हिन्दी साहित्य – कविता ☆ वंदे मातरम्,वंदे मातरम्…. ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता ‘वंदे मातरम्,वंदे मातरम्….’।)

☆ कविता – वंदे मातरम्,वंदे मातरम्…. ☆

सिर पर ताज हिमालय का है,

 सागर चरण पखारता,

गंगा यमुना की बाहों की,

 अंबर चमक निहारता,

 देश के हर कोने से उठता,

 हर स्वर यही पुकारता,

 वंदे मातरम्,वंदे मातरम्

 

 राम कृष्ण की भूमि है ये,

इस मिट्टी की शान है,

सभी देवता गोद में खेले,

 भारत भूमि महान है,

एक बंधन में हम सब आएं

एक ही सुर में मिलकर गाएं,

वंदे मातरम्,वंदे मातरम्

 

आओ मिलकर शपथ उठाएं,

भारत मां की आन की,

कभी शान ना झुकने पाए,

भारत मां की शान की,

भारत मां का दर्शन पाएं

सभी देवता सस्वर गाएं,

वंदे मातरम्,वंदे मातरम्

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ हे शब्द अंतरीचे # 164 ☆ अभंग… कृष्णप्रभू.!! ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆

महंत कवी राज शास्त्री

?  हे शब्द अंतरीचे # 164 ? 

☆ अभंग… कृष्णप्रभू.!! ☆ महंत कवी राज शास्त्री ☆/

जगाचा चालक, जगाचा मालक

जगाचा पालक, कृष्णप्रभू.!!

*

कर्म करण्याचा, सल्ला दिला ज्याने

विधी प्रामुख्याने, एकभक्ती.!!

*

त्याचे मी होवावे, त्यातची रमावे

तयाचे ऐकावे, लीलास्तोत्र.!!

*

कवी राज म्हणे, अंधार निघावा

मजला दिसावा, माझा कृष्ण.!!

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन, वर्धा रोड नागपूर – 440005

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ चर्पट पंजरिका स्तोत्र : मराठी भावानुवाद – रचना : आदि शंकराचार्य – मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

डाॅ. निशिकांत श्रोत्री 

? इंद्रधनुष्य ?

चर्पट पंजरिका स्तोत्र : मराठी भावानुवाद – रचना : आदि शंकराचार्य – मराठी भावानुवाद ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆

दिनमपि रजनी सायं प्रात: शिशिरवसन्तौ पुनरायात: ।

काल: क्रीडति गच्छत्यायुस्तदपि न मुच्चत्याशावायु: ।। १ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।

प्राप्ते संनिहिते मरणे नहि नहि रक्षति डुकृञ् करणे ।। (ध्रुवपदम्)

*

रात्रीनंतर दिवस येतसे दिवसानंतर रात्र

ऋतूमागुती ऋतू धावती कालचक्र अविरत

काळ धावतो सवे घेउनी पळे घटिका जीवन

हाव वासना संपे ना जरीआयुष्य जाई निघुन ॥१॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।

काळ येता समीप घोकंपट्टी रक्षण ना करते ॥ध्रु॥

*

अग्रे वह्नि: पृष्ठे भानू रात्रौ चिबुकसमर्पितजानु: ।

करतलभिक्षा तरुतलवासस्तदपि न मुच्चत्याशापाश: ।। २ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

पुढूनी अग्नी  दिवसा मागे भास्कर देहा भाजुन घेशी

हनुवटी घालुन गुढघ्यामध्ये थंडीने  कुडकुडशी

भिक्षा मागुन हातामध्ये तरुच्या खाली तू पडशी

मूढा तरी आशेचे जाळे गुरफटुनीया धरिशी ॥२॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।

*

यावद्वित्तोपार्जनसक्तस्तावन्निजपरिवारो रक्त: ।

पश्चाद्धावति जर्जरदेहे वार्तां पृच्छति कोऽपि न गेहे ।। ३ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

सगेसोयरे साथ देउनी मागुती पुढती घुटमळती

हाती तुझिया जोवर लक्ष्मी सुवर्णनाणी खणखणती

धनसंपत्ती जाता सोडुन वृद्ध पावले डळमळती

चार शब्द बोलाया तुजशी संगे सगे कोणी नसती ॥३॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।

*

जटिलो मुण्डी लुंचितकेश: काषायाम्बरबहुकृतवेष: ।

पश्यन्नपि च न पश्यति लोको ह्युदरनिमित्तं बहुकृतशोक: ।। ४ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

जटाजूटधारी मुंडित कुंतल करुनीया कर्तन

कषायवर्णी अथवा नानाविध धारण करिशी वसन

नखरे कितीक तरी ना कोणी पर्वा करिती  तयाची

जो तो शोक चिंता करितो अपुल्याच उदरभरणाची ॥४॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।

*

भगवद्गीता किंचिदधीता गंगाजल लवकणिकापीता ।

सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा तस्य यम: किं कुरते चर्चाम् ।। ५ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

मद्भगवद्गीता करता मनापासुनीया पठण

किंचित असेल केले जरी  गंगाजलासिया प्राशन

एकवार जरी श्रीकृष्णाशी अर्पण केले असेल अर्चन

यमधर्मा ना होई  धाडस करण्यासी त्याचे चिंतन ॥५॥

*

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।

अंगं गलितं पलितं मुण्डं दशनविहीनं जातं तुण्डम् ।

वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुच्चत्याशा पिण्डम् ।। ६ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

उरले नाही देहा त्राण केशसंभार गेला पिकुन

मुखात एकही दंत न शेष गेले बोळके त्याचे बनुन

जराजर्जर देहावस्था फिरण्या दण्डाचे त्राण

लोचट आशा तरी ना सोडी मनासिया ठेवी धरुन ॥६॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।

*

बालास्तावत्क्रीडासक्तस्तरुणस्तावत्तरुणीरक्त: ।

वृद्धस्तावच्चिन्तामग्न: पारे ब्रह्मणि कोऽपि न लग्न: ।। ७ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

लहानपण मोहवी सदैव खेळण्यात बागडण्यात

यौवन सारे व्यतीत होते युवती स्त्री आसक्तीत

जराजर्जर होता मग्न विविध कितीक चिंतेत

परमात्म्याचे परि ना कोणी करिते कधीही मनचिंतन ॥७॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।

*

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम् ।

इह संसारे खलु दुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ।। ८ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

पुनः पुनश्च  जन्म घेण्या मातेचा गर्भावास

पुनः पुनश्च मृत्यू येई जीवनास संपविण्यास

दुष्कर अपार भवसागर हा पार तरुनिया जाण्यास

कृपादृष्टीचा टाक मुरारे कटाक्ष मजला उद्धरण्यास ॥८॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

पुनरपि रजनी पुनरपि दिवस: पुनरपि पक्ष: पुनरपि मास: ।

पुनरप्ययनं पुनरपि वर्षं तदपि न मुच्चत्याशामर्षम् ।। ९ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

दिवस मावळे उदय निशेचा पुनरपि मग येई दिवस

पुनरपि येती जाती पुनरपि पक्षापश्चात मास

अयना मागुन अयने येती वर्षामागून येती वर्षे

कवटाळुन तरी बसशी  मनात आशा जोपासुनीया ईर्षे ॥९॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

वयसि गते क: कामविकार: शुष्के नीरे क: कासार: ।

नष्टे द्रव्ये क: परिवारो ज्ञाते तत्त्वे क: संसार: ।। १० ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

येता वयास ते वृद्धत्व कसला कामविकार

शुष्क होता सारे तोय कसले ते सरोवर

धनलक्ष्मी नाश पावता राही ना मग परिवार

जाणुनी घे या तत्वाला असार होइल संसार ॥१०॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

नारीस्तनभरनाभिनिवेशं मिथ्यामायामोहावेशम् ।

एतन्मांसवसादिविकारं मनसि विचारय बारम्बारम् ।। ११ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

पुष्ट उरोज खोल नाभी नारीचे ही माया

मोहविण्यासी नर जातीला आवेश दाविती त्या स्त्रिया

असती ते तर मांस उतींचे विकार फुकाचे भुलवाया

सुज्ञ होउनी पुनःपुन्हा रे विचार कर ज्ञानी व्हाया ॥११॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

कस्त्वं कोऽहं कुत आयात: का मे जननी को मे तात: ।

इति परिभावय सर्वमसारं विश्वं त्यक्त्वा स्वप्नविचारम् ।। १२ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

कोण मी असे तूही कोण अनुत्तरीत अजुनी हे प्रश्न

जननी कोण  ठाउक नाही असे पिता वा तो कोण

विचार विकार जीवनातले असती भासमय स्वप्न

जीवन आहे असार सारे जाणुनी होई सज्ञान ॥१२॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

गेयं गीतानामसहस्त्रं ध्येयं श्रीपतिरूपमजस्त्रम् ।

नेयं सज्जनसंगे चित्तं देयं दीनजनाय च वित्तम् ।। १३ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

नित्य पठण करी भगवद्गीता तथा विष्णुसहस्रनाम

श्रीपाद रूपाचे मनी निरंतर करित रहावे रे ध्यान 

साधूसंतांच्या सहवासी करी रे चित्तासी मग्न

दीनदुबळ्यांप्रती धनास अपुल्या करित रहावे दान ॥१३॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

यावज्जीवो निवसति देहे कुशलं तावत्पृच्छति गेहे ।

गतवति वायौ देहापाये भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये ।। १४ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

काया जोवर धरून आहे अपुल्या ठायी प्राण

सगे सोयरे कुशल पुसती आपुलकीचे ध्यान

जीव  सोडता देहासि तो पतन होउनि निष्प्राण

भये ग्रासुनी भार्या ही मग जाई तयासिया त्यागून ॥१४॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

सुखत: क्रियते रामाभोग: पश्चाद्धन्त शरीरे रोग: ।

यद्यपि लोके मरणं शरणं तदपि न मुच्चति पापाचरणम् ।। १५ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

काल भोगतो सुखात असता कामात उपभोगात

तदनंतर किती व्याधी ग्रासत पीडायासी देहात

शरण जायचे मरणालागी अखेर देहत्यागात

तरी न सोडुनी मोहा जगती सारे पापाचरणात ॥१५॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

रथ्याचर्पटविरचितकन्थ: पुण्यापुण्यविवर्जितपन्थ: ।

नाहं न त्वं नायं लोकस्तदपि किमर्थं क्रियते शोक: ।। १६ ।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

चार दिसांचे चंचल जीवन नशिबी चादर चिखलाची

पंथा भिन्न अनुसरले चाड मनी पापपुण्याची

नसेन मी नसशील ही तू नाही शाश्वत काहीही

शोक कशासी फुकाच करिशी जाणुनी घ्यावे ज्ञानाही ॥१६॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

कुरुते गंगासागरगमनं व्रतपरिपालनमथवा दानम् ।

ज्ञानविहीन: सर्वमतेन मुक्तिं न भजति जन्मशतेन ।। १७।।

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

गंगास्नान करूनिया  वा व्रतवैकल्यांचे पालन

दीनदुबळ्या केलेसी धन जरी अमाप तू दान

कर्मबंधा मुक्ती नाही जाहले जरी शतजन्म

मोक्षास्तव रे एकचि दावी मार्ग तुला ब्रह्मज्ञान ॥१७॥

भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।

*

॥ श्रीशंकराचार्यविरचितं चर्पट पंजरिका स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

*

॥ इति श्रीशंकराचार्यविरचित निशिकान्त भावानुवादित चर्पट पंजरिका स्तोत्र सम्पूर्ण ॥

अनुवादक : © डॉ. निशिकान्त श्रोत्री

एम.डी., डी.जी.ओ.

मो ९८९०११७७५४

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 233 ☆ व्यंग्य – जागी हुई अन्तरात्मा का उपद्रव ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर विचारणीय व्यंग्य – जागी हुई अन्तरात्मा का उपद्रव। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 233 ☆

☆ व्यंग्य –  जागी हुई अन्तरात्मा का उपद्रव

एक रात लल्लूलाल लिपिक ने सपना देखा कि यमराज उससे कह रहे हैं, ‘बेटा लल्लूलाल, तुमने खूब रिश्वत खायी है, इसलिए नरक में तुम्हारे लिए कमरा रिज़र्व हो गया है।’ उन्होंने लल्लूलाल को नरक के दृश्य भी दिखाये जिन्हें देखकर लल्लूलाल की घिघ्घी बँध गयी। डर के मारे उसकी नींद खुल गयी और वह सारी रात लेटा लेटा रोता रहा, अपने कान पकड़ पकड़ कर ऐंठता रहा।

दूसरे दिन दफ्तर में भी लल्लूलाल काम करने की बजाय अपनी टेबल पर सिर रखकर रोता रहा। उसके सब साथी उसके चारों तरफ एकत्र हो गये।

छोटेलाल ने पूछा, ‘क्या बात है लल्ल्रू? कोई ठेकेदार कुछ देने का वादा करके मुकर गया क्या? ऐसा हो तो बताओ, हम एक मिनट में उसकी खाट खड़ी कर देंगे।’

लल्लूलाल विलाप करके बोला, ‘नहीं भइया, मैंने बहुत पाप किया है, बहुत रिश्वत खायी है। अपना परलोक बिगाड़ लिया। अब मेरी अन्तरात्मा जाग गयी है। मैं अपने पापों को धोना चाहता हूँ।’

मिश्रा बोला, ‘कैसे धोओगे’?

लल्लूलाल ने जवाब दिया, ‘मैं ऊपर अफसरों को लिखकर अपने अपराध स्वीकार करूँगा, अखबारों में छपवाऊँगा। छज्जूमल एण्ड कम्पनी और गिरधारीलाल एण्ड संस से जितना पैसा लिया है सबका हिसाब दूँगा।’

छोटेलाल बोला, ‘बेटा, डिसमिस हो जाओगे। जेल भोगोगे सो अलग।’

लल्लूलाल सिर हिलाकर बोला, ‘चाहे जो हो, अब मुझे परलोक बनाना है।’

मिश्रा बोला, ‘बाल बच्चे भीख मांगेंगे।’

लल्लूलाल हाथ हिला कर बोला, ‘माँगें तो माँगें। मैंने कोई सालों का ठेका ले रखा है?’

यह सुनकर दफ्तर में खलबली मच गयी। बड़ी भागदौड़ शुरू हो गयी। बड़े बाबू अपनी तोंद हिलाते तेज़ी से लल्लूलाल के पास आये, बोले, ‘लल्लू, यह क्या पागलपन है?’

लल्लूलाल ने जवाब दिया, ‘कोई पागलपन नहीं है दद्दा। अब तो बस परलोक की फिकर करना है। बहुत नुकसान कर लिया अपना।’

बड़े बाबू बोले, ‘लेकिन जब तुम छज्जूमल वाले केस को कबूल करोगे तो पूछा जाएगा कि और किस किस ने लिया था।’

लल्लूलाल ने जवाब दिया, ‘पूछेंगे तो बता देंगे।’

बड़े बाबू ने माथे का पसीना पोंछा, बोले, ‘उसमें तो साहब भी फँसेंगे।’

लल्लूलाल बोला, ‘फँसें तो फँसें। हम क्या करें? जो जैसा करेगा वैसा भोगेगा।’

बड़े बाबू बोले, ‘तुम्हें साहब की नाराजगी का डर नहीं है?’

लल्लूलाल बोला, ‘अरे, जब डिसमिसल और जेल का डर नहीं रहा तब साहब की नाराजगी की क्या फिक्र करें।’

बड़े बाबू तोंद हिलाते साहब के कमरे की तरफ भागे। जल्दी ही साहब के केबिन में लल्लूलाल का बुलावा हुआ। साहब ने उसे खूब फटकार लगायी, लेकिन लल्लूलाल सिर्फ रो रो कर सिर हिलाता रहा। साहब ने परेशान होकर बड़े बाबू से कहा कि वे उसे उसके घर छोड़ आएँ और उस पर खड़ी नज़र रखें।

बड़े बाबू, छोटेलाल और दो-तीन अन्य लोग लल्लूलाल को पकड़कर घर ले गये और उसे बिस्तर पर लिटा दिया।

बड़े बाबू ने उसकी बीवी और लड़कों को बुलाकर कहा, ‘देखो, यह पागल तुम लोगों से भीख मँगवाने का इन्तजाम कर रहा है। इसे सँभालो, नहीं तो तुम कहीं के नहीं रहोगे।’

लल्लूलाल के बीवी-बच्चों ने उस पर कड़ी निगरानी शुरू कर दी। साहब के हुक्म से दफ्तर का एक आदमी चौबीस घंटे वहाँ मौजूद रहता। बड़े बाबू बीच-बीच में चक्कर लगा जाते। लल्लूलाल बाथरूम भी जाता तो कोई दरवाजे पर चौकीदारी करता। उसके कमरे से कागज-कलम हटा लिए गये। कोई मिलने आता तो घर का एक आदमी उसकी बगल में बैठा रहता।

लल्लूलाल ने छुट्टी लेने से इनकार कर दिया तो बड़े बाबू ने उससे कह दिया कि छुट्टी लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। वे हाजिरी- रजिस्टर लल्लूलाल के घर भेज देते और लल्लूलाल वहीं दस्तखत कर देता।

लल्लूलाल घर में दिन भर भजन- पूजा में लगा रहता था। सवेरे से वह नहा धोकर शरीर पर चन्दन पोत लेता और फिर दोपहर तक भगवान की मूर्ति के सामने बैठा रहता। बाकी समय वह रामायण पढ़ता रहता। घर के लोग उसके इस परिवर्तन से बहुत हैरान थे।

जब लल्लूलाल का चित्त कुछ शान्त हुआ तब साहब के इशारे पर बड़े बाबू ने उसके पास बैठकें करना शुरू किया। उन्होंने उसे बहुत ऊँच-नीच समझाया। कहा, ‘देखो लल्लूलाल, तुमने आगे के लिए रिश्वतखोरी छोड़ दी यह तो अच्छी बात है, लेकिन यह चिट्टियाँ लिखने वाला मामला ठीक नहीं है। इस बात की क्या गारंटी है कि ऊपर पहुँचने पर तुम्हें स्वर्ग मिल ही जाएगा? अगर वहाँ पहुँचने पर तुम्हें पिछले रिकॉर्ड के आधार पर ही नरक भेज दिया गया तब तुम्हारे दोनों लोक बिगड़ जाएँगे।’

लल्लूलाल सोच में पड़ गया।

बड़े बाबू उसे पुचकार कर बोले, ‘लल्लूलाल, तुम तो आजकल काफी पढ़ते हो। यह सब माया है। न कोई किसी से लेता है, न कोई किसी को देता है। सब अपनी प्रकृति से बँधे कर्म करते हैं। तुम बेकार भ्रम में पड़े हो।’

लल्लू लाल और गहरे सोच में पड़ गया, बोला, ‘लेकिन पुराने कर्मों का प्रायश्चित तो करना ही पड़ेगा दद्दा।’

बड़े बाबू बोले, ‘अरे, तो प्रायश्चित करने का यह तरीका थोड़े ही है जो तुम सोच रहे हो। इस तरीके से तो तुम्हारे साथ-साथ दस और लोगों को कष्ट होगा। दूसरों को कष्ट देना धर्म की बात नहीं है।’

लल्लूलाल चिन्तित होकर बोला, ‘तो फिर क्या करें?’

बड़े बाबू उसकी पीठ पर हाथ रख कर बोले, ‘मूरख! हमारे यहाँ तो पाप धोने का सीधा तरीका है। गंगा स्नान कर आओ।’

लल्लूलाल गंगा स्नान के लिए राजी हो गया। फटाफट उसकी तैयारी कर दी गयी। साहब का हुकुम हुआ कि छोटेलाल भी उसके साथ जाए, कहीं लल्लूलाल बीच में ही फिर पटरी से न उतर जाए।

छोटेलाल कुनमुनाया, बोला, ‘अभी से क्या गंगा स्नान करें?’

बड़े बाबू बोले, ‘बेटा, पिछला साफ कर आओ, फिर आगे की फिकर करो। ज्यादा एरियर एकत्र करना ठीक नहीं।’

उसने पूछा, ‘खर्च का इन्तजाम कहाँ से होगा?’

बड़े बाबू ने साहब से पूछा। साहब ने कहा, ‘छज्जूमल के यहांँ से पाँच हजार रुपया उठा लो। कह देना, धरम खाते में डाल देगा।’

और एक दिन लल्ल्रूलाल को उसकी बीवी और छोटेलाल के साथ ट्रेन में बैठा दिया गया। स्टेशन पर साहब भी उसे विदा करने आये। ट्रेन रवाना हो जाने पर उन्होंने लम्बी साँस छोड़ी।

दफ्तर लौटने पर बड़े बाबू जैसे थक कर कुर्सी पर पसर गये। मिश्रा से बोले, ‘भइया, यह अन्तरात्मा जब एक बार सो कर बीच में जाग जाती है तो बहुत गड़बड़ करने लगती है।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 231 – दृश्य-अदृश्य ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 231 ☆ दृश्य-अदृश्य ?

दृश्य और अदृश्य की बात अध्यात्म और मनोविज्ञान, दोनों करते हैं। यूँ देखा जाए तो मनोविज्ञान, अध्यात्म को समझने की भावभूमि तैयार करता है जबकि अध्यात्म, उदात्त मनोविज्ञान का विस्तार है। अदृश्य को देखने के लिए दर्शन, अध्यात्म और मनोविज्ञान को छोड़कर सीधे-सीधे आँखों से दिखते विज्ञान पर आते हैं।

जब कभी घर पर होते हैं या कहीं से थक कर घर पहुँचते हैं तो घर की स्त्री प्रायः सब्जी छील रही होती है। पति से बातें करते हुए कपड़ों की कॉलर पर जमे मैल को हटाने के लिए उस पर क्लिनर लगा रही होती है। टीवी देखते हुए वह खाना बनाती है। पति काम पर जा रहा हो या शहर से बाहर, उसके लिए टिफिन, पानी की बोतल, दवा, कपड़े सजा रही होती है। उसकी फुरसत का अर्थ हरी सब्जियाँ ठीक करना या कपड़े तह करना होता है।

पुरुष की थकावट का दृश्य, स्त्री के निरंतर श्रम को अदृश्य कर देता है। अदृश्य को देखने के लिए मनोभाव की पृष्ठभूमि तैयार करनी चाहिए। मनोभाव की भूमि के लिए अध्यात्म का आह्वान करना होगा। परम आत्मा के अंश आत्मा की प्रतीति जब अपनी देह के साथ हर देह में होगी तो ‘माताभूमि पुत्रोऽहम् पृथ्विया’ की अनुभूति होगी।

जगत में जो अदृश्य है, उसे देखने की प्रक्रिया शुरू हो गई तो भूत और भविष्य के रहस्य भी खुलने लगेंगे। मृत्यु और उसके दूत भी बालसखा-से प्रिय लगेंगे। आँख से  विभाजन की रेखा मिट जाएगी और समानता तथा ‘लव बियाँड बॉर्डर्स’ का आनंद हिलोरे लेने लगेगा।

जिनके जीवन में यह आनंद है, वे ही सच्चे भाग्यवान हैं। जो इससे वंचित हैं, वे आज जब घर पहुँचें तो इस अदृश्य को देखने से आरंभ करें। यकीन मानिए, जीवन का दैदीप्यमान नया पर्व आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण का 51 दिन का प्रदीर्घ पारायण पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। 🕉️

💥 साधको! कल महाशिवरात्रि है। शुक्रवार दि. 8 मार्च से आरंभ होनेवाली 15 दिवसीय यह साधना शुक्रवार 22 मार्च तक चलेगी। इस साधना में ॐ नमः शिवाय का मालाजप होगा। साथ ही गोस्वामी तुलसीदास रचित रुद्राष्टकम् का पाठ भी करेंगे।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 179 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 179 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 179) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 179 ?

☆☆☆☆☆

नज़र जिसकी समझ सके,

वही दोस्त है, वरना…

खूबसूरत चेहरे तो,

दुश्मनों के भी होते हैं..🌺

☆☆

Just a glance of whose…

Perceives you, is your friend,

Otherwise, even enemies

Too have pretty faces…!

☆☆☆☆☆

ना इलाज है,

ना है दवाई….

ए इश्क, तेरे टक्कर

की बला है आई…

☆☆

Neither exists any cure,

Nor is there any medicine,

O’ love, ailment matching you

Has emerged on the earth…!

☆☆☆☆☆

ये जब्र भी देखा है

तारीख की नज़रों ने

लम्हों ने खता की थी,

सदियों ने सजा पाई…!

☆☆

Have seen such constraints, too

Through the eyes of the time

Moments had committed mistake

But the centuries were punished!

☆☆☆☆☆

हर बार उड़ जाता है

मेरा कागज़ का महल…!

फ़िर भी हवाओं की

आवारगी पसंद है मुझे…🌺

☆☆

Flies away every time

My paper palace …!

Still I adore the winds

Loafing around freely…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ ऐसी भी एक मॉं … भाग-3 – लेखक – श्री अरविंद लिमये ☆ भावानुवाद – सुश्री सुनीता गद्रे ☆

सुश्री सुनीता गद्रे

☆ कथा कहानी ☆ ऐसी भी एक मॉं … भाग-3 – लेखक – श्री अरविंद लिमये ☆ भावानुवाद – सुश्री सुनीता गद्रे ☆

(हाॅं जी हाॅं! भेजेंगे न पैसे! क्योंकि यहाॅं एक तो पैसे की खुदान और दूसरा गुप्त धन का भंडार हाथ लगा है। बहु बोले जा रही थी और बेटा सिगरेट सुलगाकर धुएं के छल्ले पर नजर गढाए बैठा था। )…. अब आगे

पूरी रात उसको नींद नहीं आयी। अगले दिन जैसे ही बेटा ऑफिस चला गया, वह एक थैली में अपने चार कपड़े ठुॅंसकर बाहर निकली। बहू के लिए एक संदेश छोड़ना भी उसने जरुरी नहीं समझा। उसे मालूम था वे दोनो उसकी खोज खबर लेने का प्रयास भी नहीं करेंगे।

सीधी अपनी सहेली रमा के पास पहुॅंच गई। बचपन से ही दोनों में पक्की दोस्ती थी। दोनों अपने सुख दुख आपस में बाॅंटा करती थी। ….. फिर दोबारा हाथ में चकला बेलन! लेकिन इसमें अब पहले जैसी ताकत नहीं रहीथी। हाथ काॅंपने लगते थे। कोई जरूरतमंद महिला कुछ दिनों के लिए रख लेती, …. फिर दूसरा घर! सहेली की वजह सिर पर छत तो मिल गया था लेकिन पैसा कमाना जरुरी था।

वह काम के चक्कर में घूमती रही, एक दिन वह घूमते घूमते इधर आ गई। … पानसे वकील साहब के घर। पिताजी वकील थे अब वह नहीं रहे, पर छोटा बेटा, संतोष भी वकील बन गया है, इतनी उसे जानकारी थी। इन लोगों के घर में बहुत सालों तक उसने काम किया था। बहू बेटियों के जापे में वह बड़ी खुशी से मालिश का काम भी किया करती थी।

उसकी कहानी जानने के बाद संतोष ने उसको अपने घर में ही पनाह दे दी। दुबारा वह उस घर की सदस्य बन गई।

एक दिन अचानक एडवोकेट संतोष पानसे की चिट्ठी, इसके बेटे को मिल गई। …

लिखा था, ‘तुम्हारी अम्मा जी हमारे घर रह रही है, … पर काम करने के लिए नहीं। वह हमारी दादी जैसी है। बड़े मान सन्मान के साथ रह रही है। काम करने जितनी ताकत भी उसकी बुढी हड्डियों में नहीं है। …. और अगर होती तो भी उसको अब इतने कष्ट उठाने की क्या जरूरत है? तुम पढ़ लिख कर बड़े आदमी बन गए हो। तुम्हारी कमाई भी अच्छी खासी है। तुम यह अच्छी जिंदगी हासिल कर सको इसी बात के लिए तुम्हारी माँ ने अपना खून पसीना बहाया है। अब उसको अपने उस खून पसीने की कीमत चाहिए….. उसको तुमसे गुजारा भत्ता चाहिए। alimony….. क्यों डर गए? मैं वकील हूँ इसलिए उसने मेरी राय पूछी…. और उनकी बात मुझे सही लगी। मैंने उनका वकील पत्र लिया है। इस केस के लिए मैं उनसे एक पैसा भी नहीं लूॅंगा। एक माँ अपने बेटे के खिलाफ कोर्ट जाना चाहती है, वह भी बेटे को बड़ा करने में उसने जो कष्ट उठाएं, उसकी कीमत वह मांग रही है। …. बुढ़ापे में बिना परिश्रम किये जीवन आराम से, शांति से व्यतीत हो जाए इसलिए!…. तुम इसको उनके कष्ट का परतावा समझ सकते हो। यह बात मुझे अलग और बहुत ही प्रैक्टिकल लगी।

….. यह केस लड़ना मेरे लिए एक चुनौती है। तुमने उस पर अन्याय किया है। अब देखता हूँ न्याय देवता क्या करती है, वह अंधी जरूर है… पर तुम्हारी जैसी उल्टे कलेजे वाली नहीं है।

इसलिए उनको सुकून की जिंदगी जीने के लिए आवश्यक गुजारा भत्ता तुम्हें उनको मरते दम तक देना ही पड़ेगा। सोच समझकर निर्णय लेना, यह तुम्हें भेजी गई अनौपचारिक चिट्ठी है। फैसला तुम्हारे हाथ में है। अगर तुम मना करोगे कोर्ट का रास्ता हमेशा हमारे लिए खुला है।

बेटे ने चिट्ठी पढी, बीवी ने पढी… फाड़ कर फेंक दी।

फिर कोर्ट की तरफ से उसको नोटिस आया और कोर्ट में हियरिंग शुरू हो गयी। ऐसे अनोखे माँ की यह केस उस छोटे से गांव में चर्चा का विषय बन गयी। … और मॉं केस जीत भी गयी।  

बिते पूरे साल गुजारा भत्ता भेजते वक्त माँ की जिंदगी भर की मेहनत उसे याद आने लगी। बहू भी अब नरम पड़ गई थी। …पर थी तो पूरी पक्की स्वार्थी और तिकड़म चलाने वाली! वह बोली,

“इससे अच्छा तो सासू जी को अपने पास ही रखना सस्ता पड़ेगा। वह फायदे का सौदा होगा। ” पति के मन में भी यह बात उसने बोल बोल के… बोल बोल के… ठुॅंस दी… और अभी अम्मा को वापस ले जाने के लिए वह उनके घर के सामने खड़ा है।

“हाॅं! आपने सही पहचाना, मैं वही हूँ …. उस अम्मा का बदनसीब बेटा! 

मेरे बीवी के मन मेंअम्मा के प्रति बहुत ज्यादा प्यार वार नहीं उमडा है। लेकिन उसका शब्द हमारे घर में अंतिम शब्द है। और ज्यादा बोलना, बीवी से बहस करना मेरे स्वभाव में ही नहीं है। “

“वकील पानसे जी की राय ली थी, उन्होंने कहा, ‘मैं किसी तरह की राय देकर उस माता पर अन्याय नहीं कर सकता। अब जो करना है वह आपको ही, … और सोच समझकर करना है। ‘ अपनी जगह वे भी सही थे। “

“अब दरवाजे पर दस्तक देकर मुझे ही अंदर जाना पड़ेगा। मन से मैं वहाँ कभी का पहुॅंच गया हूँ । … पर कदम लड़खड़ा रहे हैं। लगता है, हमारे स्वार्थी इरादे की जरा सी भी भनक उसको लग जाय, या नहीं भी लग जाय… वह स्वाभिमानी माता सब कुछ भूल कर मेरे साथ आएगी यह बात नामुमकिन ही है। “

“कृपया आप जरा आगे जाकर, झाॅंक कर देखेंगे? क्या उसको बतायेंगे कि, आपका बेटा आपको अपने घर ले जाने के लिए आया है। “

**समाप्त **

मूल मराठी कथा (जगावेगळी) –लेखक: श्री अरविंद लिमये

हिन्दी भावानुवाद –  सुश्री सुनीता गद्रे 

माधवनगर सांगली, मो 960 47 25 805.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 178 ☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है दोहा सलिला।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 178 ☆

☆ दोहा सलिला ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

तज कर वाद-विवाद कर, आँसू का अनुवाद.

राग-विराग भुला “सलिल”, सुख पा कर अनुराग.

.

भट का शौर्य न हारता, नागर धरता धीर.

हरि से हारे आपदा, बौनी होती पीर.

.

प्राची से आ अरुणिमा, देती है संदेश.

हो निरोग ले तूलिका, रच कुछ नया विशेष.

.

साँस पटरियों पर रही, जीवन-गाड़ी दौड़.

ईधन आस न कम पड़े, प्यास-प्रयास ने छोड़.

.

इसको भारी जिलहरी, भक्ति कर रहा नित्य.

उसे रुची है तिलहरी, लिखता सत्य अनित्य.

.

यह प्रशांत तर्रार वह, माया खेले मौन.

अजय रमेश रमा सहित, वर्ना पूछे कौन?

.

सत्या निष्ठा सिंह सदृश, भूली आत्म प्रताप.

स्वार्थ न वर सर्वार्थ तज, मिले आप से आप.

.

नेह नर्मदा में नहा, कलकल करें निनाद.

किलकिल करे नहीं लहर, रहे सदा आबाद.

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२८.११.२०१७

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (18 मार्च से 24 मार्च 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (18 मार्च से 24 मार्च 2024) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

आप सभी को पंडित अनिल पाण्डेय का नमस्कार। आज हम आपसे 18 मार्च से 24 मार्च 2024 अर्थात विक्रम संवत 2080 शक संवत 1945 के फाल्गुन शुक्ल पक्ष की नवमी से फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के बारे में चर्चा करेंगे। इस चर्चा में सबसे पहले ग्रहों के गोचर के बारे में बताया जाएगा। उसके उपरांत विभिन्न मुहूर्त, विभिन्न दिवस तथा सर्वार्थ सिद्धि योग आदि के बारे में बताया जाएगा। इन सब के उपरांत राशिवार राशिफल के बारे में चर्चा की जाएगी।

इस सप्ताह प्रारंभ में चंद्रमा मीन राशि का रहेगा। 19 तारीख को 4:46 शाम से कर्क राशि में प्रवेश करेगा। चंद्रमा 21 तारीख को 2:44 रात से सिंह राशि का हो जाएगा। 24 तारीख को 2:19 मिनट दिन से चंद्रमा कन्या राशि में गोचर करेगा।

इस पूरे सप्ताह मंगल, शुक्र और शनि कुंभ राशि में रहेंगे। इसके अलावा पूरे सप्ताह सूर्य और बुद्ध मीन राशि में, गुरु मेष राशि में और वक्री राहु मीन राशि में गोचर करेंगे।

इस सप्ताह विवाह मुंडन अन्नप्राशन और गृह प्रवेश का कोई मुहूर्त नहीं है उपनयन संस्कार का मुहूर्त 20 और 21 मार्च को है नामकरण और व्यापार का मुहूर्त 20 मार्च को है।

इस सप्ताह 24 मार्च को 7:40 प्रातः से रात अंत तक सर्वार्थ सिद्धि योग है।

इस सप्ताह 20 और 21 तारीख को अत्यंत शुभ गजकेसरी योग बन रहा है। इस योग में जन्म लिए हुए बच्चे अत्यंत भाग्यशाली होते हैं। यह योग सभी राशि के जातकों के लिए बन रहा है फाइल में करके डालना और हमारी भी डाल दो उसी में

इस सप्ताह 21 मार्च से राष्ट्रीय शक संवत 1946 प्रारंभ हो रहा है। आप सभी को राष्ट्रीय शक संवत के नए वर्ष की बधाई।

24 मार्च को होलिका दहन है। 23 मार्च को भारत की स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु का शहीदी दिवस भी है। हम सभी इन शहीदों को नमन करते हैं।

आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। धन आने के उत्तम संयोग बनेंगे। कचहरी के कार्यों में सफलता मिलने में संशय है। नये शत्रु भी बन सकते हैं। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रह सकते हैं। अगर आप परिश्रम करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को समाप्त भी कर सकते हैं। आपके संतान को कष्ट हो सकता हैं। इस सप्ताह आपके लिए 20 और 21 मार्च को अद्भुत गजकेसरी योग बन रहा है। यह दिन आपके लिए अत्यंत उत्तम है। आप द्वारा किए गए सभी कार्य सफल होंगे। 24 मार्च को दोपहर के बाद कोई भी कार्य करते समय सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा का काम से कम तीन बार जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके माता जी और पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी बहुत समस्या आ सकती है। धन आने का उत्तम योग है परंतु इस धन के लिए आपको थोड़ा परिश्रम भी करना पड़ेगा। आपके खर्चे में वृद्धि होगी। आपके सुख में कमी हो सकती है। आपके संतान को उन्नति मिल सकती है। 22, 23 और 24 मार्च के दोपहर तक का समय आपके लिए अच्छा है। इस समय के दौरान आप द्वारा किए गए अधिकांश कार्यों में आपको सफलता मिल सकती है। 24 मार्च को सप्ताह के बाकी दिन ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवन साथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। भाग्य का आपके सहयोग प्राप्त होगा। धन आने की उम्मीद की जा सकती है। कार्यालय में आपकी स्थिति कभी अच्छी और कभी खराब रहेगी। इस सप्ताह आपको कचहरी के कार्यों में रिस्क नहीं लेना चाहिए। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। इस सप्ताह आपके सुख में थोड़ी कमी आ सकती है। इस सप्ताह आपको संतान का सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 मार्च अनुकूल है। आपको अपने प्रमुख कार्य 18 और 19 मार्च को निपटाना चाहिए। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कर्क राशि

इस बात की संभावना है कि इस सप्ताह आपको कुछ अच्छे संदेश प्राप्त हो। पिताजी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। कार्यालय में आपकी स्थिति में उन्नति होगी। भाग्य आपका साथ देगा। धन रुकने की संभावना कम है। भाई बहनों के साथ संबंध संबंधों में तनाव आ सकता है। व्यापार में शांति रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 20 और 21 मार्च उत्तम है। 18 और 19 मार्च को आपको सतर्क रहकर कोई कार्य करना चाहिए। 24 मार्च भी अनुकूल हो सकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

सिंह राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह उत्तम है। विवाह के अच्छे-अच्छे प्रस्ताव आएंगे। दुर्घटनाओं से बचने का उपाय करें। भाग्य आपका साथ देगा। कार्यालय में आपको सतर्क रह कर कार्य करना चाहिए। धन आने में कई बाधाएं हैं। व्यापार में आपको सतर्क रहना चाहिए। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी गड़बड़ी आ सकती है। माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए 22, 23 और 24 तारीख अनुकूल है। 22, 23 और 24 तारीख को आपके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य सफल होंगे। 20 और 21 तारीख को आपको सतर्क रहकर कोई भी कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह कन्या राशि के जातकों के कुंडली के गोचर में प्रबल शत्रुहन्ता योग बन रहा है। आपको अपने सभी दुश्मनों को परास्त करने के लिए इस समय का इस्तेमाल करना चाहिए। इस सप्ताह व्यापार आपका ठीक-ठाक चल सकता है। खून संबंधी कोई परेशानी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 मार्च कार्यों को करने के लिए अनुकूल है। आपको चाहिए कि आप अपने पेंडिंग कार्यों को 18 और 19 मार्च को करने का प्रयास करें। सफलता प्राप्त होगी। इसके अलावा 24 मार्च को भी सांयकाल 3:00 बजे के बाद का समय ठीक हो सकता है। 22, 23 और 24 मार्च के 3:00 बजे तक आपको कोई भी कार्य बड़े सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप मंगलवार को मसूर की दाल का दान गरीब के लोगों के बीच में करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

तुला राशि

तुला राशि के अविवाहित जातकों के लिए यह समय अच्छा है। आपके विवाह के उत्तम प्रस्ताव आ सकते हैं। इस सप्ताह आप अपने शत्रु को परास्त कर सकते हैं। व्यापार उत्तम चलेगा। आपको अपनी संतान से सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ संबंध पहले जैसे ही रहेंगे। भाग्य से आपको कोई विशेष सहयोग प्राप्त नहीं होगा। इस सप्ताह आपके लिए 20 और 21 मार्च कार्यों को करने के लिए अनुकूल हैं। 24 तारीख को दोपहर के बाद कोई भी कार्य करने के प्रति आपको सतर्क रहना चाहिए। आपको चाहिए कि आप इस सप्ताह गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपको समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकती है। जनता में आपकी लोकप्रियता में वृद्धि होगी। माता जी को ब्लड प्रेशर का रोग हो सकता है। पिताजी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। संतान से आपके सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों के पढ़ाई में कुछ बाधा पड़ सकती है। धन आने में अब देरी नहीं है। इस सप्ताह आपके पास में धन आएगा। भाग्य से आपको सामान्य सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 22 , 23 और 24 मार्च कार्यों को करने के लिए अनुकूल हैं। 18 और 19 मार्च को आपको कोई भी कार्य सावधानी पूर्वक करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। भाग्य आपकी मदद कर सकता है। कार्यालय में आपकी स्थिति अच्छी रहेगी। समाज में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। माता जी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी आ सकती है। पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपको अपनी संतान से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 मार्च शुभ है। 20 और 21 मार्च को आपको कोई भी कार्य करने में के पहले पूरी सावधानी बरतना चाहिए। 24 तारीख को 3:00 बजे दोपहर के बाद का समय भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका अपने भाई बहनों से अच्छा संपर्क हो सकता है। उनसे आपके संबंध ठीक-ठाक रहेंगे। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। धन आने की अच्छी संभावना है। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहेगा। माता जी के गर्दन या कमर में दर्द हो सकता है। पिताजी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। भाग्य आपकी थोड़ी बहुत मदद करेगा। इस सप्ताह आपके लिए 20 और 21 मार्च लाभदायक है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने की अच्छी संभावना है। परंतु वह धन संभवत रुक नहीं पाएगा। व्यापार में आपकी स्थिति ठीक-ठाक रहेगी। भाई बहनों के साथ उत्तम संबंध रहेंगे। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपको रक्त संबंधी कोई विकार हो सकता है। जीवनसाथी के कमर या गर्दन में दर्द हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 22, 23 और 24 के दोपहर तक का समय लाभदायक है। 20 और 21 तारीख तथा 24 तारीख के दोपहर के बाद आपको कोई कार्य करने में पूर्ण सतर्कता बरतनी चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। जीवनसाथी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। कार्यालय में आपको प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। धन आने के मार्ग में कुछ बाधाएं हो सकती हैं। भाई बहनों के साथ संबंध में तनाव हो सकता है। माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। भाग्य से आपको कोई विशेष आशा नहीं करना चाहिए। आपके जीवन साथी को रक्त संबंधी कोई विकार हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 18 और 19 मार्च लाभकारी है। 22, 23 और 24 मार्च को आपको सतर्क रहकर कोई कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप चीटियों को शक्कर खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

आपसे अनुरोध है कि इस पोस्ट का उपयोग करें और हमें इस पोस्ट के बारे में बतायें। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆– “निसर्गाचे लेणे…” – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

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देखण्या  फुलांनी

किती हे फुलावे ?

झाडाचे सौंदर्य 

किती वर्धीत व्हावे !

*

जणू अंथरे सृष्टी

मखमाली पाती 

विखुरले तयावर

शुभ्र धवल मोती

*

जवळ जाऊ पहाता

दरवळे सुगंध

केवळ पहाताच

दृष्टी सुखात धुंद

*

निरपेक्ष देत जाणे

निसर्गाचेच  लेणे

अवलंबून  आहे

शिकणे न शिकणे

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

मो 8149144177

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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