मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ गीतांजली भावार्थ … भाग 39 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी

? वाचताना वेचलेले ?

☆ गीतांजली भावार्थ …भाग 39 ☆ प्रस्तुति – सुश्री प्रेमा माधव कुलकर्णी ☆

६५.

माझ्या आयुष्याच्या भरून वाहणाऱ्या

या कपातून माझ्या देवा,

कोणते दैवी पेय तुला देऊ?

 

” हे माझ्या कवि! माझ्या नजरेतून तुझी निर्मिती

 मी पहावी यात तुला आनंद आहे का?

 माझ्या कानांच्या दारात शांतपणं उभं राहून

 तुझीच चिरंतन संगीत रचना

 ऐकायची आहे का?”

 

 माझ्या मनात तुझे विश्व शब्दजुळणी करते आहे.

तुझा आनंद त्यात संगीत भरतो आहे.

 

प्रेमानं तू मला तुझं सारं देतोस

आणि तुझा सारा गोडवा त्यात भरतोस.

 

६६.

माझ्या देवा!

संध्यासमयीच्या अंधूक प्रकाशात

माझ्या खोल अंतर्यामी जी भरून राहिली आहे,

सकाळच्या उजेडात जिनं आपला पडदा बाजूस

सारला नाही तीच माझ्या अखेरच्या गीतात

दडलेली माझी भेट असेल.

 

शब्द काकुळती आले,पण व्यर्थ!

तिला वश करू शकले नाहीत.

त्यांनी उत्सुकतेने आपले हात पुढे केले.

 

माझ्या ऱ्हदयाच्या गाभाऱ्यात

तिला बसवून मी देशोदेशी भटकलो.

माझ्या आयुष्याचे चढ-उतार

तिच्याभोवती वर खाली झाले.

 

माझे विचार, माझ्या कृती,

माझी निद्रा, माझी स्वप्नं यावर तिचंच

अधिराज्य होतं, तरी ती परस्थच राहिली.

 

किती माणसं आली, माझं दार खटखटून गेली

आणि निराश झाली.

 

तिला समोरासमोर कुणी कधीच पाहिलं नाही.

तू तिला ओळखावसं अशी वाट पहात

ती स्वतःच्या एकटेपणात तशीच राहिली.

 

मराठी अनुवाद – गीतांजली (भावार्थ) – माधव नारायण कुलकर्णी

मूळ रचना– महाकवी मा. रवींद्रनाथ टागोर

 

प्रस्तुती– प्रेमा माधव कुलकर्णी

कोल्हापूर

7387678883

[email protected]

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार #170 ☆ व्यंग्य ☆ भगत जी का बखेड़ा ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय व्यंग्य ‘भगत जी का बखेड़ा ’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 170 ☆

☆ व्यंग्य ☆ भगत जी का बखेड़ा

चुन्नू बाबू कॉलोनी के लखटकिया हैं। कॉलोनी के किसी रहवासी से कोई काम न सध रहा हो तो वह सीधे चुन्नू बाबू के घर का रुख करता है। मिस्त्री, प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, सफाई कर्मचारी— किसी की भी ज़रूरत हो, चुन्नू बाबू से संपर्क किया जा सकता है। उनके पास हर उपयोगी आदमी का मोबाइल नंबर रहता है।

चुन्नू बाबू को पूरी कॉलोनी की फिक्र रहती है। कॉलोनी में कुछ ऐसा न हो जिससे कॉलोनी की नाक कटे। कॉलोनी में बाहर के लोगों के आने-जाने पर उनकी नज़र रहती है। कॉलोनी के लोगों का स्टैंडर्ड उठाने के लिए उन्होंने सब घरों में कार रखना अनिवार्य कर दिया है, चाहे उसकी उपयोगिता हो या न हो। कार के लिए लोन दिलवाने में चुन्नू बाबू सदस्य की पूरी मदद करते हैं।

कॉलोनी के गेट पर नियुक्त सुरक्षा गार्ड भी चुन्नू बाबू के ही कंट्रोल में रहता है। वे ही सदस्यों से इकट्ठा करके उसकी तनख्वाह का भुगतान करते हैं। उसके काम के बारे में शिकायत चुन्नू बाबू के पास ही आती है और वे ही उससे जवाब तलब करते हैं।

चुन्नू बाबू बहुत गतिशील आदमी हैं। कॉलोनी के कल्याण और उसका स्तर उठाने के लिए वे नयी नयी योजनाएँ लाते रहते हैं। उसी सिलसिले में स्थानीय नेताओं को कॉलोनी में बुलाकर उनका अभिनंदन भी होता रहता है। पता नहीं कौन कब काम आ जाए।

नगर निगम में दौड़-भाग करके चुन्नू बाबू ने कॉलोनी का कचरा उठाने का इंतज़ाम कर लिया है। शुरू में एक अधेड़ आकर हाथगाड़ी में हर घर से कचरा ले लेता था, लेकिन वह थोड़ा चिड़चिड़ा था। घर के कचरे के अलावा अगर बगीचे के पौधे, पत्तियाँ वगैरः दी जाएँ तो चिड़-चिड़ करता था। कुछ दिन बाद वह देस चला गया और उसकी जगह एक युवक आ गया। छः फुट की हृष्ट-पुष्ट देह। स्वभाव से शान्त। कैसा भी कचरा हो, चुपचाप उठाकर ले जाता था।

कॉलोनी में भगत जी भी रहते थे। भगत जी सीधे-सरल स्वभाव वाले आदमी थे, दूसरे की पीड़ा में कातर होने वाले। नये सफाई वाले को देख कर वे उद्विग्न हो जाते थे। इतना लंबा, स्वस्थ युवक, फौज में जाता तो नाम करता। यहाँ कचरा उठाते उठाते कुछ दिन में खुद भी कचरा हो जाएगा। संक्रमित कचरे से धीरे-धीरे दस बीमारियाँ लग जाएँगीं। हाथ में दस्ताने भी नहीं पहनता।

एक दो बार रोक कर उन्होंने इस काम में आने की उसकी मजबूरियाँ समझीं। वही पुरानी कथा— अशिक्षित माँ-बाप, कमाई को शराब में उड़ा देने वाला पिता, तीन छोटे भाई बहन, घर का खराब वातावरण, अस्वास्थ्यकर परिवेश। यानी सनीचर के बैठने का पूरा इंतज़ाम।

बात सारे वक्त भगत जी के ज़ेहन में घुमड़ती रही। इस युवक को इस तरह अपने स्वार्थ के लिए जहन्नुम में झोंके रहना पाप से कम नहीं है।

उन्होंने अपने परिचित एक सिक्योरिटी एजेंसी वाले को फोन किया। वह लड़के को लेने के लिए राज़ी हो गया। भगत जी ने लड़के को बताया तो वह खुश हो गया। ऐसी मदद की उम्मीद उसे नहीं थी।

दो दिन बाद लड़का ग़ायब हो गया। भगत जी ने इस घटना के बारे में किसी को नहीं बताया। डर था कि लोग जानकर नाराज़ होंगे। दो-तीन दिन तक कचरा उठाने कोई नहीं आया। कॉलोनी वासियों की भवें चढ़ने लगीं। चुन्नू बाबू को पता चला तो वे भी परेशान हुए।

दौड़-भाग करके चुन्नू बाबू फिर एक आदमी को पकड़ लाये, लेकिन उन्होंने पता लगा लिया कि उनके सफाई-इंतज़ाम को ‘सैबोटाज’ करने वाला कौन था। नये आदमी को नियुक्त कराने के बाद वे भगत जी के पास पहुँचे, बोले, ‘आपके परोपकार का पता हमें चल गया। बड़ी मेहरबानी कर रहे हैं आप कॉलोनी वालों पर। इस बार तो मैंने इंतज़ाम कर दिया, लेकिन फिर आपने ऐसा किया तो आगे कचरे का इंतज़ाम आप ही कीजिएगा।’

भगत जी उनकी बात सुनकर, अपराधी जैसे, उनका मुँह देखते रह गये।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 118 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 118 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 118) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 118 ?

☆☆☆☆☆

मुस्कुराहट तक भी हमारी

तुम पढ़ नहीं पाए…

और हम तुम्हारे अश्कों की

भी ख़बर रखते हैं…!

☆☆

You could not even

read my smile, and…

Here I am, keeping a track

of your tears, too..!

☆☆☆☆☆ 

 कुछ रिश्ते किराए के

मकान की तरह होते हैं

कितना भी सजा लो,

कभी अपने नहीं होते हैं…!

☆☆

Some relationships are like

rented house, no matter…

How much you decorate them,

they never become yours…!

☆☆☆☆☆ 

छुआ था मुद्दतों पहले

तुम्हारी साँस ने इक दिन,

एहसास तेरी छुअन का

रूह में आज तलक है क़ायम …

☆☆

A long time ago, one day, your

Breath had touched me once,

Feeling of your fragrant touch

is still alive in the soul…!

☆☆☆☆☆

 अगर तुम नींद में मुस्कुराओगी

तो फरिश्तों को रश्क होगा,

वे तलाशी लेंगे तुम्हारे सपनों की

और पकड़ा जाऊंगा मैं…!

☆☆

If you smile in the sleep

the angels will be envious,

They will check your dreams

And, I will get caught…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 166 ☆ कबिरा संगत साधु की… ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना सम्पन्न हो गई है। 🌻

अगली साधना की जानकारी आपको शीघ्र ही दी जाएगी  

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं । यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है। ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

☆  संजय उवाच # 166 ☆ कबिरा संगत साधु की… ☆?

जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं,

मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति।

चेत: प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं,

सत्संगति: कथयं किं न करोति पुंसाम्।।

अर्थात् अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जड़ता को हर लेता है, वाणी में सत्य का संचार करता है, मान और उन्नति को बढ़ाता है और पाप से मुक्त करता है | चित्त को प्रसन्न करता है और हमारी कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है। आप ही बताइए कि सत्संगति मनुष्यों का कौन- सा भला नहीं करती!

मनुष्य सामाजिक प्राणी है। सामाजिक है अर्थात समाज में रहनेवाला है। समाज, समूह से बनता है। तात्पर्य है कि मनुष्य समूह में रहनेवाला प्राणी है। ऐसे में एक-दूसरे की संगति स्वाभाविक है। साथ ही यह भी स्वाभाविक है कि समूह के हर सदस्य पर एक-दूसरे के  स्वभाव का, विचारों का, गुण-अवगुण का प्रभाव पड़े। ऐसे में अपनी संगति का विचारपूर्वक चुनाव आवश्यक हो जाता है।

अध्यात्म में सत्संगति का विशेष महत्व है। ‘सत्संग’ के प्रभाव से मनुष्य की सकारात्मकता सदा जाग्रत रहती है।

सत्संग के महत्व से अनजान एक युवा  कबीरदास जी के पास पहुँचा। कहने लगा, ‘मैं शिक्षित हूँ, समझदार हूँ। अच्छाई और बुराई के बीच अंतर ख़ूब समझता हूँ। तब भी मेरे माता-पिता और  परिवार के बुज़ुर्ग मुझे सत्संग में जाने के लिए बार-बार कहते हैं। अब आप ही बताइए कि भला मैं सत्संग में क्यों जाऊँ?”

कबीर कुछ नहीं बोले। केवल एक  हथौड़ा उठाया और पास ही ज़मीन में गड़े एक खूँटे पर दे मारा। कोई उत्तर न पाकर युवक वहाँ से लौट गया।

अगले दिन युवक फिर आया। उसने फिर अपना  प्रश्न दोहराया। कबीर फिर कुछ नहीं बोले। फिर हथौड़ा उठाकर उसी खूँटे पर दे मारा। खूँटा ज़मीन में कुछ और गहरा गड़ गया। युवक लौट गया।

तीसरे दिन वह फिर आया। फिर वही प्रश्न, उत्तर में कबीर द्वारा फिर खूँटे को हथौड़े से ज़मीन में और गहरा गाड़ना। अब युवक का धैर्य जवाब दे गया। रुष्ट स्वर में बोला, “महाराज आप मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं जानते या नहीं देना चाहते तो न सही पर रोज़-रोज़ यूँ मौन धारण कर इस खूँटे पर हथौड़ा क्यों चलाते हैं?” कबीर मुस्कराकर बोले, “मैं रोज़ तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देता हूँ पर तुम समझदार होकर भी समझना नहीं चाहते। मैं रोज़ खूँटे पर हथौड़ा मारकर ज़मीन में इसकी पकड़ मज़बूत कर रहा हूँ अन्यथा हल्की-सी ठोकर से भी इसके उखड़ने का डर है।..बेटा, मनुष्य का मन इस खूँटे की तरह है। मन के खूँटे पर सत्संग का प्रहार और संस्कार निरंतर होता रहना चाहिए ताकि मनुष्य सकारात्मक चिंतन कर सके, बेहतर मनुष्य बन सके। सकारात्मकता जितनी गहरी होगी, जीवन में कठिनाइयाँ और संकट उतने ही उथले लगेंगे। इसलिए सत्संग अनिवार्य है।”

सत्संग या सज्जनों के साथ के इसी महत्व ने कबीरदास जी से लिखवाया,

कबिरा संगत साधु की, ज्यों गंधी की बास।

जो कुछ गंधी दे नहीं, तो भी बास सुबास।।

गंधी या इत्र बेचनेवाला कुछ न भी दे तब भी उसकी उपस्थिति से ही वातावरण में सुगंध फैल जाती है। सत्संगति का भी यही आनंद है।

 © संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 118 ☆ भजन – “प्रभु हैं तेरे पास में…२…” ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित भजन – “प्रभु हैं तेरे पास में…”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 118 ☆ 

☆ भजन – प्रभु हैं तेरे पास में…२ ☆

*

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

निराकार काया में स्थित,

हो कायस्थ कहाते हैं.

रख नाना आकार दिखाते,

झलक तुरत छिप जाते हैं..

प्रभु दर्शन बिन मन हो उन्मन,

प्रभु दर्शन कर परम शांत मन.

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

कोई न अपना सभी पराये,

कोई न गैर सभी अपने हैं.

धूप-छाँव, जागरण-निद्रा,

दिवस-निशा प्रभु के नपने हैं..

पंचतत्व प्रभु माटी-कंचन,

कर मद-मोह-गर्व का भंजन.

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

नभ पर्वत भू सलिल लहर प्रभु,

पवन अग्नि रवि शशि तारे हैं.

कोई न प्रभु का, हर जन प्रभु का,

जो आये द्वारे तारे हैं..

नेह नर्मदा में कर मज्जन,

प्रभु-अर्पण करदे निज जीवन.

जग असार सार हरि सुमिरन ,

डूब भजन में ओ नादां मन…

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आत्मानंद साहित्य #150 ☆ आलेख – श्री सत्यनारायण व्रत पूजा कथा रहस्य ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 150 ☆

☆ ‌आलेख – श्री सत्यनारायण व्रत पूजा कथा रहस्य ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

(दो शब्द रचनाकार के – आज मुझे पुरोहित कर्म करते हुए काफी समय गुजर गया है अपनी पुरोहित कर्म के दौरान तमाम जिज्ञासु जन मुझसे प्रश्न करते रहे कि आखिर वह कौन सी कथा थी जिसे भगवान विष्णु जी ने दरिद्रता से मुक्ति के लिए उस गरीब को उपाय के रूप में सुनाया। अपने अध्ययन में मैंने जो भी तथ्य पाया उसे जिज्ञासु जन की जिज्ञासा शांत करने के लिए सबके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ । इस प्रस्तुति का आधार पौराणिक मान्यताओं-कथाओं के तथ्य पर आधारित है, जो किसी विवाद को नहीं स्वीकार करता। इसका समर्थन अथवा विरोध पाठक वर्ग के स्वविवेक पर निर्भर है।)

श्री सत्य नारायण कथा का मूल उदगम स्कंध पुराण के रेवा खंड से लिया गया है। पौराणिक श्रुति के अनुसार मृत्यु लोक के दुख पीड़ा जैसी तमाम कष्टो से जूझते हुए प्राणी के मुक्ति के लिए नैमिषारण्य  तीर्थ क्षेत्र में जो कभी अठ्ठासी हजार ऋषियों का संकुल था, वहीं पर श्री सत्यनारायण व्रत कथा का प्रादुर्भाव हुआ और यह कथा प्रचलन में आई।

ऋषि शौनक जी तथा अन्य ऋषियों ने महात्मा सूत जी से सरल सहज तथा सूक्ष्म उपाय पूछा था, उन्होंने जो पूजा कथा बताई वह इस प्रकार है।

उन्होंने बताया कि एक बार देवर्षि नारद जी भगवान विष्णु के पास गए तथा लोकहित की इच्छा से प्रश्न किया कि – “हे सर्वेश्वर! मैंने पृथ्वी लोक के भ्रमण के दौरान दुख और पीड़ा से व्याकुल मानव समाज देखा है, जिससे मेरा हृदय करूणासिक्त हो रहा है, इससे मुक्ति का कोई उपाय हो तो मुझे बताएं।”

उनकी लोकहित वाणी सुनकर भगवान ने कहा कि- “हे देवर्षि! आप का प्रश्न लोकहित से जुड़ा है इस निमित्त मैं यह उपाय अवश्य बताऊंगा।”

देवर्षि नारद जी ने आगे कथा का विस्तार करते हुए बताया और व्रत पूजा का विधान समझाया। यदि हम सत्यनारायण कथा पुस्तक के शीर्षक का विवेचन करें तो सारा अर्थ स्पष्ट हो जाता है। अर्थात् श्री सत्यनारायण व्रत पूजा कथा- जिसका आशय है पहले व्रत का संकल्प, तत्पश्चात पूजा विधान, फिर कथा विधान। अर्थात् कथा का अध्ययन यह सिद्ध करता हैं कि कथा श्रवण के पूर्व ब्राह्मण ने कथा पूजा करने का संकल्प लिया, जिसके संकल्प मात्र से उसे प्रचुर मात्रा में धन मिला। फिर पूजा का विधान किया और उसके बाद कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जो उसका नैमित्तिक कर्म बन गया। वही स्थिति लकड़हारे की हुई, लेकिन संकल्प पूर्ण नहीं करने पर साधूराम बनिया को अपने जीवन के संत्रास से गुजरना पड़ा। वहीं राजा को प्रसाद न ग्रहण करने के कारण दुख भोगना पड़ा। वहीं अधूरी कथा छोड़ने के कारण लीलावती तथा कन्या कलावती को पिता तथा पति के दर्शन से विमुख होना पड़ा था।

भगवान विष्णु ने अपने स्वरूप शालिग्राम के विग्रह पूजन का निर्देश दिया – फिर भगवान विष्णु वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर उस भिक्षुक ब्राह्मण से मिले, जो सुदामा की तरह भूख की पीड़ा से भिक्षा मांगने के लिए दर दर भटकता फिर रहा था। उन्होंने उस ब्राह्मण से पूछा था कि- हे ब्राह्मण! आप आखिर इस प्रकार क्यों दर दर भटकते  घूम रहे हैं।

तब ब्राह्मण ने कहा  –  “मैं गरीबी के मकड़जाल में फंसा हुआ भूख की पीड़ा से व्याकुल भिक्षा मांगने हेतु विवश हो भटकता फिर रहा हूँ । इस गरीबी के अभिशाप से मुक्ति हेतु यदि कोई उपाय जानते हो तो बताएं मैं उसे अवश्य पूरा करूंगा। तब उन नारायण रूप में आए वृद्ध  ब्राह्मण  के वेष में भगवान श्री विष्णु जी ने अपने शालिग्राम रूपी विग्रह की सत्यनारायण व्रत पूजा कथा का विधान बताया, जो सर्व कामना पूर्ण करती है। भगवान शालिग्राम विग्रह की कथा देवासुर संग्राम के जालंधर वध से संबंधित है जिसे सारा विद्वत समाज परिचित है। जो वृंदा के शाप के कारण शालिग्राम की पाषाण खंड के रूप में परिणत हो गई तथा भगवान विष्णु के वरदान से वृंदा तुलसी के बिरवा के रूप में अवतरित हुई। बिना तुलसी दल तथा मंजरी के आज़ भी भगवान विष्णु की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती।

शेष सत्यनारायण व्रत में पूजा का विधान बताया गया है। पूजा में सर्व प्रथम पवित्रीकरण के बाद प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश तथा माता गौरी के आह्वान पूजन का विधान है जिसके बारे में यह विश्वास है कि यदि कुमारी कन्या विधान पूर्वक माँ गौरी का पूजन कर उन्हें सिंदूर चढ़ाती है तो उन्हें मनवांछित वर की प्राप्ति होती है और जो पत्नी पति मिल कर माँ  गौरी और गणेश जी को पूजन के साथ सिंदूर चढ़ाते है तो उस परिवार में सुख शांति समृद्धि सौहार्द तथा जीवन में प्रेम बना रहता है।

गौरी पूजन का प्रमाण  हमें माता सीता के स्वयंवर के समय गौरी पूजन के रूप में मिलता है।

विनय प्रेम बस भई भवानी।

खसी माल मूरति मुस्कानी।

वर सहज सुन्दर सांवरो ।

करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो ॥

एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली।

तुलसी भवानी पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥

इसके बाद पृथ्वी पूजन का विधान है जिसके बारे में मान्यता है कि पृथ्वी ही हमारे जीवन का आधार है, इस के बिना जीवन संभव ही नहीं है। उसी से हमें अन्न वस्त्र, फल फूल,  हीरे-जवाहरात मिलते हैं जो हमारी संपन्नता का प्रतीक है। उसके बाद फिर भगवान वरूण देव की पूजा का विधान है जिसके लिए हम घट पूजा करते हैं। अगले चरण में हम नवग्रह शांति के लिए नवग्रहों की पूजा करते हैं। उस के पश्चात हम  दीप के रूप में अग्नि देवता की पूजा करते हैं। तत्पश्चात भगवान शालिग्राम के विग्रह की पूजा करते हैं। इस प्रकार एक पूजा में ही पंच पूजा समाहित है जिसका उद्देश्य लोक हितकारी है।

शेष पांचों अध्याय तो हमें यह समझाते हैं शालिग्राम की पूजा तो दरिद्र ब्राह्मण, लकड़हारा, नि:संतान साधूराम बनिया, राजा, तथा गोप गण, अर्थात् समाज का सभी वर्ग ने किया। अपनी मंशा के अनुरूप फल प्राप्त किया । जिसने संकल्प लेकर भी पूजा नहीं किया। वह ईश्वर के रूष्ट होने पर अनेकों कष्ट सहने पर मजबूर हुआ।

यही सत्य नारायण पूजा कथा तथा व्रत का विधान है जिसे बार बार एक व्यक्ति ने दूसरे को बताया यह श्रुति कथा आज भी पूरे श्रद्धा विश्वास के साथ कही सुनी सुनाई जाती है। यही तो है भगवान सत्यनारायण व्रत पूजा कथा।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – इंद्रधनुष्य ☆ आठवणीतील सांस्कृतिक पुणे… लेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री सुलू साबणे जोशी ☆

सुश्री सुलू साबणे जोशी

? इंद्रधनुष्य ?

☆ आठवणीतील सांस्कृतिक पुणेलेखक – अज्ञात ☆ प्रस्तुती – सुश्री सुलू साबणे जोशी ☆

सुमारे ३५-४० वर्षांपूर्वी, किंबहुना त्यापेक्षाही अगोदरपासूनच्या कालखंडात पुणे हे एक छोटेखानी पण टुमदार, आटोपशीर गाव होतं…” पुणे शहर ” झालेलं नव्हतं….

सदाशिव, शनिवार, नारायण, शुक्रवार वगैरे पेठांमध्ये वाडे एकमेकांना चिकटून, जणू एकमेकांच्या हातात हात घालून उभे होते. चोर-पोलीस खेळतांना सहज एका वाड्यातून दुसऱ्या वाड्यात जाता येत असे. किंबहुना शेजारच्यांच्या घरात घुसून बिनदिक्कत कॉटखाली वगैरे लपता येत असे. लाकडी जिन्यातून कुणी भरभर खाली उतरलं की अक्षरशः ढगांच्या गडगडाटाचा आवाज येत असे. चौकात संध्याकाळी डबडा ऐसपैसचा नाहीतर इस्टॉपाल्टीचा डाव रंगत असे. फार दमायला झालं, किंवा धो धो पाऊस पडला, तर कुठे तरी वाड्यात वळचणीला बसून गाण्यांच्या भेंड्या रंगत असत. मग एक तरी सुरेल गाणारी तिखट चिमुरडी “आ जा सनम मधुर चांदनीमें हम….” हे गाणं म्हणतच असे. 

किंवा देशांच्या राजधान्या ओळखणे, चेरापुंजी कशासाठी प्रसिद्ध आहे?? वगैरे “जनरल नॉलेज” च्या गप्पा होत होत,

” तुला माहितीये का ?? पाकिस्तानकडे शंभर ऍटम बॉम्ब आहेत…”  किंवा ” माझे बाबा एकदा अमावास्येला शनिवारवाड्याच्या जवळून रात्री येत होते, तेव्हा त्यांनी ‘ काका मला वाचवा….’ असा आवाज ऐकला होता ” 

अशा स्वरूपाच्या दंतकथा रंगत. एखादा शी – शू विहार मधला गडी मग तिथेच रडू लागे. आणि मग 

” ए … कशाला रडवता रे त्याला?? ” असा सज्जड दम एखादी आई देई.

शाळांच्या पटांगणात रात्री ” गीत रामायण,” “ जाणता राजा ” यासारख्या कार्यक्रमांची रेलचेल आणि मेजवानी असे. मग रात्री भारावलेल्या वातावरणात शांत झोपी गेलेले वाडे बघत बघत घरी पायी, नाही तर सायकलवर वाटचाल करायची. क्वचित थंडीत स्वेटर, शाल, चादर पांघरून कुडकुडत घरी जायचं….. गोदरेजचं कुलूप उघडून जाड लोखंडी साखळी असलेला दरवाजा उघडायचा….. काळ्या बटनावर लागणारा पिवळा साठचा बल्ब लावायचा…. कुणाकडे हातात सेलची बॅटरीही असायची…. 

पुण्याचं तेव्हाचं सांस्कृतिक केंद्र म्हणजे ” भरत नाट्य मंदिर “…. मध्यंतरात भजी खायची… चहा प्यायचा…. आणि अंधारात चाचपडत येऊन आपली सीट पकडायची….

भरत नाट्य बाहेर मधू आपटे हे ज्येष्ठ अभिनेते खुर्ची टाकून बसलेले असायचे…..

कुणी नाटकानंतरही “गुडलक” “पॅराडाईज” “रीगल” वगैरे इराणी हॉटेलात तळ देत…. किंवा वाड्याच्या दारातच मध्यरात्रीपर्यंत कुडकुडत गप्पा छाटायच्या……

तेव्हाचं पुणं मध्यमवर्गीय, साधं…..पेरूगेट, नु.म.वि., अहिल्यादेवी, विमलाबाई गरवारे, हुजूरपागा या संस्कारकेंद्रांभोवती विणलेलं….. “स्वामी”… “छावा”…. “नाझी भस्मासुराचा उदयास्त”…… इत्यादि साहित्यविश्वात रमणारं होतं…… भीमसेन जोशींना अगदी समोर बसून ऐकता येत होतं किंवा भेटता येत होतं…..

ना. ग. गोरे… एस. एम. जोशी अशी थोर नेतृत्वं होती…

खरोखरच तेव्हाचं पुणं हे त्यावेळच्या पहाटेच्या सुंदर धुक्यासारखं एक गोड सांस्कृतिक स्वप्न होतं…..

सुंदर स्वप्नातून जागं झाल्यावरही त्या स्वप्नाची आठवण दिवसभर मनात रेंगाळत रहावी, तसं हे तेव्हाचं सुंदर पुणं मनात सदैव रेंगाळत राहतं……….!!!

संग्राहिका : सुश्री सुलू साबणे जोशी 

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – वाचताना वेचलेले ☆ मुलांकडे (थोडे) दुर्लक्ष करा… – लेखक : श्री शिवराज गोर्ले ☆ सुश्री सुनिता गद्रे ☆

सुश्री सुनिता गद्रे

📖 वाचताना वेचलेले  📖

 ☆ मुलांकडे (थोडे) दुर्लक्ष करा… – लेखक : श्री शिवराज गोर्ले ☆ सुश्री सुनिता गद्रे ☆ 

मुलांना जबाबदार  बनवायचं असेल, तर अर्थातच त्यांना काही गोष्टीचं स्वातंत्र्य द्यायला हवं. याचाच अर्थ त्यांच्याकडं जसं लक्ष द्यायला हवं, तसंच थोडं दुर्लक्षही करायला हवं. रेणू दांडेकर यांनी यासाठी ‘ हेल्दी निग्लिजन्स ‘ हा शब्द सुचवला आहे. त्या म्हणतात, ‘आजकाल घरात एकच मूल असतं. फार फार तर दोन. या ‘दोन बाय दोन’,च्या रचनेत मुलंच केंद्रस्थानी असतात. लक्ष्य असतात. त्यामुळंच कधी कधी आपलं नको इतकं लक्ष मुलांकडे असतं.

त्यांनी असं एक उदाहरणही दिलंआहे: माझी एक मैत्रीण मुलांच्या बाबतीत अत्यंत जागृत होती. तिनंच तिच्या मनानं मुलांच्या अभ्यासाच्या वेळा…जेवायच्या वेळा… आहार… कोणत्या वेळी कोणत्या विषयाचा अभ्यास, या सगळ्याचंच वेळापत्रक बनवलं होतं. सतत त्यानुसार ती आपल्या मुलांवर देखरेख ठेवायची. मुलं अगदी जखडून गेली, कंटाळली, हळूहळू ऐकेनाशी झाली.

आईची प्रतिक्रिया, ‘ मी मुलांचं इतकं करते,तरी मुलं अशी वागतात. यापेक्षा किती लक्ष द्यायचं? ‘

” तू जरा जास्तच लक्ष देते आहेस.” रेणूताईंनी म्हटलं ,” थोडं दुर्लक्ष कर .मुलांना त्यांचं स्वतःचं जगणं आहे. जर त्यांच्या प्रत्येक क्षणावर ताबा ठेवलास तर कसं चालेल? जरा ‘हेल्दी निग्लिजन्स’ करायला शिक.” 

मुलांना मोकळेपणा, स्वातंत्र्य दिल्याशिवाय ती जबाबदार कशी होतील? फक्त एवढंच की ती स्वातंत्र्याचा योग्य उपयोग करत आहेत ना, हे त्यांच्या नकळत पहायला हवं. लक्ष हवंच, पण न जाचणारं ! मूल पोहायला लागलं तरी आईनं त्याच्या पाठीवर डबा बांधला, त्याचा हात धरला तर ते तरंगणार कसं?हात पाय हलवणार कसं? ते आता पोहू शकतंय यावर विश्वास ठेवायला हवा. आपण ते बुडेल ही भीती सोडायला हवी. थोडं काठावर उभं राहता आलं पाहिजे, थोडं पाण्यातही भिजता आलं पाहिजे. पालक प्रशिक्षणातला हा एक धडा फार महत्त्वाचा आहे. शोभा भागवत म्हणतात त्याप्रमाणे, ‘मूल मोठं व्हावं, शहाणं व्हावं, असं तोंडानी बोलत, मनात ठेवत, प्रत्यक्षात आपण त्याला ‘लहान’च ठेवत असतो. तोंडी बोलण्यापलीकडं मूल आरपार आपल्याला पहात असतं. आपण ‘ मूल ‘ राहण्यातच पालकांना समाधान आहे, हेही ते जाणतं आणि तसं वागत राहतं.’

ते विश्वासानं शहाणं व्हायला हवं असेल, तर पालकांनी सतत पालक म्हणून वागायचं सोडून द्यायला हवं. पालकपणाचा (अधून मधून) राजीनामा द्यायला हवा.

लेखक : श्री शिवराज गोर्ले

प्रस्तुती : सुश्री सुनिता गद्रे

माधवनगर सांगली, मो 960 47 25 805.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – किनारा शोधत राही – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

 ? ⛵– किनारा शोधत राही 🚤 ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के 

अथांग सागर भवताली

आकाशाची जली निळाई

दिशा द्यायला नाही वल्हे

नाव एकटी टिकून राही

बोलवी का कुणी किनारा?

शाश्वत सहारा नीत देणारा

त्याच किनार्‍याच्या विश्वावर

मिठीत घेईल पुर्ण सागरा

सागराची निळी नवलाई

भूल पाडत हाकारत जाई

भरकटण्याचे भय होडीला

म्हणून किनारा शोधत राही

किनारा मिळे बंधन येते

बंधन विश्वहर्तता देते

प्रेमरज्जू साथीला मिळता

होडी सागरी खुशाल फिरते

चित्र साभार –सुश्री नीलांबरी शिर्के

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #167 – 53 – “सारी रात गुज़ार देते बातों में ही…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “सारी रात गुज़ार देते बातों में ही…”)

? ग़ज़ल # 53 – “सारी रात गुज़ार देते बातों में ही…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

जो दोस्त करते नहीं सगा करते,

सगे दोस्त कभी नहीं दगा करते।

मिल गए तो सँभाल कर रखिए,

दोस्त पेड़ों पर नहीं लगा करते।

आँसुओं से सींचना पड़ता इन्हें,

दोस्त खेत में नहीं ऊगा करते।

हमेशा साथ रहते वक़्ते मुसीबत,

छोड़ कर तुम्हें नहीं भगा करते।

सारी रात गुज़ार देते बातों में ही,

कोई इस तरह नहीं जगा करते।

दोस्ती को धर्म की तरह निभाओ,

आस्था में रस यूँ नहीं पगा करते।

दोस्त भी इश्क़ की नाईं है आतिश,

मन हर किसी से नहीं लगा करते।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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