हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 292 ☆ व्यंग्य ☆ एक अक्लमन्द बाप ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार ☆

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक बेहतरीन व्यंग्य – ‘एक अक्लमन्द बाप‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 292 ☆

☆ व्यंग्य ☆ एक अक्लमन्द बाप

छन्नूलाल अपने युवा बेटे महेश को हमेशा ऐसे पुलक कर देखते थे जैसे कोई सूदखोर अपनी रकम को बढ़ते देखता है। वे लड़के को मुग्ध भाव से निहारते रहते थे। लड़का नौकरी पर लग गया है। कोई तगड़ा लड़की वाला मिल जाए तो दस बीस लाख पक्के। पुत्र को जन्म देने का पुरस्कार मिले।

मुश्किल यही थी कि लड़का उनकी बात नहीं सुनता था। वे अपनी तरफ से हमेशा उसे नसीहत देते रहते थे— ‘बेटा, चार पैसे ऊपर के कमाओ। सच्चाई, ईमानदारी से इस महंगाई के जमाने में काम नहीं चलता। लक्ष्मी अपने आप नहीं आती। उसे थोड़ा फुसलाना पड़ता है।’

कभी नसीहत देते, ‘बेटा, यार-दोस्तों पर ज्यादा खर्च मत किया करो। आज के जमाने में पैसे से बढ़कर कोई सच्चा यार नहीं है। बाकी सब यार मतलब के होते हैं।’

महेश उनकी बात सुनकर झल्ला पड़ता है। कहता है, ‘आप ये ऊटपटांग बातें अपने पास रखो। हमें जो ठीक लगेगा, करेंगे।’

छन्नूलाल खून का घूंट पीकर रह जाते हैं। आज के ज़माने की औलाद को समझाना बहुत मुश्किल है। अकल की बात भी कांटे जैसी लगती है।

लड़की वाले आने लगे हैं। उनके आते ही छन्नूलाल ऐसे अकड़ कर बैठ जाते हैं जैसे किसी मुल्क के सुल्तान हों। मुंह टेढ़ा करके खिड़की की तरफ देखते हुए बातें करते हैं, जैसे किसी प्रेत से वार्तालाप कर रहे हों। सीधे पूछते हैं, ‘कितना खर्चा करेंगे आप?’ वह दस पन्द्रह लाख बताता है तो छन्नूलाल खिड़की की तरफ देखते हुए व्यंग्य से हंसना शुरू कर देते हैं और आधे मिनट तक हिनहिनाते रहते हैं। सामने बैठा आदमी छोटा होता जाता है।

हंसी रूकती है तो छन्नूलाल खिड़की को संबोधित करके कहते हैं, ‘दस पंद्रह लाख में तो कोई चपरासी मिलेगा। यहां तो चालीस पचास लाख वाले रोज चक्कर लगा रहे हैं।’

कुछ मोटी पार्टियां सचमुच चक्कर लगा रही हैं। छन्नूलाल को विश्वास है कि अच्छे फायदे में सौदा पट जाएगा। डर यही है कि कहीं लड़का नखरे न दिखाने लगे।

बुरे लक्षण प्रकट होने लगे। एक दिन महेश आकर कह गया, ‘बाबूजी, सुना है आप मेरी शादी तय कर रहे हैं। मुझे अभी शादी नहीं करनी है। जब करना होगी, बता दूंगा।’

छन्नूलाल खौंखिया कर बोले, ‘तो क्या बुढ़ापे में करोगे?’

महेश बोला, ‘कभी भी करूं। जब करना होगी, आपको बता देंगे।’

छन्नूलाल ने अपने तरकश से पुराने पारंपरिक तीर निकाले। बोले, ‘मां-बाप होने के नाते हमारा धरम बनता है कि तुम्हारी शादी कर दें, इसलिए देख रहे हैं, नहीं तो हमें क्या। फिर बहू आ जाएगी तो तुम्हारी अम्मां को थोड़ा आराम मिल जाएगा। नाती पोते हों तो घर में अच्छा लगेगा।’

महेश ने उनके दांव को काट दिया। कहा, ‘घर में इतना काम नहीं है जिसके लिए अम्मां को परेशानी होती हो। इतनी जल्दी काहे की पड़ी है?’

छन्नूलाल का दिल बैठ गया। लगा, लक्ष्मी दरवाजे पर दस्तक देते देते ‘टाटा’ कहने लगी है। भुन कर बोले, ‘बड़े हो गये हो न, इसलिए बाप की बात बेवकूफ़ी लगती है। जो जी में आये, करो।’

फिर भी उन्होंने आस नहीं छोड़ी। पत्नी को ड्यूटी पर लगा दिया कि रोज़ बेटे को सीधे या संकेतों से बहू की ज़रूरत की याद दिलाती रहे।

लेकिन एक दिन छन्नूलाल पर वज्रपात हो गया। महेश एक दिन माला-वाला पहने एक लड़की को साथ लेकर आ गया। लड़की की मांग में दगदगाता सिन्दूर। मां-बाप के पांव छूकर बोला, ‘बाबूजी, हमें आशीर्वाद दीजिए। हमने शादी कर ली है।’

छन्नूलाल की ज़ुबान को लकवा लग गया। यह कौन से जन्मों के पापों की सज़ा मिली? बीस लाख हवा में तैरकर विलीन होते दिखे। तमतमाये चेहरे से चिल्लाये, ‘कपूत, तेरी हिम्मत कैसे हुई इस लड़की के साथ घर में घुसने की? निकल बाहर।’

उनकी पत्नी ने उन्हें रोका, लेकिन वे उन्माद की हालत में थे। बेटे ने भारी चोट दी थी। बर्दाश्त से बाहर। पत्नी से डपट कर बोले, ‘तुम्हें उनकी तरफदारी करनी है तो तुम भी घर से निकल जाओ।’

पत्नी चुप हो गयी। महेश अपनी पत्नी को साथ लेकर घर से बाहर निकल गया।

छन्नूलाल दिन रात घर में फनफनाते घूमते थे। भूख, नींद सब गायब। पत्नी की लायी थाली को उठाकर फेंक देते। कहते, ‘ऐसी औलाद से तो  बेऔलाद अच्छे होते।’

पत्नी भी दुखी बैठी रहती।

आठ दस दिन बाद पत्नी ने बगावत कर दी। बोली, ‘अब बुढ़ापे में ज्यादा नखरे मत करो। लड़के ने शादी ही की है, कोई हत्या नहीं की है। या तो उन्हें बुलाकर लाओ, नहीं तो मैं उनके पास चली जाती हूं। तुम यहां अकेले पड़े रहना।’

छन्नूलाल चिल्लाये, ‘हां निकलो बाहर। इसी वक्त निकलो।’

पत्नी भी अपनी ओटली- पोटली लेकर चली गयी। छन्नूलाल के लिए घर भूतों का डेरा हो गया। दिन भर खटिया पर मरे से पड़े रहते। रात को करवटें बदल बदल कर चिल्लाते, ‘हे राम, उठा लो।’

पड़ोसियों की नींद हराम होती। भुनभुनाते, ‘यह ससुरा जान खाये लेता है। रात भर सियार की तरह हुआता है।’

ऐसे ही तीन चार रात वे ‘उठा लो’ ‘उठा लो’ चिल्लाते रहे। एक रात कुछ आहट से नींद खुली जो देखा अंगरखा-धोती धारी, सफेद लंबे केश और दाढ़ी वाला एक आदमी उनकी खाट की बगल में खड़ा रस्सी खोल रहा है। छन्नूलाल उठ कर बैठ गये। बोले, ‘कौन हो भैया? चोर वोर हो क्या? हम गरीब आदमी हैं। हमारे घर में कुछ नहीं मिलेगा।’

 

 

वह आदमी अपना काम करते हुए कुछ गुस्से से बोला, ‘हम यमदूत हैं। तुम्हें लेने आये हैं।’

छन्नूलाल का पसीना माथे से बह कर ठुड्ढी तक आया। बोले, ‘क्या हमारी उमर पूरी हो गयी भैया?’

यमदूत बोला, ‘उमर तो पूरी नहीं हुई थी, लेकिन तुमने चिल्ला चिल्ला कर यमराज का चैन हराम कर दिया। तुम्हारे लिए स्पेशल आर्डर निकला है।’

छन्नूलाल बोले, ‘मैं क्या चिल्लाता था भाई?’

यमदूत गुस्से में बोला, ‘रोज ‘उठा लो’ ‘उठा लो’ नहीं चिल्लाते थे? हमारा काम बढ़ा कर रख दिया। वैसइ क्या काम कम था?’

छन्नूलाल घबराये। बोले, ‘अरे भाई, मैं ‘उठा लो’ अपने लिए थोड़इ कहता था। मैंने ‘हमें उठा लो’ कब कहा?’

यमदूत हाथ रोक कर बोला, ‘तो किसके लिए कहते थे?’

छन्नूलाल बोले, ‘वह तो मैं अपने दफ्तर के जुनेजा साहब के लिए कहता था। रोज एक मीमो पकड़ा देते हैं। नाक में दम कर रखा है।’

यमदूत बोला, ‘हमें इस सबसे कोई मतलब नहीं है। यह सब वहीं चलकर बताना।’

छन्नूलाल हाथ जोड़कर आर्त स्वर में बोले, ‘अरे भैया, एक बार चोला छूट गया तो दुबारा उसमें घुसने को नहीं मिलेगा। लोग फौरन फूंक फांक कर बराबर कर देंगे। हमें माफ कर दो। अभी तो हमने पोते का मुंह नहीं देखा। अभी तो लड़के की शादी हुई है। ऐसे कठोर मत बनो।’

यमदूत कुछ द्रवित हुआ। बोला, ‘ठीक है, तो हम वहां जाकर बता देते हैं। अगर आर्डर कैंसिल हुआ तो ठीक, नहीं तो हम कल आकर तुम्हें ले जाएंगे। कल नहीं आये तो समझना कि आर्डर कैंसिल हो गया।’

छन्नूलाल हाथ जोड़कर बोले, ‘भैया, आप तो अपने डिपार्टमेंट में काफी सीनियर होंगे। थोड़ा हमारी सिफारिश कर देना। अब ऐसी गलती नहीं होगी। बाद में जब अपना टाइम आने पर हम आएंगे तो आपकी सेवा करेंगे।’

यमदूत ने व्यंग्य से हंसकर जवाब दिया, ‘आप वहां क्या सेवा करोगे। वहां तो हमीं आपकी सेवा करेंगे।’

छन्नूलाल के लिए रात गुज़ारना मुश्किल हो गया। राम राम करते सवेरा हुआ। सवेरा होते ही भाग कर बेटे के घर पहुंचे। पत्नी उन्हें देखकर प्रसन्न हुई। बोली, ‘आखिर अकल आ ही गयी।’

छन्नूलाल असली बात को दबा  गये। बोले, ‘हां, सोचा बेटा-बहू पर गुस्सा करने से क्या फायदा। घर में मन नहीं लगता। आज यहीं रहूंगा। कल सबको घर ले चलूंगा।’

बहू-बेटे ने उनकी खूब आवभगत की, लेकिन उन्हें चैन नहीं था। आने वाली रात उनके दिमाग पर सवार थी। दिन भर  चुपचाप खाट पर पड़े जेब में रखी माला सटकाते  रहे। शाम होते ही खाट पर पड़े रहना मुश्किल हो गया। बेचैनी से इधर-उधर घूमने लगे।

रात बढ़ने के साथ उनकी हालत खराब हो रही थी। पसीना पोंछते पोंछते गमछा गीला हो गया। पत्ता भी खड़कता तो चौंक उठते। लगता बुलावा आ गया।

ऐसे ही काफी रात गुज़र गयी। तीन चार बजे सिकुड़कर खाट पर लेट गये।

आंख लग गयी। सपने में देखा, यमदूत रस्सी खोलता हुआ उनके सामने खड़ा है। कह रहा है,  ‘चलो, तुम्हारी अर्जी नामंजूर हो गयी।’

छन्नूलाल ने देखा कि वे भागे और दरवाज़े से टकराकर गिर गये। घबराहट में उनकी आंख खुल गयी। शरीर पसीने से लथपथ था।

आंखें घुमा कर देखा, खिड़की से धूप घुसपैठ कर रही थी और सामने बहू चाय की ट्रे लिये खड़ी थी।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ ≈ मॉरिशस से ≈ गद्य क्षणिका#65 – जागृति… – ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

श्री रामदेव धुरंधर

(ई-अभिव्यक्ति में मॉरीशस के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी का हार्दिक स्वागत। आपकी रचनाओं में गिरमिटया बन कर गए भारतीय श्रमिकों की बदलती पीढ़ी और उनकी पीड़ा का जीवंत चित्रण होता हैं। आपकी कुछ चर्चित रचनाएँ – उपन्यास – चेहरों का आदमी, छोटी मछली बड़ी मछली, पूछो इस माटी से, बनते बिगड़ते रिश्ते, पथरीला सोना। कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म की एक भूल, व्यंग्य संग्रह – कलजुगी धरम, चेहरों के झमेले, पापी स्वर्ग, बंदे आगे भी देख, लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे, यात्रा साथ-साथ, एक धरती एक आकाश, आते-जाते लोग। आपको हिंदी सेवा के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन सूरीनाम (2003) में सम्मानित किया गया। इसके अलावा आपको विश्व भाषा हिंदी सम्मान (विश्व हिंदी सचिवालय, 2013), साहित्य शिरोमणि सम्मान (मॉरिशस भारत अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 2015), हिंदी विदेश प्रसार सम्मान (उ.प. हिंदी संस्थान लखनऊ, 2015), श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान (जनवरी 2017) सहित कई सम्मान व पुरस्कार मिले हैं। हम श्री रामदेव  जी के चुनिन्दा साहित्य को ई अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों से समय समय पर साझा करने का प्रयास करेंगे।

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय गद्य क्षणिका “– जागृति…” ।

~ मॉरिशस से ~

☆ कथा कहानी  ☆ गद्य क्षणिका # 65 — जागृति — ☆ श्री रामदेव धुरंधर ☆

मैंने अपनी किशोर उम्र में ‘जागृति’ फिल्म देखी थी। अद्भुत फिल्म थी। उन्हीं दिनों मैंने देखा था एक महिला अपने बालक को गोद में ले कर बैठी हुई थी। वह थपकियाँ देते जागृति फिल्म का गीत गा रही थी “चलो — चलो माँ सपनों के गाँव में काँटों से दूर कहीं फूलों की छाँव में।

वह महिला मन ही मन मेरी दूसरी माँ हो गयी थी। मैंने उसकी मृत्यु तक माँ के रूप में ही उसे याद रखा।

© श्री रामदेव धुरंधर
08 –- 06 – 2025

संपर्क : रायल रोड, कारोलीन बेल एर, रिविएर सेचे, मोरिशस फोन : +230 5753 7057   ईमेल : rdhoorundhur@gmail.com

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 292 – पाणी केरा बुदबुदा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 292 पाणी केरा बुदबुदा… ?

आयुः पल्लवकोणाग्रलाम्बान्बुकानभंगुरम्

उन्मत्तमिव संत्यज्य यात्यकाण्डे शरीरिणम्।

जीवन की क्षणभंगुरता ऐसा विषय है, जिसे हर व्यक्ति प्रति क्षण अनुभव करता है, तथापि प्रति क्षण भूला रहता है। जगत से जाने के सत्य को जानकर भी जानना नहीं चाहता।

योगवासिष्ठम् के वैराग्य प्रकरण के 14वें सर्ग से लिया गया उपरोक्त श्लोक इसी क्षणभंगुरता की पुष्टि करता है।

इस श्लोक का अर्थ है कि जीवन, किसी पल्लव अथवा पत्ते के कोने पर टपकी हुई जल की बूँद के समान क्षणभंगुर है। यह जीवन (प्राण)  देह को बिना किसी पूर्व चेतावनी के, एक विक्षिप्त या नशे में धुत व्यक्ति की भाँति अकस्मात छोड़कर चला जाता है।

क्षणभंगुरता का यह यथार्थ निरी आँखों से दिखता है। हरेक इसे देखता है। इसका आस्तिकता या नास्तिकता से कोई सम्बंध नहीं है। कर्म या कर्मफल के सिद्धांत से भी इसका कोई लेना-देना नहीं है। ‘परलोक के लिए पुण्य संचित करो’ में विश्वास रखने वाले हों या ‘खाओ, पिओ, ऐश करो’ पर  भरोसा करने वाले, मानने-न मानने वाले, सब पर, हरेक पर यह लागू होता है। यूँ भी कोई किसी भी पंथ, सम्प्रदाय का हो, मत-मतांतर का हो, पार्थिव अमरपट्टा नहीं ले सकता।

क्षणभंगुरता के सिक्के का दूसरा पहलू है शाश्वत होना। ‘क्षणं प्रतिक्षणं गच्छति’, में प्रतिध्वनित होता नश्वरता का शाश्वत सत्य, सीमित देहकाल में मनुष्यता के अपार विस्तार की संभावना भी है।

यहाँ से एक विचार यह उठता है कि भोजन, निद्रा, मैथुन तो सभी सजीवों पर समान रूप से लागू है। तथापि मनुष्य देह का वरदान मिला है तो जीवन को  भोगते हुए कुछ ऐसा अवश्य किया जाना चाहिए जिससे मनुष्यता बेहतर फले-फूले। यह हमारा नैमित्तिक कर्तव्य भी है।

कहीं पढ़ा था कि आदिवासियों के एक समूह को नागरी सभ्यता और विकास दिखाने के लिए लाया गया। शहर की विशाल अट्टालिकाएँ देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए। उनका आश्चर्य यह जानकर बढ़ गया कि इनमें से अधिकांश घर खाली पड़े हैं। कुछ आगे चलकर उन्होंने देखा कि सड़क पर बड़ी संख्या में भिखारी हैं जो मांग कर अपना गुज़ारा कर रहे हैं और उनके सिर पर किसी तरह की कोई छत नहीं है। आदिवासियों ने जानना चाहा कि वे लोग बिना छत के क्यों हैं, जबकि इतने सारे घर खाली पड़े हैं?

उन्हें बताया गया कि यहाँ एक व्यक्ति कई घर खरीदता है। आगे चलकर जब घर की कीमत बढ़ जाती है तो उसे बेच देता है। पैसा इसी तरह कमाया जाता है। आदिवासी आश्चर्यचकित रह गए। उनमें से एक बुज़ुर्ग ने कहा, “कैसे मनुष्य हैं आप? कुछ लोग सड़क पर बिना घर के जी रहे हैं और एक व्यक्ति के पास अनेक घर हैं। जीवन काटने के लिए तो एक घर ही पर्याप्त है। हम आदिवासियों में प्रथा है कि हम सब मिलकर नवयुगल के लिए अपने हाथों से घर बनाते-बाँधते हैं और उनके जीवन का शुभारंभ करते हैं। इस तरह हम, हमारी आनेवाली पीढ़ी को  बसाते हैं।”

इस घटना का संदर्भ सांप्रतिक जीवन में धन या पैसे के महत्व को नकारने के लिए नहीं है। जीवन के केंद्र में इस समय पैसा है। जगत के सारे व्यवहार का कारण और आधार पैसा है। अर्थार्जन हमारे चार पुरुषार्थों  में सम्मिलित है। अत: परिश्रम और बुद्धि से अर्जन तो अनिवार्य है।

यहाँ संदर्भ मनुष्य में वांछित मनुष्यता के लोप अथवा सामुदायिक चेतना के अभाव का है। इस चेतना के उन्नयन का एक श्रेष्ठ उदाहरण महाराज अग्रसेन रहे। माना जाता है कि उन्होंने ‘एक रोटी, एक ईंट’ का मंत्र अपने राज्य की जनता दिया था।

मंत्र का व्यवहार यह था कि बाहर से आकर कोई व्यक्ति यदि  उनके राज्य में बसना चाहे तो अपेक्षित है कि समाज का हर समर्थ व्यक्ति उसके लिए एक रोटी और एक ईंट की व्यवस्था करे। रोटी से नवागत के परिवार का पेट भरता और एक-एक ईंट करके उसका मकान बनता। सामुदायिकता और सामासिकता का यह अनुपम उदाहरण है।

किसी सुपात्र निर्धन को एक रोटी और एक ईंट दे सकने का सामर्थ्य ईश्वर ने बड़ी संख्या में लोगों को दे रखा है। इसका क्रियान्वयन मनुष्यता को प्राणवान रखने के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकता है। 

संत कबीर ने लिखा है,

पाणी केरा बुदबुदा, इसी हमारी जाति।

एक दिनाँ छिप जाँहिगे, तारे ज्यूँ परभाति॥

स्मरण रहे कि क्षणभंगुर जीवन  पानी के बुलबुले की भाँति अकस्मात फूट जाएगा। बुलबुले के फूटने से पहले सामुदायिक विकास में थोड़ा-सा हाथ लगा सकें, पंच महाभूतों के संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभा सकें तो मनुष्य जीवन में कुछ सार्थक कर सकने का संतोष लिए प्रस्थान हो सकेगा।

© संजय भारद्वाज 

अपराह्न 1:05 बजे, 14 जून 2025

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ हमारी अगली साधना श्री विष्णु साधना शनिवार दि. 7 जून 2025 (भागवत एकादशी) से रविवार 6 जुलाई 2025 (देवशयनी एकादशी) तक चलेगी 🕉️

💥 इस साधना का मंत्र होगा – ॐ नमो नारायणाय।💥

💥 इसके साथ ही 5 या 11 बार श्री विष्णु के निम्नलिखित मंत्र का भी जाप करें। साधना के साथ ध्यान और आत्म परिष्कार तो चलेंगे ही –

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ||

💥 संभव हो तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी इससे जोड़ें💥  

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 238 – पूर्णिका – आँख ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है  – पूर्णिका – आँख )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 238 ☆

☆ पूर्णिका – आँख ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

☆ 

आँख खुली तो गूँजे सोहर

आँख मुँदी रोया घर-बाहर

.

आँख मिली सौ सपने देखे

आँख झुकी था दिलकश मंजर

.

आँख दिखा धमकाया चुप रह

आँख उठा फुसलाया फिर फिर

.

आँख फेर लीं जब आँखों ने

आँख हुईं नम, दिल था बेघर

.

आँख फूल बन महकाएँ जग

आँख शूल बन चुभतीं खंजर

.

आँख तरेरें आँखें सहमें

आँख चुराएँ हेरें बाहर

.

आँख कमसिनी के सौ किस्से

आँख केसरी करती जौहर

.

आँख कैदखाने में कैदी

आँख मिली बैठी पहरे पर

.

आँख बन गई नज़र आँख की

आँख रख रही नज़र आँख पर

.

आँख बुने सन्नाटा इस पल

आँख बने उस पल जलसा घर

.

आँख पवन नभ भू पाखी पर

आँख सलिल सरिता सर निर्झर

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२.६.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (16 जून से 22 जून 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (16 जून से 22 जून 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम। मशहूर शायर और गीतकार गुलजार जी ने लिखा है

हजारों उलझनें हैं राहों में, कोशिशें बेहिसाब,

इसी का नाम है जिंदगी चलते रहिए जनाब।

हमारी जिंदगी में बहुत सारी उलझने हैं जिनको हल करने के लिए हम बहुत सारे प्रयास करते हैं। जिंदगी अगर है तो परेशानियां रहेगी। अगर दिक्कतें नहीं है तो यह समझ जाइए कि जिंदगी नहीं है। हमें अपने उलझन को सुलझाने के लिए लगातार प्रयास करते रहना है और इसी को जिंदगी कहते हैं। आपकी जिंदगी में आपके प्रयासों में मदद करने के लिए मैं पंडित अनिल पांडे आज आपके सामने 16 जून से 22 जून 2025 के साप्ताहिक राशिफल के साथ उपस्थित हूं। इसमें मैं आपको स्वास्थ्य, भाइयों से संबंध, बच्चों से सहयोग तथा सफलता वाले और कम सफलता वाले दिनों के बारे में बताता हूं।

इस सप्ताह सूर्य, बुध, और गुरु मिथुन राशि में मंगल सिंह राशि में, शुक्र मेष राशि में तथा शनि और राहु मीन राशि में गोचर करेंगे।

आइये अब हम राशिवार राशिफल के बारे में चर्चा करते हैं।

मेष राशि

अविवाहित जातकों के लिए सप्ताह ठीक रहेगा। विवाह के अच्छे-अच्छे प्रस्ताव आएंगे। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। आपके संतान को सुख प्राप्त होगा। संतान का आपको अच्छा सहयोग मिलेगा। आपके जीवनसाथी और माता जी तथा पिता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 21 और 22 जून कार्यों को करने हेतु उपयुक्त हैं। 19 और 20 जून को आपको सतर्क होकर कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग है। व्यापार में वृद्धि होगी। जनता में प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। आपका आपके जीवनसाथी का और माता जी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। कार्यालय में आपको शांत रहना चाहिए। जबरदस्ती की लड़ाइयां से बचें। इस सप्ताह आपके लिए 16, 17 और 18 तारीख कार्यों को करने के लिए उचित है। 21 और 22 तारीख को आपके कार्यों को करने में परेशानी आ सकती है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन बुधवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह आपका, और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माताजी और पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। इस सप्ताह कार्यालय में आपको कम सहयोग प्राप्त होगा। धन आने के मार्ग में कुछ बधाएं हैं। भाग्य से भी इस सप्ताह आपको मदद नहीं मिल पाएगी। आपको अपने परिश्रम पर विश्वास करना पड़ेगा। भाई बहनों के साथ सामान्य संबंध रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 जून लाभकारी है। सप्ताह से बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवारहै।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का तथा माताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी को थोड़ी बहुत समस्या हो सकती है। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। कचहरी के कार्यों में अगर आप प्रयास करेंगे तो सफलता का योग है परंतु धन अधिक व्यय होगा। भाग्य से इस सप्ताह भी आपको विशेष मदद नहीं मिल पाएगी। मामूली मदद ही मिलेगी। इस सप्ताह आपके लिए 21 और 22 जून कार्यों को करने हेतु लाभदायक है। 16, 17 और 18 जून को कार्यों को करने में आपको बहुत सावधानी बरतना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। भाग्य से सामान्य मदद मिलेगी। धन आने का उत्तम योग है। व्यापार में वृद्धि होगी। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेंगे। आपके जीवनसाथी के स्वास्थ्य में थोड़ी समस्या हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 16, 17 और 18 जून कार्यों के करने के लिए अनुकूल हैं। 19 और 20 जून को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

कन्या राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। आपको अपने सहकर्मियों का अच्छा सहयोग मिलेगा। कचहरी के कार्यों में लाभ प्राप्त हो सकता है। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने दुश्मनों को पराजित कर सकते हैं। माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। भाई बहनों के साथ सामान्य संबंध रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 जून कार्यों को करने हेतु परिणाम दायक हैं। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रह करके ही कार्य करना है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपको अपने भाग्य से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। थोड़ा बहुत धन आने की उम्मीद है। आपको अपने संतान से इस सप्ताह सहयोग नहीं प्राप्त हो पाएगा। संतान को कष्ट भी हो सकता है। अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह ठीक है। विवाह के प्रस्ताव आएंगे। अगर आप चाहेंगे तो इस सप्ताह आपको अपने भाई-बहनों से सहयोग प्राप्त हो सकता है। आप अपने शत्रुओं को थोड़े से प्रयासों में समाप्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 21 और 22 जून कार्यों को करने के लिए फलदायक है। 19 और 20 जून को आपको सचेत रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

वृश्चिक राशि

आपका तथा आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपको अपने कार्यालय में सहकर्मियों का अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। कार्यालय में आपके प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। दुर्घटनाओं से इस सप्ताह आप बच जाएंगे। संतान का सहयोग इस सप्ताह आपको प्राप्त नहीं हो पाएगा। दुश्मनों की संख्या में वृद्धि होगी। इस सप्ताह आपके लिए 16, 17 और 18 जून कार्यों को करने के लिए परिणाम दायक हैं। 21 और 22 जून को आपको सतर्क रहकर कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षरी मंत्र का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन मंगलवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह भाग्य आपका साथ देगा। आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। इस सप्ताह आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त नहीं हो पाएगा। भाई बहनों के साथ संबंधों में तनाव आ सकता है। आपका व्यापार उत्तम चलेगा। इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 जून कार्यों को करने हेतु फलदायक हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन स्नान करने के उपरांत तांबे के पत्र में जल अक्षत और लाल पुष्प लेकर भगवान सूर्य को जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपका आपके जीवनसाथी का और आपके पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। माता जी को मामूली परेशानी हो सकती है। इस सप्ताह आप दुर्घटनाओं से बच जाएंगे। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को आसानी से पराजित कर सकते हैं। थोड़ा बहुत धन आने का योग है। भाई बहनों के साथ संबंध सामान्य रहेंगे। इस सप्ताह आपके लिए 21 और 22 जून कार्यों को करने के लिए उपयुक्त हैं। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षर स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके माता जी और पिताजी का तथा जीवनसाथी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपको रक्त संबंधी कुछ समस्या हो सकती है। सामान्य धन आने का योग है। भाई बहनों के साथ सामान्य संबंध रहेंगे। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। संतान की उन्नति भी हो सकती है। इस सप्ताह आपके लिए 16, 17 और 18 जून कार्यों को करने हेतु उचित है। सप्ताह के बाकी दिन भी ठीक-ठाक है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र के तीन माला का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपके माता जी और पिताजी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। आपके सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। अगर आप जरा सा भी प्रयास करेंगे तो आप अपने शत्रुओं को आसानी से पराजित कर सकते हैं। कचहरी के कार्य में थोड़ा सावधान रहें। धन आने का बहुत सामान्य योग है। कार्यालय में आपको अपने सहयोगियों से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। इस सप्ताह आपके लिए 19 और 20 जून फलदायक हैं। 16, 17 और 18 जून को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ शा प!… ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ☆

श्री प्रमोद वामन वर्तक

? कवितेचा उत्सव ? 

⭐ 😔 शा प! 😞 ☆ श्री प्रमोद वामन वर्तक ⭐

चपल माझे मन मोठे

सदा धावे सुखा पाठी,

जरी पोहले तृप्त सागरी

तरी बसे कोरडे काठी!

*

नाही समाधान अंतरात

कमी वाटे काही सुखात,

खुपे दुसऱ्याचे डोळ्यात

सदा दुःखी कष्टी मनांत!

*

करता पाठलाग सुखाचा

जीवा लागला भारी घोर,

हाती आले वाटता वाटता

उंच उडे डोळ्या समोर!

*

थकलो धावता सुखामागे

लागली मरणाची धाप,

उशीर झाला मज कळण्या

त्याला मृगजळाचा शाप!

त्याला मृगजळाचा शाप!

© श्री प्रमोद वामन वर्तक

संपर्क – दोस्ती इम्पिरिया, ग्रेशिया A 702, मानपाडा, ठाणे (प.) – 400610 

मो – 9892561086 ई-मेल – pradnyavartak3@gmail.com

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #279 ☆ आज ज़िंदगी : कल उम्मीद… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख आज ज़िंदगी : कल उम्मीद। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 279 ☆

☆ आज ज़िंदगी : कल उम्मीद… ☆

‘ज़िंदगी वही है, जो हम आज जी लें। कल जो जीएंगे, वह उम्मीद होगी’ में निहित है… जीने का अंदाज़ अर्थात् ‘वर्तमान में जीने का सार्थक संदेश’ …क्योंकि आज सत्य है, हक़ीकत है और कल उम्मीद है, कल्पना है, स्वप्न है; जो संभावना-युक्त है। इसीलिए कहा गया है कि ‘आज का काम कल पर मत छोड़ो,’ क्योंकि ‘आज कभी जायेगा नहीं, कल कभी आयेगा नहीं।’ सो! वर्तमान श्रेष्ठ है; आज में जीना सीख लीजिए अर्थात् कल अथवा भविष्य के स्वप्न संजोने का कोई महत्व व प्रयोजन नहीं तथा वह कारग़र व उपयोगी भी नहीं है। इसलिए ‘जो भी है, बस यही एक पल है, कर ले पूरी आरज़ू’ अर्थात् भविष्य अनिश्चित है। कल क्या होगा… कोई नहीं जानता। कल की उम्मीद में अपना आज अर्थात् वर्तमान नष्ट मत कीजिए। उम्मीद पूरी न होने पर मानव केवल हैरान-परेशान ही नहीं; हताश भी हो जाता है, जिसका परिणाम सदैव निराशाजनक होता है।

हां! यदि हम इसके दूसरे पहलू पर प्रकाश डालें, तो मानव को आशा का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि यह वह जुनून है, जिसके बल पर वह कठिन से कठिन अर्थात् असंभव कार्य भी कर गुज़रता है। उम्मीद भविष्य में फलित होने वाली कामना है, आकांक्षा है, स्वप्न है; जिसे साकार करने के लिए मानव को निरंतर अनथक परिश्रम करना चाहिए। परिश्रम सफलता की कुंजी है तथा निराशा मानव की सफलता की राह में अवरोध उत्पन्न करती है। सो! मानव को निराशा का दामन कभी नहीं थामना चाहिए और उसका जीवन में प्रवेश निषिद्ध होना चाहिए। इच्छा, आशा, आकांक्षा…उल्लास है,  उमंग है, जीने की तरंग है– एक सिलसिला है ज़िंदगी का; जो हमारा पथ-प्रदर्शन करता है, हमारे जीवन को ऊर्जस्वित करता है…राह को कंटक-विहीन बनाता है…वह सार्थक है, सकारात्मक है और हर परिस्थिति में अनुकरणीय है।

‘जीवन में जो हम चाहते हैं, वह होता नहीं। सो! हम वह करते हैं, जो हम चाहते हैं। परंतु होता वही है, जो परमात्मा चाहता है अथवा मंज़ूरे-ख़ुदा होता है।’ फिर भी मानव सदैव जीवन में अपना इच्छित फल पाने के लिए प्रयासरत रहता है। यदि वह प्रभु में आस्था व विश्वास नहीं रखता, तो तनाव की स्थिति को प्राप्त हो जाता है। यदि वह आत्म-संतुष्ट व भविष्य के प्रति आश्वस्त रहता है, तो उसे कभी भी निराशा रूपी सागर में अवग़ाहन नहीं करना पड़ता। परंतु यदि वह भीषण, विपरीत व विषम परिस्थितियों में भी उसके अप्रत्याशित परिणामों से समझौता नहीं करता, तो वह अवसाद की स्थिति को प्राप्त हो जाता है… जहां उसे सब अजनबी-सम अर्थात् बेग़ाने ही नहीं, शत्रु नज़र आते हैं। इसके विपरीत जब वह उस परिणाम को प्रभु-प्रसाद समझ, मस्तक पर धारण कर हृदय से लगा लेता है; तो चिंता, तनाव, दु:ख आदि उसके निकट भी नहीं आ सकते। वह निश्चिंत व उन्मुक्त भाव से अपना जीवन बसर करता है और सदैव अलौकिक आनंद की स्थिति में रहता है…अर्थात् अपेक्षा के भाव से मुक्त, आत्मलीन व आत्म-मुग्ध।

हां! ऐसा व्यक्ति किसी के प्रति उपेक्षा भाव नहीं रखता … सदैव प्रसन्न व आत्म-संतुष्ट रहता है, उसे जीवन में कोई भी अभाव नहीं खलता और उस संतोषी जीव का सानिध्य हर व्यक्ति प्राप्त करना चाहता है। उसकी ‘औरा’ दूसरों को खूब प्रभावित व प्रेरित करती है। इसलिए व्यक्ति को सदैव निष्काम कर्म करने चाहिए, क्योंकि फल तो हमारे हाथ में है नहीं। ‘जब परिणाम प्रभु के हाथ में है, तो कल व फल की चिंता क्यों?

वह सृष्टि-नियंता तो हमारे भूत-भविष्य, हित- अहित, खुशी-ग़म व लाभ-हानि के बारे में हमसे बेहतर जानता है। चिंता चिता समान है तथा चिंता व कायरता में विशेष अंतर नहीं अर्थात् कायरता का दूसरा नाम ही चिंता है। यह वह मार्ग है, जो मानव को मृत्यु के मार्ग तक सुविधा-पूर्वक ले जाता है। ऐसा व्यक्ति सदैव उधेड़बुन में मग्न रहता है…विभिन्न प्रकार की संभावनाओं व कल्पनाओं में खोया, सपनों के महल बनाता-तोड़ता रहता है और वह चिंता रूपी दलदल से लाख चाहने पर भी निज़ात नहीं पा सकता। दूसरे शब्दों में वह स्थिति चक्रव्यूह के समान है; जिसे भेदना मानव के वश की बात नहीं। इसलिए कहा गया है कि ‘आप अपने नेत्रों का प्रयोग संभावनाएं तलाशने के लिए करें; समस्याओं का चिंतन-मनन करने के लिए नहीं, क्योंकि समस्याएं तो बिन बुलाए मेहमान की भांति किसी पल भी दस्तक दे सकती हैं।’ सो! उन्हें दूर से सलाम कीजिए, अन्यथा वे ऊन के उलझे धागों की भांति आपको भी उलझा कर अथवा भंवर में फंसा कर रख देंगी और आप उन समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए छटपटाते व संभावनाओं को तलाशते रह जायेंगे।

सो! समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए संभावनाओं की दरक़ार है। हर समस्या के समाधान के केवल दो विकल्प ही नहीं होते… अन्य विकल्पों पर दृष्टिपात करने व अपनाने से समाधान अवश्य निकल आता है और आप चिंता-मुक्त हो जाते हैं। चिंता को कायरता का पर्यायवाची कहना भी उचित है, क्योंकि कायर व्यक्ति केवल चिंता करता है, जिससे उसके सोचने-समझने की शक्ति कुंठित हो जाती है तथा उसकी बुद्धि पर ज़ंग लग जाता है। इस मनोदशा में वह उचित निर्णय लेने की स्थिति में न होने के कारण ग़लत निर्णय ले बैठता है। सो! वह दूसरे की सलाह मानने को भी तत्पर नहीं होता, क्योंकि सब उसे शत्रु-सम भासते हैं। वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझता है तथा किसी अन्य पर विश्वास नहीं करता। ऐसा व्यक्ति पूरे परिवार व समाज के लिए मुसीबत बन जाता है और गुस्सा हर पल उसकी नाक पर धरा रहता है। उस पर किसी की बातों का प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि वह सदैव अपनी बात को उचित स्वीकार कारग़र सिद्ध करने में प्रयासरत रहता है।

‘दुनिया की सबसे अच्छी किताब हम स्वयं हैं… ख़ुद को समझ लीजिए; सब समस्याओं का अंत स्वत: हो जाएगा।’ ऐसा व्यक्ति दूसरे की बातों व नसीहतों को अनुपयोगी व अनर्गल प्रलाप तथा अपने निर्णय को सर्वदा उचित उपयोगी व श्रेष्ठ ठहराता है। वह इस तथ्य को स्वीकारने को कभी भी तत्पर नहीं होता कि दुनिया में सबसे अच्छा है–आत्मावलोकन करना; अपने अंतर्मन में झांक कर आत्मदोष-दर्शन व उनसे मुक्ति पाने के प्रयास करना तथा इन्हें जीवन में धारण करने से मानव का आत्म-साक्षात्कार हो जाता है और तदुपरांत दुष्प्रवृत्तियों का स्वत: शमन हो जाता है; हृदय सात्विक हो जाता है और उसे पूरे विश्व में चहुं और अच्छा ही अच्छा दिखाई पड़ने लगता है… ईर्ष्या-द्वेष आदि भाव उससे कोसों दूर जाकर पनाह पाते हैं। उस स्थिति में हम सबके तथा सब हमारे नज़र आने लगते हैं।

इस संदर्भ में हमें इस तथ्य को समझना व इस संदेश को आत्मसात् करना होगा कि ‘छोटी सोच शंका को जन्म देती है और बड़ी सोच समाधान को … जिसके लिए सुनना व सीखना अत्यंत आवश्यक है।’ यदि आपने सहना सीख लिया, तो रहना भी सीख जाओगे। जीवन में सब्र व सच्चाई ऐसी सवारी हैं, जो अपने शह सवार को कभी भी गिरने नहीं देती… न किसी की नज़रों में, न ही किसी के कदमों में। सो! मौन रहने का अभ्यास कीजिए तथा तुरंत प्रतिक्रिया देने की बुरी आदत को त्याग दीजिए। इसलिए सहनशील बनिए; सब्र स्वत: प्रकट हो जाएगा तथा सहनशीलता के जीवन में पदार्पण होते ही आपके कदम सत्य की राह की ओर बढ़ने लगेंगे। सत्य की राह सदैव कल्याणकारी होती है तथा उससे सबका मंगल ही मंगल होता है। सत्यवादी व्यक्ति सदैव आत्म-विश्वासी तथा दृढ़-प्रतिज्ञ होता है और उसे कभी भी, किसी के सम्मुख झुकना नहीं पड़ता। वह कर्त्तव्यनिष्ठ और आत्मनिर्भर होता है और प्रत्येक कार्य को श्रेष्ठता से अंजाम देकर सदैव सफलता ही अर्जित करता है।

‘कोहरे से ढकी भोर में, जब कोई रास्ता दिखाई न दे रहा हो, तो बहुत दूर देखने की कोशिश करना व्यर्थ है।’ धीरे-धीरे एक-एक कदम बढ़ाते चलो; रास्ता खुलता चला जाएगा’ अर्थात् जब जीवन में अंधकार के घने काले बादल छा जाएं और मानव निराशा के कुहासे से घिर जाए; उस स्थिति में एक-एक कदम बढ़ाना कारग़र है। उस विकट परिस्थिति में आपके कदम लड़खड़ा अथवा डगमगा तो सकते हैं; परंतु आप गिर नहीं सकते। सो! निरंतर आगे बढ़ते रहिए…एक दिन मंज़िल पलक-पांवड़े बिछाए आपका स्वागत अवश्य करेगी। हां! एक शर्त है कि आपको थक-हार कर बैठना नहीं है। मुझे स्मरण हो रही हैं, स्वामी विवेकानंद जी की पंक्तियां…’उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक तुम्हें लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।’ यह पंक्तियां पूर्णत: सार्थक व अनुकरणीय हैं। यहां मैं उनके एक अन्य प्रेरक प्रसंग पर प्रकाश डालना चाहूंगी – ‘एक विचार लें। उसे अपने जीवन में धारण करें; उसके बारे में सोचें, सपना देखें तथा उस विचार पर ही नज़र रखें। मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों व आपके शरीर के हर हिस्से को उस विचार से भरे रखें और अन्य हर विचार को छोड़ दें… सफलता प्राप्ति का यही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।’ सो! उनका एक-एक शब्द प्रेरणास्पद होता है, जो मानव को ऊर्जस्वित करता है और जो भी इस राह का अनुसरण करता है; उसका सफल होना नि:संदेह नि:शंक है; निश्चित है; अवश्यंभावी है।

हां! आवश्यकता है—वर्तमान में जीने की, क्योंकि वर्तमान में किया गया हर प्रयास हमारे भविष्य का निर्माता है। जितनी लगन व निष्ठा के साथ आप अपना कार्य संपन्न करते हैं; पूर्ण तल्लीनता व पुरुषार्थ से प्रवेश कर आकंठ डूब जाते हैं तथा अपने मनोमस्तिष्क में किसी दूसरे विचार के प्रवेश को निषिद्ध रखते हैं; आपका अपनी मंज़िल पर परचम लहराना निश्चित हो जाता है। इस तथ्य से तो आप सब भली-भांति अवगत होंगे कि ‘क़ाबिले तारीफ़’ होने के लिए ‘वाकिफ़-ए-तकलीफ़’ होना पड़ता है। जिस दिन आप निश्चय कर लेते हैं कि आप विषम परिस्थितियों में किसी के सम्मुख पराजय स्वीकार नहीं करेंगे और अंतिम सांस तक प्रयासरत रहेंगे; तो मंज़िल पलक-पांवड़े बिछाए आपकी प्रतीक्षा करती है, क्योंकि यही है… सफलता प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग। परंतु विपत्ति में अपना सहारा ख़ुद न बनना व दूसरों से सहायता की अपेक्षा करना, करुणा की भीख मांगने के समान है। सो! विपत्ति में अपना सहारा स्वयं बनना श्रेयस्कर है और दूसरों से सहायता व सहयोग की उम्मीद रखना स्वयं को छलना है, क्योंकि वह व्यर्थ की आस बंधाता है। यदि आप दूसरों पर विश्वास करके अपनी राह से भटक जाते हैं और अपनी आंतरिक शक्ति व ऊर्जा पर भरोसा करना छोड़ देते हैं, तो आपको असफलता को स्वीकारना ही पड़ता है। उस स्थिति में आपके पास प्रायश्चित करने के अतिरिक्त अन्य कोई भी विकल्प शेष रहता ही नहीं।

सो! दूसरों से अपेक्षा करना महान् मूर्खता है, क्योंकि सच्चे मित्र बहुत कम होते हैं। अक्सर लोग विभिन्न सीढ़ियों का उपयोग करते हैं… कोई प्रशंसा रूपी शस्त्र से प्रहार करता है, तो अन्य निंदक बन आपको पथ-विचलित करता है। दोनों स्थितियां कष्टकर हैं और उनमें हानि भी केवल आपकी होती है। सो! स्थितप्रज्ञ बनिए; व्यर्थ के प्रशंसा रूपी प्रलोभनों में मत भटकिए और निंदा से विचलित मत होइए। इसलिये ‘प्रशंसा में अटकिए मत और निंदा से भटकिए मत।’ सो! हर परिस्थिति में सम रहना मानव के लिए श्रेयस्कर है। आत्मविश्वास व दृढ़-संकल्प रूपी बैसाखियों से आपदाओं का सामना करने व अदम्य साहस जुटाने पर ही सफलता आपके सम्मुख सदैव नत-मस्तक रहेगी। सो! ‘आज ज़िंदगी है और कल अर्थात् भविष्य उम्मीद है… जो अनिश्चित है; जिसमें सफलता-असफलता दोनों भाव निहित हैं।’ सो! यह आप पर निर्भर करता है कि आपको किस राह पर अग्रसर होना चाहते हैं।

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© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #52 – नवगीत – कटी शाख है बरगद की… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतकटी शाख है बरगद की

? रचना संसार # 52 – गीत – कटी शाख है बरगद की…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

पूछ रहा उर बना शिला,

कब आयेंगे राम।

फिर दें तार अहिल्या सा,

नित्य जपूँ मैं नाम।।

मुरझाती घर की बगिया,

शूल बिछे हैं राह।

रिश्ते तुलते पैसों से,

निकले उर से आह।।

मुँहजोर हुए सब अपने,

बिक जाते बेदाम।

 *

कटी शाख है बरगद की,

रोता शीशम आज।

छाया को पंछी तरसें,

सिर बबूल के ताज।।

चोटिल है फूल चमेली,

पथिक झेलते घाम।

 *

शोषण बच्चों का होता,

सूखे नद तालाब।

लाखों बंधन समाज के,

मुख पर लगा नकाब।।

रोती है घर की तुलसी,

जाना है प्रभु-धाम।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- meenabhatt18547@gmail.com, mbhatt.judge@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #279 ☆ भावना के दोहे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं – भावना के दोहे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 279 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

लगा रखी हैं बंदिशें, कैसे भरूँ उड़ान।

मन तो काबू में रहा, हुई नहीं  हैरान।।

 *

आँसू निकले सोच में, सुमिर मुझे वह रात।

प्रेम किया था आपसे, प्यारी  मीठी बात।।

 *

बदल रही सब सोचना, पढ़ने में है ध्यान।

तोड़ी सारी बंदिशे, ऊँची उड़ी उड़ान।

 *

रखी नहीं हैं बंदिशे, डरे नहीं इंसान।

नर-नारी सब एक हैं, अपनी शुभ पहचान।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : bhavanasharma30@gmail.com

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #261 ☆ संतोष के दोहे – इंसानियत ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – संतोष के दोहे – इंसानियत आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 261 ☆

संतोष के दोहे इंसानियत ☆ श्री संतोष नेमा ☆

आज लापता हो रहा, मानवता का धर्म

यहाँ धर्म के नाम पर, खूब करें दुष्कर्म

*

कौन धर्म सिखला रहा, दंगे और फसाद

निर्दोषों को मारकर, चाहें हों आबाद

*

लूट-खसोट अरु उपद्रव, जिन्हें लगे आसान

जिनकी है यह संस्कृति, वही करें नुकसान

*

ममता की ममता गई, और गया ईमान

है सत्ता की भूख बस, भूल गई इंसान

*

न्यायालय लेता नहीं, स्वयं आज संज्ञान

बे गुनाह मारे गए, जागो अब श्रीमान

*

राजनीति हर बात पर, नेता करते आज

सच को सच कहते नहीं, झूठ करे पर राज

*

हे मालिक सुन ले जरा, जन-जन की यह पीर

प्रभु ऐसा कुछ कीजिए, संकट है गंभीर

*

मरी यहाँ इंसानियत, है जाग्रत शैतान

बनें धर्म के नाम पर, हिंसक क्यों इंसान

*

भाई को चारा समझ, ग्रास बनायें आज

ऐसे मुश्किल दौर में, कैसे जुड़े समाज

*

समरसता सौहार्द बिन, बढ़ता जन आक्रोश

सुख-शांति संतोष तब, खड़े रहें खामोश

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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