हिन्दी साहित्य – कविता ☆ दोहे – इतराता है चाँद  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ दोहे – इतराता है चाँद  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

इतराता है चाँद तो,पा तुझ जैसा रूप।
सच,तेरा मुखड़ा लगे,हर पल मुझे अनूप।।
चाँद बहुत ही है मधुर,इतराता भी ख़ूब।
जो भी देखे,रूप में,वह जाता है डूब।।
कभी चाँद है पूर्णिमा,कभी चाँद है ईद।
कभी चौथ करवा बने,करते हैं सब दीद।।
जिसकी चाहत वह सदा,इतराता है नित्य।
आसमान,तारे सुखद,चाँद और आदित्य।।
इतराने में है अदा,इतराने में प्यार।
इतराना चंचल लगे,अंतस का अभिसार।।
इतराकर के चाँद तो,देता यह पैग़ाम।
जो तेरे उर में बसा,प्रीति उसी के नाम।।
इतराकर के चाँद तो,ले बदली को ओट।
पर सच उसके प्यार में,किंचित भी नहिं खोट।।
कितना प्यार चाँद है,कितना प्यारा प्यार।
नेह नित्य होकर फलित,करे सरस संसार।।
छत से देखो तो करे,चाँद आपसे बात।
कितना प्यारा दोस्त की,मिली हमें सौगात।।
अमिय भरा है चाँद में,किरणों का अम्बार।
चाँद रखे युग से यहाँ,अपनेपन का सार।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # 110 – गीत – सदियों का संतोष ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – सदियों का संतोष।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 110 – गीत – सदियों का संतोष  ✍

क्षण भर का वह मिलन कि जैसे सदियों का संतोष दे गया।

एक अकेला और उपेक्षित आखिर कब तक रहता

बंद अँधेरे तहखाने में किससे क्या कुछ कहता

एक मृदुल स्पर्श तुम्हारा गई मूर्छना होश दे गया ।

क्षण भर का वह मिलन कि जैसे सदियों का संतोष दे गया।

सूरज डूबा चंदा डूबा पड़ा न कुछ दिखलाई

टिम टिम करते जुगनू ने ही जीवन राह सुझाई।

एक झलक दिखलाई उसने लगा कि संचित कोष दे गया।

क्षण भर का वह  मिलन की जैसे सदियों का संतोष दे गया।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव-गीत # 112 – “वह कबीर बन अलख…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण अभिनवगीत – “वह कबीर बन अलख।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 112 ☆।। अभिनव-गीत ।। ☆

☆ || “वह कबीर बन अलख” || ☆

तुम्हें भले ऐसा कह

लेना लगे, सुखद है

किन्तु गीत को निम्न

बताना बहुत दुखद है

 

आओ आगे बढो चलो

पर अनुशासन में

थोड़ा संयत बनो यहाँ

पर सम्भाषण में

 

सदा संतुलित होकर

चलते रहो समय सँग

किन्तु बहुत संकीर्ण

मिली ये तुम्हें रसद है

 

कई शील वानों के

दुविधा में चरित्र हैं

दुरभिसंधियों में विच –

लित कुछ सगे मित्र हैं

 

जो लेता आया उधार

सम्वेदन सारे

आज चाहता मुझसे

वह सम्बन्ध नकद है

 

दिन भर आतम परमा –

तम के लिये भटकता

अब निगाह में सज्जन

बन कर सदा अटकता

 

वह कबीर बन अलख

जगाने को आमादा

और गा रहा निर्गुण –

वाला वही सबद है

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

15-10-2022

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सहोदर ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रीमहालक्ष्मी साधना 🌻

दीपावली निमित्त श्रीमहालक्ष्मी साधना, कल शनिवार 15 अक्टूबर को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी तदनुसार शनिवार 22 अक्टूबर तक चलेगी।इस साधना का मंत्र होगा-

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – सहोदर ??

अमृत से हलाहल तक,

कंठ में लिए बहती धारा,

भीतर थपेड़े मारती लहरें,

बाहर सहज शांत किनारा,

उसकी-मेरी वेदना में

सहोदर अपनापा निकला,

मेरा और समुद्र का दुख

एकदम एक-सा निकला..!

© संजय भारद्वाज

(प्रात: 7:44 बजे, 29 मई 2021)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 102 ☆ # जलजला… # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “#जलजला …#”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 102 ☆

☆ # जलजला… # ☆ 

सब की आंखों में छाया कोहरा है

वक्त के हाथों में इन्सान मोहरा है

रिश्ते रोज बनते हैं , बिगड़ते हैं

कुछ लोगों का चरित्र यहां दोहरा है

 

चेहरे पर हंसी रहती है

आंखें कुछ और कहती है

दर्द सीने में छिपाकर हरदम

बेबसी सब कुछ सहती है

 

किससे कोई फरियाद करे

किसे छुपाए, किसे याद करे

कौन समझेगा यहाँ मजबूरियां 

कौन अपना समय बर्बाद करे

 

होंठों को बंद कर के

जी रहे हैं हम

कदम कदम पर

जहर पी रहे हैं हम

कायर बन गये हैं

 ज़माने को देखकर

मुर्दा बन कर जुबां को

सी रहे हैं हम

 

अब तो ज़ुल्म की

इंतिहा हो गई है

न्याय की उम्मीद

थक-हारकर सो गई है

ज़लज़ला आयेगा

यह तो तय है

हर सीने में आग

बारूद बो गई है /

 

© श्याम खापर्डे

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 113 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

?  Anonymous Litterateur of Social Media # 113 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 113) ?

Captain Pravin Raghuvanshi —an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. He was involved in various Artificial Intelligence and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’.

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc. Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi.  He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper.  The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Award and C-in-C Commendation.

Captain Pravin Raghuvanshi is also an IIM Ahmedabad alumnus. His latest quest involves social media, which is filled with rich anonymous literature of nameless writers, shared on different platforms, like,  WhatsApp / Facebook / Twitter / Your quotes / Instagram etc. in Hindi and Urdu, he has taken the mantle of translating them as a mission for the enjoyment of the global readers. Enjoy some of the Urdu poetry couplets as translated by him.

हम ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आदरणीय कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी के “कविता पाठ” का लिंक साझा कर रहे हैं। कृपया आत्मसात करें।

फेसबुक पेज लिंक  >>कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी का “कविता पाठ” 

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 113 ?

Solitude ☆

 कभी फुर्सत से मिलोगे

तो बताएँगे तुम्हें कि…

तन्हाई भी कितनी

शिद्दत से काटी है हमने…!

If you ever meet me

at leisure, I will tell you

With what severity I’ve

dealt with my loneliness…!

 हर धड़कते दिल को

लोग दिल समझते हैं,

इक उम्र बीत जाती है,

पत्थर को दिल बनाने में…!

 

 People consider every

beating-heart, a heart…

An era passes by in making

a stone into a heart…!

 

 बहुत मुद्दतों के बाद

तेरी तस्वीर क्या मिली…

यादों के पुराने ज़ख्म

फिर से रिसने लगे…!

 

What to say of finding your

picture after a long long time…

It triggered off oozing of the old

wounds of memories again…!

 मैं जब कहूँ

जरूरत नहीं तुम्हारी,

बस उस ही वक्त

तुम मेरे पास ठहर जाना…

 

Whenever I say

I don’t need you…

At that time only

just be with me…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 112 ☆ सॉनेट ~ शरतचंद्र… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित सॉनेट ~ शरत्चंद्र…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 112 ☆ 

☆ सॉनेट ~ शरत्चंद्र ☆

शरत्चंद्र की शुक्ल स्मृति से

मन नीलाभ गगन हो हँसता

रश्मिरथी दे अमृत, झट से

कंकर हो शंकर भुज कसता

 

सलज उमा, गणपति आहट पा

मग्न साधना में हो जाती

ऋद्धि-सिद्धि माँ की चौखट आ

शीश नवा, माँ के जस गाती

 

हो संजीव सलिल लहरें उठ

गौरी पग छू सकुँच ठिठकती

अंजुरी भर कर पान उमा झुक

शिव को भिगा रिझाकर हँसती

 

शुक्ल स्मृति पायस सब जग को

दे अमृत कण शरत्चंद्र का

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९-१०-२०२२, १५-४३

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिंदी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #161 – 47 – “वो जो चले गए और भी याद आने लगे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “वो जो चले गए और भी याद आने लगे …”)

? ग़ज़ल # 47 – “वो जो चले गए और भी याद आने लगे…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

भूलता नहीं शमशान का ख़ौफ़नाक मंजर भुलाने से,

वो जो चले गए और भी याद आने लगे भुलाने से।

कमरा वीराँ हो गया, फ़क़त इक तस्वीर हटाने से,

दिल आबाद कहाँ रह पाया, उनकी याद भुलाने से।

घुट-घुट कर मरना लिखा था उनकी क़िस्मत में,

अब कहाँ लौट कर आएँगे वे बदनसीब बुलाने से।

हर शहर हर गाँव हर नगर में हाहाकर मच रहा,

एम्बुलेंस डॉक्टर दवा कोई नहीं आया बुलाने से।

भ्रष्टाचार कालाबाज़ारी खेला खुलेआम नंगा नाच,

अखंड राष्ट्र विश्वगुरु ठेकेदार सहमे कुलबुलाने से।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 38 ☆ मुक्तक ।। तेरी ही दी खुशियां, आती दुगनी वापिस होकर ।।☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस”☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

(बहुमुखी प्रतिभा के धनी  श्री एस के कपूर “श्री हंस” जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। आप कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। साहित्य एवं सामाजिक सेवाओं में आपका विशेष योगदान हैं।  आप प्रत्येक शनिवार श्री एस के कपूर जी की रचना आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण मुक्तक ।।तेरी ही दी खुशियां, आती दुगनी वापिस होकर।।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 38 ☆

☆ मुक्तक ☆ ।। तेरी ही दी खुशियां, आती दुगनी वापिस होकर ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆ 

[1]

ख़ुशियाँ हर मोड़ पर कि, चाहो तो मौज मिलती है।

बात नहीं एक दिन की, ढूंढो तो रोज़ मिलती है।।

खुशी बसती नहीं कहीं दूर, बहुत ऊपर आसमान में।

तेरे भीतर बसेरा इनका, खोज वहीं पर मिलती है।।

[2]

बहुत आसान इन खुशियों, से रोज़ मुलाकात करना।

बांटते रहो फिर इन्हें, अपनों में आबाद  करना।।

यही छोटी मोटी खुशियां, लौट कर आती बड़ी होकर।

फिर इन खुशियों को तुझ, को ही है प्राप्त करना।।

[3]

मत ढूंढता रह हमेशा धन, दौलत की सौगातों  को।

निकाल कर ला हर बात, में खुशी की अफरातों  को।।

तेरी ही खुशी जान ले कि, दुगनी होकर आती वापिस।

बस अहसास कर महसूस, कर इन मुस्कराहटों को।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली

ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com

मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – तट ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रीमहालक्ष्मी साधना 🌻

दीपावली निमित्त श्रीमहालक्ष्मी साधना, कल शनिवार 15 अक्टूबर को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी तदनुसार शनिवार 22 अक्टूबर तक चलेगी।इस साधना का मंत्र होगा-

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – तट ??

भीतर तूफान के थपेड़े,

बाहर सैलानियों के फेरे..,

आशंका-संभावना में

समन्वय साधे रखता है,

कितने अंतर्विरोधों को

ये तट थामे रखता है..!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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