मराठी साहित्य – आलेख – ☆ खाकीतली आई ☆ – सौ संगीता अजित माने

सौ संगीता अजित माने

 

(मराठी साहित्यकार सौ संगीता अजित माने जी का e-abhivyakti में स्वागत है। महाराष्ट्र पुलिस में सेवारत होते हुए अपने अतिव्यस्त कार्य प्रणाली के साथ परिवार, साहित्य एवं समाज सेवा में सामंजस्य बनाना इतना आसान नहीं है। हम सौ संगीता जी के इस जज्बे का सम्मान करते हैं। वे हम सब के लिए भी अनुकरणीय हैं। हम श्रीमती रंजना  मधुकरराव लसणे जी  के आभारी हैं, जिन्होने सौ संगीता अजित माने जी जैसी प्रतिभाशाली साहित्यकार की रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने का अवसर दिया।)

संक्षिप्त परिचय 

सौ संगीता अजित माने , म पो हे काॅ सातारा

साहित्य 

  • छंद कविता/कथा लेखन संगीत समाजसेवा
  • सन २०१८ महिला दिन निमित्ताने कै वामनराव बोर्डीकर इंग्लीश स्कूल जिंतूरने उत्कृष्ट कार्य गौरव पुरस्काराने सन्मानित केले
  • सन २०१९ मशाल न्यूज नेटवर्क आयोजित युट्युब चॅनेल ने आयोजित काव्य स्पर्धा पर्व दुसरे तृतीय क्रमांक विजेता पुरस्कार
  • व्हाट्सएप चे विविध साहित्यिक समुहातील स्पर्धा मध्ये सर्वोत्कृष्ट ते लक्षवेधी पर्यंत ७८६ प्रमाणपत्र
  • सन २०१९ माहुर काव्य संमेलन काव्यसखी पुरस्काराने सन्मानित
  • २ जून २०१९ रोजी काव्यस्पंदन तर्फे महाराष्ट्र भुषण अष्टपैलू कामगिरी पुरस्कार सन्मानित
  • विविध समुहात परिक्षण करीता पुरस्कार प्राप्त
  • पोलीस दला मध्ये विविध कामगिरी बक्षीसे

समाजसेवा

  • ३४ लग्न विनामोबदला जमवली तसेच २ कन्यादान करुन दिली

 

☆  ससममान प्रस्तुत है सौ संगीता अजित माने जी का आलेख “खाकीतली आई”। ☆     

☆ खाकी वर्दी  में माँ की विवेचना कोई खाकी वर्दी में सेवारत माँ ही कर सकती हैं।  ☆   

 

? खाकीतली आई ?

 

*खाकीतल्या आईचा*

*रडी भुकेन घरी तान्हा*

*कर्तव्याला बांधलेने*

*ती तिथेच जिरवी पान्हा*

“आई” उच्चारता हा शब्द प्रत्येकाच्या समोर उभी राहते त्याच्या मातेची प्रेमळ छबी .तीने मुक्तपणे केलेली प्रेम बरसात छोट्या मोठ्या संकटात झालेली आपल्या समोरची ढाल आणि आपल्या सुखासाठी ती तहहयात करीत असलेला त्याग.

खाकीतली आई ही अगदी तशीच असते . उदरी जाणवता पहिला श्वास बाळाचा इतर आई सारखीच ती सुखावते मनात आनंदाचे भरते आले तरी एक पोलीस म्हणून तीला कराव्या लागणार्‍या ड्यूटीचा गर्भास काही त्रास तर होणार नाही या कल्पनेने धास्तावते खाकीतली आई. आई म्हणून तीच धास्तावण इथुनच प्रारंभत .

गर्भधारणेनंतर होणाऱ्या उलट्या चक्कर थकवा तीला ही निसर्ग नियमाप्रमाणे होत असतोच पण नोकरीत रोजरोज कोण रडगाणे ऐकणार म्हणून कोणताही सबब न  सांगता ती नेमली नोकरी करत राहते. नोकरी करत करत दिवस लागतात संपू आठव्या नवव्या महिन्यात तर पोटाचा आकार व भार याचा त्रास कितीही झाला तरी ती रजा काढत नाही कारण ती रजा तीला बाळासाठी त्याच्या जन्मानंतर त्याच्या संगोपनासाठी घालवायची असते.

सन 2006 च्या आयोगाने शासकीय नोकरदार महिलांना सहा महिने बाळंतपणाची रजा देवू केली फार चांगला निर्णय होता तो. त्यापुर्वी तीन महिन्यांतच   बाळाला घरी सोडून मातेस नोकरी वर याव लागे कार्यालयीन कामकाज करणार्‍या महिला ठराविक कार्यालयीन वेळेनंतर बाळाला वेळ देवू शकतात पण पोलीस असणाऱ्या महिलांचे तसे नसते आरोपीपार्टी कायदा व सुव्यवस्था  बंदोबस्त मंत्री दौरा बंदोबस्त या  अनियमित काल असलेल्या दैनंदिन नोकरी ती नाकारुच शकत नाही. अंगावर पुरेसे दुध असताना ही ती बाळाला स्तनपान  करु शकत नाही अस ही म्हणता येईल की,स्तनपान बाळाचा हक्क ती त्याला देवु शकत नाही.  नोकरीवर असताना आलेला पान्हा तीच्या वर्दीवर वाहुन जातो त्यावेळी सहपुरुष कर्मच्यार्यानां तो दिसु नये ही स्त्रीसुलभ लज्जा तीच्या मनात येते त्या वेळी होणारी तीची तारांबळ आणि वाटणारी लाज याने खाजिल होते ती . घरी बाळाला सांभाळायला कोणी असेल तर ठिक पण नसेल कोणी तर अजूनच समस्या पाळणाघरात ठेवले तरी पाळणाघराची ठराविक वेळ संपल्यावर रोज बाळाला कुठे ठेवायचे कोण आपल्या बाळाला संभाळेल एक नाही हजार प्रश्नांचा पाठपुरावा ती करत असते कधी कधी तर बाळाची रांगणे चालणे बोलणे पहिली बाललीला पाहणे तीच्या वाट्याला येत नाही हे फक्त एक आईच समजू शकते  त्या बाळलीला पाहणे तीच्यासाठी किती आनंदायक क्षण असतो जो तीच्या ह्रदयावर कायमचा कोरला जातो.

मुले शाळेत जात असतील भुकेने व्याकुळ होऊन येतात घरी, मायेने गरम गरम खाऊ घालणारी आई नसते त्यांच्या नशिबी  गृहपाठ कर,  लांब खेळायला जावु नको इत्यादी सुचना फोनवरच देत असते खाकीतील आई  शाळेतील सांस्कृतिक कार्यक्रम किंवा पालकसभा नाही वेळ देवू शकत. एवढच काय तापाने फणफणलेल्या मुलाला ठेवून तीला नोकरीवर हजर राहावे लागते. नोकरीमध्ये शरीर करत असते नोकरी मन मात्र मुलांभोवती पिंगा घालत असते.

धावत असते ती रात्र दिवस संसार आणि नोकरीच्या तालावर या दोन्ही मध्ये तीच ती स्वअस्तित्वच विसरते फक्त चालू असते तीची कसरत घर घरातील माणसे नातेवाईक सणवार समारंभ  आजारपण यांना जपुन प्रामाणिकपणे नोकरी करते.

खाकीतली आई तरीही सगळीकडे दुर्लक्षित असलेली.

 

© सौ संगीता अजित माने ✍

*सातारा*

*७०५७८०८४४८*

 

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य – ☆ नया इंडिया : बुद्धिजीवी होना अब एक गाली है ☆ – श्री शांतिलाल जैन

श्री शांतिलाल जैन 

 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। आज  प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी का नया व्यंग्य “नया इंडिया : बुद्धिजीवी होना अब एक गाली है” एक नयी शैली में। मैं निःशब्द हूँ, अतः आप स्वयं  ही  पढ़ें, विचारें एवं विवेचना करें। हम भविष्य में श्री शांतिलाल  जैन जी से  ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाओं की अपेक्षा रखते हैं। ) 

 

☆ नया इंडिया : बुद्धिजीवी होना अब एक गाली है ☆

 

तुम अभी तक गये नहीं बुद्धिजीवी ?

कमाल करते हो यार. देश बदल रहा है. ये नया इंडिया है. यहाँ बुद्धिजीवी होना एक गाली हो गया है.

माना कि तुम अपनी प्रतिभा और अध्ययन का उपयोग मुल्क की बेहतरी के लिए करना चाहते हो, मगर ट्रोल्स और उनके प्रवर्तक हिंसक हो जाने की सीमा तक तुमसे असहमत हैं. वे लगातार तुम्हें देश छोड़ कर जाने के लिये कह रहे हैं और तुम हो कि अभी तक यहीं टिके हुवे हो ?

हमें याद है जब तुम पहली बार ट्रोल हुये थे. एक डरावना सपना देखा था तुमने और उसे सार्वजनिक रूप से साझा कर दिया था. कुछ कुछ इस तरह था वो कि सपने में तुम अपनी निजी लायब्रेरी में हो. कुछ मशालची उसकी तरफ बढ़ रहे हैं. राजकीय मशालची. किले के मशालची. सम्राट के प्रहरी. रात के गहन अंधकार में मशाल जलाकर सिंहासन के इर्द गिर्द पहरा देने वाले. साया भी सिंहासन की ओर बढ़ता दिखे तो इसी मशाल से फूँक देते उसे. जरा सी शंका हो तो तस्दीक करने की भी जरूरत नहीं समझते. तेल भी है उनके पास, आग भी और जला दिये जानेवाली अथॉरिटी भी. इसे जेनुईन एनकाउन्टर कहा जाता है. कुछ एनकाउन्टर स्पेशियलिस्ट मशाल लिए लायब्रेरी की तरफ बढ़ रहे हैं. तुमने पूछा – यहाँ क्यों आये हो ? मशालचियों में से एक ने आगे आकर कहा – हमारा राजा ज्ञानी है. राजा को जो ज्ञान है वो इन किताबों में नहीं है और जो इन किताबों में है वो राजा के काम का नहीं. इसलिए इन किताबों की जरूरत नहीं है. वे आगे बढ़े और लायब्रेरी में आग लगा दी. तुम नींद में से घबराकर उठ बैठे और एक नज़र किताबों की ओर डाली, मुतमईन हुए कि अभी तो बच गई हैं वे. कितने दिन बच पायेगी ? कोई सिरफिरा कभी दिन के उजाले में सच में इधर निकल आया और छुआ दी मशाल तो कोई क्या कर लेगा ?

स्वप्न से तुम डरे कि राजा? कि दोनों ? राजा विचार से डरा. तुम विचार नष्ट कर दिये जाने की संभावना से डरे. स्वप्न साझा करते ही अपशब्दों की वर्चुअल मशाल थामे ट्रोल्स की एक बड़ी फौज तुम पर पिल पड़ी थी. कहलाया गया – बुद्धिजीवियों ने बेड़ा गर्क किया है देश का. वे खुद निकल जाएँ देश से वरना हम सीमा पर खड़ा करके उस तरफ़ धकेल देंगे. अनगिन बार ट्रोल होने के बाद भी तुम यहीं टिके हुवे हो बुद्धिजीवी.

तुम्हारी अपनी तरह का देशप्रेम तुम्हें जाने से रोक रहा है. तुमने वेल्फेयर इकॉनामिक्स की बात की – तुम्हें ट्रोल किया गया. तुमने सांप्रदायिक सद्भाव की बात की – तुम्हें ट्रोल किया गया. तुमने सत्ता के केन्द्रीकरण के खतरों से आगाह किया – तुम्हें ट्रोल किया गया. तुमने आवारा पूंजी के खतरे बताए – तुम्हें ट्रोल किया गया. तुमने वनवासियों के अधिकारों की रक्षा का सवाल उठाया – तुम्हें अर्बन नक्सली कहा गया, तुमने लोगों के खाने-पीने में पसंदगी की स्वतन्त्रता की  बात की – तुम्हें बिका हुआ बुद्धिजीवी कहा गया. तुमने मानवाधिकारों की रक्षा की बात की – तुम्हें विद्रोही कहा गया. हर उस विचार को जो सिंहासन और उससे जुड़े श्रेष्ठी वर्ग के हितों के खिलाफ रहा आया – उसे राजद्रोही विचार की श्रेणी में रखकर गलियाँ दी गईं. कोई तुम्हें बगावती कह रहा है, कोई तुम्हें देश छोड़ देने की सलाह दे रहा है. कितना ट्रोल हो रहे हो फिर भी यहीं बने हुये हो बुद्धिजीवी ?

तुमने सभ्यताओं के उत्थान और पतन के अपने अध्ययन में लिखा है कि जो समाज अपने विचारकों, विद्वानों, चिंतकों, विदूषियों, कवियों, साहित्यकारों, संगीत, नाटक और कला के साधकों का सम्मान नहीं करता वो पतन के मार्ग पर चल निकलता है. इस रास्ते पर चल निकले तो बीच से लौटना संभव नहीं होता. क्या तुम्हें समकालीन समय समाज में ऐसा ही नहीं लगता बुद्धिजीवी ? तुमने पढ़ा है, बहुत पढ़ा है. बहुत लिखा भी है और बहुत रचा भी. शोध किये,  पेपर लिखे, रिकमण्डेशंस दीं, प्रजेन्टेशन्स दिये. जो लिखा वो व्यापक मनुष्यता के हित में लिखा. जो कहा समूची कायनात में फैली इंसानियत को बचाने के लिए कहा. तुम्हें मिले सम्मानों और पुरस्कारों की एक लंबी सूची है. इसके बरक्स जो तुम्हें गालियां दे रहे हैं वे ? दरअसल, वे हांक दिये गये हैं भेड़ों की तरह. पहले उनका मानस कुंद किया गया फिर उनके हाथों में थमा दी गई मशाल. अंधेरा भगाने के लिए नहीं, समाज में आग लगाने के लिये. ऐसे में तुम चले जाओ वरना एक दिन वे तुम्हें तुम्हारी पसंदीदा किताबों सहित जला देंगे, बुद्धिजीवी.

बहुधा हमें तुम पर तरस आता है बुद्धिजीवी. तुम इतने सेंसिटिव क्यों हो ? तुम रेशनल बातें क्यों करते हो ? तुम भीड़ के साथ बह जाना क्यों नहीं जानते ? जो ट्रोल्स बुद्धिजीवियों को सहन नहीं कर पाते हैं उन्होने तुम पर ही असहनशील होने का ठप्पा जड़ दिया है. विचारकों के तुम्हारे समूह को गैंग कहा जाने लगा है गोया तुम अपराधियों के समूह का हिस्सा हो. तुम पर यूनिवर्सिटी में गबन के, पद के दुरुपयोग के, चरित्रहीनता के आरोप लगाये गये तब क्या तुम्हारे मानस में ये सवाल उठा कि तुमने विचार की सत्ता को राजसत्ता से ऊपर रखकर कोई गलती की है ? समाज के आखिरी आदमी के लिए तुम्हारे मन में इतनी पीड़ा क्यों है ? तुम बुद्धिजीवी क्यों हुवे ? और हुवे हो तो अभी तक गये क्यों नहीं बुद्धिजीवी ?

अभी भी समय है, तुम चले जाओ बुद्धिजीवी. नये निज़ाम में कोई तुम्हें सुकरात की तरह जहर पीने को नहीं कहेगा, मार दिये जाने के तरीके बदल गये हैं. एक दिन तुम्हें मार तो दिया ही जायेगा और किसी को भनक तक नहीं लगेगी. इसके पहले कि महाराजा उस डरावने स्वपन को हकीकत में अनुवादित करवा दे तुम चले ही जाओ बुद्धिजीवी.

© श्री शांतिलाल जैन 

F-13, आइवोरी ब्लॉक, प्लेटिनम पार्क, माता मंदिर के पास, TT नगर, भोपाल. 462003.

मोबाइल: 9425019837

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – #6 गौरव ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी  की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  उनकी  एक भावुक एवं मार्मिक  लघुकथा  “गौरव ”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 6 ☆

 

☆ गौरव ☆

 

माता पिता ने अपने इकलौते बेटे का नाम रखा गौरव।

मां हमेशा कहती बेटा जैसा नाम रखा है, वैसा कुछ काम करना। बस छोटे से बाल मन में ये बात घर कर गई थीं।

धीरे-धीरे बड़ा हुआ गौरव।  गौरव ने बारहवीं कक्षा अच्छे नम्बरों से पास करने के बाद देश सेवा में जाने की इच्छा बताया। आर्मी बटालियन का पेपर, फिर ट्रेनिंग के बाद सिलेक्शन हो गया। और एक दिन बाहर बार्डर पर तैनात हो गया।

हमेशा मां की बात मानने वाला गौरव भारत माँ की निगरानी, रक्षा करते नहीं थकता था। माँ  शादी की बात करने लगी। वह हँस कर कहता मुझे अभी भारत माता की सेवा करनी है। माता-पिता भी कुछ न कहते।

एक दिन सुबह सब कुछ अनमना सा था। माँ को समझ नहीं आ रहा था। दरवाजे पर एक सिपाही आया देख पिता जी बाहर आकर पूछे क्या बात हैं? उसने बड़े ही दर्द के साथ बताया कि गौरव भारत मां की रक्षा करते शहीद हो गया।

माँ समझ गई। रो रो कर कह उठी “मेरा गौरव मेरी बात का इतना बड़ा मान रखेगा।  मैं जान न सकी। गौरव इतना महान बनेगा।” माँ का रूदन रूक ही नहीं रहा था।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #6 – अपहरणाचा बळी ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है ।  साप्ताहिक स्तम्भ  अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण  कविता  “ अपहरणाचा बळी ”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 6 ☆

? अपहरणाचा बळी ?

 

डोळ्यांचा या ओला पडदा वाळत नाही

माझा जिवलग सूर्य मजवरी भाळत नाही

 

गळून पडली दोऱ्या मधली फुले सुगंधी

कुणीच दोरा गजरा म्हणुनी माळत नाही

 

वाऱ्याने या सुगंध सारा पसार केला

वाऱ्यावरती कुणी ठेवली पाळत नाही

 

प्रेमग्रंथ हा जीर्ण जाहला तरी चाळते

तुझ्या वेदना आता मजला जाळत नाही

 

स्नान कराया पाप पोचले गंगेकाठी

गंगा करते पवित्र त्याला टाळत नाही

 

अपहरणाचा बळी आजही होते सीता

तरी कुणीही लंका आता जाळत नाही

 

गोठुन गेल्या का लोकांच्या सर्व भावना ?

कुणी आसवे आता येथे ढाळत नाही

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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मराठी साहित्य – मराठी आलेख – ☆ देवा होऊ कशी उतराई ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का e-abhivyakti में हार्दिक स्वागत है। धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झालक  देखने को मिलती है। हम भविष्य में आपके उत्कृष्ट साहित्य की अपेक्षा रखते हैं। आज प्रस्तुत है उनका आत्मकथ्य “देवा होऊ कशी उतराई”।) 

 

देवा होऊ कशी उतराई

 

आज वळून मागे पहाताना मला दिसतंय की, भगवंताने मला जन्मल्यापासूनच किती भरभरुन दिलंय.

जन्म पिता रामचंद्र माता सरस्वती यांच्या पोटी. आजी राधा माझी प्रियतमा.काका काकू ज्यांनी जन्म दिला नसला तरी मातपित्यापेक्षाही उच्च प्रेम व संस्कारांनी वाढवलं. शिकवलं अतिशय मायेनं पालनपोषण करुन लग्न करुन देऊन पुढे माझं बाळंतपण, माझ्या मुलांनाही तितक्याच मायेनं किंबहुना त्यापेक्षा जास्त. वाढवलं संस्कारित केलं.

माझ्या लहानपणी मी काका काकूंकडे म्हणजे आम्ही सर्वच भावंडं वयाच्या दुसऱ्या तिसऱ्या वर्षापासून काकू म्हणजे माईकडेच वाढलो. काका म्हणजे आण्णा तालुक्याच्या गावी तालुकामास्तर म्हणून सेवेत होते. त्यामुळे आमचं शिक्षण त्यांचेकडेच झालं. किंबहुना त्या‌दोघांमुळेच झालं.

खेड्यात राहूनही आमच्याकडून बोलताना लिहिताना उच्चार चुकले तर ओठावर फट्कन् आण्णांची दोन बोट उमटायची. त्यामुळे बाळपणापासूच वाणी शुद्ध झाली.

पहाटे चार वाजता आम्हा भावंडांना  उठवून काही व्यायाम व अभ्यास याची सवय बाळपणापासूनच लागली. आजही वयाच्या पंच्याहत्तरीत मी पहाटे उठून नियमित व्यायाम प्राणायाम,आता अध्यात्मिक अभ्यास,लिखाण व कविता करते.

भाषा समृद्ध होण्याचे आणखी महत्त्वाचे कारण म्हणजे मला सुदैवाने शालामाऊलीही अत्यंत चांगली लाभली. न्यू इं.स्कूल सातारा. या माझ्या शाळेत मला सर्वच विषयाचे शिक्षक अतिशय भले भेटले. संस्कृत या माझ्या अत्यंत आवडत्या विषयाला पू. गुरुवर्य आपटीकर लाभले. संस्कृत विषयाचे गाढे अभ्यासक होतेच परंतु बऱ्याच पौराणिक ग्रंथांचा त्यांनी सखोल अभ्यास केलेला होता. त्यांच्यामुळे माझं संस्कृत विषयाचं ज्ञान उत्तम झालं. आयुष्यात मला त्यांचा खूप मोलाचा उपयोग झाला. आजही मी माझ्या नातवंडांनाच नाही तर शेजारच्या मुलांनाही संस्कृत शिकवते, मार्गदर्शन करते.कारण ती देवभाषा आहे सर्वांना ती माहिती असणे आवश्यक आहे. असा माझा दृढ विश्वास आहे.

©®उर्मिला इंगळे, सातारा 

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Meditation Asanas ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer,  Author, Blogger, Educator and Speaker.)

☆ Meditation Asanas 

 

Video Link : Meditation Asanas 

SUKHASANA, ARDHA PADMASANA, PADMASANA, SIDDHASANA, SIDDHA YONI ASANA, SWASTIKASANA, DHYANA VEERASANA, SIMHASANA, VAJRASANA, ANANDA MADIRASANA, PADADHIRASANA, BHADRASANA
The main purpose of the meditation asanas is to allow the practitioner to sit for extended periods of time without moving and without discomfort. Only when the body has been steady and still for some time will meditation be experienced. Deep meditation requires the spinal column to be straight and very few asanas can satisfy this condition.
Furthermore, in high stages of meditation the practitioner loses control over the muscle of the body. The meditation asana, therefore, needs to hold the body in steady position without conscious effort.
In this video, we have demonstrated how to get into the following meditation asanas:
SUKHASANA (easy pose)
ARDHA PADMASANA (half lotus pose)
PADMASANA (lotus pose)
SIDDHASANA (accomplished pose for men)
SIDDHA YONI ASANA (accomplished pose for women)
SWASTIKASANA (auspicious pose)
DHYANA VEERASANA (hero’s meditation pose)
SIMHASANA (lion pose)
VAJRASANA (thunderbolt pose)
ANANDA MADIRASANA (intoxicating bliss pose)
PADADHIRASANA (breath balancing pose)
BHADRASANA (gracious pose)
Practice note: A useful suggestion to make the above poses comfortable is to be place a small cushion under the buttocks.
Reference book: ASANA PRANAYAMA MUDRA BANDHA by Swami Satyananda Saraswati
(This is only a demonstration to facilitate practice of the asanas. It must be supplemented by a thorough study of each of the asanas. Careful attention must be paid to the contra indications in respect of each one of the asanas. It is advisable to practice under the guidance of a yoga teacher.)
Music: Oxygen Garden by Chris Zabriskie is licensed under a Creative Commons Attribution licence (https://creativecommons.org/licenses/…) Source: http://chriszabriskie.com/divider/ Artist: http://chriszabriskie.com/

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and trainings. Email: [email protected]

Founders: LifeSkills

Jagat Singh Bisht

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University. Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht:

Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer Areas of specialization: Yoga, Five Tibetans, Yoga Nidra, Laughter Yoga.

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – चतुर्थ अध्याय (8) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )

 

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ ।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।8।।

 

अच्छों की रक्षा करने को,दुष्टों को हटवाने को

समय समय पर रक्षा करने धर्म की, पाप मिटाने को।।8।।

 

भावार्थ :  साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।।8।।

 

For the protection of the good, for the destruction of the wicked, and for the establishment of righteousness, I am born in every age. ।।8।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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