हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 9 – जिंदगी अचानक अनजान हो गयी ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी  अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता जिंदगी अचानक अनजान हो गयी

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 9 – जिंदगी अचानक अनजान हो गयी 

 

जिंदगी आज अचानक अनजान सी हो गयी,

कल तक मेरी परछाई जो मेरे साथ थी,

ना जाने क्यों आज वह भी अब परायी लगने लगी ||

 

हर कोई आज यहां उदास दिख रहा है,

कल तक सब के चेहरो पर खुशियां झलक रही थी,

ना जाने क्यों आज रंगत सबके चेहरों की उड़ने लगी ||

 

कल जो मैंने आज के लिए सुनहरे सपने बुने थे,

आज आते ही वे सब ना जाने कहां गुम हो गए,

ना जाने क्यों जिसे चाहा वहीं चीज जिंदगी से दूर हो गयी ||

 

सुकून भरी जिंदगी जीने की एक ख्वाहिश थी,

ना जाने ख्वाहिश को किसकी  नजर लगी,

ना जाने क्यों चंद खुशियां जमा थी वे भी मुझसे दूर हो गयी ||

 

आज से अच्छा तो कल था जहां में बच्चा था,

चारों और हंसी-ख़ुशी और अपनेपन का आलम था,

ना जाने क्यों बचपन छिन जिंदगी खुद एक पहेली हो गयी||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 60 – गझल – वृत्त- लवंगलता ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  एक अतिसुन्दर गझल – वृत्त- लवंगलतामुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य को  साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 60 ☆

☆ गझल – वृत्त- लवंगलता ☆

 

मला चुलीची धुरकट औलण हवीहवीशी वाटे

जात्याचीही एक आठवण    हवीहवीशी वाटे

 

पिंपर्णी च्या  झाडाखाली खेळ खेळलो होतो

त्या उन्हातली प्रचंड रणरण हवीहवीशी वाटे

 

“बालपणाचा काळ सुखाचा” असे म्हणतसे कोणी

गणिताच्या तासाची भणभण हवीहवीशी वाटे

 

कोनाड्यातच सागरगोटे नऊखऊचा पाढा

मैतरणीची लाडिक तणतण हवीहवीशी वाटे

 

प्राजक्ताचे झाड आवडे, गर्द  सभोती  दाटी

अंगणातली नाजुक पखरण हवीहवीशी वाटे

 

पहाटवेळी सडासारवण  रांगोळीअन आई

गुलबक्षीची सुंदर गुंफण हवीहवीशी वाटे

 

कुरळ्या केसां मधला गुंता आई अलगद काढी

सागरवेणी, तीच विंचरण हवीहवीशी वाटे

 

डेक्कनवरचा काळ आठवे हिंदविजयचा “साथी”

अलका चौका मधली गवळण हवी हवीशी वाटे

 

मस्त पाऊस  पण  भिजण्याची हौसच फिटली आता

पाखरापरी  छोटी  वळचण हवीहवीशी वाटे

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 46 ☆ आंधी ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “आंधी”। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 46 ☆

☆ आंधी ☆

 

जब पता होता है ना

कि हम सही पथ पर हैं

और सच्चाई हमारी साथी है,

तो ज़हन के भीतर

एक आंधी सी चलने लगती है

जो हर अंग को जोश और उत्साह से

रंगीन गुब्बारे की तरह भर देती है,

खोल देती है सारे दरवाज़े

जो वक़्त ने बंद कर दिए होते हैं,

लॉक डाउन कर देती है

सभी नकारात्मक विचारों का

और दिमाग के सारे तालों की

चाबी ढूँढ़ लाती है!

 

‘गर तुम्हें अपने पर

पूरा भरोसा है

तो चल जाने दो आंधी,

बिना किसी डर के और भय के!

पहले बड़ी उथल-पुथल होगी,

पर फिर धीरे-धीरे

जैसे-जैसे आंधी थमेगी

सब हो जाएगा साफ़!

 

हो सकता है

तब तुम झूलने लगो

धनक के सात रंगों के झूलों पर!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 67 ☆ समझ लेते हैं गुफ्तगू, रिंग टोन से ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक सार्थक व्यंग्य  समझ लेते हैं गुफ्तगू, रिंग टोन से। इस अत्यंत सार्थक  व्यंग्य के लिए श्री विवेक जी का हार्दिक आभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 67 ☆

☆ व्यंग्य – समझ लेते हैं गुफ्तगू, रिंग टोन से ☆

व्हाट इज योर मोबाइल नम्बर, जमाना मोबाइल का है.   खत का मजमूं जान लेते हैं लिफाफा देखकर वाले शेर का नया अपडेटेड वर्शन कुछ इस तरह हो सकता है कि ” समझ लेते हैं गुफ्तगू का मकसद, मोबाइल की रिंग टोन से “. लैंड लाइन टेलीफोन, मोबाइल के ग्रांड पा टाइप के रिलेशन में था हो गया है.  टेलीफोन के जमाने में हमारे जैसे अधिकारियो को लोगो को छोटी मोटी नौकरी पर रख लेने के अधिकार थे. आज तो नौकरियां विज्ञापन, लिखित परीक्षा, साक्षात्कार, परिणाम, फिर कोर्ट केस के रास्ते वर्षौ बाद हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के लम्बे रास्ते से मिला करती हैं, पर उन दिनो नौकरी के इंटरव्यू से पहले अकसर सिफारिशी टेलीफोन आना बड़ा कामन था. सेलेक्शन का एक क्राइटेरिया यह भी होता था कि सिफारिश किसकी है. मंत्री जी की सिफारिश और बड़े साहब की सिफारिश के साथ ही रिश्तेदारो की सिफारिश के बीच संतुलन बनाना पड़ता था. एक सिफारिशी घंटी केंडीडेट का भाग्य बदलने की ताकत रखती थी.  नेता जी से संबंध अक्सर टेलीफोन की सिफारिशी घंटी बजवाने के काम आते थे. सिफारिशी खत से लिखित साक्ष्य के खतरे को देखते हुये सिफारिश करने वाला फोन का ही सहारा लेता था. तब काल रिकार्डिंग जैसे खतरे कम थे.हमारे जैसे ईमानदार बनने वाले लोग रिंग टोन से अंदाज लगा लेते कि गुफ्तगू का प्रयोजन क्या होगा और साहब नहा रहे हैं टाइप के बहाने बनाने के लिये पत्नी को फोन टिका दिया करते थे. तब नौकरियां आज की तरह कौशल पर नही डिग्रियों से मिल जाया करती थीं.   घर दफ्तर में फोन होना तब स्टेटस सिंबल था. आज भी विजिटिंग कार्ड का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मोबाइल और टेलीफोन नम्बर बने हुये हैं.  दफ्तर की टेबिल का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण  टेलीफोन होता है. और टेलीफोन का एक सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है सिफारिश.न सही नौकरी पर किसी न किसी काम के लिये देख लेने, या फिर सीधे धमकी के रूप में देख लेने के काम टेलीफोन से बखूबी लिये जाते हैं.  टेलीफोन की घंटी से, टेबल के सामने साथ बैठा व्यक्ति गौण हो जाता है,और दूर टेलीफोन के दूसरे छोर का आदमी महत्वपूर्ण हो जाता है.

जिस तरह पानी ऊंचाई से नीचे की ओर प्रवाहित होता है उसी तरह टेलीफोन या मोबाइल में हुई वार्तालाप का सरल रैखिक सिद्धांत है कि इसमें हमेशा ज्यादा महत्वपूर्ण आदमी, कम महत्वपूर्ण आदमी को आदेशित करता है. उदाहरण के तौर पर मेरी पत्नी मुझे घर से आफिस के टेलीफोन पर इंस्ट्रक्शन्स देती है. मंत्री जी, बड़े साहब को और बड़े साहब अपने मातहतो को महत्वपूर्ण या गैर महत्वपूर्ण कार्यो हेतु भी महत्वपूर्ण तरीके से मोबाइल पर ही आदेशित करते हैं. टेलीफोन के संदर्भ में एक व्यवस्था यह भी है कि  बड़े लोग अपना टेलीफोन स्वयं नहीं उठाते. इसके लिये उनके पास पी ए टाइप की कोई सुंदरी होती है जो बाजू के कमरे में बैठ कर उनके लिये यह महत्वपूर्ण कार्य करती है और महत्वपूर्ण काल ही उन तक फारवर्ड करती है. नेता जी के मोबाइल उनके विश्वस्त के हाथों में होते हैं, जो बड़े विशेष अंदाज में जरूरी काल्स पर ही नेता जी को मोबाइल देते हैं, वरना संदेशन खेती करनी पड़ती है. और राजगीर के लड्डुओ के संदेश जितने टोकनों से गुजरते हैं, हर टोकने में इतना तो झर ही जाते हैं कि एक नया लड्डू बन जाता है, इस तरह सभी को बिना गिनती कम हुये लड्डुओ का भोग चढ़ जाता है, लोगों के काम हो जाते हैं.

टेलीफोन एटीकेट्स के अनुसार मातहत को अफसर की बात सुनाई दे या न दे, समझ आये या न आये, किन्तु सर ! सर ! कहते हुये आदेश स्वीकार्यता का संदेश अपने बड़े साहब को देना होता है. जो बहुत ओबीडियेंट टाइप के कुछ पिलपिले से अफसर होते हैं वे बड़े साहब का टेलीफोन आने पर अपनी सीट पर खड़े होकर बात करते हैं. ऐसे लोगो को नये इलेक्ट्रानिक टेलीफोन में कालर आई डी लग जाने से लाभ हुआ है और अब उन्हें एक्सटेंपोर अफसरी फोन काल से मुक्ति मिल गई है, वे साहब की काल पहचान कर पहले ही अपनी मानसिक तैयारी कर सकते हैं .  यदि संभावित  गुफ्तगू के मकसद का अंदाज इनकमिंग काल के नम्बर से लगा लिया जाता  है,  तो यह पहचान बड़े काम की होती है. सावधानी में सुरक्षा निहित होती ही है. बड़े साहब का मोबाइल आने पर ऐसे लोग तुरंत सीट से उठकर चलायमान हो जाते हैं. यह बाडी लेंगुएज,उनकी मानसिक स्थिति की परिचायक होती है. एसएमएस से तो बचा जा सकता है कि मैसेज पढ़ा ही नही, पर मुये व्हाट्सअप ने कबाड़ा कर रखा है, इधर दो टिक नीले क्या हुये सामने वाला कम्पलाइंस की अपेक्षा करने लगता है. इससे बचाव के लिये अब व्हाट्सअप सैटिंग्स में परिवर्तन किया जाना  पसंद किया जाने लगा है.

हमारी पीढ़ी ने चाबी भरकर इंस्ट्रूमेंट चार्ज करके बात करने वाले  टेलीफोन के समय से आज के टच स्क्रीन मोबाइल तक का सफर अब तक तय कर लिया है. इस बीच डायलिंग करने वाले मेकेनिकल फोन आये जिनकी एक ही रिटी पिटी ट्रिन ट्रिन वाली घंटी होती थी. इन दिनो आधे कटे एप्पल वाले मंहगे  मोबाइल हों या एनड्राइड डिवाईस कालर ट्यून से लेकर मैसेज या व्हाट्सअप काल, यहां तक की व्यक्ति विशेष के लिये भी अलग,भांति भांति के सुरों की घंटी तय करने की सुविधा हमारे अपने हाथ होती है. समय के साथ की पैड वाले इलेक्ट्रानिक फोन  और अब हर हाथ में मोबाइल का नारा सच हो रहा है, लगभग हर व्यक्ति के पास दो मोबाइल या कमोबेश डबल सिम मोबाइल में दो सिम तो हैं ही. आगे आगे देखिये होता है क्या ? क्योकि टेक्नालाजी गतिशील है. क्या पता कल को बच्चे को वैक्सिनेशन की तरह ही सिम प्रतिरोपण की प्रक्रिया से गुजरना पड़े. फिर न मोबाइल गुमने का झंझट होगा, न बंद होने का. आंखो के इशारे से गदेली में अधिरोपित इनबिल्ट मोबाइल से ही हमारा स्वास्थ्य, हमारा बैंक, हमारी लोकेशन, सब कुछ नियंत्रित किया जा सकेगा. पता नही इस तरह की प्रगतिशीलता से हम मोबाइल को नियंत्रित करेंगे या मोबाइल हमें नियंत्रित करेगा.

एक समय था जब टेलीफोन आपरेटर की शहर में बड़ी पहचान और इज्जत होती थी, क्योकि वह ट्रंक काल पर मिनटो में किसी से भी बात करवा सकता था. शहर के सारे सटोरिये रात ठीक आठ बजे क्लोज और ओपन के नम्बर जानने, मटका किंग से हुये इशारो के लिये इन्हीं आपरेटरो पर निर्भर होते थे.समय बदल गया है  आज तो पत्नी भी पसंद नही करती कि पति के लिये कोई काल उसके मोबाइल पर आ जाये. अब जिससे बात करनी हो सीधे उसके मोबाइल पर काल करने के एटीकेट्स हैं.पर मुझे स्मरण है उन टेलीफोन के पुराने दिनो में हमारे घर पर पड़ोसियो के फोन साधिकार आ जाते थे.बुलाकर उन्हें बात करवाना पड़ोसी धर्म होता था. तब निजता की आज जैसी स्थितियां नहीं थी, आज तो बच्चो और पत्नी का मोबाइल खंगालना भी आउट आफ एटीकेट्स माना जाता है. उन दिनो लाइटनिंग काल के चार्ज आठ गुने लगते थे अतः लाइटनिंग काल आते ही लोग किसी अज्ञात आशंका से सशंकित हो जाते थे. विद्युत विभाग में बिजली की हाई टेंशन लाइन पर पावर लाइन कम्युनिकेशन कैरियर की अतिरिक्त सुविधा होती है, जिस पर हाट लाइन की तरह बातें की जा सकती है,  ठीक इसी तरह रेलवे की भी फोन की अपनी समानांतर व्यवस्था है. पुराने दिनो में कभी जभी अच्छे बुरे महत्वपूर्ण समाचारो के लिये  लोग अनधिकृत रूप से  इन सरकारी महकमो की व्यवस्था का लाभ मित्र मण्डली के जरिये उठा लिया करते थे.

मोबाइल सिखाता है कि बातो के भी पैसे लगते हैं और बातो से भी पैसे बनाये जा सकते हैं. यह बात मेरी पत्नी सहित महिलाओ की समझ आ जाये तो दोपहर में क्या बना है से लेकर पति और बच्चो की लम्बी लम्बी बातें करने वाली हमारे देश की महिलायें बैठे बिठाये ही अमीर हो सकती हैं.अब मोबाइल में रिश्ते सिमट आये  हैं. मंहगे मोबाईल्स, उसके फीचर्स, मोबाइल  कैमरे के पिक्सेल वगैरह अब महिलाओ के स्टेटस वार्तालाप के हिस्से हैं.अंबानीज ने बातो से रुपये बनाने का यह गुर सीख लिया है, और अब सब कुछ जियो हो रहा है. मोबाइल को इंटरनेट की शक्ति क्या मिली है, दुनियां सब की जेब में है.अब  कोई ज्ञान को दिमाग में नही बिठाना चाहता इसलिये ज्ञान गूगल जनित जानकारी मात्र बनकर जेब में रखा रह गया है. मोबाइल काल रिकॉर्ड हो कर वायरल हो जाये तो लेने के देने पड़ सकते हैं. काल टेपिंग से सरकारें हिल जाती हैं. मोबाइल पर बातें ही नही,फोटो, जूम मीट,  मेल,ट्वीट्स, फेसबुक, इंस्टा, खेल, न्यूज, न्यूड सब कुछ तो हो रहा है, ऐसे में मोबाइल विकी लीक्स , स्पाइंग का साधन बन रहा है तो आश्चर्य नही होना चाहिये. मोबाइल लोकेशन से नामी गिरामी अपराधी भी धर लिये जाते हैं.  बाजार में सुलभ कीमत के अनुरूप गुणवत्ता का मोबाइल चुनना और मोबाइल प्लान के ढ़ेरो आफर्स में से अपनी जरूरत के अनुरूप सही विकल्प चुनना आसान नही है. कही कुछ है तो कहीं कुछ और, आज मोबाइल का माडल अभिजात्य वर्ग में स्टेटस सिंबल है.   इतनी अधिक विविधताओं के बीच चयन करके हर हाथ मोबाइल के शस्त्र से सुसज्जित है यह सबके लिये गर्व का विषय है.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 59 – डोल रही है सारी धरती ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  एक  अतिसुन्दर एवं सार्थक कविता  “डोल रही है सारी धरती ।  एक विचारणीय कविता। इस सार्थक कविता के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 59 ☆

☆ डोल रही है सारी धरती

 

आज यशोदा के कान्हा को

फिर से बहुत पुकारा है

डोल रही है सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा है

 

मचा हुआ जीवन कोलाहल

छलकता विष का प्याला है

धू-धू करती आग उगलती

हर रिश्तो में ज्वाला है

 

डोल रहीं हैं सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा हैं

 

झर-झर बहते अश्रु धार

नैनो के बीच समाया है

थिरक थिरक मधुमास लिए

गुलशन बना मधुशाला है

 

डोल रहीं हैं सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा हैं

 

कौन श्रृंगार करे दर्पण से

हर चेहरा मुखौटा है

जीवन में उन्माद समाया

सांझ यौवन नशीला है

 

डोल रही हैं सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा है

 

न दिया की बाती कोई

अब ना भेंट भलाई है

बना हुआ कैसा उलझन

शोर मचाती तरुणाई है

 

डोल रही हैं सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा हैं

 

कटुता समाए मन में

दिखाता छल छलावा है

लगाए बातों की मक्खन

पीठ में खंजर चुभाता है

 

डोल रही है सारी धरती

अब तुम्हारा सहारा है

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 59 ☆ कवितेचा पक्षी ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं भावप्रवण कविता  “कवितेचा पक्षी।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 59 ☆

☆ कवितेचा पक्षी ☆

 

माझ्या कवितेचा पक्षी

फिरे आकाशी चौफेर

 

मोत्या सारखं अक्षर

त्याला विणण्याला जर

अशी मोत्याची या माळ

कंठी जाता होई सूर

 

कशी शब्दांच्या या भाळी

बिंदी शोभते कपाळी

कुंकू भाळात भरलं

चंद्रकोर त्याच्यावर

 

मात्रा असते बोलकी

जशी खांद्यावर काठी

कुणी भेटता नाठाळ

देई शब्दांचा ही मार

 

शब्द करतो संस्कार

तोच जीवनी आधार

जरा जपून वापरा

त्याला असते हो धार

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे। )

  ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

 

दोहों के दरबार में, हाजिर दोहा कार ।

सिंधु समाता सीप में, दोनों में संसार दोहा ।।

 

दोहा, दूहा, दोहरा, संबोधन के नाम।

वामन काया में छिपा, याद रंग अभिराम ।।

 

खुसरो ने दोहे कहे, कहे कबीर कमाल ।

फिर तुलसी ने खोल दी, दोहों की टकसाल।।

 

गंग, वृंद, दादू वली, या रहीम मतिराम ।।

दोहों के रस लीन से, कितने हुए इमाम ।।

 

दोहे हम भी रच रहे, कविवर हुए अनेक।

किंतु बिहारी की छटा, घटा न पाया एक।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 11 – ओ सुहागिन झील ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत  “ओ सुहागिन झील”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 11 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ ओ सुहागिन झील  ☆

 

लक्ष्य को संधान करते

देखता है नील

धनुष की डोरी चढ़ाते

काँपता है भील

 

कथन :: एक

 

बस अँगूठा, तर्जनी की

पकड़ का यह संतुलन भर

आदमी की हिंस्र लोलुप

वृत्ति का उपयुक्त स्वर

 

या प्रतीक्षित परीक्षण का

मौन यह उपक्रम अनूठा

या कदाचित अनुभवों

की पुस्तिका अश्लील

 

कथन :: दो

 

पुण्य पापों की समीक्षा

के लिये उद्यत व्यवस्था

याक जंगल के नियम को

जाँचने कोई अवस्था

 

या प्रमाणों में कहीं

बचता बचाता झूठ कोई

दी गई जिसको यहाँ पर

फिर सुरक्षित ढील

 

कथन:: तीन

 

गहन हैं निश्चित यहाँ की

राजपोषित सब प्रथायें

फिर कहाँवन के प्रवर्तित

रूप पर कर लें सभायें

 

पैरव फैलाये थके हैं

सभी पाखी अकारण ही

जाँच लेतू भी स्वयं को

ओ! सुहागिन झील

 

© राघवेन्द्र तिवारी

27-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 58 ☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – बड़ा उपन्यास ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनके द्वारा स्व हरिशंकर परसाईं जी के जीवन के अंतिम इंटरव्यू का अंश।  श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी ने  27 वर्ष पूर्व स्व  परसाईं जी का एक लम्बा साक्षात्कार लिया था। यह साक्षात्कार उनके जीवन का अंतिम साक्षात्कार मन जाता है। आप प्रत्येक सोमवार ई-अभिव्यिक्ति में श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के सौजन्य से उस लम्बे साक्षात्कार के अंशों को आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 58 

☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – बड़ा उपन्यास ☆ 

जय प्रकाश पाण्डेय –

आपके बहुत सारे पाठकों-प्रशंसकों से की प्रबल इच्छा रही है कि छोटे-आकार-प्रकार वाले लेखों-टिप्पणियों में जिनमें स्तम्भ लेखन भी शामिल है, से मुक्त होकर अब आपको कोई बड़ा उपन्यास या नाटक या ऐसी ही कोई और चीज लिखनी चाहिए, कोई ऐसी रचना जिसमें समकालीन जीवन अपेक्षाकृत अधिक विविधता और सम्पूर्णता के साथ एक जगह चित्रित हो सके, इस इच्छा में क्या आप स्वंय को भी शामिल मानते हैं ?

हरिशंकर परसाई –

हां, मुझसे अपेक्षा तो बहुत पहले से की जा रही है, मैं उस तरह का उपन्यास, जिसको परंपरागत उपन्यास कहते हैं, उसको तो नहीं लिख सकता। मुझमें वह टेलेंट नहीं है और जैसा कि मैंने आपसे कहा कि मैं एक फेन्टेसी उपन्यास लिख सकता हूं, जिसमें सभी क्षेत्र आ जावें जीवन के, और कोशिश भी कर रहा था उसके लिए…..अब इस अवस्था में जबकि मेरा स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता, क्षीणता भी आ गई है, मैं उतनी मेहनत भी नहीं कर पाता….उम्र भी 71 साल के लगभग हो रही है, मैं कोई उपन्यास बड़ा लिख सकूंगा उसकी मुझे अभी संभावना तो नहीं दिखती है। हो सकता है कि कुछ परिस्थितियां पलटें और मैं लिखूं। लिखना जरूर चाहता हूँ, लेकिन फिर या तो किसी व्यक्ति को लेकर, उसके जीवन पर आधारित उपन्यास, जिसमें और भी बहुत से पात्र आ जावेंगे, उसमें समाज का चित्रण हो सकेगा या फिर वौ एक लम्बी फेन्टेसी होगी उपन्यास के रूप में। मैं आशा करता हूं कि जैसी अपेक्षा है मुझसे, इस तरह का एक बड़ा उपन्यास लिखूं……

……………………………..क्रमशः….

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 10 ☆ कोरोना काळातील संवेदना…☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी)  मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “कोरोना काळातील संवेदना…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 10 ☆ 

☆ कोरोना काळातील संवेदना… 

 

कोरोना काळातील संवेदना

कैसी विशद करावी

अनपेक्षित या विपदेची

भरपाई कैसी मिळावी…१

 

विदेशी संक्रमण झाले

नेस्तनाबूत करून गेले

पडल्या प्रेताच्या राशी

अंत्यविधी, हात न लागले… २

 

मातृभूमी आठवताच

पदयात्रा कुठे निघाली

उपवास घडले अनेकांना

कित्येकांची कोंडमारी झाली… ३

 

अजगर रुपी विषाणू

मजूर वर्ग, हकनाक संपला

शेवटचे स्वप्न, रात्र न पुरली

रक्त, मांस सडा, शिंपल्या गेला… ४

 

आईचा पान्हा जसा आटला

अवकाळी देह पार्थिव बनला

स्वार्थ मोह, क्षणात सुटता

शेवटचा श्वास, कुणी घेतला… ५

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

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