हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 33 – विचलित सी धुन …☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है आपका अभिनव गीत “विचलित सी धुन… । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 33 ।। अभिनव गीत ।।

☆ विचलित सी धुन … ☆

इस मैली दीप्ति

का उलाहना-

“मँहगा है जी

इज्जत उगाहना”

 

नीम तले आतप

से उद्घाटित

धूप पवन के झोंकों

से बाधित

 

विचलित सी धुन

कई विचारों की

नहीं सुनती गगन

का कराहना

 

चोटियाँ गूँथती

विस्थापित है

आँख में अर्थ में

स्थापित है

 

यों सहज करती

रही स्तवन में

दबी जुबाँ इसकी

ही सराहना

 

बादलों के शाल

में लपेट कर

दिन के संथाल

को समेटकर

 

संध्या ही है जो

समझती है

जानती कैसे

इसे निबाहना

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

17-01-2021

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ कुंदन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि  ☆ कुंदन ☆

नित्य आग में

जलाया जाना,

तेज़ाब में रोज़

गलाया जाना,

लहुलुहान

की जाती वेदनाएँ,

क्षत-विक्षत

होती संवेदनाएँ,

अट्टहासों के मुकाबले

मेरे मौन पर

चकित हैं,

कुंदन होने की

प्रक्रिया से वे

नितांत अपरिचित हैं!

©  संजय भारद्वाज

(प्रातः 6:29 बजे, 25.3.19)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #26 ☆ मकर संक्रांति ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “मकर संक्रांति”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 26 ☆ 

☆ मकर संक्रांति ☆ 

सुर्य उत्तरायण में आया

एक संदेशा संग-संग लाया

अब कम होगा अंधियारा

बढ़ता जायेगा प्रकाश

पतझड़ बीतेगा पल पल

जगेगी नव जीवन की आस

फूलों के मेले लगेंगे

यौवन के रेले लगेंगे

महकेगा हर आंगन आंगन

चहकेगा हर प्रांगण प्रागंण

ठिठुरन भरा शिशीर जायेगा

रंग बिखेरता बसंत आयेगा

 

देश के हर एक प्रांत में

खुशीयों की भरमार है

भिन्न भिन्न प्रथायें

भिन्न भिन्न त्योहार है

कहीं लोहिड़ी, कहीं पोंगल

कहीं मनी मकर संक्रांति

तिड़-गुड़, मुंगफली बांटकर

मिटा रहे हैं मनकी भ्रांति

तिड़ गुड़ खाओ, मीठा बोलो

बंद दिल के दरवाजे खोलो

गांठें खोलो गले लगाओं

मकर संक्रांति दिल से मनाओ

 

आओ मिलकर पतंग उड़ाये

आसमान में हम छा जाये

रंग बिरंगी अपनी पतंगें

हमारी संस्कृति को दर्शाये

जिसका होगा प्रेम का धागा

स्नेह का मांझा सीदा-सादा

सपनों की उड़ती हुई पतंग

नीलगगन से

करती हो मिलने का वादा

कितने रंगों में रची बसी है

यह मकर संक्रांति

तिलों में तेल बहुत हैं

फिर भी है शांति

हवायें मदहोश है

तिनकों में भी जोश है

कहीं यह फैला ना दे

चारों तरफ अशांति

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२३॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२३॥ ☆

 

उत्पश्यामि द्रुतमपि सखे मत्प्रियार्थं यियासोः

कालक्षेपं ककुभसुरभौ पर्वते पर्वेते ते

शुक्लापाङ्गैः सजलनयनैः स्वागतीकृत्य केकाः

प्रतुद्यातः कथम अपि भवान गन्तुम आशु व्यवस्येत॥१.२३॥

कुटज पुष्पगंधी शिखर गिरि ,प्रखर हर

जो ममतोष हित आशु गतिवान तुमको

कही रोक ले तो सखे भूलना मत

रे सुन मोर स्वर ,पहुंचना जिस तरह हो

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 37 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 37 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 37) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 37☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

इक तुम्हारा ख्याल

ही  मुकम्मल  है…

वो कितना खुशनसीब

जिसे तू हासिल है…

 

Your thought alone is

unblemishedly complete

How lucky is that person

who possesses you..!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

जब भी तुम मुझे ढूँढना

चाहो, तो  सुन  लो…

मेरी  पसंदीदा  जगहों में,

एक  तुम्हारा  दिल  है…

 

Listen, whenever you’re

desirous of finding me …

Among my most favorite

places, one is your heart..!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

तुम लिख कर लाना हर फ़िक्र

एक कोरे कागज़ पर, फिर हम

सिखाऐंगे तुम्हे कि कैसे जहाज

बनाकर उनको उडाया जाता है…

 

Bring in writing every worry

on a  blank  paper, then I’ll

teach  you  how  to make

aeroplane and fly them…

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

तैरना तो आता था हमें,

पर  जब  उसने  हाथ…

ही  नहीं  पकडा़  तो डूब

जाना  ही  अच्छा  लगा…

 

I did know swimming,

But when he didn’t hold

My hand, I preferred it

Better to get drowned..!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 38 ☆ नवगीत – सड़क पर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  ‘नवगीत – सड़क पर ’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 38 ☆ 

☆ नवगीत – सड़क पर ☆ 

फ़िर सड़क पर

भीड़ ने दंगे किए

.

आ गए पग

भटकते-थकते यहाँ

छा गए पग

अटकते-चलते यहाँ

जाति, मजहब,

दल, प्रदर्शन, सभाएँ,

सियासी नेता

ललच नंगे हुए

.

सो रहे कुछ

थके सपने मौन हो

पूछ्ते खुद

खुदी से, तुम कौन हो?

गए रौंदते जो,

कहो क्यों चंगे हुए?

.

ज़िन्दगी भागी

सड़क पर जा रही

आरियाँ ले

हाँफ़ती, पछ्ता रही

तरु न बाकी

खत्म हैं आशा कुंए

.

झूमती-गा

सड़क पर बारात जो

रोक ट्रेफ़िक

कर रही आघात वो

माँग कन्यादान

भिखमंगे हुए

.

नेकियों को

बदी नेइज्जत करे

भेडि.यों से

शेरनी काहे डरे?

सूर देखें

चक्षु ही अंधे हुए

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ ग़ज़ल – मुहब्बत ☆ सुश्री शुभदा बाजपेयी

सुश्री शुभदा बाजपेयी

(सुश्री शुभदा बाजपेई जी  हिंदी साहित्य  की गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर  कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी  एक  बेहतरीन ग़ज़ल  “मुहब्बत ”. )

☆  ग़ज़ल – मुहब्बत  ☆

भयानक था हरिक मंज़र अभी तक डर नहीं जाता

हमारे शह्र से क्यूं दूर ये मंज़र नहीं जाता

 

मुझे मालूम है वो हाले दिल मेरा समझ लेंगे

करूं क्या, हाले दिल उन तक कभी खुलकर नहीं जाता

 

मुहब्बत है मुझे उनसे मगर ज़ाहिर करूं कैसे

झिझक, शर्मो हया का दिल से डर क्यों कर नहीं जाता

 

कभी ज़ख़्मे मुहब्बत से मिली है जीते जी राहत

तडपना पडता है इन्सां को जब तक मर नहीं जाता

 

मुहब्वत करने वाले का न पूछो हाल ऐ ‘शुभदा’

कभी वो घर नहीं जाता कभी दफ्तर नहीं जाता

 

© सुश्री शुभदा बाजपेयी

कानपुर, उत्तर प्रदेश

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – ये उत्सव है लोकतंत्र का ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  श्री सूबेदार पाण्डेय जी की श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के जन्मदिवस पर एक भावप्रवण कविता “ये उत्सव है लोकतंत्र का। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य –  ये उत्सव है लोकतंत्र का ☆

ये उत्सव है लोकतंत्र का,

मतदाता का दिन आया।

 

रणभेरी दुंदुभी बज उठी,

सबने लालच का जाल बिछाया।

अपना अपना मतलब साधे,

देखो उनका अनर्गल प्रलाप।

जाति पांति मजहब भाषा के,

ले मुद्दे करते विलाप।

।। ये उत्सव है लोकतंत्र का ।।1।।

 

ये विकास का ख्वाब दिखाते,

नारों से भरमाते हैं।

जनता की सुधि ले न सके,

बस इसी लिए घबराते हैं।

जाति धर्म से ऊपर उठकर,

राष्ट्र धर्म का गान करो।

लोकतंत्र के उत्सव में

निर्भय हो मतदान करों।

।। ये उत्सव है लोकतंत्र का ।।2।।

 

सजग नागरिक बन करके,

देश के पहरेदार बनो।

मत घायल होने दो भारत मां को,

पीड़ा सह लो दिलदार बनो।

लघु प्रयास मतदाता का ,

अपना रंग दिखायेगा ।

जब प्रत्याशी योग्य चुनोगे तुम

फिर लोकतंत्र जी जायेगा।

।। ये उत्सव है लोकतंत्र का ।।3।।

 

उदासीनता यदि बरती तो,

नहीं किया गर तुमने मतदान ।

फिर चोटिल होगी भारत मां

फिर से सिसकेगा हिंदुस्तान।

मत सोओ आलस निद्रा त्यागो ,

लोकतंत्र में जोश भरो।

रक्षा करो वतन की अपने,

एक नहीं सौ बार‌ मरो ।

।। ये उत्सव है लोकतंत्र का ।।4।।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२२॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.२२॥ ☆

 

अम्भोबिन्दुग्रहणचतुरांश चातकान वीक्षमाणाः

श्रेणीभूताः परिगणनया निर्दिशन्तो बलाकाः

त्वाम आसाद्य स्तनितसमये मानयिष्यन्ति सिद्धाः

सोत्कम्पानि प्रियसहचरीसंभ्रमालिङ्गितानि॥१.२२॥

 

होंगे ॠणी , सिद्धगण चिर तुम्हारे

कि नभ में पपीहा , बकुल शुभ्रमाला

निरखते सहज नाद सुन तव , भ्रमित भीत

कान्ता की पा नेहमय बाहुमाला

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 25 ☆ किसी पावन तत्व से है भरा यह ब्रह्मांड सारा ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की एक भावप्रवण कविता  “किसी पावन तत्व से है भरा यह ब्रह्मांड सारा।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 25 ☆

☆ किसी पावन तत्व से है भरा यह ब्रह्मांड सारा ☆

किसी पावन तत्व से है भरा यह ब्रह्मांड सारा

इसी की नियमित कृपा से चल रहा जीवन हमारा

 

आज पर बढ़ते करोना कष्ट से सब डर रहे हैं

लोग कितने विश्व में उपचार के बिन मर रहे हैं

 

स्वार्थी संसार का जनहित विरोधी आचरण है

विचारों और कर्म से दूषित सकल वातावरण है

 

नाम सेवा का बताकर हो रहा है स्वार्थ साधन

इसी अनुचित नीति कर रखा तन मन धन अपावन

 

शुद्धता शुचिता सरलता का अनादर दिख रहा है

इसी से दुख से भरा इतिहास यह युग लिख रहा है

 

आज जग को प्रेम और विश्वास का व्यवहार चहिए

त्रस्त जीवन को परस्पर शांति सुख हित प्यार चहिए

 

किंतु सीधी राह को तज हर एक बढ़ता जा रहा है

इसी से जाता जहां भी वहां पर टकरा रहा है

 

आए दिन जाता उलझता दुखों से यह जग अकारण

प्रदूषित मन बन गया है सब दुखों का प्रमुख कारण

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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