श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

आज की साधना

श्रीगणेश साधना कल सम्पन्न हुई। अगली साधना के लिए समय पूर्व आपको जानकारी प्रदान की जवेगी।  

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – वर्जनाएँ  ??

इस रचना की दृष्टश्रव्य प्रस्तुति >> वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं शब्द- संजय भारद्वाज  स्वर- सतीश कुमार

ऊहापोह में बीत गया समय,

पाप-पुण्य की परिभाषाएँ,

जीवन भर मन मथती रहीं,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं…

 

इक पग की दूरी पर था जो,

आजीवन पा न सके वो,

पग-पग साँकल कसती रही,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं…

 

जाने कितनी उत्कंठाएँ,

जाने कितनी जिज्ञासाएँ,

अबूझ जन्मीं, अबूझ मरती रहीं,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं…

 

सीमित जीवन, असीम इच्छाएँ,

पूर्वजन्म, पुनर्जन्म की गाथाएँ,

पल-पल जीवन हरती रहीं,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं…

 

साँसों पर है जीवन टिका,

हर साँस में इक जीवन बसा,

साँस-साँस पर घुटती रही,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं…

 

अवांछित ठुकरा कर देखो,

अपनी तरह जीकर देखो,

चकमक में आग छुपी रही,

वर्जनाएँ द्वार बंद करती रहीं.!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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अलका अग्रवाल

मर्मस्पर्शी कविता।