डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – याद तुम्हारी।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 140 – याद तुम्हारी…  ✍

आती जाती याद तुम्हारी

जैसे कोई राजकुमारी।

बाद, याद की नयन तुम्हारे

जिनसे प्यार छलकता है

होठों में रहता है जो कुछ

उसकी हृदय तरसता है

भाव भंगिमा ऐसी लगती

जैसे कोई राजकुमारी।

 

कोमल नरम अंगुलियों जैसे

रेशम, चंदन डूबा हो

बिखरे बिखरे केश कि जैसे

मनसिज का मनसूबा हो

गंधवती है देह तुम्हारी

जैसे कोई फूल कुमारी।

 

बंद बंद आँखों से देखा

लगा कि कोई अपना है

खुली खुली आँखों से देखा

लगा कि दिन का सपना है।

यों आती है याद तुम्हारी

जैसे कोई किरन कुंवारी।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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