श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य – “पाठक होने का सुख।)  

? अभी अभी # 47 ⇒ पाठक होने का सुख? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

जो पढ़ सकता है, उसे पाठक होने से कोई नहीं रोक सकता! लिखने की बात अलग है। लिखने से कोई लेखक नहीं बन जाता। जवानी की कविता और प्रेम पत्र ने कईयों को कुमार विश्वास और कन्हैयालाल नंदन बना दिया है।

एक लेखक की लेखनी का श्री गणेश, संपादक के नाम पत्र से भी हो सकता है। कुछ लेखक और अखबार वाले उन लोगों से संपादक के नाम पत्र लिखवाते भी हैं, जिनको छपास का रोग होता है। लिखते लिखते एक दिन ये लेखक हो ही जाते हैं। ।

एक पाठक को इन सब मुश्किलों से नहीं गुजरना पड़ता। वह एक अख़बार का नियमित पाठक भी हो सकता है और किसी गुलशन नंदा का गंभीर पाठक भी। इब्ने सफी बी.ए. को पढ़ने के लिए, बी.ए.करना कतई ज़रूरी नहीं। सुरेन्द्र मोहन पाठक को एक बड़ा लेखक, पाठकों ने ही बनाया है, आलोचकों ने नहीं।

एक लेखक का अस्तित्व सुधि पाठक ही होता है। हर पाठक लेखक की नज़रों में एक सुधि पाठक ही होता है। जब कोई पाठक अपनी सुध बुध खोकर, किसी लेखक की बुराई कर बैठता है तो वह पाठक से आलोचक बन बैठता है। बिना फिल्म देखे समीक्षा लिखना और बिना कोई पुस्तक पढ़े आलोचना करना किसी सिद्धहस्त के बूते का ही काम है, नौसिखिए इन करतबों से दूर ही रहें तो बेहतर है। ।

मैं पोथी पढ़ पढ़ पंडित तो नहीं बन पाया, पुस्तक पढ़ पढ़, केवल पाठक ही बन पाया! कभी ढंग से प्रेम पत्र नहीं लिख पाया, इसलिए कवि नहीं बन पाया। झूठ के प्रयोग लिखे नहीं जाते, सच उगला नहीं जाता, इसलिए आत्मकथा का हर पन्ना कोरा ही रह जाता। जो कुछ काग़ज़ पर लिखता, कहीं छप नहीं पाता, इसलिए एक मशहूर लेखक बनने से वंचित रह गया।

भला हो इस मुख पोथी का, जिसने सभी पोथियों को काला अक्षर भैंस बराबर सिद्ध कर दिया, और मुझे रातों रात पाठक से स्वयंभू लेखक बना दिया। स्वयंभू लेखक वह होता है, जो स्वयं अपनी ही रचना पढ़कर उसकी तारीफ करता है।

ऐसे स्वयंभू लेखक स्वांतः सुखाय रचना करते हैं, और अपनी रचना दूसरों को सुना सुनाकर दुखी करते रहते हैं। ।

साहित्य और पाठक में एक सुखद दूरी होती है, जो दोनों को, एक दूसरे की दृष्टि में महान बनाए रखती है। जैसे जैसे पाठक और लेखक करीब आते जाते हैं, पोल खुलने लगती है, पाठक, पाठक नहीं रहता, लेखक, लेखक नहीं रहता।

कहां का बड़ा लेखक ? मुझसे दस साल पहले पांच सौ रुपए उधार ले गया, अभी तक नहीं लौटाए, सब लेखक साले ऐसे ही होते हैं। न जेब में कौड़ी, न कपड़ों में केरेक्टर।

मुझे पाठक होने का वास्तविक सुख फेसबुक पर ही नसीब हुआ। किसी लेखक की रचना की तारीफ करना हो, तो उसे पत्र लिखो, फिर जवाब का इंतजार करो। उसकी रचना पढ़ ली, यही क्या कम है। कमलेश्वर को एक पोस्ट कार्ड लिखा था, जब वे सारिका के संपादक थे, पोस्ट कार्ड पर औपचारिक जवाब भी आया था। फोन का उपयोग आज भी मैं किसी लेखक की तारीफ करने के लिए नहीं करता। अब तो फेसबुक पर लाइव चैटिंग होती है। जो गंभीर किस्म के लेखक है, वे आज भी फेसबुक से परहेज़ करते हैं। वे इतने अनौपचारिक नहीं बन सकते, इससे उनके लेखन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। आडंबर लेखन को अधिक गंभीर बनाता है। ।

मोहब्ब्त की राहों पे चलना संभल के! एक पाठक को अपने पाठक काल में लेखक बनने के इतने अवसर मिलते हैं, कि उसका ईमान डोल जाता है। हाथ कलम थामने से परहेज़ नहीं कर पाते, पन्ने स्याही के लिए तरस जाते हैं, और एक अच्छा भला पाठक लेखक की जमात में शामिल हो ही जाता है। लेखकों के बीच बोलचाल की भाषा में, फेसबुक पर, उनके साथ, उठ बैठकर, मीरा की तरह वह भी एक पाठक की लोक लाज तज, लेखक बन ही बैठता है।

आजकल फेसबुक पर जो भी आता है, वह लेखक बनने के लिए ही आता है। अगर यह इसी तरह चलता रहा, तो लेखकों के लिए पाठक ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा। पुस्तक मेला ही देख लीजिए। वहां पाठक के अलावा सब कुछ मिलेगा। अब समय आ गया है, पाठकों की घटती संख्या को लेकर गंभीर होने की।

अभी कुछ समय पहले अमेज़न पर एक किताब उन्नीस रुपए में बिक गई। अब कहां से लाएं पाठक! शीघ्र ही लेखकों की तरह पाठकों के लिए भी पुरस्कार घोषित करना पड़ेगा। कहीं ऐसा न हो कि आजीवन ब्रह्मचारी तो कई मिल जाएं, आजीवन पाठक एक भी ना मिले।।

मुझे भी डर है, मैं भी कहीं लेखक न बन जाऊं, तेरी संगति में ओ लेखक देवता! रब मुझे बुरी नज़र से बचाए, मेरे अंदर के पाठक की इन सृजन रिपुओं से रक्षा करे। आमीन!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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