श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “संतोष के दोहे – परहित। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 137 ☆

☆ संतोष के दोहे – परहित ☆ श्री संतोष नेमा ☆

बाबा तुलसी कह गए, परहित सरिस न धर्म

कहता है संतोष ये, करें सभी सत्कर्म

 

कलियुग में है दान की, महिमा अपरंपार

दान सदा करते रहें, यह भी है उपकार

 

करते दान दिखावटी, फोटो लें भरपूर

नाम छपे अखबार में, होता उन्हें गुरूर

 

जोड़ी धन-दौलत बहुत, बने बड़े धनवान

दान न जीवन में किया, खूब चढ़ा अभिमान

 

वहम पाल यह समझते, सब मेरा ही काम

भूले आकर अहम में, सबके दाता राम

 

दीनों का हित कीजिये, यही श्याम संदेश

मित्र सुदामा को दिया, एक सुखद परिवेश

 

जीवन के उत्कर्ष का, एक यही सिद्धांत

प्रेम,परस्पर-एकता, बोध और वेदांत

 

मानवता का सार यह, परहित और उदार

पर पीड़ा को समझ कर, करें खूब उपकार

 

कुदरत से सीखें सदा,औरों का उपकार

देती सब कुछ मौन रह, किये बिना प्रतिकार

 

करता है “संतोष” भी, मानवता की बात

परहित में देखें नहीं, कभी धर्म या जात

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Subedarpandey

यथार्थ के दर्शन कराती उत्कृष्ट दोहा प्रस्तुति ,
आदरणीय नेमा जी बहुत बहुत बधाई अभिनंदन अभिवादन आदरणीय श्री मंगल सुप्रभात।