच समझ कर करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप पूरे सप्ताह गाय को हरा चारा खिलाएं । सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके सुख में वृद्धि होगी । लोगों के बीच में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी । भाग्य थोड़ा कम साथ देगा । स्वास्थ्य भी थोड़ा बहुत खराब हो सकता है । आपको अपनी संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो सकेगा । इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 सितंबर फलदाई और लाभदायक है । 13 ,14 और 15 सितंबर को आपको सावधान रहना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें और बृहस्पतिवार को किसी को पुस्तक का दान करें । सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

आपका अपने भाइयों से अच्छा संबंध रहेगा । आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा ।
भाग्य साथ देगा । आपके शत्रुओं का पतन होगा । इस सप्ताह आपके लिए 12 और 18 सितंबर अद्भुत और आनंददायक है । 16 और 17 सितंबर को आपको कष्ट हो सकता है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शुक्रवार को मंदिर में जाकर किसी ब्राह्मण को कपड़े का दान दें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

धन आने के संभावना है । भाग्य आपका साथ दे सकता है । छोटी मोटी दुर्घटना हो सकती है । भाइयों से बुराई हो सकती है । संतान से सहयोग प्राप्त होगा । शिक्षा उत्तम चलेगी । इस सप्ताह आपके लिए 13, 14 और 15 सितंबर उत्तम है । 18 सितंबर को आप सावधान रहें । इस सप्ताह आपको चाहिए कि पूरे सप्ताह विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

सिंह राशि

आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा । आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा । अगर आप अविवाहित हैं तो विवाह संबंध आ सकते हैं । धन आने की कम संभावना है । कार्यालय में आपको असहयोग का सामना करना पड़ेगा । इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 सितंबर लाभदायक हैं । 12 सितंबर को आपको सोच समझकर कार्य करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम 3 बार हनुमान चालीसा का जाप करें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

सरकारी कार्यों में आपको इस सप्ताह सफलता मिलेगी । भाग्य कम साथ देगा । आपको शारीरिक कष्ट हो सकता है । आपके सुख में वृद्धि होगी । आप कोई सामान खरीद सकते हैं । भाइयों से संबंध ठीक रहेगा । इस सप्ताह आपके लिए 12 और 18 सितंबर उत्तम और फलदाई है । 13 ,14 और 15 सितंबर को आपको सावधान रहना है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह अपने घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें । सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का उत्तम योग है । कचहरी के कार्यों में आपको सावधान रहना चाहिए । गाड़ी चलाते वक्त आपको अत्यंत सावधान रहना चाहिए । भाइयों के साथ संबंध उत्तम रहेगा । इस सप्ताह आपके लिए 13, 14 और 15 सितंबर उत्तम और लाभप्रद है । 12 सितंबर तथा 16 और 17 सितंबर को आप को हानि हो सकती है । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह रूद्राष्टक का पाठ करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपकी शासकीय कार्यालयों में कार्यों की प्रगति अच्छी रहेगी । अगर आप अधिकारी या कर्मचारी हैं तो आपकी कार्यालयीन प्रतिष्ठा बढ़ेगी । आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में खराबी आ सकती है । धन आने की कार्यों में बाधा आएगी परंतु धन थोड़ा बहुत आएगा । सुख में कमी आएगी । 16 और 17 सितंबर को आप के अधिकांश कार्य सफल होंगे । 13 ,14 ,15 और 18 सितंबर को आपको कोई भी कार्य सावधानीपूर्वक करना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप शुक्रवार को मंदिर में जाकर भिखारियों को चावल का दान दें सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका भाग्य तीव्र गति से कार्य करेगा। कार्यालय में आपको परेशानियों का सामना करना पड़ेगा । गलत रास्ते से धन आ सकता है । शत्रु परास्त होंगे । कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है । स्वास्थ्य उत्तम रहेगा । इस सप्ताह आपके लिए 12 तथा 18 सितंबर फलदाई है । 16 और 17 सितंबर को आपको कोई भी कार्य सावधानीपूर्वक करना चाहिए । आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपको कोई भी फल की प्राप्ति परिश्रम के कारण ही होगी परिश्रम के बगैर इस सप्ताह आपको सफलता नहीं मिलेगा मिलेगी वाहन चलाते समय सावधानी बरतें । इस सप्ताह आपके लिए 13, 14 और 15 सितंबर उत्तम है 18 सितंबर को आपको सचेत रहना चाहिए । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप भगवान शिव का अभिषेक करवाएं और प्रतिदिन स्वयं भी अभिषेक करें । सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

आपके जीवन साथी को सफलता का योग है । आपका भी स्वास्थ्य ठीक रहेगा । भाग्य आपका साथ देगा । व्यापार में कमी आएगी। धन आने का सामान्य योग है । इस सप्ताह आपके लिए 16 और 17 सितंबर लाभकारी हैं । इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप बृहस्पतिवार का व्रत करें तथा मंदिर में जाकर पूजन करें । सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

आपके स्वास्थ्य में थोड़ी खराबी आ सकती है । भाइयों के साथ संबंध खराब होंगे । भाग्य आपका साथ देगा । नए शत्रु बनेंगे । इस सप्ताह आपके लिए 12 और 18 सितंबर शुभ और लाभकारी है। 13, 14 और 15 सितंबर को आपको सावधान रहना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह शनिवार का व्रत करें उसी दिन शनिदेव की पूजा भी करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

देश का राजनीतिक परिदृश्य बहुत गर्म हो रहा है । आप सभी से अनुरोध है कि इस संबंध में अगर आप कोई जानकारी चाहते हैं कोई भविष्यफल जानना चाहते हैं तो कृपया मेरे मोबाइल नंबर 8959 594400 पर व्हाट्सएप करके बता दें । मैं गणना करके फल आपको बताने का प्रयास करूंगा ।

मैं शारदा माँ से प्रार्थना करता हूं कि आप सभी स्वस्थ, सुखी और सानंद रहें। जय मां शारदा।

राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ उमेद— ☆ प्रस्तुती – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? कवितेचा उत्सव ?

☆ उमेद— ☆ प्रस्तुती – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे☆

रोजचा दिवस नवा, रोजची रात्रही नवी 

रोज नव्याने उगवायची रहात नाही 

तसंच अगदी तसंच — मीही रोज नव्याने जगणं सोडत नाही —

 

थंडीचा जाच, उन्हाचा कांच, पावसाचं झोडपणं संपत नाही 

पण म्हणून दिवस-रात्र उगवायचे थांबत नाहीत 

अन मीही रोज नव्याने जगणं सोडत नाही —

 

किती दुःखं अन किती सुखं, रहाटगाडग्याची ही गाडगी 

पण दुःखानंतर सूखच येणार, देवाकडेही पर्याय नाही 

म्हणूनच रोज नव्याने जगणं, मी काही सोडत नाही —

 

व्याप-ताप-काळज्या-प्रश्न, मागेमागेच करत असतात 

सारखं लक्ष वेढ्यात असतात, पण मी दखल त्यांची घेतच नाही 

अन रोज नव्याने जगणं मी काही थांबवत नाही —

 

रुसणं-फुगणं-मानापमान, अन धुसफूस-कुरकुर-कुरबुर करणं 

माणसं काही थांबवत नाहीत, पण त्यानेही माझं भान सुटत नाही 

आणि माझं रोज नव्याने जगणं, मी काही सोडत नाही —

 

दुखणं,यातना अन सारख्याच वेदना, या ना त्या अवयवाची सततची काही याचना 

पण त्यांचे लाड पुरवतांना, मी मुळी कधी थकतच नाही 

आणि रोज नव्याने जगणं, मी काही थांबवत नाही —

 

सोबतीचे सख्खे सांगाती अचानक हात सोडून जातात, दुःख मागे ठेवून जातात 

पण माझ्या मनातल्या त्यांच्या अढळ स्थानाला, तेही धक्का लावू शकत नाहीत 

म्हणूनच मग मीही पुन्हा रोज नव्याने जगणं थांबवत नाही —

 

माहितीये आज ना उद्या जायचंच आहे, जे अटळ आहे ते टळणार नाही 

पण त्या अटळ उद्यासाठी, मी आजच रडायला लागणार नाही 

अन तो दिवस उगवेपर्यंत, माझं रोजचं फुलणं मी सोडणार नाही 

— अन तोपर्यंत माझं रोज नव्याने जगणं मी थांबवणार नाही 

— माझं रोज नव्याने जगणं मी कधीच सोडणार नाही …

 

©  मंजुषा सुनीत मुळे

९८२२८४६७६२

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 119 – बाळ गीत – चिऊ ताईचे बाळ ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे ☆

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

? कवितेचा उत्सव ?

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 119  – बाळ गीत – चिऊ ताईचे बाळ 

चिऊ ताईचे चिमणे बाळ

चिव् चिव् बोले।

काग आई आज तुझे

डोळे असे ओले।

चिऊ ताईचा कंठ आज

थरथरू लागला ।

काय सांगू बाळा माझा

जीव तुझ्यात गुंतला।

काडी काडी जमवून

आम्ही, घरटे बांधले ।

कापसाचे मऊ मऊ

गालिचेही सजले।

बाळा तुझ्या येण्याने

घरटे आनंदले ।

तुझ्या हस्यामध्ये माझे

दुःख सुारे विरले।

कण कण टिपून तुला

प्रेमे वाढविले।

आकाश पेलणारे सुंदर

पंख तुला फुटले।

बाळा उंच आकाशी

भरारी घेशील।

रंगीबेरंगी स्वप्नांच्या

रगात रंगून जाशील।

तुझ्याविना बाळा पुन्हा

घरटे सुने होईल।

आठवणीने जीव कसा

कासावीस होईल।

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – विविधा ☆ आईचा उपदेश… ☆ सौ.रोहिणी अमोल पराडकर ☆

? विविधा ?

☆ आईचा उपदेश ☆ सौ.रोहिणी अमोल पराडकर ☆

सासरी जाणाऱ्या मुलीला आईने काय समजवावे

सासरी जाणारी मुलगी आईला विचारते की, “आई, नक्की कशी वागु गं मी सासरी????”

आई म्हणते की, तुझ्या वहिनीने तुझ्या आईवडिलांशी जसे वागावे, असे तुला मनापासून वाटते. त्याहुन चांगली तू  तुझ्या सासरच्या मंडळींशी वाग!!

सासरी जाणाऱ्या मुलीला आईने काय समजवावे ?

“सासर हेच तुझ घर आहे. तिकडच्या कुरबुरी आम्हांला सांगत बसू नकोस. तुझ्या बहिण भावंडांना चॅट किंवा सतत फोन करायचा नाही. पूर्वी पत्र हा एकमेव दुवा होता. सासर व माहेर मध्ये त्यावेळी मुली कशा सासरी साखरेच्या पाकाप्रमाणे मिसळून जात होत्या त्यांचा आदर्श ठेव. त्या कमवत नव्हत्या पण माणस नातेवाईक जोडत होत्या.

तुम्ही आज कालच्या मुली खूप शिकलात, गलेलठ्ठ पगार हातात पैसा खेळतो. त्यामुळे तुमची जनरेशन आमची जनरेशन……. वडिलधार्‍यांशी भांडण करणं त्यांना तुच्छ लेखण असे प्रकार तुझ्याकडून होता कामा नये.

माहेर आता हे तुझं पाहुण्यांचे घर आहे असं समज. चार दिवसासाठी ये पाहुणी म्हणून रहा आणि निघून जा…….” हे निक्षुन सांगायला हवे,

मुलगी सासरी गेल्यानंतर माप ओलांडून घरात प्रवेश केल्यावर तिच्या आईचा लगेच फोन येतो काय गं कशी आहेस? आठवण येते का? असे विचारणा सतत होत असते. काय खाल्लं? काय करते? सासू काय करते? कामाला मदत करते का? अशा फालतू गोष्टींची विचारणा वारंवार होत असते. त्यामुळे मुलगी  बिथरते. तिला कळत नाही की आपण कसे वागावे? आपली काय जबाबदारी आहे? हळूहळू भांडण वाढू लागतात आणि घटस्फोटापर्यंत पाळी येते. याला जबाबदार सर्वस्वी मुलीची आईच जबाबदार असते.

आईने निक्षून सांगितले की…….

आधुनिक तंत्रज्ञान, प्रगत तंत्रज्ञान याचा दुरुपयोग करू नको. विनाकारण रोज रोज मला फोन करू नको. आमच्या घरात म्हणजेच तुझ्या माहेरी तू लक्ष घालू नकोस. आम्ही सक्षम आहोत. आमच आम्ही बघून घेऊ सासर हेच तुझं घर आहे. त्या घरात तू प्रामाणिक व आपुलकीने वाग. सासु-सासर्‍यांना आई-वडील समज त्यांचा योग्य तो मान ठेव. कारण भविष्यात तुला ही कोणाचे ना कोणाचे तरी सासू व्हायचा आहे. त्यांच्या मुलाला त्यांच्यापासून तोडू नकोस. त्याचे परिणाम तुझ्या मुलांवर होतील तेही तुझ्याशी मग असेच वागतील. आपल्या मुलाने आपल्याशी कसं वागावं? असे  तुला वाटते तसेच आपण सासरी वागावे. टीव्ही सिरीयल बघून मनात भलते-सलते विचार आणू नकोस. ते सर्व क्षणिक आणि फसवे असते हे लक्षात ठेव.  एवढी शिकलेली मुलगी तुझ्या शिक्षणाचा व प्रगल्भतेचा वापर  कर. अंगी नम्रपणा व शालीनता बाळगून तो दाखवून दे. जितका गलेलठ्ठ पगार तितकीच गलेलठ्ठ मनावर रुजलेली संस्कृती आहे हेच दाखव. आईवडिलांचं नाव नक्कीच तुझ्या सासरी आदराने घेतलं जाईल. आम्ही मुलगी म्हणून तुझे लाड जसे केले तसेच लाड सासरी होतील. आपल्या शब्दात गोड स्वर मिसळ.

मैत्रिणींमध्ये टेंबा मिरवण्यासाठी माझ्या नवऱ्याचं नाक माझ्या मुठीत आहे. तो माझ्या शब्दाबाहेर नाही असं दाखवण्यासाठी रोज त्याच्याकडे फालतू हट्ट करू नकोस. घरात स्वच्छता टापटीपपणा ठेव. दुसऱ्याने कामाला मदत करावी अशी अपेक्षा न बाळगता स्वतः काम करावे. मग तोच आपल्या मदतीला पुढे येईल रोज सकाळ-संध्याकाळ देवाला दिवा लावुन नमस्कार कर.

अशा गोष्टी जर प्रत्येक आईने आपाल्या मुलीला शिकवल्या, तर कोर्टात दाखल होणाऱ्या पती-पत्नींमधील खटल्यांची संख्या आणि पोलिस स्टेशनला 498-अ प्रमाणे दाखल होणाऱ्या बहुतांशी खोट्या तक्रारींची संख्या, जी दिवसेंदिवस मारुतीच्या शेपटासारखी वाढत चाललीय, ती निश्चितपणे कमी होईल, होईल. अस माझ सोज्वळ मत आहे.

© सौ. रोहिणी अमोल पराडकर

कोल्हापूर  

भ्रमणध्वनी – 8208890678

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – जीवनरंग ☆ परिधि… – सुश्री मीरा जैन ☆ (भावानुवाद) सौ. उज्ज्वला केळकर ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

?जीवनरंग ?

☆ परिधि… – सुश्री मीरा जैन ☆ (भावानुवाद) सौ. उज्ज्वला केळकर

सुश्री मीरा जैन

यवेळी गगनने आपली मैत्रिण श्रुती हिच्याबरोबर व्हॅलेंटाईन डे साजरा करायचा ठरवला. व्हॉट्स् अॅ पवर त्याने श्रुतीला मेसेज केला, `तुझी इच्छा असेल, तर आपण आज लाँग ड्रईव्हला जाऊ.’

श्रुतीने सहर्ष मान्यता दिली. थोड्याच वेळात दोघे लाँग ड्रईव्हवर निघाले. झाडा-झुडपांमधून गेलेला शांत, निवांत रस्ता, रस्त्यावरून सरपटणारी लक्झरी कार,  रोमँटिक गाणी,  मनातही रोमान्स चरम सीमेवर… अशात श्रुती अचानक म्हणाली, `गगन चल, परत जाऊ या.’

आश्चर्याने गगनने विचारले, `का ग? अद्याप आपण अर्धा प्रवाससुद्धा केलेला नाही.’

श्रुती हळुवारपणे म्हणाली, `मला वाटत नाही,  हा प्रवास पूर्ण व्हावा.’

तिच्या कानात आईचं बोलणं गुंजत होतं. जेव्हा ती नटून-थटून घरातून बाहेर पडताना आईला म्हणाली होती,  `आई मी जातेय.’  तेव्हा आईने तिला हे विचारलं नाही की कुठे चाललीयस?  तिचे एकंदर हाव-भाव बघून एवढंच म्हणाली, `इतकीही दूर जाऊ नकोस  की जिथून परतणं मुश्कील होईल.’

मूळ हिन्दी कथा – परिधि – मूळ लेखिका – सुश्री मीरा जैन

अनुवाद – सौ. उज्ज्वला केळकर

संपर्क – 176/2 ‘गायत्री’, प्लॉट नं 12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ, सांगली 416416 मो.-  9403310170

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – मनमंजुषेतून ☆ तटस्थता…लेखक – अज्ञात ☆ संग्राहक – श्री माधव केळकर ☆

? मनमंजुषेतून ?

 ☆ तटस्थता… लेखक – अज्ञात ☆ संग्राहक – श्री माधव केळकर ☆ 

वयाच्या एका टप्प्यावर माणसाला तटस्थता येते. आयुष्यभर माणसांचे, नातेवाईकांचे, मित्रमैत्रिणींचे अनुभव घेऊन प्रगल्भता आलेली असते किंवा ती येते. प्रत्येक गोष्टीकडे, घटनेकडे, प्रसंगाकडे बघण्याचा दृष्टीकोन बदलतो. घडून गेलेल्या प्रसंगाचे अवलोकन करता येते. हे खरंच घडलं का? मग घडलं तर का घडलं? आपलं काय चुकलं? ह्याचा विचार करण्याची क्षमता वाढते. माफ करण्याची  वृत्ती वाढते. साध्या साध्या गोष्टींवरून येणारा राग आता येत नाही. मनःशांती मिळायला सुरुवात होते. कशाचेही काही वाटेनासे होते. आता हे चांगले का वाईट, हे घडत असणाऱ्या गोष्टी ठरवत असतात. येणारा प्रत्येक प्रसंग किंवा घटना मनाला किती लावून घ्यायची ह्याचे जणू काही  प्रात्यक्षिकच आपल्याला मिळालेले असते. एखाद्या घटनेकडे तटस्थपणे बघता येते. आपली ह्यामध्ये काय भूमिका आहे? ती महत्वाची आहे का? आपल्या मताची गरज आहे का? हे सगळे समजून घेता येते. त्याची उत्तरे मिळत राहतात. जी उत्तरे मिळतात त्याने आपल्याला त्रयस्थपणे वागता येते.  

आता वारंवार डोळ्यात येणारे पाणी थोपवण्याची कला अवगत झालेली असते. आपले कोण परके कोण? किंवा जी आहेत ती खरंच आपली आहेत का? किंवा मग जी होती ती आपली होती का? ज्यांच्यासाठी डोळ्यात पाणी येत होतं  ती माणसे आता दुरावलेली असतात. आपल्याला  हवी तशी माणसे वागतच नाहीत हे समजायला लागतं. मग अपेक्षांचं ओझ हळूहळू कमी होत जातं आणि एक अंतर आपोआपच तयार होते. हा आलेला एकटेपणा जास्त सुंदर असतो. कुणाचेही बंधन नाही, अपेक्षा नाहीत आणि त्यामुळे होणारे दुःख नाही. त्यामुळे वागण्यातला ओलावा आपोआपच कमी होतो. बोलणे कमी होते. कर्तव्य भावनेने काही गोष्टी केल्या जातात. पण त्यातील गुंतवणूक कमी होते त्यामुळे तटस्थता येते.

आपल्या आजूबाजूचा गोतावळा आपोआप कमी होतो. आपले आपण उरत जातो आणि जग जास्त सुंदर होतं.  हा एकटेपणा जास्त सुंदर असतो. जग जास्त सुंदर दिसायला लागतं. खरं म्हणजे ते सुंदर होतंच पण आपण दुसऱ्याच्या नजरेतून बघत होतो. ही आलेली तटस्थता जगायला शिकवते. आजपर्यंत केलेल्या गोष्टी किंवा राहून गेलेल्या गोष्टी करायची एक उमेद देते. कारण आता कसलंही ओझं नसतं. कुणाकडून कसलीही अपेक्षा नसते, कोण काय म्हणेल ह्याची भीती नसते. आपण कुणाला बांधील नसतो. आपल्या कर्तव्यातून आपण मोकळे हौऊ शकत नाही, पण दूर राहून ती करू शकतो हे अनुभवायला येते. ज्या गोष्टींमध्ये विनाकारण गुंतून पडत होतो त्या गोष्टी किती फोल होत्या हे कळते. त्यामुळे आत्मपरीक्षण  केले जाते. 

नव्या आयुष्याला सुरुवात होते. आता माहित झालेलं असतं की कसं जगलं पाहिजे, काय केलं पाहिजे आणि काय केलं नाही पाहिजे. त्यामुळे आयुष्याच्या ह्या टप्प्यावर आलेली तटस्थताही छान वाटू लागते. हे ज्याला कळलं/उमगलं ती व्यक्ती खरंच भाग्यवान.

तर, काहींचे आयुष्य मात्र आम्ही अजूनही शिकतोय !— असे 

आधीच्या पिढीकडून पैसे वाचवायला शिकलो — नंतरच्या पिढीकडून पैसा वापरायला शिकतोय.

आधीच्या पिढीकडून सहवासाने नाती जपायला शिकलो – नंतरच्या पिढीकडून डिजिटली नवीन नाती जोडायला शिकतोय.

आधीच्या पिढीकडून मन मारून जगायला शिकलो –नंतरच्या पिढीकडून मन भरून जगायला शिकतोय.

आधीच्या पिढीने, Use and use more मधली उपयुक्तता शिकवली – नंतरच्या पिढीकडून Use and throw मधली नावीन्याची गंमत अनुभवायला शिकतोय.

आईकडून पिकनिकलाही घरच्या पोळीभाजीची लज्जत अनुभवायला शिकलो – मुलांकडून घरात असतांनाही पिकनिक एंजॉय करायला शिकलोय.

आधीच्या पिढीबरोबर निरांजन लावून दिवा उजळून वाढदिवस साजरा केला – नंतरच्या पिढीबरोबर मेणबत्ती विझवून अंधार करून वाढदिवस साजरा करायला लागलो.

आधीच्या पिढीने बिंबवले, घरचेच लोणी सर्वात उत्तम – नंतरची पिढी पटवून देत आहे, अमूल बटरला पर्याय नाही‌.

थोडक्यात काय, आधीच्या पिढीने शिकवले, अधिक वर्षे कसे जगायचे ते —

तर नंतरची पिढी शिकवत आहे, मरणापर्यंत आनंद घेत कसं जगायचं ते !!

— दोन्हीच कॉकटेल बनवलं तर आयुष्य किती मजेदार असेल…

लेखक – अज्ञात 

प्रस्तुती – श्री माधव केळकर

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

Please share your Post !

Shares
image_print