श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है – संतोष के दोहे – इंसानियत। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 261 ☆
☆ संतोष के दोहे – इंसानियत ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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आज लापता हो रहा, मानवता का धर्म
यहाँ धर्म के नाम पर, खूब करें दुष्कर्म
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कौन धर्म सिखला रहा, दंगे और फसाद
निर्दोषों को मारकर, चाहें हों आबाद
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लूट-खसोट अरु उपद्रव, जिन्हें लगे आसान
जिनकी है यह संस्कृति, वही करें नुकसान
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ममता की ममता गई, और गया ईमान
है सत्ता की भूख बस, भूल गई इंसान
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न्यायालय लेता नहीं, स्वयं आज संज्ञान
बे गुनाह मारे गए, जागो अब श्रीमान
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राजनीति हर बात पर, नेता करते आज
सच को सच कहते नहीं, झूठ करे पर राज
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हे मालिक सुन ले जरा, जन-जन की यह पीर
प्रभु ऐसा कुछ कीजिए, संकट है गंभीर
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मरी यहाँ इंसानियत, है जाग्रत शैतान
बनें धर्म के नाम पर, हिंसक क्यों इंसान
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भाई को चारा समझ, ग्रास बनायें आज
ऐसे मुश्किल दौर में, कैसे जुड़े समाज
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समरसता सौहार्द बिन, बढ़ता जन आक्रोश
सुख-शांति संतोष तब, खड़े रहें खामोश
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈