हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 234 – “गतिशील हो गई हैं…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत गतिशील हो गई हैं...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 234 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “गतिशील हो गई हैं...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

परी बनी ,हरी-हरी

पहिन साडियाँ

सिल्की दिखा किये हैं

सुबह की पहाडियाँ

 

हौले से तह किये

लगीं जैसे दुकान में

ठहरी प्रसन्नता हो ।

खुद के मकान में

 

चिडियों की चहचहाहटों

के खुल गये स्कूल

 पेड़ों के साथ पढ ने

आ जुटीं झाडियाँ

 

धुँधला सब दिख रहा है

यहाँ अंतरिक्ष में

खामोश चेतना जगी

है वृक्ष-वृक्ष  में

 

जैसे बुजुर्ग, बादलों

के झूमते दिखें

लेकर गगन में श्वेत-

श्याम बैल गाडियाँ

 

गतिशील हो गई हैं

मौसम की शिरायें

बहती हैं धमनियों में

ज्यों खून सी हवायें

 

या कोई वैद्य आले

को  लगा देखता

कितनी क्या ठीक चल

रहीं , सब की नाडियाँ

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

14 – 06 – 2022

 संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – व्यंग्य ☆ शेष कुशल # 49 ☆ व्यंग्य – “समग्र आहत समाज की परिकल्पना साकार करने की दिशा में…” ☆ श्री शांतिलाल जैन ☆

श्री शांतिलाल जैन

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  स्थायी स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक अप्रतिम और विचारणीय व्यंग्य  समग्र आहत समाज की परिकल्पना साकार करने की दिशा में…” ।)

☆ शेष कुशल # 50 ☆

☆ व्यंग्य – “समग्र आहत समाज की परिकल्पना साकार करने की दिशा में… – शांतिलाल जैन 

साथियो, आईए हम एक आहत समाज का निर्माण करें. एक ऐसा समाज जहाँ सब एक दूसरे से आहत हैं. यादव कुर्मी से,  कुर्मी कोईरी से, कोईरी ब्राह्मण से, ब्राह्मण राजपूतों से, राजपूत बनियों से, एक्स-बनिए वाय-बनियों से, वाय-बनिए ज़ेड-बनियों से…हर कोई हर किसी से आहत घूम रहा है. कितनी अद्भुत है एक समग्र आहत समाज की परिकल्पना. दुनिया के नक़्शे पर एक सौ चालीस करोड़ आहत नागरिकों का यूनिक देश. वी द पीपुल ऑफ़ इंडिया समग्र आहत समाज निर्माण की दिशा में चल तो पड़े हैं मगर यह एक महती और विशाल परियोजना है. अगर आपने इसमें अभी तक अपनी आहुति नहीं दी है तो तैयार हो जाईए. भागीदारी आपको भी करनी है. कैसे ? चलिए, हम आपको बताते हैं.

सबसे पहले तो आप ऐसे करें कि आहत होना सीख लीजिए. यह बेहद आसान है. आपके पास एक एंड्रायड फोन हो, कुछ जीबी डाटा हो, एक वाट्सअप अकाउंट हो, ढ़ेर सारा फुरसती समय हो. न हो तो बस विवेक न हो. विवेक होना मेजर डिसक्वालिफिकेशन मानी जाती है. अगर संयोग से आपके पास विवेक है तो आहत होने का आव्हान किए जाने पर इसे इस्तेमाल न करें.

घबराएँ बिलकुल नहीं. आपका आहत होना जरूरी तो है, सचमुच में आहत होना बिलकुल जरूरी नहीं है. आप हरबार सचमुच आहत हो भी नहीं सकते क्योंकि आपने तो वो बयान अभी तक देखा, पढ़ा या सुना भी नहीं है जिससे आहत होकर आपने तोड़फोड़ के क्षेत्र में उतरने का फैसला किया है. किसी ने वाट्सअप पर किसी को कुछ भेजा है जो ब्रम्हांड का चक्कर लगाकर आप तक पहुँचा है और आप आहत हो लिए. आपने तो वो किताब पढ़ी भी नहीं जिसके प्रकाशन की खबर मात्र से आप आहत हो लिए. बल्कि, बचपन से ही किताब पढ़ने में आपकी रूचि कभी रही नहीं, आप तो अफवाहभर से आहत हो लिए. किसी ने ट्विटर पर किसी को कुछ कहा है और आप आहत हो लिए. उन्होंने तमिल में कुछ कहा और आप हिंदी में आहत हो लिए. कभी आप गाने के बोल से आहत हो लिए, कभी नायिका के अंतर्वस्त्रों के रंग से. अगला मन ही मन कुछ बुदबुदाया और आप आहत हो लिए. जिसके लिए कहा गया है वो आहत नहीं हुआ, उसके बिहाफ़ पर आप आहत हो लिए. ग्यारहवीं सदी के किसी नायक के लिए किसी ने कुछ कहा, आप ईक्कीसवीं सदी में उनके लिए आहत हो लिए. कभी कभी तो किसी ने किसी से कुछ नहीं कहा तो भी आप आहत हो लिए. आप इसी से आहत हो सकते हैं कि अमुक जी ने कुछ क्यों नहीं कहा. आहत होने के लिए आपको फैक्ट चेक करने की जरूरत भी नहीं. आपको तो बस भियाजी के पठ्ठे बने रहना है – वे आपको बताएँगें कि आज आपको इनसे आहत होना है, इनफ.

चलिए आहत हो लिए हैं तो आप वो सब कर पाएँगे जिसकी आज़ादी आपको संविधान से नहीं मिली है, आपने भीड़ बनाकर अपने अख्तियार में कर ली है. मसलन, ज़ेब में चार फूटी कौड़ी न हो मगर इसका या उसका सिर काट लाने पर करोड़ों के ईनाम की घोषणा कर पाने की आज़ादी. प्रदर्शनियों, नाटकों, कवि सम्मेलनों-मुशायरों को तहस नहस कर डालने की आज़ादी. सरेआम गाली-गलौज, मारपीट करने की आज़ादी. आहतकर्ता का मुँह काला करने की आज़ादी.

अब आप इस आज़ादी को एन्जॉय कर सकते हैं. तो ऐसा करें कि जिनसे आहत हुए हैं उनके घर में,  ड्राइंग रूम में,  स्टूडियो में,  प्रदर्शनी में,  दफ्तर में या स्टेज पर चढ़कर फर्नीचर तहस नहस कर डालें, लाईटें फोड़ दें, माईक उखाड़ दें, तलवारें और बंदूकें लहराएँ, गर्व करने लायक नारे लगाएँ. शालीनता, शिष्टाचार, शांति, सहिष्णुता और मर्यादा सब कुछ तहस-नहस कर डालिए. आखिर आप आहत जो हुए हैं. आप भरोसे के उस सोशल फेब्रिक को ही तोड़ डालिए जिस पर समाज टिका हुआ है. अगर तब भी अपने आप को पूरी तरह से अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे तो टारगेट की टांग तोड़ दें, सिर खोल दें. सॉफ्ट हिंसा का सहारा लें यह सेकंड डिग्री का ट्रीटमेंट है. अगर अभी भी अपने आप को हंड्रेड परसेंट अभिव्यक्त न कर पाएँ हों तो ‘मॉब लिंचिंग – दी थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट’ तो अंतिम उपाय है ही. आप शूरवीर हैं क्योंकि आप उस समूह का हिस्सा हैं जिसने एक निर्दोष निहत्थे अकिंचन जन को मार डाला है. आप उदारवादियों की तरह कायर नहीं हैं. फ़ख्र कीजिए कि आप बुद्धिजीवी भी नहीं हैं. होते तो देशद्रोही कहाते. तोड़फोड़ में गर्व की अनुभूति अंतर्निहित है. आपको नाज़ होना चाहिए कि आप तोड़फोड़ करने के फुल-टाईम कॅरियर में हैं और हर तोड़फोड़ के साथ आपका कॅरियर नई ऊँचाईयों को छू रहा है. आपके पास कमानेवाली नौकरी नहीं है, पेशे में सफलता नहीं है, स्वाभिमानवाला रोज़गार नहीं है, मिलने की संभावना भी नहीं है मगर जातिगत स्वाभिमान पर काँच फोड़ डालने का स्थाई और स्थिर जॉब तो है. जॉब जो आपमें सेंस ऑफ़ फुलफिलमेंट भरता है और अभिव्यक्तिवाली स्वतंत्रता का एहसास कराता है. और हाँ, पुलिस प्रशासन की ओर से निश्चिंत रहें, उसके लिए भियाजी हैं ना. उनके हाथों में नफरत के अलग अलग साइज़-शेप के मारक पत्थर हैं जो वे यथा समय समाज के शांत स्थिर जल में फेंकते रहते हैं. उसे उसके आहत होने का अहसास कराने के मिशन में जुटे रहते हैं. वे समग्र आहत समाज की परिकल्पना को साकार करने में जुटे हैं और आप उनके पठ्ठे हैं.

आहत सेना में आप वर्चुअल वॉरियर भी बन सकते हैं. इसके लिए आपको हथियारों से लैस होकर सड़कों पर उतरने की जरूरत नहीं. आपको सोशल मिडिया की आभासी दुनिया में ट्वेंटी-फोर बाय सेवन सक्रिय रहना है, आहत किए जा सकनेवाले मेसेज रिसीव करना है और फॉरवर्ड कर देना है. आपका काम कम मेहनत में ज्यादा असर पैदा करनेवाला है. आपकी एक पोस्ट पूरे समाज को आहत फील करवा पाने का दम रखती है. आप उनमें जोशभर सकते हैं. ललकार सकते हैं. चैलेंज कर सकते हैं. इस या उस रंग का साफा बांधकर तलवार लेकर जुलूस निकाल सकते हैं. तलवार भारी हुई तो बाजुओं में क्रेम्प आ सकते हैं. सावधानी रखें, फोटो खिंचाने जितनी देर ही उठाएँ. नकली तलवार भी उठा सकते हैं. अभिव्यक्ति की ऐसी स्वतंत्रता अब सिर्फ आहत नागरिकों के लिए ही बची है.

तो क्या सोचा है आपने ? समग्र आहत समाज के निर्माण में योगदान देने आ रहे हैं ना! प्रतीक्षा रहेगी.

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© शांतिलाल जैन 

बी-8/12, महानंदा नगर, उज्जैन (म.प्र.) – 456010

9425019837 (M)

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५२ – “सुप्रसिद्ध साहित्यकार और शिक्षाविद – स्व. श्री इन्द्र बहादुर खरे और उनका सृजन” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

श्री यशोवर्धन पाठक

(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व सुप्रसिद्ध साहित्यकार और शिक्षाविद – स्व. श्री इन्द्र बहादुर खरे और उनका सृजनके संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)

स्व. इन्द्र बहादुर खरे

☆ कहाँ गए वे लोग # ५२ ☆

☆ सुप्रसिद्ध साहित्यकार और शिक्षाविद – स्व. इन्द्र बहादुर खरे और उनका सृजन” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक

बड़ी भली है अम्मा मेरी

ताजा दूध पिलाती है।

मीठे मीठे फल लेकर

 मुझको रोज खिलाती है। 

अपने समय में स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल उपरोक्त मनमोहक काव्य पंक्तियों के रचयिता, सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं शिक्षाविदस्व श्री इन्द्र बहादुर खरे ने अपनी साहित्य साधना से राष्ट्रीय स्तर पर जबलपुर को गौरवान्वित किया था। खरे जीने अपने साहित्यिक जीवन में गद्य और पद्य में जो कुछ भी साहित्य सृजन किया उसने उनके समय में तो अपार ‌लोकप्रियता अर्जित की ही बल्कि वह आज भी चर्चित, पठनीय और प्रभावी है।

हितकारणी कालेज के प्रारंभिक काल के प्रसिद्ध प्राध्यापक, जबलपुर के माडल हाई स्कूल के प्रतिष्ठित शिक्षक एवं विजन के फूल और भोर के गीत जैसी अनेक काव्य कृतियों के रचियता स्व. श्री इन्द्र बहादुर खरे ने अपने समय में अनेक साहित्यिक पुस्तकों के प्रतिष्ठित लेखकों के रुप में चर्चित रहे हैं लेकिन यह भी स्मरणीय है कि उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों के लिए अपने समय में ऐसी पाठ्य पुस्तकों की रचना की जो कि उनके समय में पाठ्यक्रम में न केवल शामिल की गई बल्कि उपयोगी और ज्ञानवर्धक भी सिद्ध हुईं। शिक्षा जगत के लिए काफी पहले भारत के गौरवशाली इतिहास से छात्रों को परिचित कराने के लिए भारत वैभव के नाम से 3 भागों में विभक्त पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल की गई थीं जिसमें भारत वैभव के भाग 3 की रचना स्व. श्री इन्द्र बहादुर खरे नेकी थी।

सुभाष प्रिटिंग प्रेस से मुद्रित इस पुस्तक में 21 अध्याय शामिल किये गए थे जिसमें हमारा देश, भारतीय स्वतंत्रता, 1857 की जनक्रांति, गांधीजी और असहयोग आंदोलन, हमारी राजनीतिक प्रगति, बारडोली सत्याग्रह और सरकारी दमन, 1934 से 1941 और 1942 से 1947 तक का कालखंड, आजादी के बाद का घटना चक्र इत्यादि प्रमुख विषयों से संबंधित अधिकांश महत्वपूर्ण बातें समझाईं गयी थी।

आज अगर हम इस पुस्तक की विभिन्न बातों पर ध्यान दें तो हम आज भी ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से इस पुस्तक को शिक्षा जगत के लिए प्रासंगिक और उपयोगी पाते हैं। इस सबंध में स्व. श्री खरे जी के सुपुत्र आदरणीय श्री अमित रंजन जी ने भी पुस्तक में लिखा है कि आदरणीय पाठक स्वयं तय करें कि 150 में लिखी पुस्तक आज भी कहाँ तक उपयोगी है।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि स्व श्री इन्द्र बहादुर खरे जी की अन्य पठनीय और लोकप्रिय कविताओं को पूर्व में स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था जिनमें बड़ी भली है अम्मा मेरी, ताजा दूध पिलाती है, शिक्षा जगत में काफी लोकप्रिय और प्रभावी मानी जाती थी।

भोपाल के संदर्भ प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक का पुनः प्रकाशन खरे परिवार के सहयोग से किया गया है। इस पुस्तक का आवरण पृष्ठ भारत के नक्शे में महात्मा गॉंधी के चित्र के साथ काफी आकर्षक लग रहा है। इस पुस्तक के प्रकाशन से आदरणीय स्व. श्री इन्द्र बहादुर खरे जी का प्रेरक और प्रणम्य व्यक्तित्व और भारत के ऐतिहासिक महत्व की बातें दोनों ही दिल और दिमाग में ताजी हो गईं।

साहित्यिक और शैक्षणिक क्षेत्र के ऐसे श्रद्धेय और प्रेरणा स्रोत पितृ पुरुष स्व. श्री इन्द्र बहादुर खरे जी की पुण्यतिथि पर सादर स्मरण के साथ शत शत प्रणाम।

© श्री यशोवर्धन पाठक

संकलन – श्री प्रतुल श्रीवास्तव

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

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आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ११ – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १२ ☆ डॉ. रामदयाल कोष्टा “श्रीकांत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆   

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १३ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय नेता – नाट्य शिल्पी सेठ गोविन्द दास ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १४ ☆ “गुंजन” के संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव “संत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆ 

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १७ – “डॉ. श्री राम ठाकुर दादा- समाज सुधारक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १८ – “राजकुमार सुमित्र : मित्रता का सगुण स्वरुप” – लेखक : श्री राजेंद्र चन्द्रकान्त राय ☆ साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १९ – “गेंड़ी नृत्य से दुनिया भर में पहचान – बनाने वाले पद्मश्री शेख गुलाब” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २० – “सच्चे मानव थे हरिशंकर परसाई जी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २१ – “ज्ञान और साधना की आभा से चमकता चेहरा – स्व. डॉ कृष्णकांत चतुर्वेदी” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २२ – “साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी  स्व. राजेन्द्र “रतन”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २३ – “मेरी यादों में, मेरी मुंह बोली नानी – सुभद्रा कुमारी चौहान” – डॉ. गीता पुष्प शॉ ☆ प्रस्तुती – श्री जय प्रकाश पांडे ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २४ – “संस्कारधानी के सिद्धहस्त साहित्यकार -पं. हरिकृष्ण त्रिपाठी” – लेखक : श्री अजय कुमार मिश्रा ☆ संकलन – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २५ – “कलम के सिपाही – मुंशी प्रेमचंद” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २६ – “यादों में रहते हैं सुपरिचित कवि स्व चंद्रकांत देवताले” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २७– “स्व. फ़िराक़ गोरखपुरी” ☆ श्री अनूप कुमार शुक्ल ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २८ – “पद्मश्री शरद जोशी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २९ – “सहकारिता के पक्षधर विद्वान, चिंतक – डॉ. नंद किशोर पाण्डेय” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३० – “रंगकर्मी स्व. वसंत काशीकर” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३१ – “हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी के विद्वान — कवि- शायर पन्नालाल श्रीवास्तव “नूर”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३२ – “साइकिल पर चलने वाले महापौर – शिक्षाविद्, कवि पं. रामेश्वर प्रसाद गुरु” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३३ – “भारतीय स्वातंत्र्य समर में क्रांति की देवी : वीरांगना दुर्गा भाभी” ☆ डॉ. आनंद सिंह राणा ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३४ –  “जिनके बिना कोर्ट रूम भी सूना है : महाधिवक्ता स्व. श्री राजेंद्र तिवारी” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३५ – “सच्चे मानव – महेश भाई” – डॉ महेश दत्त मिश्रा” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३६ – “महिलाओं और बच्चों के लिए समर्पित रहीं – विदुषी समाज सेविका श्रीमती चंद्रप्रभा पटेरिया” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३७ – “प्यारी स्नेहमयी झाँसी वाली मामी – स्व. कुमुद रामकृष्ण देसाई” ☆ श्री सुधीरओखदे   ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३८ – “जिम्मेदार शिक्षक – स्व. कवि पं. दीनानाथ शुक्ल” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३९ – “सहृदय भावुक कवि स्व. अंशलाल पंद्रे” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४० – “मानवीय मूल्यों को समर्पित- पूर्व महाधिवक्ता स्व.यशवंत शंकर धर्माधिकारी” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४१ – “प्रखर पत्रकार, प्रसिद्ध कवि स्व. हीरालाल गुप्ता” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४२ – “जिनकी रगों में देशभक्ति का लहू दौड़ता था – स्व. सवाईमल जैन” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४३ – “संवेदनशील कवि – स्व. राजेंद्र तिवारी “ऋषि”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४४ – “कर्णदेव की दान परम्परा वाले, कटनी के पान विक्रेता स्व. खुइया मामा” ☆ श्री राजेंद्र सिंह ठाकुर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४५ –  “सिद्धांतवादी पत्रकार – स्व. महेश महदेल” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४६ – “मधुर गीतकार-  स्व. कृष्णकुमार श्रीवास्तव ‘श्याम’” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४७ – “साहित्य के प्रति समर्पित : आदरणीय राजकुमार सुमित्र जी” ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४८ – “गीतों के राजकुमार मणि “मुकुल”- स्व. मणिराम सिंह ठाकुर “मणि मुकुल”  ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४९ – “शिक्षाविद और सहकारिता मनीषी – स्व. डा. सोहनलाल गुप्ता” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५० – “मंडला, जबलपुर के गौरव रत्न – श्रद्धेय स्व. श्री रामकृष्ण पांडेय” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५१ – “चर्चित कथाकार एवं मेरे श्रद्धेय अग्रज –  स्व. श्री हर्षवर्धन जी पाठक” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ प्रतुल साहित्य # 4 – बुंदेली हास्य व्यंग्य – “बातन पै नईं पैसा पै भरोसा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन

आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय बुन्देली हास्य व्यंग्य  बातन पै नईं पैसा पै भरोसा)

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ प्रतुल साहित्य # 4

☆ बुंदेली हास्य व्यंग्य ☆ “बातन पै नईं पैसा पै भरोसा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव

संजा कें पार्क की एक बैंच पै बैठो मैं पान चबात भओ फूलन की खुशबू सें सनी ठंडी – ठंडी नौनी हवा को मजा लै रओ हतो। देखत का हों कै एक हांथ में टारच ओ एक हांथ में डंडा लयें पार्क को चौकीदार मोरे सामूं ठांड़ो है। बो सामू लगी एक तख्ती खों टारच की रोसनी से नहवात भओ मोसें बोलो – “आपनें पढ़ो नईं कै पार्क में आकें थूंकबो, पान गुटका खाबो, बीड़ी सिगरिट, सराब पीबो मना है। ” मोने कही, भइया पढ़ लओ है – लिखो है कै पार्क में आकें पान खाबो मनो है, रही हम तौ बाहर सें खाकैं आये हें। मोरे ज्वाब सें चौकीदार गुस्सया गओ, ओको मुंह लाल हो गओ। मेंने सोची काये न गुस्साए, जबसें अपने देस के परधान मंत्री ने खुदखों चौकीदार कहो है तबसें देस भर के चौकीदारन को स्टेटस बढ़ गओ है। आजकाल कौंनऊ चौकीदार खुदखों उपपरधान मंत्री सें कम नईं समझे। मोरे ज्वाब सें भन्नाओ चौकीदार कछू ऊंची आवाज में बोलो – मानों कै आप पान बाहर सें खाकें आये हौ रही पान की पिचकारी तौ पार्क के अंदरई मार हो। में बोलो – प्यारे मोरी ओर से निस फिकर रहो, 10 रुपैया को पान खाओ है, एक एक पैसा वसूल कर हों, जरा भी न थूंक हों। वो बोलो – भइया मोहे तुमाई बात पै भरोसा नईंयां, बाहर जाओ, पान थूंक कें कुल्ला करकें आओ। मेंने कही – चौकीदार भइया पार्क में जघा जघा पान की पीक डरी है, बीड़ी सिगरिट के टुकरा परे हें, क्यारियन सें सराब की खाली बोतलें सोई झांक रई हें। ओट में बैठे ज्वान जोड़न की हरकतन सें झाड़ियें सोई हिल रईं हें। बो गुस्सा में जोर सें बोलो – इतै को चौकीदार को है ? मेंने कई चौकीदार तो तुमई कहाये। ओने तुरतई सवाल दागो – फिर हमाये देखबे वाली चीजन खों तुम काये देख रये। हमने कही भइया गुस्सा न हो हम तो न थूंकबे की कसम खात भये इते बैठकें चैन सें पान चबाबे की परमीशन चाहत हें। बो एक तरफ थूंकत भओ बोलो – हमें तुमाई बात पै तनकऊ भरोसा नैंयां, पीक की पिचकारी मारबे में कित्तो टेम लगत ? तुम तो बहस ने करौ बाहर जाओ। हमने कही, भइया जू तुम हमें थूंकबे सें रोक रहे और खुद थूंक रहे हो ! हमाई बात सें चौकीदार साब को गुस्सा बढ़ गओ। बोलो- हम तौ पार्कई में रहत। लेट्रिन, नहाबो-धोबो, थूंकबो-खखारबो सब कछू पार्क मेंई करत। जे बंदिशें हमाये लाने नैंयां, बाहर वालों के लाने हें। देखो मुतकी बातें कर लईं, अब निकरो इतै सें। हम आवाज में मिसरी घोलत भये बोले, चौकीदार भइया दया करकें बतायें कै हमाये न थूंकबे के वादे पै तुम्हें केंसे भरोसा हूहे ? चौकीदार मुस्कात भओ बोलो – एकै तरीका है एको। हमने पूंछी का ? ओने कही हमाओ मों बंद कर दो फिर कछू भी करौ हम न देख हें। मेंने जोर को ठहाको लगाओ और कही बस इत्ती सी बात पै खफा हो! ल्यो एक पान तुम सोई दबा लो, मों बंद हो जैहे। अबकी मोरी बात सुनकें चौकीदार ठहाका लागत भओ बोलो – बो टेम गओ भइया जब चाय पान सें लोगन के मों बंद हो जाता हते। अब तो जित्तो बढ़ो काम उत्तो बढ़ो दाम, वो भी कड़क और नगद। हमने ओकी टारच एक दूसरी तख्ती पै चमका कें कही – भइया जी ईपै तो लिखो है कै रिश्वत लेबो और देबो जुरम है। बो फिर हंसो, बोलो – जो तो देश भक्ति-जनसेवा और सत्यमेव जयते के ठिकानों समेत देश भर में लिखो है। उते भी लिखो रहो जहां सें आज हम सौ रुपैया रिश्वत देकें अपने बाप को मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकें लाये। तुमई बताओ हम लें हें न तो दें हें कहां सें। हमने कही अच्छा बताओ इते कित्तो देने पड़त ? बो बोलो- पार्क में पान, बिड़ी, सिरगिट के लाने दस रुपैया, सराब पीबे पचास रुपैया और लड़की के साथ बैठबे के सौ रुपैया। जौन के पास सराब और लड़किया नइंयां तो ? ओने कही, सब इंतजाम हो जेहे आप चिंता ने करो। रुपैया में बड़ी ताकत होत है। रुपैया सें तो अब सरकार लौ बन और बिगड़ रई है। मोहे सोच में डूबो देखकें बो बोलो – सब पैसा मोरी जेब में नईं रहे साब, ऊपर भी देंने पड़त है। अब टेम बर्बाद ने करो, फटाफट 10 को नोट निकारो, मोहे पूरो पार्क चेक करने है। में चुपचाप उठो औ बाहर की तरफ चल दओ।

© श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ कविता – पल… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय लघुकथा पल…।)

☆ लघुकथा – पल… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

मैं इकट्ठा करता रहा, पलों को,

कभी इस हाथ में, कभी उस हाथ में,

समय ही नहीं था, मिलता था,

उन पलों को खर्च करने के लिए,

बस इकट्ठा ही करता रहा,

इसी में लगा रहा, कितने इकट्ठे हों,

बाद में इन्हें खर्च करूंगा, अकेले ही,

सब रिश्ते नाते छूट गए, नहीं संभले,

मैं अपने दायरे में ही सिमटता गया,

पल तो मृग मरीचिका की तरह थे,

मेरे अपने थे ही नहीं, कैसे रुकते,

मैं क्या, कोई भी नहीं रोक सका पलों को,

सूखी रेत की तरह,  हाथों से फिसलते गए,

कौन रोक सका है, जाते हुए पलों को,

भूल गया था कि, पलों को रोका नहीं जाता,

पलों के साथ, साथ, जिया जाता है,

रिश्ते नातों के साथ, पलों को जिया जाता है,

दोस्तों के साथ, पलों को बिताया जाता है,

राज की बात थी, बहुत देर से जाना,

पल नहीं रुकते, आना चाहिए, पल बिताना.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 216 ☆ # “पुस्तक दिवस पर…” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता पुस्तक दिवस पर…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 216 ☆

☆ # “पुस्तक दिवस पर…” # ☆

यह कैसी मूर्खतापूर्ण सोच है

यह कैसी नेगेटिव अप्रोच है

कि पुस्तकों की क्या जरूरत है

इन्हें पढने की किसको फुर्सत है

वह क्या जाने

इन पुस्तकों में क्या खास है

बहुत कुछ समाविष्ट है इनमें

जिन्हें पढ़ने की आस है

इनमें –

ज्ञान है संस्कार है

विज्ञान है चमत्कार है

अर्थ है कारोबार है

योगी का योग

सन्यासी का संसार है

धम्म का गूढ़ रहस्य

जीवन का सार है

प्रेम और विरह  है

संबंधों की टूटती धार है

अंधकार की पीड़ा है

निर्बल की वेदना है

सत्य की खोज है

जीने की चेतना है

संतो की वाणियाँ है

अनूठी कहानियाँ है

उपदेश है तपस्या का

जांबाज कुर्बानियां है

कवियों की कविताएं है

प्रेम और श्रृंगार है

कलम के कलमकारों की

रचनाएं बेशुमार है

भ्रमण की गुनगुन

फूलों का पराग है

मन को मंत्र मुग्ध  करता

संगीत और राग हैं 

शतरंज के खेल हैं 

सियासत के दांव हैं 

कहीं कड़ी धूप तो

कहीं ठंडी छांव हैं 

सदियों की रीतियाँ हैं 

झकझोरती कुरीतियां हैं  

मानवता को शर्मसार करती

समाज की नीतियां हैं 

कहीं सूरज चांद

तू कहीं नीला आसमान हैं 

कहीं मनभावन निसर्ग तो

कहीं गीत गाता इंसान हैं 

पुस्तकें हमारा अतीत हैं 

पुस्तकें  जीवन संगीत हैं 

पुस्तकें हमारी धरोहर हैं 

पुस्तकें शब्दों से हमारी प्रीत है

इन्हें बचाना हमारा धर्म है

इसमें हमें कैसी शर्म है

इनमें छिपे कई मर्म हैं 

इन्हें संजोकर रखना हमारा कर्म है /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 287 ☆ व्यंग्य – हमारे कार्यालय ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम विचारणीय व्यंग्य – ‘हमारे कार्यालय‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 287 ☆

☆ व्यंग्य ☆ हमारे कार्यालय

साढ़े  दस बजे कार्यालय खुलते हैं। खुलने का मतलब यह नहीं कि कर्मचारी अपनी सीटों पर आ जाते हों। खुलने का मतलब सिर्फ यह है कि साढ़े दस के बाद कभी भी दफ्तर के पट खुल जाते हैं। चपरासी मेज़ों पर कपड़ा मारने लगता है। जहां झाड़ू लगाने का रिवाज़ है वहां झाड़ू लगने लगती है। जो लोग साढ़े दस को साढ़े दस समझ कर आ जाते हैं वे झाड़ू से उठे गर्द-ग़ुबार से बचने के लिए बाहर भीतर परेड करते हैं।

ग्यारह बजे के आसपास कर्मचारी दफ्तर के कंपाउंड में घुसने लगते हैं। कंपाउंड में प्रवेश करते ही ड्यूटी शुरू हो जाती है। अपनी मेज़ पर पहुंचना ज़रूरी नहीं होता। बाहर ही सहयोगी, मित्र मिल जाते हैं। दो घड़ी बात करने का, पारिवारिक हाल-चाल लेने का, डी.ए. और बोनस के बारे में पूछने का मन होता है। इसके बाद  बरामदे के किसी कोने में गुटखा थूक कर कर्मक्षेत्र में प्रवेश किया जाता है। कार्यालय का कोई कोना असिंचित नहीं होता। लोग आते-जाते, सीढ़ियों से उतरते-चढ़ते निष्ठा से कोनों को सींचते हैं।

सवा ग्यारह बजे भी आधी मेज़ें खाली होती हैं। पूछने पर सहयोगी सच्चा सहयोगी-धर्म निबाहते हैं— ‘अभी आ जाएंगे’। फिर जोड़ देते हैं —‘अगर छुट्टी पर नहीं हुए तो।’ ज़्यादा पूछताछ करने वाले को डपट दिया जाता है— ‘अभी ग्यारह ही तो बजे हैं, थोड़ा घूमघाम कर आ जाओ।’ अगर चुस्ती और नियमितता का आदी कोई आदमी किसी काम का मारा दफ्तरों में आ जाता है तो यहां की चाल देखकर सकते में आ जाता है।

दफ्तर में प्रवेश करने पर कुछ मेज़ें खाली मिलती हैं, लेकिन कुछ मेज़ों के इर्द-गिर्द पूरा दफ्तर मिल जाता है। इन्हीं मेज़ों पर दो-चार लोग बैठे होंगे, बाकी इनके आसपास कुर्सियों पर होंगे। अबाध चर्चा चलती है— घोटालों की, क्रिकेट टेस्ट की, संभावित ट्रांसफरों की, नेताओं द्वारा साहब की रगड़ाई की। इसी बीच अगर काम का मारा कोई दफ्तर में आ जाता है तो वह कभी खाली  मेज़ को और कभी गप्पों में मशगूल इस गुच्छे को देखता है। बातचीत में बाधा डालने और रंगभंग करने की उसकी हिम्मत नहीं होती क्योंकि कर्मचारी पर काम करने की बाध्यता नहीं होती। ज़्यादा अकड़ दिखाओगे तो इतने चक्कर लगाने पड़ेंगे कि अंजर- पंजर ढीला हो जाएगा। क्या करोगे? शिकायत करोगे? जाओ, जहां जाना हो चले जाओ। अब तुम खड़े रहो, हम जा रहे हैं चाय पीने। लौट कर आने तक खड़े रहोगे तो सोचेंगे।

कर्मचारी-नेताओं की कुर्सियां हमेशा खाली रहती हैं। जन-सेवा में लगे रहते हैं, काम की फुरसत कहां? अफसर की हिम्मत कहां जो ज़बान हिलाए। नेता सुबह से शाम तक व्यस्त रहते हैं— मंहगाई, बोनस, भत्तों के लिए लड़ने में, अखबारों में विज्ञप्तियां देने में। एक ही काम वे नहीं कर सकते —कर्मचारियों को काम करने और उत्पादन बढ़ाने के लिए कहना। जो नेता कर्मचारियों को काम करने के लिए कहता है वह लोकप्रिय नहीं होता। इसलिए नेता ज़माने की नब्ज़ देखकर काम करते हैं।

कोई कर्मचारी मजबूरी में मेज़ पर सिर रखे झपकी लेता दिखता है। बीच-बीच में सिर उठाता है, अधखुली आंखों से इधर-उधर देखता है, फिर पूरा मुंह फाड़कर उबासी लेता है। लगता है गाल की खाल फट जाएगी। इसके बाद धीरे-धीरे फिर सिर को मेज़ पर टिका देता है। एकाध बार बीच में बुदबुदाता है— ‘बोर हो गए। कोई काम नहीं है।’

एक और मेज़ के पीछे एक ज़्यादा समझदार युवक है। वह काम के अभाव में कर्नल रंजीत या अमिताभ या कामिनी का उपन्यास पढ़ रहा है। बीच में कोई फाइल आकर उसके अध्ययन में बाधा डालती है। उसे फुर्ती से निपटा कर वह अगली मेज़ की तरफ धकेल देता है और फिर उपन्यास में डूब जाता है।

हमारे दफ्तरों की एक विशेषता यह है कि वहां काम न रहने पर भी किसी को बात करने की फुरसत नहीं होती। काम से आये आदमी को कर्मचारी बबर शेर की नज़र से देखता है। उसकी नज़र पढ़ते ही आदमी झुलस कर सिकुड़ जाता है। एक बार बाबू की नज़र पड़ने के बाद वह गिन गिन कर कदम रखता, दबे पांव मेज़ की तरफ बढ़ता है। दफ्तर के दरवाज़े में घुसते ही आदमी का मनोबल नीचे की तरफ गिरता है। आवाज़ धीमी हो जाती है। बहुत से लोग हकलाने लगते हैं। यहां सिर्फ छात्र-नेताओं और स्थानीय नेताओं की आवाज़ ही बुलन्द रह पाती है, बाकी लोग ज़्यादातर मिमियाते,चिरौरी करते दिखते हैं। अगर बाबू का मूड ठीक हुआ और टाइम हुआ तो काम कर देता है।

झपकी लेने वाले बाबू के सामने बड़ी देर से एक आदमी खड़ा अपनी उंगलियां मरोड़ रहा है। कुछ देर पहले उसने बाबू से कुछ पूछा था। सहमी हुई आवाज़ में दो-तीन बार दोहराने के बाद बाबू ने अपना सिर उठाया था और कुछ जवाब दिया था। जवाब इस तरह दिया गया था कि आदमी कुछ समझ नहीं पाया। बाबू ने फिर अपना सिर  मेज़ पर रख दिया था। आदमी ने फिर से बाबू से पूछा था। अब की बार बाबू ने सिर उठा कर भौंहें चढ़ाकर गुर्रा कर इस तरह जवाब दिया कि आदमी घबरा गया। जवाब फिर भी उसके पल्ले नहीं पड़ा। बाबू ने सिर वापस मेज़ पर टिका दिया।

आदमी अब पांव घसीटता बाबुओं के गुच्छे के पास पहुंच गया है। बातचीत में थोड़ा विराम होते ही वह अपना सवाल दोहराता है। एक बाबू गुटखा चबाते, कोई दो शब्दों का जवाब उसकी तरफ फेंक कर मुंह घुमा लेता है। गुटखे के उस पार से आया हुआ यह जवाब भी आदमी की पकड़ में नहीं आता। बाबू  फिर गप्पों में मशगूल हो गया है। अब उसकी सवाल पूछने की हिम्मत नहीं पड़ती।

ढीले पांवों से वह उपन्यास वाले बाबू की मेज़ पर पहुंचता है। भिनभिन करके अपना सवाल पूछता है। बाबू शायद सस्पेंस या रोमांस के शिखर पर है। वह बिना किताब से सिर उठाये कोई जवाब टपका देता है। जवाब फिर आदमी के सिर के ऊपर से गुज़र जाता है। हिम्मत बटोर कर वह फिर सवाल दोहराता है। अब बाबू उपन्यास से सिर उठाता है और ज़बान का कुछ बेहतर उपयोग करके कहता है, ‘सोहन बाबू के पास जाओ।’ ‘जाओ’ के साथ ही वह वापस सस्पेंस या रोमांस की दुनिया में उतर जाता है।

अब आदमी में यह हिम्मत नहीं कि पूछे कि सोहन बाबू कौन से हैं और कहां बिराजते हैं। हार कर वह बाहर बेंच पर एक टांग ऊपर रखकर बैठे चपरासी के पास पहुंचता है, बड़ी  शिष्टता से पूछता है, ‘सोहन बाबू कौन से हैं?’

चपरासी भी दुर्वासा के वंश का है। भृकुटि  तान कर मेज़ पर सोये बाबू की तरफ इशारा करता है, कहता है, ‘वह तो रहे। और कौन से हैं?’

आदमी वापस लौट कर मेज़ पर निद्रामग्न बाबू के सामने पहुंचता है। बाबू की नींद में खलल डालने के लिए उसका मन अपराधबोध से ग्रस्त है। वह फिर पुकार कर बाबू को इस नश्वर संसार में वापस बुलाता है। बाबू का सिर बांहों के ऊपर से धीरे-धीरे उठता है। आदमी कुछ दांत ज़्यादा निकालकर कहता है, ‘मेरी फाइल शायद आपके पास है।’

सोहन बाबू फिर  जबड़ा-तोड़ उबासी लेते हैं, फिर कहते हैं, ‘है न। हम तो आपसे दो-दो बार कहे कि हमारे पास है। आप सुने नहीं क्या?’

आदमी राहत  की सांस लेता है, कहता है, ‘तो फिर कष्ट करके निकाल दीजिए न।’

सोहन बाबू कष्ट करके अपना बायां हाथ उठाकर घड़ी देखते हैं, कहते हैं, ‘आधा घंटा में लंच होने वाला है। तीन बजे आइए, तभी देखेंगे।’

उनका सिर फिर मंज़िले-मक्सूद की तरफ झुकने लगता है और आदमी कुछ देर तक उनकी छवि निहारने के बाद पांव घसीटता दरवाज़े की तरफ बढ़ जाता है। चलते-चलते वह देखता है कि गुच्छे वाले बाबुओं ने अब ताश निकाल लिये हैं और उपन्यास वाला बाबू किताब पर झुका मन्द मन्द मुस्करा रहा है। लगता है हीरो हीरोइन का इश्क परवान चढ़ गया।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ – लघुकथा – चिराग की रोशनी… – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे।

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “– चिराग की रोशनी…” ।

~ मॉरिशस से ~

☆ कथा कहानी  ☆ लघुकथा — चिराग की रोशनी — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

किस्से कहानियों में वर्णित भीमकाय अलादीन एक आदमी के सामने आ खड़ा हुआ। अब अलादीन हो तो उसके हाथ में चिराग कैसे न हो। आदमी अपने सामने खड़े विराट अलादीन से कुछ डरा हुआ तो था, लेकिन उसके चिराग से आदमी का मन तो खूब पुलकित हो रहा था। बात यह थी उसने अलादीन के बारे में जो पढ़ा था उसी का वह प्रत्यक्ष दर्शन कर रहा था। आदमी ने तो यहाँ तक अपने मन में गुनगुना लिया यह अलादीन है और इसके हाथ में जो चिराग है इससे तो वह देने का एक खास इतिहास रचता रहा है। तब तो अलादीन देने की भावना से ही मेरे सामने आया हो।

आदमी का गणित सही निकला। अलादीन ने उससे बड़े प्यार से कहा –– अब मैं हूँ तो तुमने समझ ही लिया हो मैं अलादीन हूँ और मेरे हाथ में देने का चिराग है। तो हे बालक, मेरे इस चिराग से कुछ मांग लो। मांगो तो तुम्हें निराशा नहीं होगी।

आदमी को चिराग से कुछ मांगने के लिए कहा गया और वह था कि अलादीन से उसका चिराग ही मांग लिया। अलादीन यह समझ न पाया, लेकिन आदमी ने समझ कर ही तो अलादीन से उसका चिराग मांगा। अलादीन चिराग दे कर मुँह लटकाये वहाँ से चला गया।

आदमी ने अनंत खुशी से विभोर हो कर चिराग को वंदन किया और उससे अपने लिए विशाल संसार मांगा। पल भर में आदमी को गाँव, शहर, हाट, अनुपम प्रकृति और जन समुदाय से युक्त एक संसार मिल गया। आदमी इतने बड़े संसार में इस हद तक खोया कि वह समझ न पाया वह है तो कहाँ है? उसे अपनी बूढ़ी माँ, पत्नी और बच्चों की बड़ी चिन्ता होने लगी थी। सब कहाँ खो गए? आदमी अलादीन के चिराग से अर्जित अपने ही संसार में अपनों से दूर अपने को तन्हा पाने लगा था।

शुक्र था कि वह आदमी का सपना था। सपना टूटते ही आदमी हड़बड़ा कर पलंग से उतरा। अलादीन का चिराग अब उसके घर में नहीं था, लेकिन उसके अपने घर का चिराग तो था। वह अपने घर के चिराग की रोशनी में अपने परिवार को अपने सामने पा कर अपार आनन्द की अनुभूति कर रहा था।

© श्री रामदेव धुरंधर

03 – 05 – 2025

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : [email protected]

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 287 – भोर भई ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 287 भोर भई ?

मैं फुटपाथ पर चल रहा हूँ। बायीं ओर फुटपाथ के साथ-साथ महाविद्यालय की दीवार चल रही है तो दाहिनी ओर सड़क सरपट दौड़ रही है।  महाविद्यालय की सीमा में लम्बे-बड़े वृक्ष हैं। कुछ वृक्षों का एक हिस्सा दीवार फांदकर फुटपाथ के ऊपर भी आ रहा है। परहित का विचार करनेवाले यों भी सीमाओं में बंधकर कब अपना काम करते हैं!

अपने विचारों में खोया चला जा रहा हूँ। अकस्मात देखता हूँ कि आँख से लगभग दस फीट आगे, सिर पर छाया करते किसी वृक्ष का एक पत्ता झर रहा है। सड़क पर धूप है जबकि फुटपाथ पर छाया। झरता हुआ पत्ता किसी दक्ष नृत्यांगना के पदलालित्य-सा थिरकता हुआ  नीचे आ रहा है। आश्चर्य! वह अकेला नहीं है। उसकी छाया भी उसके साथ निरंतर नृत्य करती उतर रही है। एक लय, एक  ताल, एक यति के साथ दो की गति। जीवन में पहली बार प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों सामने हैं। गंतव्य तो निश्चित है पर पल-पल बदलता मार्ग अनिश्चितता उत्पन्न रहा है। संत कबीर ने लिखा है, ‘जैसे पात गिरे तरुवर के, मिलना बहुत दुहेला। न जानूँ किधर गिरेगा,लग्या पवन का रेला।’

इहलोक के रेले में आत्मा और देह का सम्बंध भी प्रत्यक्ष और परोक्ष जैसा ही है। विज्ञान कहता है, जो दिख रहा है, वही घट रहा है। ज्ञान कहता है, दृष्टि सम्यक हो तो जो घटता है, वही दिखता है। देखता हूँ कि पत्ते से पहले उसकी छाया ओझल हो गई है। पत्ता अब धूल में पड़ा, धूल हो रहा है।

अगले 365 दिन यदि इहलोक में निवास बना रहा एवं देह और आत्मा के परस्पर संबंध पर मंथन हो सका तो ग्रेगोरियन कैलेंडर का कल से आरम्भ हुआ यह वर्ष शायद कुछ उपयोगी सिद्ध हो सके।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 12 अप्रैल 2025 से 19 मई 2025 तक श्री महावीर साधना सम्पन्न होगी 💥  

🕉️ प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमन्नाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें, आत्मपरिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (5 मई से 11 मई 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (5 मई से 11 मई 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री रामहमारे मित्र श्री अमरेंद्र जी की कविता है –

भाग्य होता, भाग्य-सा ही, काश मेरा

तो मुझे मिलता नहीं वनवास मेरा।

हमारे आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के लिए भी भाग्य मेहरबान नहीं रहा। भाग्य ने कभी उनकी भी ठीक से मदद नहीं की और उनको वनवास प्राप्त हुआ। परंतु यह तो ईश्वर का विधान था जो बाद में लाभकारी ही होना था। इसी वनवास के कारण राक्षसों का अंत भी हुआ। हम सोचते हैं कि आज हमारे लिए ठीक नहीं हो रहा है परंतु ईश्वर का विधान एक लंबी अवधि के लिए होता है। वह हमारे लिए सदैव अच्छा ही करता है। इसी अच्छाई को बताने के लिए मैं आज आपके पास 5 मई से 11 मई 2025 तक के सप्ताह के साप्ताहिक राशिफल के साथ प्रस्तुत हूं।

इस सप्ताह सूर्य मेष राशि में, मंगल कर्क राशि में, बुध प्रारंभ में मीन राशि में तथा सात तारीख के 6:29 प्रातः से मेष में, गुरु वृष राशि में, शुक्र, शनि तथा राहु मीन राशि में गोचर करेंगे।

आइए अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपका और आपके पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके जीवन साथी और माताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी परेशानी हो सकती है। माता जी को रक्त या हृदय संबंधी रोग हो सकता है। कृपया उनका ध्यान रखें। कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है। धन सामान्य मात्रा में आएगा। आपको चाहिए कि आप अपने प्रतिष्ठा के प्रति सतर्क रहें। इस सप्ताह आपके लिए पांच और 11 मई कार्यों को करने हेतु उपयुक्त हैं। 8, 9 और 10 मई को आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काली उड़द का दान करें और शनिवार को शनि मंदिर में जाकर पूजन करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका आपके माता जी और पिताजी का तथा जीवनसाथी का स्वास्थ्य पिछले सप्ताह जैसा ही रहेगा। आपके प्रयासों से इस सप्ताह कचहरी के कार्यों में सफलता का योग है। एकादश भाव में बैठा उच्च का शुक्र आपको धन लाभ करवायेगा। तृतीय भाव में बैठकर नीच का मंगल नीच भंग राजयोग बना रहा है, जिसके कारण आपका अपने भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य होंगे। आपको अपने संतान से इस सप्ताह कोई विशेष लाभ नहीं मिल पाएगा। इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 तारीख परिणाम दायक है। 10 और 11 तारीख को आपको सतर्क रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन चावल का दान करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका अपने कार्यालय में अच्छा प्रभाव रहेगा। धन आने का भी योग है। परंतु इसके लिए आपको अपने व्यापार पर ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा। कचहरी के कार्यों में इस सप्ताह आपके रिक्स नहीं लेना चाहिए। भाग्य से इस सप्ताह आपको मदद नहीं मिल पाएगी। आपको कोई भी कार्य करने के लिए ज्यादा परिश्रम करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपके लिए 8, 9 और 10 तारीख के दोपहर तक का समय कार्यों को करने के लिए फलदायक है। इन्हीं तारीखों में आपको धन की प्राप्ति भी हो सकती है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप काले कुत्ते को प्रतिदिन रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपको कार्यालय के कार्यों में बहुत सफलता मिल सकती है। परंतु इसके लिए आपको थोड़ा परिश्रम करना पड़ेगा और थोड़ा सामंजस्य बनाना पड़ेगा। आपके पिताजी और जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपको और आपकी माता जी को थोड़ा सा शारीरिक या मानसिक कष्ट हो सकता है। भाग्य भाव में उच्च का शुक्र बैठा है इसलिए आपको भाग्य से मदद मिल सकती है। परंतु इसी भाव में राहु भी बैठा हुआ है जो आपके भाग्य को थोड़ा कमजोर कर सकता है। इस सप्ताह आपके लिए पांच तथा 11 तारीख कार्यों को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आप अपने शत्रुओं को साधारण से प्रयास से ही पराजित कर सकते हैं। आपको चाहिए कि आप इस समय का लाभ उठाएं। कचहरी के कार्यों में नीच के मंगल के कारण सफलता मिलने की संभावना है। कार्यालय के कार्यों में आपकी स्थिति ठीक-ठाक ही रहेगी। भाग्य से आपको मदद मिल सकती है। दुर्घटनाओं से आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 तारीख कार्यों को करने के लिए उपयुक्त हैं। 5 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

कन्या राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह उत्तम रहेगा। विवाह के प्रस्ताव आएंगे। प्रेम संबंधों में भी वृद्धि होगी। धन के मामले में इस सप्ताह आपको सतर्क रहना चाहिए। आपको चाहिए कि इस सप्ताह आप धन लाभ हेतु रिस्क का कार्य न करें। एकादश भाव में नीच का मंगल बैठा हुआ है जो कि आपके आर्थिक लाभ में कमी करेगा। भाग्य से इस सप्ताह आपको सामान्य मदद ही प्राप्त होगी। दुर्घटनाओं से आप बच जाएंगे। इस सप्ताह आपके लिए 8, 9 और 10 तारीख लाभदायक है। 6 और 7 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें तथा मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

तुला राशि

यह सप्ताह आपके जीवनसाथी के लिए ठीक रहेगा। आपके जीवन साथी और माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहने की संभावना है। आपके और आपके पिताजी को शारीरिक या मानसिक परेशानी हो सकती है। कार्यालय के कार्यों में आपको परेशानी होगी। कृपया सावधान रहें। भाग्य से आपको सामान्य मदद ही मिल पाएगी। आपको अपने संतान से कोई सहयोग प्राप्त नहीं होगा। शत्रुओं से आप बच सकते हैं। कचहरी के कार्यों में कोई रिस्क ना लें। इस सप्ताह आपके लिए 5 और 11 मई कार्यों को करने के लिए शुभ है। 8, 9 और 10 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान सूर्य को प्रातः काल स्नान के उपरांत तांबे के पत्र में लाल पुष्प तथा अक्षत डालकर जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपका, आपकी माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में छोटी-मोटी परेशानी हो सकती है। भाग्य से इस सप्ताह आपको मदद मिलेगी। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। अगर आप अपने शत्रुओं को पराजित करना चाहेंगे और उसके लिए प्रयास करेंगे तो आप उनको पराजित कर सकेंगे। कचहरी के कार्यों में सावधानी बरतें। सन्तान भाव में उच्च का शुक्र बैठा हुआ है जिसके कारण आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 तारीख उत्तम है। 10 और 11 तारीख को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें और शनिवार को दक्षिण मुखी हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवारहै।

धनु राशि

अगर आप सावधान रहेंगे तो इस सप्ताह आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। कार्यालय के कार्यों में आपको सावधान होना चाहिए अन्यथा आप धोखा खा सकते हैं। दुर्घटनाओं से आप बच जाएंगे। इस सप्ताह आपके संतान भाव में उच्च के सूर्य विराजमान हैं। जिसके कारण आपके संतान के लिए यह सप्ताह ठीक है। धन आने की भी उम्मीद की जा सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 8, 9 और 10 तारीख के दोपहर तक कार्यों को करने के लिए फलदायक है। 5 तारीख को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका और आपके माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके जीवन साथी और आपके पिताजी के स्वास्थ्य में कुछ तकलीफ हो सकती है। इस सप्ताह आपको कार्यालय के कार्यों में बहुत सतर्क रहना चाहिए। जनता में आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेगा। इस सप्ताह आपके लिए पांच और दस तथा 11 तारीख कार्यों को करने हेतु परिणाम मूलक है। 6 और 7 तारीख को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र की तीन माला जाप करना चाहिए। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का और आपके पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को थोड़े से प्रयास में ही समाप्त कर सकते हैं। उच्च का शुक्र आपके धन भाव में है इसलिए धन आने की उम्मीद की जा सकती है। धन भाव में राहु के होने के कारण गलत रास्ते से धन आने की संभावना ज्यादा रहेगी। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेगा। भाग्य से इस सप्ताह आपको कम मदद मिलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 6 और 7 तारीख कार्यों को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह उच्च का शुक्र आपके लग्न भाव में विराजमान है। इसी भाव में राहु और शनि भी साथ में बैठे हुए हैं। यह योग आपको अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के प्रभाव देगा। आपका स्वास्थ्य सामान्य तौर से ठीक रहेगा परंतु आपकी स्नायु तंत्र में कोई परेशानी हो सकती है। आपके धन भाव में उच्च का सूर्य और बुध विराजमान है जिसके कारण आपके पास धन आने का योग है। आपकी संतान के भाव में नीच का मंगल है। इसके कारण संतान को कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 8, 9 और 10 तारीख की दोपहर तक का समय कार्यों को करने हेतु उचित है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहने की आवश्यकता है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षर स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवारहै।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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