श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “# मधुमास  #”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 167 ☆

☆ # मधुमास #

पतझड़ का मौसम बीत गया

रुत बसंत की आई है

भीनी भीनी मनमोहक सुगंध

संग संग लाई है

*

नई कोपलें फूट रही हैं

हर्षित मन को लूट रही हैं

नये नये परिधानों में सजकर

मेलों में तरूणाई जुट रही है

*

हर मन में नयी उमंग है

पुलकित सबके अंग अंग है

मादक बयार बह रही है

नयनों में लहराती नयी तरंग है

*

आम्रवृक्ष कैसे बौराये हैं

पीली पीली सरसों मन भाये है

पलाश के फूलों का सौंदर्य

जंगल में आग लगाये है

*

यह मौसम है राग रंग का

साजन-सजनी के संग का

प्रीत में डूबा यह मधुमास

है प्रणय में व्याकुल अंग अंग का

*

नये सपने, नयी आशाऐं

लेकर आया यह मधुमास

टूटे, जख्मी हुए दिलों में

जागी है जीने की आस

क्या पीड़ादायक पतझड़ की रुत

अब सचमुच बीत गई है ?

क्या उल्लासित बसंत बहार का

वाकई होगा अब एहसास ? /

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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