हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #137 ☆ संतोष के दोहे – परहित ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे – परहित। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 137 ☆

☆ संतोष के दोहे – परहित ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बाबा तुलसी कह गए, परहित सरिस न धर्म

कहता है संतोष ये, करें सभी सत्कर्म

 

कलियुग में है दान की, महिमा अपरंपार

दान सदा करते रहें, यह भी है उपकार

 

करते दान दिखावटी, फोटो लें भरपूर

नाम छपे अखबार में, होता उन्हें गुरूर

 

जोड़ी धन-दौलत बहुत, बने बड़े धनवान

दान न जीवन में किया, खूब चढ़ा अभिमान

 

वहम पाल यह समझते, सब मेरा ही काम

भूले आकर अहम में, सबके दाता राम

 

दीनों का हित कीजिये, यही श्याम संदेश

मित्र सुदामा को दिया, एक सुखद परिवेश

 

जीवन के उत्कर्ष का, एक यही सिद्धांत

प्रेम,परस्पर-एकता, बोध और वेदांत

 

मानवता का सार यह, परहित और उदार

पर पीड़ा को समझ कर, करें खूब उपकार

 

कुदरत से सीखें सदा,औरों का उपकार

देती सब कुछ मौन रह, किये बिना प्रतिकार

 

करता है “संतोष” भी, मानवता की बात

परहित में देखें नहीं, कभी धर्म या जात

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कविता ☆ विजय साहित्य #142 ☆ ज्ञानेश्वरी ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

कविराज विजय यशवंत सातपुते

? कवितेचा उत्सव # 142 – विजय साहित्य ?

☆ ज्ञानेश्वरी ☆ कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆

 

ज्ञानदीप

भावार्थाचा

ज्ञानेश्वरी

ग्रंथ साचा.. . . !

 

विश्वात्मक

देवरूप

कल्याणाचे

निजरूप.. . . !

 

प्राणिजात

होवो सुखी

मागितले

दान मुखी.. . !

 

सज्जनांची

धरू कास

मांगल्याची

ठेवू आस. . . . !

 

तिन्ही लोकी

दुःख नाश

मागितले

स्नेहपाश…!

 

वाचूनीया

ग्रंथसार

व्हावा नर

ज्ञानाकार.. . !

 

ऐसे दान

ज्ञानियाचे

आर्णव ते

पीयूषांचे. . . !

 

मागितले

भावदान

संसाराचे

आत्मज्ञान.. . !

 

भेदभाव

नको मनी

ईश रूप

पाहू जनी.. . !

 

ईश्वराने

ईश्वराला

द्यावे दान

प्रेमळाला.. . . !

© कविराज विजय यशवंत सातपुते

सहकारनगर नंबर दोन, दशभुजा गणपती रोड, पुणे.  411 009.

मोबाईल  8530234892/ 9371319798.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 179 ☆ अभियंता दिवस विशेष – स्मार्ट इंजीनियरिंग के हाल के कुछ उदाहरण ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख – ”हिन्दी: वैधानिक स्थितियां…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 179 ☆  

? आलेख – अभियंता दिवस विशेष – स्मार्ट इंजीनियरिंग के हाल के कुछ उदाहरण… ?

प्रति वर्ष १५ सितम्बर को भारत रत्न सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया का जन्म दिन इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाता है.उन्हें नये भारत का विश्वकर्मा कहा जाता है. जब वर्ष १८८३ में विश्वेश्वरैया जी ने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की तब अंगुलियों पर गिने जाने वाले इंजीनियर्स थे, औद्योगिकीकरण का प्रारंभ हो रहा था.  बांध, नहरें, रेल लाइन, सड़कें, जल प्रदाय, भवन, विद्युतीकरण आदि   अनंत विकास कार्य किये जाने थे. अपनी प्रतिभा और अथक मेहनत से विश्वेश्वरैया जी ने अपनी समर्पित कार्यकारी छबि बनाई और देश को जाने कितने ही सफल प्रोजेक्टस दिये.

पंडित नेहरू ने कल कारखानो को नये भारत के तीर्थ कहा था, इन्ही तीर्थौ के पुजारी, निर्माता इंजीनियर्स को आज अभियंता दिवस पर बधाई.

आज दुनियां में भी भारतीय इंजीनियर्स ने अपनी विद्वता और मेहनत से यही छबि बनाने में सफलता पा ली है. भारत के आई आई टी जैसे संस्थानो के इंजीनियर्स ने विश्व में अपनी कार्य प्रणाली से  भारतीय बुद्धि की श्रेष्ठता का समीकरण अपने पक्ष में कर दिखाया है.

नोएडा के ट्विन टावर्स का ध्वस्त किया जाना…

जहाँ भ्रष्टाचार और घोलमाल से, राजनैतिक शह पर नोयडा में सुपरटेक के गगन छूते ट्विन टावर्स तान दिये गये थे वहीं न्यायालय के आदेश पर कुछ सेकेंड में सघन आबादी में बिना और कहीं नुकसान के इन ट्विन टावर्स को धूल धूसरित करने के इंजीनियरिंग के स्मार्ट करिश्में भी हैं. जिस पर गर्व किया जाना चाहिये. 28 अगस्त 2022 को दोपहर 2 बजे का समय निर्धारित किया गया, एडिफिस कंपनी को इन टावर्स को गिराने का जिम्मा दिया गया था.  टावर सोक ट्यूब सिस्टम के तहत ध्वस्त किए गये.  इस तकनीक में मलबा पानी के झरने की तरह सीधे नीचे गिरता है.  टावर को गिराने के लिए सेकेंड दर सेकेंड अलग अलग हिस्सों में नियंत्रित विस्फोट किए गये टावर गिरने की शुरुआत बेसमेंट से की गई. फिर एक-एक कर स्लैब ढ़हा दिये गये.  दोनों टावर का पहला फ्लोर पहले सेकेंड और अंतिम फ्लोर सातवें सेकेंड में ध्वस्त हो गया. एमरॉल्ड कोर्ट में बने 97 मीटर ऊंचे 29 मंजिला सियान टावर में पहले धमाका किया गया. कुछ पल बाद  103 मीटर ऊंचा, 32 मंजिला एपेक्स टावर धराशायी किया गया. ध्वस्त किये गये टावर्स से केवल नौ मीटर की दूरी पर स्थित सोसायटी में लोग रह रहे हैं यह महत्वपूर्ण बात है. इस सदी ने प्रारंभ में ही आतंकी गतिविधि में न्यूयार्क के ट्विन टावर्स से हवाई जहाजों को टकराते और उन्हें हजारों लोगों की मृत्यु के दुखद हादसे के रूप में देखा था. उस दुखद घटना के बाद सारी दुनियां ने नोएडा के ट्विन टावर्स को कंट्रोल्ड स्मार्ट इंजीनियरिंग के साथ पल भर में गिराये जाते देखा.

ओंकारेश्वर बांध के जलाशय पर दुनियां का सबसे बड़ा तैरता सोलर बिजली घर…

मध्य प्रदेश में दुनिया में सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर पावर प्लांट नर्मदा नदी पर स्थित ओंकारेश्वर बांध में बनाया जा रहा है. परियोजना के अनुसार ओंकारेश्वर बांध पर तैरते हुये सोलर पैनल लगाए जाने हैं. दुनिया में अब तक केवल 10 इस तरह के फ्लोटिंग पावर प्लांट हैं. ओंकारेश्वर में निर्माणाधीन यह प्लांट दुनिया का सबसे बड़ा, तैरता सोलर प्लांट होगा, क्योंकि पूर्ण हो जाने पर इसकी क्षमता 600 मेगावाट होगी. इस परियोजना का निर्माण दो चरणों में पूरा किया जायेगा.   पहले चरण में 278 मेगावाट की परियोजना पर काम शुरू हो चुका है.   अब तक, सौर परियोजनाएं आम तौर पर भूमि पर विकसित की जाती थीं जिससे ढ़ेर सारी जमीन बेकार हो जाती थी. बांध के वाष्पीकृत होते पानी की भी बचत इन पैनल्स के लग जाने से होगी. इस सोलर पार्क परियोजना की स्थापना से  प्रति वर्ष 1200 मिलियन यूनिट सौर ऊर्जा बिजली के रूप में प्राप्त होगी. बिना आबादी के विस्थापन हुये, बांध में फैले जल संग्रहण पर तैरती परियोजना स्मार्ट इंजीनियरिंग का नमूना है.

आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस के वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में स्मार्ट इंजीनियरिंग लगातार विकसित हो रही प्रणालियों, उत्पादों और अनुप्रयोगों के लिए अपरिहार्य होती जा रही है. इंजीनियरिंग हार्डवेयर सिस्टम और सॉफ्टवेयर का  अधिकाधिक समन्वित प्रयोग  हितधारकों, विकास, परिनियोजन, निर्माण और संचालन में विभिन्न भूमिकाओं के साथ विस्तार प्राप्त कर रहा है. समय की मांग है कि इंजीनियरिंग के  एनालिटिकल  समाधान, सामाजिक उद्देश्य के साथ साथ व्यापार, और विकास में तालमेल बनाये रखा जाये.   डेटा निर्भर ए आई सिस्टम के  सिमुलेशन और सॉफ्टवेयर, इंजीनियरिंग लागत को तथा परियोजना निर्माण के प्रभावी समय को कम करने वाले विकल्प प्रदान करते हैं.  वर्तमान में प्रत्येक परियोजना के स्मार्ट इंजीनियरिंग समाधानों की आवश्यकता है एवं इस क्षेत्र में विकास के अभूतपूर्व नये नये अवसर तथा संभावनायें हैं.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 फेलो आफ इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजनियर्स

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 117☆ जुगत की पहेली, सच्ची सहेली ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ ☆

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना जुगत की पहेली, सच्ची सहेली। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 117 ☆

जुगत की पहेली, सच्ची सहेली ☆ 

जोड़ तोड़ की पहल क्या कुछ नहीं करवा देती है। सम्मान पाने की लालसा लिए सही गलत का भेद भुला कर बस कॉपी पेस्ट की ओर चल दिए नवीन लाल जी, आपकी हर रचना किसी न किसी की रचना का अंश होती थी पर हद तो तब हो गयी जब पूरा का पूरा ठीकरा ही अपने सर पर लाद लिया। कहते हैं महाभारत काल में दुर्योधन की पत्नी भानुमती ने उसकी मृत्यु के बाद  पूरे कुनबे को जोड़ने के लिए कुछ भी जोड़ तोड़ किया था। आदिकाल से विवाह द्वारा सम्बन्धों को जोड़ने की परम्परा चली आ रही है। इसे दूसरे शब्दों में रिश्तों की वैधता को सर्टिफाइड करना कहें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

शक्ति, धैर्यता, प्रकृति, पूर्णता, प्रार्थना ये  सब कुछ करते हुए भी कहीं न कहीं कुछ अधूरा रह जाता जिसके लिए इन्जार करना पड़ता है कृपा का, पर ये  मिले कैसे…?

सहन करने की भी एक सीमा होती है, बार – बार जब कोई असफ़ल होता है  तो बजाय पूरी ताकत के फिर से प्रयास करे इससे अच्छा वो ये समझता है कि मैदान छोड़कर भाग जाओ।

ये विराट संसार है जैसे ही आप पलायन करेंगे कोई और आकर उस रिक्त स्थान को भर देगा  इसलिए जैसे ही अवसर मिले उसका भरपूर लाभ उठाएँ, चाहें कितनी बार भी गिरें पर उठें और पुनः जीवन की दौड़ में शामिल हों।

कोई भी व्यक्ति या वस्तु पूर्ण नहीं होती है ये तो सर्वसत्य है, हमें उसके  गुण दोषों को  स्वीकार करने की समझ होनी चाहिए।

इस संदर्भ में  छोटी सी कहानी याद आती है, एक शिष्य बहुत दुःखी होकर अपने गुरु के  सम्मुख  रुदन करते हुए कहने लगा कि मैं आपके शिष्य बनने के काबिल नहीं हूँ, हर परीक्षा में जितने अंक मिलने चाहिए वो मुझे कभी नहीं मिले इसलिए मैं  अपने घर जा रहा हूँ, वहाँ पिता के कार्य में हाथ बटाऊँगा, गुरु जी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की पर वो अधूरी शिक्षा  छोड़ कर अपने  गाँव चला गया।

किसी के जाने का दुःख एक दो दिन तो सभी करते हैं पर जल्दी ही उस रिक्त स्थान की पूर्ति हो जाती है। एक दिन गुरुजी सभी शिष्यों को पढ़ा रहे थे तभी  उन्हें  वहाँ कुछ पक्षी उड़ते हुए दिखे उनका मन भी सब कुछ छोड़ हिमालय की ओर चला गया कि कैसे  वो अपने गुरु के सानिध्य में वहाँ रहते थे, तो  गुरुदेव ने भी  तुरन्त अपने प्रिय शिष्य को आश्रम की जिम्मेदारी दी और  चल दिये हिमालय की गोद में।

ये किस्सा एक बार का नहीं जब मन करता गुरुदेव कहीं न कहीं अचानक चल देते सो उनके शिष्य भी उन्हीं के पद चिन्हों पर चलते हुए अधूरे ज्ञान के साथ जब जी आता  अपनी पढ़ाई छोड़ कर चल देते कुछ वापस भी आते।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 127 ☆ गीत – अनगिन चले गए ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 127 ☆

☆ गीत – अनगिन चले गए  ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

अनगिन चले गए

परिचित शुभचिन्तक

देखा अदभुत रे संसार।

अब तो छूट रहा है प्यार।।

 

ये भी जोड़ा , वो भी जोड़ा

नाते , रिश्ते जोड़ लिए

कहीं कपट था, कहीं रपट है

कुछ ने रिश्ते तोड़ लिए

 

कैसे मिथक और उपमाएं

करतीं जीवन साज – सँवार।

 

ईश्वर को मैं देख न पाया

लेकिन गीत सदा ही गाया

सुख – दुख में सब काल छिन गया

सुख चाहती है केवल काया

 

कोशिश करी सदा मिलने की

आँख बंद कर की मनुहार।।

 

 

शब्द – शब्द ने ब्रह्म जगाया

जो चाहते थे कब वह पाया

मैल लगे वस्त्रों को हमने

थोड़ा – थोड़ा था चमकाया

 

द्वार खोलती अनुभूति नित

कुछ से मिलता प्यार अपार।।

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सुजित साहित्य #126 – कळले नाही…! ☆ श्री सुजित कदम ☆

श्री सुजित कदम

? कवितेचा उत्सव ?

☆ सुजित साहित्य # 126  – कळले नाही…! 🍃 

मला वाटले, भेटशील एकदा नंतर नंतर

कळले नाही, कसले तूझे हे जंतरमंतर…!

 

येते म्हणाली, होतीस तेव्हा जाता जाता

किती वाढले, दोघांमधले अंतर अंतर…!

 

रोज वाचतो, तू दिलेली ती पत्रे बित्रे

भिजून जाते, पत्रांमधले अक्षर अक्षर…!

 

तूला शोधतो, अजून मी ही जिकडेतिकडे

मला वाटते, मिळेल एखादे उत्तर बित्तर…!

 

स्वप्नात माझ्या, येतेस एकटी रात्री रात्री

नको वाटते, पहाट कधी ही रात्री नंतर…!

 

उभा राहिलो, ज्या वाटेवर एकटा एकटा

त्या वाटेचाही, रस्ता झाला नंतर नंतर…!

 

विसरून जावे, म्हणतो आता सारे सारे

कुठून येते, तूझी आठवण नंतर नंतर…!

 

मला वाटले, भेटशील एकदा नंतर नंतर

कळले नाही, कसले तूझे हे जंतरमंतर…!

 

©  सुजित कदम

संपर्क – 117, विठ्ठलवाडी जकात नाका, सिंहगढ़   रोड,पुणे 30

मो. 7276282626

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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मराठी साहित्य – चित्रकाव्य ☆ – संरक्षण – ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के ☆

सुश्री नीलांबरी शिर्के

?️?  चित्रकाव्य  ?️?

 ? – संरक्षण   ? ☆ सुश्री नीलांबरी शिर्के 

डोक्यावर छत्री

संरक्षण खात्री

कल्पकतेशी हवी

आपली मैत्री

वेळ निभावते

कामही होते

जोडले जाते

निसर्ग नाते

चित्र साभार –सुश्री नीलांबरी शिर्के

© सुश्री नीलांबरी शिर्के

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#150 ☆ कविता – हार जीत का प्रश्न नहीं है… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय कविता “हार जीत का प्रश्न नहीं है…”)

☆  तन्मय साहित्य # 150 ☆

☆ कविता – हार जीत का प्रश्न नहीं है ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

कौन गलत है कौन सही है

हार जीत का प्रश्न नहीं है।

आप सतत निगरानी में हैं

उसकी सत्य कहानी में हैं

आकर्षक इस रंगमंच पर

शक्ल नई अनजानी में हैं,

सोचा! कभी स्वयं की कब

परछाई खुद से अलग रही है

हार जीत का प्रश्न नहीं है।

 

खुद होकर कोईं कब बोले

भेद न कोईं अपने खोले

समय, तराजू लिए खड़ा है

साँच-झूठ पल-पल का तोले,

सबकी करतूतों के अपने

अपने खाते और बही है

हार जीत का प्रश्न नहीं है।

 

खुश है मन तो कभी विकल है

मछली की भांति चंचल है

मृग मरीचिकाओं से मोहित

चलती रहे सदा हलचल है,

जीवन के सच से अबोध

ये राग-द्वेष सुख-दुख सतही है

हार जीत का प्रश्न नहीं है

कौन गलत है कौन सही है।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 38 ☆ लोरी – सो जा – सो जा गजराज… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण लोरी  “सो जा – सो जा गजराज… ”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 37 ✒️

? लोरी   – सो जा – सो जा गजराज… — डॉ. सलमा जमाल ?

सोजा, सोजा, गजराज शंकर के ललना ।

तुझे पार्वती माता झुलाये पलना ।।

 

भुजायें छोटी-छोटी सूंढ़ है प्यारी ,

नेत्र हैं विशाल मूस की सवारी ,

प्रथम पूज्य की नहीं किसी से तुलना।

सो जा ——————————- ।।

 

इक हाथ हैगी, दूजे में फ़रसा सजा ,

तीजे में कंज ,चौथे में लड्डू धरा ,

सारे देवता मिलके डुलावें  बिजना ।

सो जा —————————— ।।

 

माथे अर्धचन्द्र ,मोती -मांणिक जड़े ,

लम्बोदर कहाते , दयावंत हैं बड़े ,

भूतगणांधि खींचें तुम्हारा झुलना ।

सो जा —————————– ।।

 

पाप हरो मेरे , भक्त हूं तुम्हारी ,

पूर्ण करो इकदन्त मनोरथ हमारी ,

अपने पराये चाहें मुझको छलना ।

सो जा —————————- ।।

 

विश्वकर्मा जी लाये चन्दन पलना ,

लताओं की डोरी जामुन फुन्दना ,

भगवती भी करतीं तुम्हारी वन्दना ।

सो जा —————————– ।।

 

अर्पण करे ‘सलमा ‘ सिंदूर फूल कपूर ,

प्रसाद में लायी गणपति को मोतीचूर ,

साक्षात् दर्शन से कब होगा मिलना ।

सो जा —————————— ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 178 ☆ राजभाषा दिवस विशेष – हिन्दी: वैधानिक स्थितियाँ ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख – ”हिन्दी: वैधानिक स्थितियां…”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 178 ☆  

? आलेख – राजभाषा दिवस विशेष – हिन्दी: वैधानिक स्थितियां… ?

हिन्दी दिवस १४ सितम्बर को क्यों ?

1947 में जब भारत को आजादी मिली तो देश के सामने राजभाषा के चुनाव को लेकर गहन चर्चायें हुई. भारत में अनेकों भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं, ऐसे में राष्ट्रभाषा के रूप में किसे चुना जाए ये संवेदनशील सवाल था. व्यापक मंथन के बाद संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिन्दी को राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया. भारत के संविधान में भाग 17 के अनुच्छेद 343 (1) में कहा गया है कि राष्ट्र की राज भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी. 14 सितम्बर, 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था. इसीलिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की अनुशंसा के बाद से 1953 से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाने लगा. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस दिन के महत्व देखते हुए प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी.

विश्व हिन्दी दिवस १० जनवरी को क्यों ?

हिन्दी आज विश्व में तीसरे नम्बर पर बोले जाने वाली भाषा बन चुकी है. भारतीय विश्व के कोने कोने में बिखरे हुये हैं. वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था. इसीलिए इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है.

हिन्दी की वैधानिक स्थितियां

चुंकि जब अंग्रेज गये तब सरकारी काम काज प्रायः अंग्रेजी में ही होते थे, रातों रात सारा हिन्दीकरण संभव नहीं था अतः अंग्रेजी में कामकाज यथावत जारी रहे. इसके चलते हिन्दी और अंग्रेजी के बारे में यह भ्रम व्याप्त है कि ये दोनों भारत संघ की सह-राजभाषाएँ हैं. वास्तविक सांविधानिक स्थिति बिल्कुल भिन्न है. संविधान में कहीं भी अंग्रेजी को राजभाषा नहीं कहा गया है. संविधान में अंग्रेजी के लिए प्रयुक्त शब्द हैं ” the language for the time being authorised for use in the Union for official purposes. ” संविधान ने कहा कि अंग्रेजी अगले पन्द्रह वर्ष तक राजकीय प्रयोजन के लिए साथ साथ प्रयुक्त होगी, तब तक संपूर्ण रूप से हिन्दी अपना ली जायेगी किन्तु दलगत तथा क्षेत्रीय राजनीति के चलते ये पंद्रह बरस अब तक खिंचते ही जा रहे हैं.

अनुच्छेद 344 में मुख्यत: छ: संदर्भों को रेखांकित किया गया है-

राष्ट्रपति द्वारा पाँच वर्ष की समाप्ति पर भारत की विभिन्न भाषाओं के सदस्यों के आधार पर एक आयोग गठित किया जाएगा और आयोग राजभाषा के संबंध में कार्य-दिशा निर्धरित करेगा.

हिंदी के उत्तरोत्तर प्रयोग पर बल दिया जाएगा. देवनागरी के अंकों के प्रयोग होंगे. संघ से राज्यों के बीच पत्राचार की भाषा और एक राज्य से दूसरे राज्य से पत्राचार की भाषा पर सिफारिश होगी. आयोग के द्वारा औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति के साथ लोक-सेवाओं में हिंदीतर भाषी क्षेत्रों के न्यायपूर्ण औचित्य पर ध्यान रखा जायेगा.
राजभाषा पर विचारार्थ तीस सदस्यों की एक समिति का गठन किया जाएगा जिसमें 20 लोक सभा और 10 राज्य सभा के आनुपातिक सदस्य एकल मत द्वारा निर्वाचित होंगे.
समिति राजभाषा हिंदी और नागरी अंक के प्रयोग का परीक्षण कर राष्ट्रपति को प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगी. राष्ट्रपति के द्वारा आयोग के प्रतिवेदन पर विचार कर निर्देश जारी किया जाएगा.

अनुच्छेद 345, 346 और 347 में विभिन्न राज्यों की प्रादेशिक भाषाओं के विषय में भी साथ-साथ विचार किया गया है.

अनुच्छेद 345 में प्रावधान है कि राज्य के विधान मण्डल द्वारा विधि के अनुसार राजकीय प्रयोजन के लिए उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली भाषा या हिंदी भाषा के प्रयोग पर विचार किया जा सकता है. इस संदर्भ में यह भी स्पष्ट किया गया है कि जब तक किसी राज्य का विधन मंडल ऐसा प्रावधान नहीं करेगा, तब तक कार्य पूर्ववत अंग्रेजी में चलता रहेगा.

अनुच्छेद 346 के अनुसार संघ में राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त भाषा यदि दो राज्यों की सहमति पर आपस में पत्राचार के लिए उपयोगी समझते हैं, तो उचित होगा. यदि दो या दो से अधिक राज्य आपस में निर्णय लेकर राजभाषा हिंदी को संचार भाषा के रूप में अपनाते हैं, तो उचित होगा.

अनुच्छेद 347 कहता है कि यदि किसी राज्य में जनसमुदाय द्वारा किसी भाषा को विस्तृत स्वीकृति प्राप्त हो और राज्य उसे राजकीय कार्यों में प्रयोग के लिए मान्यता दे, और राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाए, तो उक्त भाषा का प्रयोग मान्य होगा.

अनुच्छेद 348 में उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों की भाषा पर विचार किया गया है. यहाँ यह प्रावधान है कि जब तक संसद विधि द्वारा उपबंध न करे, तब तक कार्य अंग्रेजी में ही होता रहेगा. इसके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय, प्रत्येक उच्च न्यायालय के कार्य क्षेत्र रखे गए.

हिन्दी प्रयोग के लिए संसद के दोनों सदनों से प्रस्ताव पारित होना चाहिए. अधिनियम संसद या राज्य विधान मंडल से पारित किए जाएं और राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा स्वीकृति मिले. यह प्रस्ताव विधि के अधीन और अंग्रेजी में होंगे. नियमानुसार स्वीकृति के बाद हिंदी का प्रयोग संभव होगा, किंतु उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय या आदेश पर लागू नहीं होगा.

अनुच्छेद 349 में प्रावधान है कि संविधान के प्रारंभिक 15 वर्षों की कालावधि तक संसद के किसी सदन से पारित राजभाषा संबंधित विधेयक या संशोधन बिना राष्ट्रपति की मंजूरी के स्वीकृत नहीं होगा. ऐसे विधेयक पर राजभाषा संबंधित तीस सदस्यीय आयोग की स्वीकृति के पश्चात्, राष्ट्रपति विचार कर स्वीकृति प्रदान करेंगे.

अनुच्छेद 350 के प्रावधानो के अनुसार विशेष निर्देशों को व्यवस्थित किया गया है. इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी समस्या को संघ और राज्य के पदाधिकारियों को संबंधित मान्य भाषा में आवेदन कर सकेगा. इस तरह प्रत्येक व्यक्ति को अधिकृत भाषा में संघ या राज्य के अधिकारियों से पत्र-व्यवहार का अवसर दिया गया है.

अनुच्छेद 351 में भारतीय संविधान की अष्टम सूची में स्थान प्राप्त भाषाओं को महत्व दिया गया है. हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार से भारत की सामाजिक संस्कृति को अभिव्यक्ति मिलने का संकेत है. हिंदी भाषा को मुख्यत: संस्कृत शब्दावली के साथ अन्य भाषाओं के शब्दों से समृद्ध करने का संकेत भी इस अनुच्छेद में किया गया है.

हिन्दी के साथ साथ उपयोग हेतु राष्ट्रपति के आदेश

भारत संघ में राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रपति के द्वारा समय-समय पर आदेश जारी किए गए हैं. 1952 का आदेश उल्लेखनीय है जिसमें राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 343(2) के अधीन 27 मई, 1952 को एक आदेश जारी किया जिसमें संकेत था कि राज्य के राज्यपाल, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति पत्रों में अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी और अंक नागरी लिपि में हों.

राजभाषा आयोग की स्थापना सन् 1955 में हुई. आयोग के तीस सदस्यों द्वारा राजभाषा संदर्भ में निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किए गए-

त्वरित गति से हिन्दी के पारिभाषिक शब्द-निर्माण हों.

14 वर्ष की आयु तक प्रत्येक विद्यार्थी को हिंदी भाषा की शिक्षा दी जाए.

माध्यमिक स्तर तक भारतीय विद्यार्थियों को हिंदी शिक्षण अनिवार्य हो.

इसमें से प्रथम सिफारिश मान ली गई. अखिल भारतीय और उच्चस्तरीय सेवाओं में अंग्रेजी जारी रखी गई. सन् 1965 तक अंग्रेजी को प्रमुख और हिंदी को गौण रूप में स्वीकृति मिली. 45 वर्ष से अधिक उम्र के कर्मचारियों को हिंदी- प्रशिक्षण की छूट दी गई.

1955 के राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार संघ के सरकारी कार्यों में अंग्रेजी के साथ हिंदी प्रयोग करने का निर्देश किया गया. जनता से पत्र-व्यवहार, सरकारी रिपोर्ट का पत्रिकाओं और संसद में प्रस्तुत, जिन राज्यों ने हिंदी को अपनाया है, उनसे पत्र-व्यवहार, संधि और करार, अन्य देशों उनके दूतों अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से पत्र-व्यवहार, राजनयिक अधिकारियों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत के प्रतिनिधियों द्वारा जारी औपचारिक विवरण सभी कार्य अंग्रेजी और हिन्दी दोनो भाषाओ में किये जाने के निर्देश दिये गये.

1960 में राष्ट्रपति द्वारा राजभाषा आयोग के प्रतिवेदन पर विचार कर निम्न निर्देश जारी किए गए थे-

वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के निर्माणार्थ शिक्षा मंत्रालय के अधीन एक आयोग स्थापित किया जाए.शिक्षा मंत्रालय, सांविधिक नियमों आदि के मैनुअलों की एकरूपता निर्धरित कर अनुवाद कराया जाए. मानक विधि शब्दकोश, हिंदी में विधि के अधिनियम और विधि-शब्दावली निर्माण, हेतु कानून विशेषज्ञों का एक आयोग बनाएँ.तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों को छोड़, 45 वर्ष तक की उम्र वाले कर्मचारियों को हिंदी प्रशिक्षण अनिवार्य किया जावे. गृह मंत्रालय हिंदी आशुलिपिक, हिंदी टंकण प्रशिक्षण योजना बनाए.

1963 का राजभाषा अधिनियम : 26 जनवरी, 1965 को पुन: आगामी 15 वर्षों तक अंग्रेजी को पूर्ववत् रखने का प्रावधान कर दिया गया. हिंदी-अनुवाद की व्यवस्था पर जोर दिया गया. उच्च न्यायालयों के निर्णयों आदि में अंग्रेजी के साथ हिंदी या अन्य राजभाषा के वैकल्पिक प्रयोग की छूट दी गई. इससे अंग्रेजी का वर्चस्व बना रहा. देश को एकता के सूत्र में बाँधने वाली हिंदी को वह स्थान नहीं मिल सका जो राजभाषा से अपेक्षा थी.

वर्ष 1968 में संविधान के राजभाषा अधिनियम को ध्यान में रखकर संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष संकल्प पारित किया. इसमें विचार रखे गए-

हिंदी प्रचार-प्रसार का प्रयत्न किया जाएगा और प्रतिवर्ष लेखा-जोखा संसद के पटल पर रखा जाएगा.
आठवीं सूची की भाषाओं के सामूहिक विकास पर राज्य सरकारों से परामर्श और योजना-निर्धारण.
त्रिभाषा-सूत्र पालन करना.
संघ लोक-सेवा आयोग की परीक्षाओं में अंग्रेजी के साथ हिंदी और आठवीं सूची की भाषाओं को अपनाना.
कार्यालयों से जारी होने वाले सभी दस्तावेज हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हों. संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किए जाने वाले सरकारी पत्र आदि अनिवार्य रूप से हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हों.
राजभाषा हिंदी कार्यान्वयन के लिए देश को भाषिक धरातल पर तीन भागों में बाँटा गया-

‘क’ क्षेत्र- बिहार, हरियाणा, हिमाचल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली.

‘ख’ क्षेत्र- गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, अंडमान निकोबार द्वीप-समूह और केद्रशासित क्षेत्र.

‘ग’ क्षेत्र- भारत के अन्य क्षेत्र-बंगाल, उड़ीसा, आसाम, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक, केरल आदि.

इस अधिनियम के अनुसार केद्र सरकार द्वारा ‘क’ क्षेत्र अर्थात हिन्दी बैल्ट से पत्र-व्यवहार हिंदी से ही होगा. यदि अंग्रेजी में पत्र भेजा गया, तो उसके साथ हिंदी अनुवाद अवश्य होगा. ‘ख’ क्षेत्र से पत्र-व्यवहार हिंदी के साथ अंग्रेजी में भी होगा. ‘ग’ क्षेत्र से पत्र-व्यवहार अंग्रेजी में हो सकता है.

इन स्थितियों में आजादी के अमृत महोत्व वर्ष में भी हम हिन्दी के अधूरे राजभाषा स्वरूप में हिन्दी दिवस मना रहे हैं. प्रधानमंत्री ने दासता के सारे चिन्हों से मुक्त होने का आव्हान किया है, राजपथ का नाम करण कर्तव्य पथ हो चुका है, अब हम भारत वासियों और हिन्दी प्रेमियों का कर्तव्य है कि हम अंग्रेजी की दासता से मुक्त होकर हिन्दी को उसकी संपूर्णता में कब तक और कैसे अपनाते हैं.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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