श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक सार्थक व्यंग्य  समझ लेते हैं गुफ्तगू, रिंग टोन से। इस अत्यंत सार्थक  व्यंग्य के लिए श्री विवेक जी का हार्दिक आभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 67 ☆

☆ व्यंग्य – समझ लेते हैं गुफ्तगू, रिंग टोन से ☆

व्हाट इज योर मोबाइल नम्बर, जमाना मोबाइल का है.   खत का मजमूं जान लेते हैं लिफाफा देखकर वाले शेर का नया अपडेटेड वर्शन कुछ इस तरह हो सकता है कि ” समझ लेते हैं गुफ्तगू का मकसद, मोबाइल की रिंग टोन से “. लैंड लाइन टेलीफोन, मोबाइल के ग्रांड पा टाइप के रिलेशन में था हो गया है.  टेलीफोन के जमाने में हमारे जैसे अधिकारियो को लोगो को छोटी मोटी नौकरी पर रख लेने के अधिकार थे. आज तो नौकरियां विज्ञापन, लिखित परीक्षा, साक्षात्कार, परिणाम, फिर कोर्ट केस के रास्ते वर्षौ बाद हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के लम्बे रास्ते से मिला करती हैं, पर उन दिनो नौकरी के इंटरव्यू से पहले अकसर सिफारिशी टेलीफोन आना बड़ा कामन था. सेलेक्शन का एक क्राइटेरिया यह भी होता था कि सिफारिश किसकी है. मंत्री जी की सिफारिश और बड़े साहब की सिफारिश के साथ ही रिश्तेदारो की सिफारिश के बीच संतुलन बनाना पड़ता था. एक सिफारिशी घंटी केंडीडेट का भाग्य बदलने की ताकत रखती थी.  नेता जी से संबंध अक्सर टेलीफोन की सिफारिशी घंटी बजवाने के काम आते थे. सिफारिशी खत से लिखित साक्ष्य के खतरे को देखते हुये सिफारिश करने वाला फोन का ही सहारा लेता था. तब काल रिकार्डिंग जैसे खतरे कम थे.हमारे जैसे ईमानदार बनने वाले लोग रिंग टोन से अंदाज लगा लेते कि गुफ्तगू का प्रयोजन क्या होगा और साहब नहा रहे हैं टाइप के बहाने बनाने के लिये पत्नी को फोन टिका दिया करते थे. तब नौकरियां आज की तरह कौशल पर नही डिग्रियों से मिल जाया करती थीं.   घर दफ्तर में फोन होना तब स्टेटस सिंबल था. आज भी विजिटिंग कार्ड का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मोबाइल और टेलीफोन नम्बर बने हुये हैं.  दफ्तर की टेबिल का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण  टेलीफोन होता है. और टेलीफोन का एक सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है सिफारिश.न सही नौकरी पर किसी न किसी काम के लिये देख लेने, या फिर सीधे धमकी के रूप में देख लेने के काम टेलीफोन से बखूबी लिये जाते हैं.  टेलीफोन की घंटी से, टेबल के सामने साथ बैठा व्यक्ति गौण हो जाता है,और दूर टेलीफोन के दूसरे छोर का आदमी महत्वपूर्ण हो जाता है.

जिस तरह पानी ऊंचाई से नीचे की ओर प्रवाहित होता है उसी तरह टेलीफोन या मोबाइल में हुई वार्तालाप का सरल रैखिक सिद्धांत है कि इसमें हमेशा ज्यादा महत्वपूर्ण आदमी, कम महत्वपूर्ण आदमी को आदेशित करता है. उदाहरण के तौर पर मेरी पत्नी मुझे घर से आफिस के टेलीफोन पर इंस्ट्रक्शन्स देती है. मंत्री जी, बड़े साहब को और बड़े साहब अपने मातहतो को महत्वपूर्ण या गैर महत्वपूर्ण कार्यो हेतु भी महत्वपूर्ण तरीके से मोबाइल पर ही आदेशित करते हैं. टेलीफोन के संदर्भ में एक व्यवस्था यह भी है कि  बड़े लोग अपना टेलीफोन स्वयं नहीं उठाते. इसके लिये उनके पास पी ए टाइप की कोई सुंदरी होती है जो बाजू के कमरे में बैठ कर उनके लिये यह महत्वपूर्ण कार्य करती है और महत्वपूर्ण काल ही उन तक फारवर्ड करती है. नेता जी के मोबाइल उनके विश्वस्त के हाथों में होते हैं, जो बड़े विशेष अंदाज में जरूरी काल्स पर ही नेता जी को मोबाइल देते हैं, वरना संदेशन खेती करनी पड़ती है. और राजगीर के लड्डुओ के संदेश जितने टोकनों से गुजरते हैं, हर टोकने में इतना तो झर ही जाते हैं कि एक नया लड्डू बन जाता है, इस तरह सभी को बिना गिनती कम हुये लड्डुओ का भोग चढ़ जाता है, लोगों के काम हो जाते हैं.

टेलीफोन एटीकेट्स के अनुसार मातहत को अफसर की बात सुनाई दे या न दे, समझ आये या न आये, किन्तु सर ! सर ! कहते हुये आदेश स्वीकार्यता का संदेश अपने बड़े साहब को देना होता है. जो बहुत ओबीडियेंट टाइप के कुछ पिलपिले से अफसर होते हैं वे बड़े साहब का टेलीफोन आने पर अपनी सीट पर खड़े होकर बात करते हैं. ऐसे लोगो को नये इलेक्ट्रानिक टेलीफोन में कालर आई डी लग जाने से लाभ हुआ है और अब उन्हें एक्सटेंपोर अफसरी फोन काल से मुक्ति मिल गई है, वे साहब की काल पहचान कर पहले ही अपनी मानसिक तैयारी कर सकते हैं .  यदि संभावित  गुफ्तगू के मकसद का अंदाज इनकमिंग काल के नम्बर से लगा लिया जाता  है,  तो यह पहचान बड़े काम की होती है. सावधानी में सुरक्षा निहित होती ही है. बड़े साहब का मोबाइल आने पर ऐसे लोग तुरंत सीट से उठकर चलायमान हो जाते हैं. यह बाडी लेंगुएज,उनकी मानसिक स्थिति की परिचायक होती है. एसएमएस से तो बचा जा सकता है कि मैसेज पढ़ा ही नही, पर मुये व्हाट्सअप ने कबाड़ा कर रखा है, इधर दो टिक नीले क्या हुये सामने वाला कम्पलाइंस की अपेक्षा करने लगता है. इससे बचाव के लिये अब व्हाट्सअप सैटिंग्स में परिवर्तन किया जाना  पसंद किया जाने लगा है.

हमारी पीढ़ी ने चाबी भरकर इंस्ट्रूमेंट चार्ज करके बात करने वाले  टेलीफोन के समय से आज के टच स्क्रीन मोबाइल तक का सफर अब तक तय कर लिया है. इस बीच डायलिंग करने वाले मेकेनिकल फोन आये जिनकी एक ही रिटी पिटी ट्रिन ट्रिन वाली घंटी होती थी. इन दिनो आधे कटे एप्पल वाले मंहगे  मोबाइल हों या एनड्राइड डिवाईस कालर ट्यून से लेकर मैसेज या व्हाट्सअप काल, यहां तक की व्यक्ति विशेष के लिये भी अलग,भांति भांति के सुरों की घंटी तय करने की सुविधा हमारे अपने हाथ होती है. समय के साथ की पैड वाले इलेक्ट्रानिक फोन  और अब हर हाथ में मोबाइल का नारा सच हो रहा है, लगभग हर व्यक्ति के पास दो मोबाइल या कमोबेश डबल सिम मोबाइल में दो सिम तो हैं ही. आगे आगे देखिये होता है क्या ? क्योकि टेक्नालाजी गतिशील है. क्या पता कल को बच्चे को वैक्सिनेशन की तरह ही सिम प्रतिरोपण की प्रक्रिया से गुजरना पड़े. फिर न मोबाइल गुमने का झंझट होगा, न बंद होने का. आंखो के इशारे से गदेली में अधिरोपित इनबिल्ट मोबाइल से ही हमारा स्वास्थ्य, हमारा बैंक, हमारी लोकेशन, सब कुछ नियंत्रित किया जा सकेगा. पता नही इस तरह की प्रगतिशीलता से हम मोबाइल को नियंत्रित करेंगे या मोबाइल हमें नियंत्रित करेगा.

एक समय था जब टेलीफोन आपरेटर की शहर में बड़ी पहचान और इज्जत होती थी, क्योकि वह ट्रंक काल पर मिनटो में किसी से भी बात करवा सकता था. शहर के सारे सटोरिये रात ठीक आठ बजे क्लोज और ओपन के नम्बर जानने, मटका किंग से हुये इशारो के लिये इन्हीं आपरेटरो पर निर्भर होते थे.समय बदल गया है  आज तो पत्नी भी पसंद नही करती कि पति के लिये कोई काल उसके मोबाइल पर आ जाये. अब जिससे बात करनी हो सीधे उसके मोबाइल पर काल करने के एटीकेट्स हैं.पर मुझे स्मरण है उन टेलीफोन के पुराने दिनो में हमारे घर पर पड़ोसियो के फोन साधिकार आ जाते थे.बुलाकर उन्हें बात करवाना पड़ोसी धर्म होता था. तब निजता की आज जैसी स्थितियां नहीं थी, आज तो बच्चो और पत्नी का मोबाइल खंगालना भी आउट आफ एटीकेट्स माना जाता है. उन दिनो लाइटनिंग काल के चार्ज आठ गुने लगते थे अतः लाइटनिंग काल आते ही लोग किसी अज्ञात आशंका से सशंकित हो जाते थे. विद्युत विभाग में बिजली की हाई टेंशन लाइन पर पावर लाइन कम्युनिकेशन कैरियर की अतिरिक्त सुविधा होती है, जिस पर हाट लाइन की तरह बातें की जा सकती है,  ठीक इसी तरह रेलवे की भी फोन की अपनी समानांतर व्यवस्था है. पुराने दिनो में कभी जभी अच्छे बुरे महत्वपूर्ण समाचारो के लिये  लोग अनधिकृत रूप से  इन सरकारी महकमो की व्यवस्था का लाभ मित्र मण्डली के जरिये उठा लिया करते थे.

मोबाइल सिखाता है कि बातो के भी पैसे लगते हैं और बातो से भी पैसे बनाये जा सकते हैं. यह बात मेरी पत्नी सहित महिलाओ की समझ आ जाये तो दोपहर में क्या बना है से लेकर पति और बच्चो की लम्बी लम्बी बातें करने वाली हमारे देश की महिलायें बैठे बिठाये ही अमीर हो सकती हैं.अब मोबाइल में रिश्ते सिमट आये  हैं. मंहगे मोबाईल्स, उसके फीचर्स, मोबाइल  कैमरे के पिक्सेल वगैरह अब महिलाओ के स्टेटस वार्तालाप के हिस्से हैं.अंबानीज ने बातो से रुपये बनाने का यह गुर सीख लिया है, और अब सब कुछ जियो हो रहा है. मोबाइल को इंटरनेट की शक्ति क्या मिली है, दुनियां सब की जेब में है.अब  कोई ज्ञान को दिमाग में नही बिठाना चाहता इसलिये ज्ञान गूगल जनित जानकारी मात्र बनकर जेब में रखा रह गया है. मोबाइल काल रिकॉर्ड हो कर वायरल हो जाये तो लेने के देने पड़ सकते हैं. काल टेपिंग से सरकारें हिल जाती हैं. मोबाइल पर बातें ही नही,फोटो, जूम मीट,  मेल,ट्वीट्स, फेसबुक, इंस्टा, खेल, न्यूज, न्यूड सब कुछ तो हो रहा है, ऐसे में मोबाइल विकी लीक्स , स्पाइंग का साधन बन रहा है तो आश्चर्य नही होना चाहिये. मोबाइल लोकेशन से नामी गिरामी अपराधी भी धर लिये जाते हैं.  बाजार में सुलभ कीमत के अनुरूप गुणवत्ता का मोबाइल चुनना और मोबाइल प्लान के ढ़ेरो आफर्स में से अपनी जरूरत के अनुरूप सही विकल्प चुनना आसान नही है. कही कुछ है तो कहीं कुछ और, आज मोबाइल का माडल अभिजात्य वर्ग में स्टेटस सिंबल है.   इतनी अधिक विविधताओं के बीच चयन करके हर हाथ मोबाइल के शस्त्र से सुसज्जित है यह सबके लिये गर्व का विषय है.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments