☆ कावळा— लेखक :पु. ल. देशपांडे ☆ प्रस्तुती – श्री अमोल अनंत केळकर ☆
पाळीव नसूनसुद्धा ज्याच्याविषयी कौटुंबिक कथा भरपूर आहेत, असा ‘कावळा’ हा एकच पक्षी. कारण पिंडाला शिवण्याशी याचा संबंध येतो.
पाळीव नसूनसुद्धा ज्याच्याविषयी कौटुंबिक कथा भरपूर आहेत, असा ‘कावळा’ हा एकच पक्षी कारण पिंडाला शिवण्याशी याचा संबंध येतो.
आमच्या एका मित्राची आजी एकदा (एकदा म्हणजे एकदाचीच) वारली.
आता तिच्या पिंडाला न शिवायचं कावळ्याला काहीही कारण नव्हतं. अहो, चांगले नव्वद वर्षे पाहून म्हातारीने डोळे मिटले होते. मंडळी बुचकळ्यात पडली.
तुझ्या मुला-बाळांची काळजी घेऊ म्हणावं, तर मुलगाच बावीस वर्षे पोस्टातून पेन्शन घेऊन अजून बावीस वर्षे जगेल इतका टुणटुणीत. जगो बुवा! आपल्याला त्याचं काही नाही.पण लेकी होत्या, सुना, नातू , पणतू..
सगळं काही अगदी यथासांग होतं.
मग कोणीतरी उठलं आणि म्हणालं- ” आजीबाई, एक मोठ्ठी लोणच्याची बरणी आणि चार कपबशा आल्या तरच तुमची शालजोडी देईन हो बोहारणीला. “
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पटकन् कावळा शिवला…
कावळा हा पक्षी कौटुंबिक गोष्टीत इतका बारकाईने लक्ष घालत असेल याची कल्पना नव्हती मला…
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – याद तुम्हारी…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 140 – याद तुम्हारी…
(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार, मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘जहाँ दरक कर गिरा समय भी’ ( 2014) कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत “इधर सूर्य की किरणें…”)
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
श्री हनुमान साधना संपन्न हुई साथ ही आपदां अपहर्तारं के तीन वर्ष पूर्ण हुए
अगली साधना की जानकारी शीघ्र ही आपको दी जाएगी
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य – “पाठक होने का सुख“।)
अभी अभी # 47 ⇒ पाठक होने का सुख… श्री प्रदीप शर्मा
जो पढ़ सकता है, उसे पाठक होने से कोई नहीं रोक सकता! लिखने की बात अलग है। लिखने से कोई लेखक नहीं बन जाता। जवानी की कविता और प्रेम पत्र ने कईयों को कुमार विश्वास और कन्हैयालाल नंदन बना दिया है।
एक लेखक की लेखनी का श्री गणेश, संपादक के नाम पत्र से भी हो सकता है। कुछ लेखक और अखबार वाले उन लोगों से संपादक के नाम पत्र लिखवाते भी हैं, जिनको छपास का रोग होता है। लिखते लिखते एक दिन ये लेखक हो ही जाते हैं। ।
एक पाठक को इन सब मुश्किलों से नहीं गुजरना पड़ता। वह एक अख़बार का नियमित पाठक भी हो सकता है और किसी गुलशन नंदा का गंभीर पाठक भी। इब्ने सफी बी.ए. को पढ़ने के लिए, बी.ए.करना कतई ज़रूरी नहीं। सुरेन्द्र मोहन पाठक को एक बड़ा लेखक, पाठकों ने ही बनाया है, आलोचकों ने नहीं।
एक लेखक का अस्तित्व सुधि पाठक ही होता है। हर पाठक लेखक की नज़रों में एक सुधि पाठक ही होता है। जब कोई पाठक अपनी सुध बुध खोकर, किसी लेखक की बुराई कर बैठता है तो वह पाठक से आलोचक बन बैठता है। बिना फिल्म देखे समीक्षा लिखना और बिना कोई पुस्तक पढ़े आलोचना करना किसी सिद्धहस्त के बूते का ही काम है, नौसिखिए इन करतबों से दूर ही रहें तो बेहतर है। ।
मैं पोथी पढ़ पढ़ पंडित तो नहीं बन पाया, पुस्तक पढ़ पढ़, केवल पाठक ही बन पाया! कभी ढंग से प्रेम पत्र नहीं लिख पाया, इसलिए कवि नहीं बन पाया। झूठ के प्रयोग लिखे नहीं जाते, सच उगला नहीं जाता, इसलिए आत्मकथा का हर पन्ना कोरा ही रह जाता। जो कुछ काग़ज़ पर लिखता, कहीं छप नहीं पाता, इसलिए एक मशहूर लेखक बनने से वंचित रह गया।
भला हो इस मुख पोथी का, जिसने सभी पोथियों को काला अक्षर भैंस बराबर सिद्ध कर दिया, और मुझे रातों रात पाठक से स्वयंभू लेखक बना दिया। स्वयंभू लेखक वह होता है, जो स्वयं अपनी ही रचना पढ़कर उसकी तारीफ करता है।
ऐसे स्वयंभू लेखक स्वांतः सुखाय रचना करते हैं, और अपनी रचना दूसरों को सुना सुनाकर दुखी करते रहते हैं। ।
साहित्य और पाठक में एक सुखद दूरी होती है, जो दोनों को, एक दूसरे की दृष्टि में महान बनाए रखती है। जैसे जैसे पाठक और लेखक करीब आते जाते हैं, पोल खुलने लगती है, पाठक, पाठक नहीं रहता, लेखक, लेखक नहीं रहता।
कहां का बड़ा लेखक ? मुझसे दस साल पहले पांच सौ रुपए उधार ले गया, अभी तक नहीं लौटाए, सब लेखक साले ऐसे ही होते हैं। न जेब में कौड़ी, न कपड़ों में केरेक्टर।
मुझे पाठक होने का वास्तविक सुख फेसबुक पर ही नसीब हुआ। किसी लेखक की रचना की तारीफ करना हो, तो उसे पत्र लिखो, फिर जवाब का इंतजार करो। उसकी रचना पढ़ ली, यही क्या कम है। कमलेश्वर को एक पोस्ट कार्ड लिखा था, जब वे सारिका के संपादक थे, पोस्ट कार्ड पर औपचारिक जवाब भी आया था। फोन का उपयोग आज भी मैं किसी लेखक की तारीफ करने के लिए नहीं करता। अब तो फेसबुक पर लाइव चैटिंग होती है। जो गंभीर किस्म के लेखक है, वे आज भी फेसबुक से परहेज़ करते हैं। वे इतने अनौपचारिक नहीं बन सकते, इससे उनके लेखन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। आडंबर लेखन को अधिक गंभीर बनाता है। ।
मोहब्ब्त की राहों पे चलना संभल के! एक पाठक को अपने पाठक काल में लेखक बनने के इतने अवसर मिलते हैं, कि उसका ईमान डोल जाता है। हाथ कलम थामने से परहेज़ नहीं कर पाते, पन्ने स्याही के लिए तरस जाते हैं, और एक अच्छा भला पाठक लेखक की जमात में शामिल हो ही जाता है। लेखकों के बीच बोलचाल की भाषा में, फेसबुक पर, उनके साथ, उठ बैठकर, मीरा की तरह वह भी एक पाठक की लोक लाज तज, लेखक बन ही बैठता है।
आजकल फेसबुक पर जो भी आता है, वह लेखक बनने के लिए ही आता है। अगर यह इसी तरह चलता रहा, तो लेखकों के लिए पाठक ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा। पुस्तक मेला ही देख लीजिए। वहां पाठक के अलावा सब कुछ मिलेगा। अब समय आ गया है, पाठकों की घटती संख्या को लेकर गंभीर होने की।
अभी कुछ समय पहले अमेज़न पर एक किताब उन्नीस रुपए में बिक गई। अब कहां से लाएं पाठक! शीघ्र ही लेखकों की तरह पाठकों के लिए भी पुरस्कार घोषित करना पड़ेगा। कहीं ऐसा न हो कि आजीवन ब्रह्मचारी तो कई मिल जाएं, आजीवन पाठक एक भी ना मिले।।
मुझे भी डर है, मैं भी कहीं लेखक न बन जाऊं, तेरी संगति में ओ लेखक देवता! रब मुझे बुरी नज़र से बचाए, मेरे अंदर के पाठक की इन सृजन रिपुओं से रक्षा करे। आमीन!
(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.
We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “~ अस्तित्व ~”. We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit, English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है आपका एक माइक्रो व्यंग्य – ——।)
(जन्म:21 मई 1931 – मृत्यु: 5 सितम्बर 1991)
☆ संस्मरण — “परसाई के शहर में शरद जोशी…” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
(स्व. शरद जोशी जी के जन्मदिवस पर विशेष)
वर्षों पूर्व आदरणीय शरद जोशी जी “रचना” संस्था के आयोजन में परसाई की नगरी जबलपुर में मुख्य अतिथि बनकर आए थे। हम उन दिनों “रचना” के संयोजक के रूप में सहयोग करते थे।
उन दिनों “रचना” को साहित्यिक सांस्कृतिक सामाजिक संस्था का मान था । प्रत्येक रंगपंचमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्तर के हास्य व्यंग्य के ख्यातिलब्ध हस्ताक्षर आमंत्रित किए जाते थे। आदरणीय शरद जोशी जी के रुकने की व्यवस्था रसल चौक स्थित उत्सव होटल में की गई थी। वे “व्यंग्य की दशा और दिशा” विषय पर केंद्रित इस कार्यक्रम के वे मुख्य अतिथि थे। व्यंग्य विधा के इस आयोजन के प्रथम सत्र में ख्यातिलब्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई जी की रचनाओं पर आधारित रेखाचित्रों की प्रदर्शनी का उदघाटन करते हुए जोशी जी ने कहा था-“मैं भाग्यवान हूँ कि परसाई के शहर में परसाई की रचनाओं पर आधारित रेखाचित्र प्रदर्शनी के उदघाटन का सुअवसर मिला।”
फिर उन्होंने परसाई की सभी रचनाओं को घूम घूम कर पढ़ा हंसते रहे और हंसाते रहे। ख्यातिलब्ध चित्रकार श्रीअवधेश बाजपेयी की पीठ ठोंकी। खूब तारीफ की। व्यंग्य विधा की बारीकियों पर उभरते लेखकों से लंबी बातचीत की।
शाम को जब होटल के कमरे में वापस लौटे तो दिल्ली के अखबार के लिए ‘प्रतिदिन‘कालम लिखा, हमें डाक से भेजने के लिए दिया। साहित्यकारों के साथ थोड़ी देर चर्चा की, फिर टीवी देखते देखते सो गए ।
आज 21 मई को उनका जन्मदिन है, वे याद आ गए… अमिट स्मृतियों से निकल कर…
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# फैमिली कोर्ट… #”)
आपल्या ई-अभिव्यक्ति समूहातील सिद्धहस्त तरुण कवी श्री सुजित कदम यांचा “अरे अरे ढगोबा” हा नवा बालकवितासंग्रह – नरवीर प्रकाशन, पुणे, यांनी नुकताच अतिशय आकर्षक मांडणी करून प्रकाशित केला आहे.
“अशा मोठ्ठ्या विमानात एकदा तरी बसू
उंच उंच फिरताना आपण ढगांसोबत हसू.”
— अशासारखे बालमनाचे एक लोभस कल्पनाविश्व या संग्रहाला व्यापून राहिले आहे, असे म्हटल्यास ती अतिशयोक्ती ठरणार नाही.
आजी गाई गाणे, झाड हळू हळू डुले.
हिरवी हिरवी पाने म्हणजे,–
झाडोबाची मुले……… अशासारख्या निरागस ओळी मोठ्यांनाही बालपणात घेऊन जातील अशाच..
लहान मुलांसाठी असे साहित्य लिहिणे, हे अतिशय अवघड असते. त्यामुळे, उत्तम बालसाहित्यकार मोजकेच असतात असे म्हटले जाते.. या संग्रहामुळे, या यादीत सुजित कदम या कवीचे नाव महत्त्वाचे ठरावे, असे म्हणूनच समीक्षकांनी म्हटले आहे.
‘सावली देताना झाड कधी
जातपात पाहत नाही-!
कितीही असलं ऊन तरी-
सावली देणं सोडत नाही—!’
यासारख्या ओळी जाताजाता मुलांना कर्तव्यपालन, स्वभावधर्म व एकात्मतेचा मार्गही दाखवून जातात.
म्हणूनच हे पुस्तक मोठ्यांनी आवर्जून विकत घ्यायला हवे. आणि मुलांच्या हाती वाचायला आवर्जून द्यायला हवे, अशी प्रतिक्रिया जाणकारांनी वाचताच व्यक्त केली आहे.
💐 श्री सुजित कदम यांचे त्यांच्या या नव्या पुस्तकाबद्दल आपल्या ई-अभिव्यक्ति समूहातर्फे मनःपूर्वक अभिनंदन आणि पुढील अशाच समृद्ध साहित्यिक वाटचालीसाठी हार्दिक शुभेच्छा.💐
संपादक मंडळ
ई अभिव्यक्ती मराठी
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈