मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ हातगुण… ☆ सुश्री वर्षा बालगोपाल ☆

सुश्री वर्षा बालगोपाल

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

? हातगुण?  सुश्री वर्षा बालगोपाल 

हात टेकले प्रारब्धापुढे

पण संकटे मुळी जाईना

हात जोडता परमेश्वरा

आत्मबल मनीचे खचेना॥

*

हात पसरता कोणापुढे

मदत काडीचीही मिळेना

हात देता अडीला नडीला

कोडकौतूक ओघ थांबेना॥

*

हात सोडता संकटकाळी

कृतघ्नतेचा  ठसा पुसेना

हात धरता घट्ट हातात

जन्मांतरीची गाठ सुटेना॥

*

हात फिरता डोईवरूनी

आत्मविश्वास उरात दाटे

हात मोडला ना बाधा तरी

ना पायाला बोचतील काटे॥

*

हात उचलणे नाही नीती

थोडा संयम असावा अंगी

हात चालवावा कार्यक्षेत्रात

सफलता मिळणार जंगी॥

*

हात गुण असती अनेक

त्यातीलच हे असती काही

हात लाभता मनास मग

कार्यगतीस थांबा नाही॥

© सुश्री वर्षा बालगोपाल

मो 9923400506

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य #222 – व्यंग्य कविता – ☆ मृत्युपूर्व शवयात्रा की जुगाड़… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है होली पर एक व्यंग्य कविता मृत्युपूर्व शवयात्रा की जुगाड़…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #222 ☆

☆ मृत्युपूर्व शवयात्रा की जुगाड़… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

(होली पर एक व्यंग्य कविता)

मृत्यु पूर्व, खुद की

शवयात्रा पर करना तैयारी है

बाद मरण के भी तो

भीड़ जुटाना जिम्मेदारी है।

*

जीवन भर एकाकी रह कर

क्या पाया क्या खोया है

हमें पता है, कलुषित मन से

हमने क्या-क्या बोया है,

अंतिम बेला के पहले

करना कुछ कारगुजारी है।

मृत्युपूर्व खुद की शवयात्रा

पर करना………

*

तब, तन-मन में खूब अकड़ थी

पकड़  रसुखदारों  में  थी

बुद्धि, ज्ञान, साहित्य  सृजन

प्रवचन, भाषण नारों में थी,

शिथिल हुआ तन, बोझिल मन

इन्द्रियाँ स्वयं से हारी है।

मृत्युपूर्व…….

*

होता नाम निमंत्रण पत्रक में

“विशिष्ट”, तब जाते थे

नव सिखिए, छोटे-मोटे तो

पास फटक नहीं पाते थे,

रौबदाब तेवर थे तब

अब बची हुई लाचारी है।

मृत्युपूर्व……

*

अब मौखिक सी मिले सूचना

या अखबारों में पढ़ कर

आयोजन कोई न छोड़ते

रहें उपस्थित बढ़-चढ़ कर,

कब क्या हो जाये जीवन में

हमने बात विचारी है।

मृत्युपूर्व…….

*

हँसते-मुस्काते विनम्र हो

अब, सब से बतियाते हैं

मन-बेमन से, छोटे-बड़े

सभी को गले लगाते हैं,

हमें पता है,भीड़ जुटाने में

अपनी अय्यारी है।

मृत्युपूर्व…….

*

मालाएँ पहनाओ हमको

चारण, वंदन गान करो

शाल और श्रीफल से मेरा

मिलकर तुम सम्मान करो,

कीमत ले लेना इनकी

चुपचाप हमीं से सारी है।

मृत्युपूर्व…….

*

हुआ हमें विश्वास कि

अच्छी-खासी भीड़ रहेगी तब

मिशन सफल हो गया,खुशी है

रामनाम सत होगा जब,

जनसैलाब दर्शनीय, इतना

मर कर भी सुखकारी है।

मृत्युपूर्व…….

*

हम न रहेंगे, तब भी

शवयात्रा में अनुगामी सारे

राम नाम है सत्य,

साथ, गूँजेंगे अपने भी नारे,

जीतेजी उस सुखद दृश्य की

हम पर चढ़ी खुमारी है

मृत्युपूर्व……………

*

शव शैया से देख भीड़

तब मन हर्षित होगा भारी

पद्म सिरी सम्मान प्राप्ति की

कर ली, पूरी तैयारी,

कहो-सुनो कुछ भी,पर यही

भावना सुखद हमारी है।।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश के नवगीत # 46 ☆ समिधा हवन की… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆

श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “समिधा हवन की…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 46 ☆ समिधा हवन की… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

लिख रहा मौसम कहानी

दहकते अंगार वन की।

*

धरा बेबस

जन्मती हर ओर बंजर

हवाओं के

हाथ में विष बुझे ख़ंजर

*

ऋतुएँ तो बस आनी-जानी

रहीं गढ़ती व्यथा मन की।

*

पर्वतों से

निकलकर बहती नदी है

डूब जिसमें

बह रही शापित सदी है

*

बह गया आँखों का पानी

प्रतीक्षा में एक सपन की।

*

साँस पर

छाया हुआ कुहरा घना है

प्रदूषण

इस सृष्टि की अवमानना है

*

यह चराचर जगत फ़ानी

बन गया समिधा हवन की।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ कब वक़्त के थपेड़े, साहिल अ’ता करेंगे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆

श्री अरुण कुमार दुबे

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “कब वक़्त के थपेड़े, साहिल अता करेंगे“)

✍ कब वक़्त के थपेड़े, साहिल अ’ता करेंगे… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे 

जारी है जंग सबकी, रख धार ज़िन्दगीं की

है मौथरी बहुत ही,  तलवार ज़िन्दगीं की

 *

मजबूर कोई इंसां मज़लूम कोई इंसां

हटती नहीं है सर से तलवार ज़िन्दगीं की

 *

इक रोज मौत आकर,  ले जाएगी हमें भी

टूटेगी एक दिन ये, दीवार ज़िन्दगीं की

 *

किस्मत की पाँव जब भी, मंजिल के पास पहुँचे

हर बार आई आगे,  दीवार ज़िन्दगीं की

 *

कब वक़्त के थपेड़े, साहिल अता करेंगे

थमने पे आएगी कब,  तकरार ज़िन्दगीं की

 *

माँ बाप पा रहे हैं,  बच्चों से तर्बियत अब

कैसी अजीब है ये,  रफ़्तार ज़िन्दगीं की

 *

इल्मो अदब न आया,  तर्ज़े सुखन न आयी

सहनी पड़ेगी हमको,  फटकार ज़िन्दगीं की

 *

पज़मुर्दा हक़ शनासी, कल्बो ज़मीर बेहिस

लगती न कैसे भारी, दस्तार ज़िन्दगीं की

 *

मरते हुए बशर भी,  जीने को बेकरां है

रहती नहीं है किसको,  दरकार ज़िन्दगीं की

 *

हम भागकर कहाँ अब, जायेगें अपने सच से

सर पर रखी हुई,  दस्तार ज़िन्दगीं की

 *

जब राहे-इश्क़ पर हो,  तुम गामज़न अरुण तो

इक़रार ही समझना,  इनकार ज़िन्दगीं की

© श्री अरुण कुमार दुबे

सम्पर्क : 5, सिविल लाइन्स सागर मध्य प्रदेश

सिरThanks मोबाइल : 9425172009 Email : arunkdubeynidhi@gmail. com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कथा-कहानी # 95 – इंटरव्यू : 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख  “इंटरव्यू  : 1

☆ कथा-कहानी # 95 –  इंटरव्यू : 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

असहमत के पिताजी के दोस्त थे  शासन के उच्च पद पर विराजमान. जब तक कुछ बन नहीं पाये तब तक दोस्त रहे, बाद में बेवफा क्लासफेलो ही रहे. असहमत उन्हें प्यार से अंकल जी कहता था पर बहुत अरसे से उन्होंने असहमत से ” सुरक्षित दूरी ” बना ली थी. कारण ये माना जाता था कि शायद उच्च पदों के प्रशिक्षण में शिक्षा का पहला पाठ यही रहा हो या फिर  असहमत के उद्दंड स्वभाव के कारण लोग दूरी बनाने लगे हों पर ऐसा नहीं था .असली कारण असहमत का उनके आदेश को मना करने  का था और आदेश भी कैसा “आज हमारा प्यून नहीं आया तो हमारे डॉगी को शाम को बाहर घुमा लाओ ताकि वो “फ्रेश ” हो जाय.मना करने का कारण यह बिल्कुल नहीं था कि प्यून की जगह असहमत का उपयोग किया जा रहा है बल्कि असहमत के मन में कुत्तों के प्रति बैठा डर था. डर उसे सिर्फ कुत्तों से लगता था बाकियों को तो वो अलसेट देने के मौके ढूंढता रहता था.

कुछ अरसे बाद बड़े याने बहुत बड़े साहब रिटायर होकर फूलमालाओं के साथ घर आ गये. जिन्होंने उनकी विदाई पार्टी दी वो ऊपरी तौर पर दुल्हन के समान फूट फूट कर रो रहे थे पर अंदर से दूल्हे के समान खुश और रोमांचित थे. तारीफ इतनी की गई कि लगने लगा बैलगाड़ी बैल नहीं बल्कि यही या वही जो इनके घर के domestic थे, चला रहे थे.निश्चित रूप से शुरु में टेंशन में रहे कि अब ऑफिस कैसे चलेगा, समस्याओं को कौन हैंडल करेगा, विरासती लीडरशिप के बिना वक्त की सुई उल्टी न घूमने लगें. हालांकि बहुत दिलेरी से बोलकर आये थे कि “Call me any time when you need me and I am unofficially always there even after my official farewell” पर कॉल न आनी थी न आई बार बार चेक करने के बावजूद. जब भी घंटी बजती ,लपक के उठाते ,ऑफिस के बजाय इन्वेस्टमेंट ऐजेंट्स रहते जिन्हें मालुम पड़ चुका था कि साहब को फंड मिलने वाला है. म्यूचल फंड, Bank deposit schemes, LIC, different senior citizen schemes के मार्केटिंग प्रवचनों से तनाव बढ़ने लगा. अफसरी और ऑफिस का मोह जल्दी नहीं छूट पाता क्योंकि राम, बुद्ध, महावीर के देश में निर्विकार होने की कला रिटायरमेंट के बाद सिखाने वाला गुरुकुल है ही नहीं.

जारी रहेगा :::

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – 15 – चंदा ये कैसा धंधा? ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ ☆

श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मिलावटी दुनिया।)

☆ लघुकथा – चंदा ये कैसा धंधा? ☆ श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

दरवाजे की घंटी बजी और सामने एक बड़ा झुंड दिखाई दिया।

कहां गए बत्रा जी?

कमला उनको देखकर मन में विचार करने लगी अब क्या करूं तभी एकाएक उसके मुंह से कुछ शब्द निकले…

अभी देखा न घर से बाहर गए बत्रा जी आप कौन हैं?

एक काले मोटे बड़ी बड़ी मूंछ वाले लड़कों ने रसीद निकालते हुए कहा ऐसा है आंटी नई कमेटी बनी है चंदा दो।

अरे क्यों चंदा दे भाई हमारी कमेटी है।

वह भंग हो गई कारण नहीं बता सकते।

ऐसा कहीं होता है क्या मेंबर्स की मीटिंग भी हुई।

देखो आंटी वह सामने लाइट लगी है हमने लगवाई है ₹500 महीने देना पड़ेगा।

यह कोई जबरदस्ती है इतने में ही पड़ोस के चार लड़के आगे और बातों बातों में आग बबूला होने लगे मारपीट हो गई, सिर फुटौव्वल की नौबत आ गई।

कमला जी ने जोर से कहा – बच्चों शांत हो जाओ किसी बुजुर्ग को अपने साथ होता तो यह नौबत नहीं आती, देखो भाई हम तुम्हें नहीं जानते ना पहचानते हमारे मोहल्ले के तुम लग नहीं रहे हो?

ना दुआ ना सलाम ना राम राम तुम कैसे मेहमान?

बच्चों तुम लोग तो लाठी के जोर पर ऐड दिखा रहे हो क्या?

नहीं दूंगी एक पैसा और जो लगी है स्ट्रीट लाइट नगर निगम लगाती है।

₹500 कम होता है किसी गरीब को देंगे किसी बच्चे की पढ़ाई के लिए लगाएंगे तो ज्यादा अच्छा है।

आप लोग पढे-लिखे अच्छे घर के लगते हो कोई ढंग का काम करो।

एक लड़के ने बेशर्मी से हंसकर कहा- आपको कोई ऐतराज है ज्ञानी आंटी।

अरे बच्चों के ऊपर इतनी दया नहीं करोगी क्या?

धूप में गला भी सूख गया है चाय पानी के लिए ही कुछ दो,आप ही ने तो कहा था आंटी चंदा कैसा धंधा……

धंधे की शुरुआत की है कुछ बोली तो करवा दो।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – मराठी कविता ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 222 ☆ होळी ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

सुश्री प्रभा सोनवणे

? कवितेच्या प्रदेशात # 222 ?

☆ होळी ☆ सुश्री प्रभा सोनवणे ☆

भंगार जाळण्याला येतेच नित्य होळी

मारून बोंब आता होईल व्रात्य होळी

*

मोहात पौर्णिमेच्या असतेच चांदणेही

चंद्रास काय ठावे दावेल सत्य होळी

*

जाळात टाकलेले, वाईट – वाकडेही

पेटून पाहते ते प्रत्येक कृत्य होळी

*

भरपूर घातलेले पोळीत पुरण आता

दारात पेटते पण करते अगत्य होळी

*

आता “प्रभा”स कोणी शिकवू नका हुषारी

खेळून रंग सारे पेटेल अंत्य होळी

© प्रभा सोनवणे

१९ मार्च २०२४

संपर्क – “सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कादम्बरी # 45 – तेरी निगाह ने फिर आज कत्लेआम किया… ☆ आचार्य भगवत दुबे ☆

आचार्य भगवत दुबे

(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – तेरी निगाह ने फिर आज कत्लेआम किया।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 45 – तेरी निगाह ने फिर आज कत्लेआम किया ☆ आचार्य भगवत दुबे ✍

मैंने, इजहार मुहब्बत का सरेआम किया 

आप बतलाएँ, भला या कि बुरा काम किया

*

साजिशें की, मुझे बदनाम करने की लेकिन 

खुदा का शुक्र है, जिसने उन्हें नाकाम किया

*

मेरी शोहरत से, कई लोग हैं जलने वाले 

किन्तु ताज्जुब है कि, अपनों ने भी बदनाम किया

*

जिसको चाहा था, वही गैर की बाँहों में मिला 

जबसे टूटा है भरम, चैन है, आराम किया

*

परिन्दे चाहतों के, फिर से चहके, आप जो आये 

ये जादू कौन सा तुमने मेरे गुलफाम किया

*

न जाने सीखकर कातिल अदाएँ, किससे आयी है 

तेरी निगाह ने, फिर आज कत्लेआम किया

https://www.bhagwatdubey.com

© आचार्य भगवत दुबे

82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 121 – समय चक्र के सामने… ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  “समय चक्र के सामने…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 121 – समय चक्र के सामने… ☆

बच्चे हर माँ बाप को, लगें गले का हार।।

समय चक्र के सामने, फिर होते लाचार।।

 *

समय अगर प्रतिकूल हो, मात-पिता हों साथ।

बिगड़े कार्य सभी बनें, कभी न छोड़ें हाथ।।

 *

जीवन का यह सत्य है, ना जाता कुछ साथ।

आना जाना है लगा, इक दिन सभी अनाथ।।

 *

मन में होता दुख बहुत, दिल रोता दिन रात ।

आँखों का जल सूखकर, दे जाता  आघात ।।

 *

जीवन का दर्शन यही, हँसी खुशी संग साथ ।

जब तक हैं संसार में, जियो उठाकर माथ ।।

 *

तन पत्ता सा कँापता, जर्जर हुआ शरीर ।

धन दौलत किस काम की, वय की मिटें लकीर ।।

 *

जीवन भर जोड़ा बहुत, जिनके खातिर आज ।

वही खड़े मुँह फेर कर, हैं फिर भी नाराज ।।

 *

छोटे हो छोटे रहो, रखो बड़ों का मान ।

बड़े तभी तो आपको, उचित करें सम्मान ।।

 *

दिल को रखें सहेज कर, धड़कन तन की जान ।

अगर कहीं यह थम गयी, तब जीवन बेजान।।

 *

परदुख में कातर बनो, सुख बाँटो कुछ अंश।

प्रेम डगर में तुम चलो, हे मानव के वंश ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 267 ☆ आलेख – लंदन से 3 – अंतर्राष्ट्रीय लंदन पुस्तक मेले से ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय आलेख लंदन से 3 – अंतर्राष्ट्रीय लंदन पुस्तक मेले से

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 267 ☆

? आलेख लंदन से 3 – अंतर्राष्ट्रीय लंदन पुस्तक मेले से ?

प्रतिष्ठित लंदन पुस्तक मेले का आयोजन इस वर्ष 12से14 मार्च 2024 तक हो रहा है। 1971 से प्रति वर्ष यह वृहद आयोजन होता आ रहा है। यह एक ऐसा आयोजन है जिसमे दुनिया भर से लेखकों, प्रकाशकों, बुक एजेंट, कापीराइट और पुस्तक प्रेमियों का भव्य जमावड़ा होता है। इस अंतर्राष्ट्रीय आयोजन में विभिन्न देशों, विभिन्न भाषाओं, के स्टाल्स देखने मिले। ओलंपिया लंदन में पश्चिम केंसिंग्टन में एक ऐतिहासिक प्रदर्शनी स्थल है, जहां यह आयोजन होता है।

लंदन पुस्तक मेले के माध्यम से साहित्यिक एजेंट, लेखक, संपादक और प्रकाशक आगामी पुस्तक परियोजनाओं पर चर्चा करने, बातचीत करने और व्यवसायिक संबंध बनाने के लिए एकत्रित होते हैं। किताबों की खरीदी, विक्रय, विमोचन, लेखकों से साक्षात्कार, कापीराइट, अनुवाद, आदि के अलग अलग सेशन विशेषज्ञ करते हैं।

नेटवर्किंग इवेंट होते हैं, जो मेले के बाद भी प्रकाशन क्षेत्र से जुड़े लोगों को परस्पर जोड़ने का काम करते हैं।

भारत का स्टाल अभी भी इंडिया नाम से ही मिला। नेशनल बुक ट्रस्ट और वाणी प्रकाशन के ही स्टाल्स थे। विभिन्न भारतीय भाषाओं की चंद किताबें प्रदर्शित थी। मुझे आशा खेमका की आत्म कथा India made me, and Britain enabled me, एवं पद्मेश गुप्ता जी के कहानी संग्रह डैड ऐंड के हिंदी तथा उसके AI से किए गए अंग्रेजी अनुवाद की किताबों के विमोचन में सहभागी रहने का अवसर मिला।

दिल्ली के पुस्तक मेले की स्मृतियां दोहराते हुए यहां घूमना बहुत अच्छा लगा। यद्यपि दिल्ली में अनेकों परिचित लेखकों से भेंट हो जाती थी, पर यहां व्यक्तिगत न सही कुछ परिचित लेखकों की किताबों से रूबरू जरूर हुआ।

* * * *

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

लंदन से 

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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