हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 263 ☆ कविता – अपरिग्रह ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय कविता – अपरिग्रह)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 263 ☆

? कविता – अपरिग्रह ?

हवाई यात्रा की

सिक्योरिटी के पल

सच्चा त्याग अपरिग्रह सिखाते हैं

सब कुछ ट्रे में …और आप स्कैनर में !

 

सोचता हूं

मन की गठरी में बंधे

ईर्ष्या, चिंता, अभिमान

लोभ, वगैरह वगैरह का वजन

ढोते लोग यूं ही पार हो जाते हैं क्यूं, बिना किसी लोड लिमिट ।

 

काश

कोई स्कैनर

पकड़ पाता

मन की भी

कलुषता !

और उस पार

पहुंचते

पवित्र, निष्कलंक इंसान

ऊंची उड़ान भरने।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

लंदन से 

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – कविता ? ?

चलो,

कुछ न करें

और रचें एक कविता,

सुनो,

कुछ न करने से

क्या रची जा सकती है

एक कविता..?

भगीरथ के

अथक परिश्रम से

पृथ्वी पर उतरी थी गंगा;

साठ हजार कुदालों के

स्वेद-कणों से

धारा बन बही थी गंगा,

अनुभूति की निर्मल

भगीरथी जब

सरस्वती होती है;

कविता,

मन-मस्तिष्क से

काग़ज़ पर

अवतरित होती है,

कविता,

कर्मठता की उपज है,

कर्म, निरीक्षण

और चिंतन-मनन की समझ है,

तो फिर तुम्हीं कहो,

कुछ न करते हुए

कैसे रची जा सकती है

एक कविता..?

और हाँ,

बिना अनुभव के

कैसी पढ़ी और समझी

जा सकती है कविता..?

© संजय भारद्वाज  

(संध्या 7:10 बजे, दि. 2.6.2016)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 179 – “धुंध लपेटे शाल, उलहने…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत  धुंध लपेटे शाल, उलहने...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 179 ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “धुंध लपेटे शाल, उलहने...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

ऐसे कोहरे में ठिठुरन से

सूरज भी हारा

दिन के चढ़ते चढ़ते कैसे

लुढ़क गया पारा

 *

जमें दिखे गाण्डीव

सिकुड़ते सब्यसाचियों के

धुंध लपेटे शाल, उलहने

सहें चाचियों के

 *

चौराहे जलते अलाव भी

लगते बुझे बुझे

और घरों की खपरैलें

तक लगीं सर्वहारा

 *

हाथ सेंकने जुटीं

गाँव की वंकिम प्रतिभायें

जो विमर्श में जुटीं

लिये गम्भीर समस्यायें

 *

वृद्धायें लेकर बरोसियाँ

दरवाजे बैठीं

शांति पाठ के बाद पढ़

रहीं ज्यों कि कनकधारा

 *

लोग रजाई कम्बल

चेहरे तक लपेट निकले

लगें फूस से ढके फूल के

हों सुन्दर गमले

 *

आसमान से नीचे तक

है सुरमई अँधियारा

धुँधला सूरज दिखता

नभ में लगे एक तारा

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

03-01-2023

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 300 ⇒ महात्मा और मोबाइल… ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆

श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “महात्मा और मोबाइल।)

?अभी अभी # 300 ⇒ महात्मा और मोबाइल? श्री प्रदीप शर्मा ?

आत्मा तो अदृश्य है, उसे किसने देखा है, लेकिन महात्मा को तो आप देख भी सकते हैं, और छू भी सकते हैं। अगर महात्मा का संधि विच्छेद किया जाए तो वह महान आत्मा हो जाता है। आत्मा छोटी और बड़ी भी होती है, हमें मालूम न था। एक महात्मा की आत्मा कितनी महान हो सकती है, हम तो सोच भी नहीं सकते।

ईश्वर तो खैर निरंजन, निराकार है, फिर भी सब उसे ही ढूंढ रहे हैं, जब कि ईश्वर तुल्य कई महान आत्माएं हमारे आसपास विचरण कर रही हैं, जिनमें से कुछ अगर आपको ईश्वर का पता बता सकती हैं, तो कुछ में हो सकता है, साक्षात ईश्वर ही विद्यमान हो।।

ऐसा माना जाता है कि एक महात्मा ईश्वर के अधिक करीब होता है और शायद इसीलिए हर जिज्ञासु और मुमुक्षु महात्मा द्वारा बताए मार्ग पर चलना चाहता है। इधर उसने ध्यान लगाया और उधर वह ईश्वर से जुड़ा। कवि की तरह भी वह कहीं आता जाता नहीं है, फिर भी उसकी पहुंच रवि से भी आगे तक रहती है।

एक संसारी अगर संसार में उलझा रहता है तो महात्मा ईश्वर द्वारा उसे प्रदत्त शुभ कार्य में। वह तो वीरान जंगल में रहकर भी सातों लोकों की यात्रा अपने ध्यान धारणा और समाधि के दौरान कर लेता है फिर भी जन जन के कल्याण के संकल्प के कारण उसे हम जैसे क्षुद्र संसारी जीवों के संपर्क में रहना पड़ता है और इसी कारण हमें अपने आसपास इतने मठ, आश्रम और महात्माओं की कुटियाएं नजर आती हैं।।

आप इन्हें ईश्वर के दूत कहें अथवा मैसेंजर, केवल हमारे आत्मिक उत्थान के लिए ही तो इन्होंने यह देह धारण की है। हम इतने पहुंचे हुए भी नहीं कि बिना आधुनिक संसाधनों के इन तक पहुंच भी पाएं। मजबूरन हमारी ही सुविधा के खातिर इन्हें भी आजकल गाड़ी घोड़े और मोबाइल जैसे माध्यमों से भी जुड़ना पड़ता है।

आप अगर अपने पुरुषार्थ अथवा सांसारिक कर्तव्य में अनवरत व्यस्त हैं, तो टीवी और सोशल मीडिया पर इनके कथा प्रवचन सुन सकते हैं, फोन से संपर्क कर इनके आश्रमों में सत्संग हेतु जा सकते हैं, दान अनुदान द्वारा इनकी सेवा कर पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। ये आजकल इतने डिजिटल हो गए हैं कि चुटकियों में आप इनके बैंक खातों में अपनी सेवा भेंट ट्रांसफर कर सकते हैं।।

हर महात्मा का आजकल अपना आश्रम है, अपने शिष्य हैं और अपनी वेबसाइट है। दंड कमंडल के साथ, झोले में एक अदद मोबाइल आम है। साधु, संत और महात्मा का भेद तो कब का मिट चुका है।

प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी की तर्ज पर प्रभु जी हम शिष्य तुम स्वामी।

ईश्वर के नेटवर्क से हमारे मोबाइल का संपर्क कोई महात्मा ही करवा सकता है। भिक्षा, दीक्षा और दान दक्षिणा आजकल सब ऑनलाइन उपलब्ध है। आप भी ट्राई करें, किसी महात्मा का मोबाइल। हो सकता है, बात बन जाए।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ भैय्या ले चल हमको… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता भैय्या ले चल हमको…’।)

☆ कविता – भैय्या ले चल हमको… ☆

भैय्या ले चल,हमको,

बाबुल की नगरिया में,

गोद में मां की बचपन बीता,

घर की गैल डगरिया में,

मां का आंचल छूटा जबसे,

तपते रहे दुपहरिया में,

भैय्या ले चल हमको,

बाबुल की नगरिया में,

सुख दुख हमने जहां बिताए,

काटे दिन और रतियाँ,

देर रात तक खत्म नहीं

होती थीं मां की बतियां

भैय्या ले चल,,,

सूना होगा घर का आंगन,

सूनी सब दीवारें,

सूनी सूनी आंखों से,

बाबुल राह निहारें,

भैया ले चल हमको,,

झूला आम की डार पे अब,

किसने डाला होगा,

कौन झूलता होगा उसमे,

कौन निराला होगा,

भैय्या ले चल हमको,,

गैय्या भी तो हार से आकर,

मुझको तकती होगी,

याद में मेरी,आंखों से

गंगा  बहती होगी,

भैय्या ले चल हमको,,

सावन आया,सारी सखियां,

मायके आई होंगी,

रचा के मेंहदी हाथों में सब,

बाट जोहती होंगी,

भैया ले चल हमको,,,,

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 167 ☆ # मधुमास # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# मधुमास  #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 167 ☆

☆ # मधुमास #

पतझड़ का मौसम बीत गया

रुत बसंत की आई है

भीनी भीनी मनमोहक सुगंध

संग संग लाई है

*

नई कोपलें फूट रही हैं

हर्षित मन को लूट रही हैं

नये नये परिधानों में सजकर

मेलों में तरूणाई जुट रही है

*

हर मन में नयी उमंग है

पुलकित सबके अंग अंग है

मादक बयार बह रही है

नयनों में लहराती नयी तरंग है

*

आम्रवृक्ष कैसे बौराये हैं

पीली पीली सरसों मन भाये है

पलाश के फूलों का सौंदर्य

जंगल में आग लगाये है

*

यह मौसम है राग रंग का

साजन-सजनी के संग का

प्रीत में डूबा यह मधुमास

है प्रणय में व्याकुल अंग अंग का

*

नये सपने, नयी आशाऐं

लेकर आया यह मधुमास

टूटे, जख्मी हुए दिलों में

जागी है जीने की आस

क्या पीड़ादायक पतझड़ की रुत

अब सचमुच बीत गई है ?

क्या उल्लासित बसंत बहार का

वाकई होगा अब एहसास ? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 177 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 177 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 177) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IMM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 177 ?

☆☆☆☆☆

अधूरी कहानी पर ख़ामोश

लबों का पहरा है,

चोट रूह की है इसलिए

दर्द ज़रा गहरा है….🌺

☆☆

Guarded are the silent lips,

On  the  incomplete story…

Wound  is  of  the soul, so

The pain is rather intense….

☆☆☆☆☆

अधूरी कहानी पर ख़ामोश

लबों का पहरा है,

चोट रूह की है इसलिए

दर्द ज़रा गहरा है….🌺

☆☆

Silent lips are the sentinels,

Of  the  unfulfilled fairytale…

Wound is of the spirited soul

So, the pain is rather intense….

☆☆☆☆☆

हंसते हुए चेहरों को गमों से

आजाद ना समझो साहिब,

मुस्कुराहट की पनाहों में भी

हजारों  दर्द  छुपे होते  हैं…🌺

☆☆

O’ Dear, Don’t even consider that 

Laughing faces are free of sorrow,

Thousands  of  pains are  hidden 

Even behind the walls of a smile…

☆☆☆☆☆

चुपचाप चल रहे थे

ज़िन्दगी के सफर में

तुम पर नज़र क्या पड़ी

बस  गुमराह  हो  गए…

☆☆

Was walking peacefully

In  the  journey of the life

Just casting a glance on you

Made my journey go astray

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 176 ☆ गीत – समा गया तुम में ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है गीत – समा गया तुम में)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 176 ☆

☆ गीत – समा गया तुम में ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

समा गया है तुममें

यह विश्व सारा

भरम पाल तुमने

पसारा पसारा

*

जो आया, गया वह

बचा है न कोई

अजर कौन कहिये?

अमर है न कोई

जनम बीज ने ही

मरण बेल बोई

बनाया गया तुमसे

यह विश्व सारा

भरम पाल तुमने

पसारा पसारा

*

किसे, किस तरह, कब

कहाँ पकड़ फाँसे

यही सोच खुद को

दिये व्यर्थ झाँसे

सम्हाले तो पाया

नहीं शेष साँसें

तुम्हारी ही खातिर है

यह विश्व सारा

वहम पाल तुमने

पसारा पसारा

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१७-२-२०१७

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #225 – 112 – “आफ़त तो अब तय ठहरी…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “आफ़त तो अब तय ठहरी…” ।)

? ग़ज़ल # 112 – “आफ़त तो अब तय ठहरी…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

इश्क़ का रोग लगा लिया,

ग़ैर को अपना बना लिया।

आफ़त तो अब तय ठहरी,

फन्दा गले में लगा लिया।

आग  जाने  कब  बुझेगी,

दामन ख़ुद ही जला लिया।

जब उसने मुँह फेर लिया,

अपने ग़म से सिला लिया।

बोए  नेकी  ने  ख़ार  भी,

आतिश सबका भला किया।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – बारिश ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – बारिश ? ?

देखी तो होगी

तुमने बारिश,

सारा गर्द झाड़-पोंछकर

प्रकृति का

मूल शृंगार लौटाती;

उसे हरा बनाती,

बस कुछ इसी तरह है

मेरी आँख का पानी

और उसका बरसना,

सारा गर्द धोकर

अपनों के दिए व्रण सुखाकर;

फिर भर देता है

पुतलियों में अनंत स्वप्न,

स्वप्न देखतेे रहने की

अविराम अभिप्सा

और यथार्थ कर सकने की

अदम्य जिजीविषा..!

चौकन्ना

 

सीने की ठक-ठक

के बीच

कभी-कभार

मुझे सुनाई देती है

मृत्यु की भी

खट-खट,  

ठक-ठक..

खट-खट..,

कान शायद अब

चौकन्ना हुए हैं

अन्यथा

ठक-ठक और

खट-खट तो

जन्म से ही

चल रही हैं साथ;

चल रही हैं अनवरत..,

आदमी अगर

निरंतर सुनता रहे

ठक-ठक

खट-खट

साथ-साथ;

बहुत संभव है

उसकी सोच निखर जाए,

खट-खट तक

पहुँचने से पहले

ठक-ठक

सँवर जाए..!

© संजय भारद्वाज  

(रात्रि 9 बजे, दि. 3.10.2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ मार्गशीर्ष साधना सम्पन्न हुई। अगली साधना की सूचना हम शीघ्र करेंगे। 🕉️ 💥

नुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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