English Literature – Poetry ☆ ‘धरना’… श्री संजय भरद्वाज (भावानुवाद) – ‘Dharna, the Agitation…’ ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(Captain Pravin Raghuvanshi—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.)

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi Poem “धरना”.  We extend our heartiest thanks to the learned author  Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is very well conversant with Hindi, Sanskrit,  English and Urdu languages) for this beautiful translation and his artwork.)

श्री संजय भारद्वाज 

☆ संजय दृष्टि – धरना ☆

वह चलता रहा

वे हँसते रहे..,

वह बढ़ता रहा

वे दम भरते रहे..,

शनै:-शनै: वह

निकल आया दूर,

इतनी दूरी तय करना

बूते में नहीं, सोचकर

सारे के सारे ऐंठे हैं..,

कछुए की सक्रियता के विरुद्ध

खरगोश धरने पर बैठे हैं..!

©  संजय भारद्वाज

☆ Dharna, the Agitation… ☆

He kept on walking

They kept on laughing…,

He kept moving

They kept on envying…,

Gradually but steadily

Slowly but assuredly

he moved too far away,

Considering that

covering such a distance

is not possible

All are seething in anger…,

Against the tortoise’s

dogged perseverance

The rabbits are sitting on

Agitation, the ‘Dharna’ ..

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 42 ☆ त्रिपदिक मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी  द्वारा रचित  ‘त्रिपदिक मुक्तिका.’। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 42 ☆ 

☆  त्रिपदिक मुक्तिका ☆ 

*

निर्झर कलकल बहता

किलकिल न करो मानव

कहता, न तनिक सुनता।

*

नाहक ही सिर धुनता

सच बात न कह मानव

मिथ्या सपने बुनता।

*

जो सुन नहीं माना

सच कल ने बतलाया

जो आज नहीं गुनता।

*

जिसकी जैसी क्षमता

वह लूट खा रहा है

कह कैसे हो समता?

*

बढ़ता न कभी कमता

बिन मिल मिल रहा है

माँ का दुलार-ममता।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 41 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 41 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 41) ☆ 

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. Presently, he is serving as Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He is involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

☆ English translation of Urdu poetry couplets of  Anonymous litterateur of Social Media# 41☆

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

वजह तो थी तुम्हें

बदनाम करने की

कसम खाई  थी

मगर चुप रहने की…

 

अश्क पलकों  में

समेट डाले  सारे

ये इंतहा थी मेरी

ज़ुर्म  सहने  की..!.

 

The motive was

to disrepute you

But, had vowed

to keep quiet…

 

Restrained all the

tears in the eyelashes

This was the limit of 

bearing the atrocities..!

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

ये  जो  तुमने

खुद को बदला है…

ये  बदला   है,

या “बदला” है…!

 

The way you’ve

changed yourself…

This is a change,

Or a “revenge”…!

   ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

वैसे तो कई किरदार निभायें हैं,

इस छोटी सी जिंदगी में

लेकिन ग़मगीन होकर खुश

दिखना निहायत मुश्किल था!

 

Although played so many

Characters in this short life

The most challenging was to

Look happy while being sad

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५०॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५०॥ ☆

 

त्वय्य आदातुं जलम अवनते शार्ङ्गिणो वर्णचौरे

तस्याः सिन्धोः पृथुम अपि तनुं दूरभावात प्रवाहम

प्रेक्षिष्यन्ते गगनगतयो नूनम आवर्ज्य दृष्टिर

एकं भुक्तागुणम इव भुवः स्थूलमध्येन्द्रनीलम॥१.५०॥

नदी तीर लेने तुझे आ गये को

स्वयं श्यामघन ! विष्णु के वर्णधारी

बँधी दृष्टि से अचल अपलक नयन से

लखेंगे सभी सिद्धगण व्योमचारी

चर्मण्वती की विपुलधार जो

दूर नभ से दिखेगी सरल क्षीण धारा

उस पर पड़े तुम दिखोगे वहां

ज्यों , धरा के गले में तरल नील माला

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 29 ☆ ग़ज़ल – – अगर हो भावना मन की…☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  की “ग़ज़ल – अगर हो भावना मन की…।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 29 ☆

☆ ग़ज़ल – अगर हो भावना मन की…  ☆

सदा परिवेश से सबको स्वाभाविक प्यार होता है

मनोहर कल्पना मे सुख भरा संसार होता है

पडोसी से हुआ करती सुखद सदभाव की आशा

अगर बिलभाव होता तो सतत दुखभार होता है

 

हरेक की शांति सुख के हित भला लगता सहारा है

अगर विश्वास उठ जाता तो सब सुखचैन खोता है

हमारे साथ भी ऐसा ही कुछ घटता है बरसो से

पडोसी की नियत खोटी है निश्चित भास होता है

 

सदाचाहा रहे हिलमिल के सब साथ खुशियो से

मगर सब चाह कर भी अब नही विश्वास होता है

 

मिलाकर हाथ जब भी साथ बढने की की गई कोशिश

तो देख उस तरफ से पीठ पर फिर वार होता है

समझ गई अब तो दुनिया भी कि उसका क्या इरादा है

पडोसी से हमे धोखा ही बारम्बार होता है

 

हमारी हर भलाई का मिला बदला बुराई से

सुहानी सरहदो पर नित ही अत्याचार होता है

जहाॅ होता है मन मे मैल कटुता बढती जाती है

निरंतर द्वेष से किसका कही उद्धार होता है

 

अगर हो भावना मन की मिलन उत्सव मनाने की

तो अपने आप ही सबसे सदय व्यवहार होता है

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – धरना ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – धरना ☆

वह चलता रहा

वे हँसते रहे..,

वह बढ़ता रहा

वे दम भरते रहे..,

शनै:-शनै: वह

निकल आया दूर,

इतनी दूरी तय करना

बूते में नहीं, सोचकर

सारे के सारे ऐंठे हैं..,

कछुए की सक्रियता के विरुद्ध

खरगोश धरने पर बैठे हैं..!

©  संजय भारद्वाज

(3.01.2020)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४९॥ ☆ प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.४९॥ ☆

 

आराद्यैनं शरवणभवं देवम उल्लङ्घिताध्वा

सिद्धद्वन्द्वैर जलकणभयाद वीणिभिर मुक्तमार्गः

व्यालम्बेथाः सुरभितनयालम्भजां मानयिष्यन

स्रोतोमूर्त्या भुवि परिणतां रन्तिदेवस्य कीर्तिम॥१.४९॥

तब “स्कंद ” को अर्घ्य दे देवगिरि पार

करते समय सिध्दगण वीणधारी

वर्षा सलिल भीति से वे युगल पुंज

देंगे तुम्हें मार्ग वनपंथ चारी

सुरभि धेनु की पुत्रियो के सतत मेघ

से बन गई भूमि पर है नदी जो

रुकना उसे मान देने कि रतिदेव की

कीर्ति को .. नदी चर्मण्वती को

शब्दार्थ … चर्मण्वती = चंबल नदी

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नेह ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ संजय दृष्टि – नेह ☆

जितना दबाओ, स्मृतियाँ

उतनी उभर आती हैं,

उभारो तो निर्वासन

को मचल जाती हैं,

दुधारी तलवार है

नेह की पीड़ा,

कहीं से भी थामो

कलेजा चीर कर

निकल जाती है।

©  संजय भारद्वाज

(2:01.2021, 23.12 बजे)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 81 ☆ गीत – दिल के दरवाजे …. ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं  किशोर मनोविज्ञान पर आधारित एक  भावप्रवण  “गीत – दिल के दरवाजे ….। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 81 – साहित्य निकुंज ☆

गीत – दिल के दरवाजे …. 

दिल के दरवाजे पर कौन आ गया।

आके हौले हौले मन पे छा गया।

 

छा गई अधरों  पर फूल सी मुस्कान।

हो गया  जीवन में अब मेरा निर्माण।

तिमिर में अब अंधेरा हटता ही गया।

आके हौले हौले मन पे छा गया।

दिल के दरवाजे पर कौन आ गया।

 

आज इस कठिन दौर में क्या हो गया

नहीं पता किस ओर क्या क्या खो गया

कैसे  जीना जीवन तु  सिखला गया।

आके हौले हौले मन पे छा गया।

दिल के दरवाजे पर कौन आ गया।

 

जिंदगी का हर सफर लगता कठिन

साथ तेरा हो तो  सब है मुमकिन।

तेरा साथ ही मुझको तो भा गया।

आके हौले हौले मन पे छा गया।

दिल के दरवाजे पर कौन आ गया।

 

तुम ही मेरे जीवन का संधान हो

मैं नयन नीर तुम गंगा का उत्थान हो

प्रणय  की सरस गाथा वो रचता गया।

आके हौले हौले मन पे छा गया।

दिल के दरवाजे पर कौन आ गया।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष # 71 ☆ संतोष के दोहे☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार  आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 71 ☆

☆ संतोष के दोहे  ☆

आतीं जब भी मुश्किलें, यही कुचक्र का खेल

अब अपराधी बढ़ रहे, पहुँच रहे हैं जेल

 

छल-कपट से बचें सदा, यही पाप का द्वार

सदा काम आता हमें, अपना सच आचार

 

शीतल सौरभ सी पवन, तन से कर तकरार

पहनाती हो कंठ पर, ज्यूँ फूलों का हार

 

अंदर फूलों के बसे, प्रगति परक संदेश

संवर्धन के श्रोत वह, ऐसा है परिवेश

 

सूरज सबको पालता, देकर अपनी ओज

रोशन करता है जहाँ, यही सबेरे रोज

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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