श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# फैमिली कोर्ट… #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 131 ☆

☆ # फैमिली कोर्ट… # ☆ 

वो फैमिली कोर्ट में खड़े है

अपनी अपनी जिद पर अड़े है

शिक्षित, नौकरी पेशा है

संस्कारवान, धर्मभीरु हमेशा है

दोनों सुंदर और सुशील है

दयालु, करूणा से भरे नेकदिल है

चांद चांदनी की जोड़ी है

एक है फूल तो दूसरा पंखुड़ी है

दांपत्य की एक

चिंगारी से झुलस गये

दोनों के अहम टकराये

दोनों अलग हुए

कोर्ट में लगाई अर्जी है

तलाक चाहिए यह मर्जी है

प्यारा सा मासूम

छोटा-सा एक बच्चा है

बालपन की अवस्था है

मम्मी का हाथ थामा है

पास उसके मामा है

पापा को देख

हल्के हल्के मुस्कुराता है

पापा को मन ही मन

रूलाता है

क्या हो रहा है

वो समझ नहीं पाता है

कभी मम्मी तो

कभी पापा को

देखते जाता है।

 

न्यायाधीश ने पूछा -?

अगर तलाक हो गया

तो बच्चा किसके

पास रहेगा ?

इसका भरण पोषण

कौन करेगा ?

महिला ने कहा –

यह मेरे आंखों का उजाला है

मैंने इसे नौ महीने

अपने उदर में पाला है

पुरूष ने कहा –

यह मेरे वंश की निशानी है

इसके बिना तो

अधूरी मेरी कहानी है

न्यायाधीश को ना जाने

क्या सूझा ?

उन्होंने बच्चे से पूछा –

आप किसके पास रहोगे ?

मम्मी या पापा ?

अबोध बालक ने

एक हाथ से

मम्मी का हाथ पकड़ा और

दूसरे हाथ से

पापा का हाथ पकड़ा

और बोला –

दोनों के साथ रहूंगा

दोनों का प्यार चाहूंगा

न्यायाधीश ने आदेश दिया

सुंदर निर्णय लिया

आप दोनों सालभर

बच्चे के साथ रहेंगे

आगे कुछ नहीं कहेंगे

सालभर बाद जब

दोनों कोर्ट आये

बच्चे को साथ लाये

न्यायाधीश से बोलें –

हम दोनों अपने भूल पर

शर्मिंदा है

अब खुशी खुशी

साथ में जिंदा है

आपने गृहस्थी का

मतलब समझाया है

आपने हमारा घर

टूटने से बचाया है  /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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