हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #155 ☆ भावना के दोहे… दीपक ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है  “भावना के दोहे…दीपक ।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 155 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे… दीपक  ☆

देखो कैसे साल भर, रहता है उजियार।

दीपों की ये रोशनी, दूर करे अंधियार।।

तमस घिरा चहुं ओर है, करते सोच विचार।

दीप प्यार का  जल गया, करता जग  उजियार।।

देव देहरी पूजते, द्वारे रखते दीप।

घर घर दीपक दे रहा, अपना यही प्रदीप।।

माटी मुझको ना समझ, मैं दीपक अनमोल।

कीमत मेरी जान लो, यह है मेरा मोल।

तेरे मेरे प्यार का, इक दीया है नाम।

दीपक तेरे नाम का, रोशन है अभिराम।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #142 ☆ सन्तोष के नीति दोहे ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  “सन्तोष के नीति दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 142 ☆

 ☆ सन्तोष के नीति दोहे ☆ श्री संतोष नेमा ☆

चढ़े न हंडी काठ की, कभी दूसरी बार

टूटा गर विस्वास तो, शक के खुलते द्वार

 

वहाँ कभी मत जाइये, जहाँ न हो संतोष

मिले न खुशियाँ मिलन से, लाख वहाँ धन कोष

 

परहित से बढ़कर नहीँ, कोई दूजा काम

प्रेम सभी से कर चलें, हर्षित तब श्रीराम

 

बचें अहम से हम सदा, यह अवगुण की खान

भ्रमित करे ये सभी को, और गिराता मान

 

कोशिश हम करते रहें, भले कठिन हो काम

मिलता है संतोष तब, और सुखद परिणाम

 

कल पर कभी न टालिए, करें आज आगाज

तभी मिलेगी सफलता, पूरे हों सब काज

 

करें न जीवन में कभी, निंदक सा व्यवहार

बचें सदा उपहास से, हों संयित आचार

 

दोष पराए मत गिनो, बनकर खुद भगवंत

अंदर खुद के झाँकिये, तभी भला हो अंत

 

कलियुग के इस दौर में, रखें न कोई आस

साथ समय के बदलते, टूट रहा विश्वास

 

पढ़ लिखकर अब कीजिये, स्वयं एक व्यवसाय

हुईं नोकरी लापता, खोजें दूजी आय

 

प्राणों से भी प्रिय समझ, सदा किया उपकार

पर कलियुग में मिल रहा, बदले में अपकार

 

कहते हैं संतोष हम, प्रेम डोर कमजोर

खीचें न कभी जोर से, उसकी कच्ची डोर

 

गहन साधना प्रेम है, सुगम न इसकी राह

लगन,तपस्या से मिले, गर हो सच्ची चाह

 

बंद करें मत कोशिशें, करते रहें प्रयास

तभी मिलेगी सफलता, हों मत कभी निराश

 

जीवन में खुद से बुरा, कौन यहाँ संतोष

झाँका हमने स्वयं जब, देखे अपने दोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – कविता ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रीमहालक्ष्मी साधना 🌻

दीपावली निमित्त श्रीमहालक्ष्मी साधना, कल शनिवार 15 अक्टूबर को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी तदनुसार शनिवार 22 अक्टूबर तक चलेगी।इस साधना का मंत्र होगा-

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – तूफान ??

वह प्याले में

उठे तूफान के

किस्से सुनाता रहा,

अपने भीतर,

एक समंदर लिए

मैं चुपचाप सुनता रहा..!

प्रातः 6:50 बजे, 17.10.18

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ समय चक्र # 132 ☆ हिंदी, हिंदुस्तान रे! ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक 122 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 7 दर्जन के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्य की दीर्घकालीन सेवाओं के लिए दिया जाना सर्वोच्च सम्मान ‘बाल साहित्य भारती’ (धनराशि ढाई लाख सहित)।  आदरणीय डॉ राकेश चक्र जी के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 संक्षिप्त परिचय – डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी।

आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 133 ☆

☆ हिंदी, हिंदुस्तान रे! ☆ डॉ राकेश ‘चक्र’ ☆

भारत की गौरव गाथा है

हिंदी , हिंदुस्तान रे!

गर्व से बोलो हिंदी भाषा

युग की वेद पुराण रे!

 

आजादी की बनी सहेली

शब्द – शब्द है एक पहेली

संघर्षों में तपी कनक – सी

अनगिन पीड़ा इसने झेली।।

 

हिंदी सीखें सब ही मन से

सभी बढ़ाओ ज्ञान रे!

भारत की गौरव गाथा है

हिंदी , हिंदुस्तान रे!

 

तुलसी, सूर , कबीर पढ़ो तुम

आपस में मत कभी लड़ो तुम

हिंदी भाषाओं का सागर

सत्य बात पर सदा अड़ो तुम।।

 

हिंदी जग की अमरबेल है

हिंदी जग की शान रे!

भारत की गौरव गाथा है

हिंदी , हिंदुस्तान रे!

 

भाषाएँ सब ज्ञान बढ़ातीं

नहीं किसी को कभी लड़ातीं

जीवन जीने का गुरु देतीं

सही मार्ग का पाठ पढ़ातीं।।

 

हिंदी सबको एक कराए

भाषा श्रेष्ठ महान रे!

भारत की गौरव गाथा है

हिंदी , हिंदुस्तान रे!

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य#154 ☆ तन्मय के दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है  “तन्मय के दोहे…”)

☆  तन्मय साहित्य # 154 ☆

☆ तन्मय के दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

मिल बैठें सब प्रेम से, हों भी भिन्न विचार।

कहें, सुनें, सम्मान दें, बढ़े  परस्पर  प्यार।।

 

बीजगणित के सूत्र सम, जटिल जगत संबंध।

उत्तर   संशय  ग्रस्त  है,    प्रश्न सभी  निर्बन्ध।।

 

छलनी छाने  जो मिले,  शब्द तौल कर बोल।

वशीकरण के मंत्र सम, मधुर वचन अनमोल।।

 

धैर्य  धर्म का मूल  है, सच  इसके  सोपान।

पकड़ मूल सच थाम लें, वे सद्ग्रही महान।।

 

सच को सच समझें तभी, साहस का संचार।

तन-मन नित हर्षित रहे, उपजे निश्छल प्यार।।

 

भीतर  बाहर एक से,  हैं जिनके व्यवहार।

जीवन में उनके सदा, बहती सुखद बयार।।

 

जब होता बेचैन मन, सब कुछ लगे उदास।

ऐसे  में  परिहास  भी,  लगता है उपहास।।

 

रोज  रात  मरते  रहे,  प्रातः  जीवन दान।

फिर भी हैं भूले हुए, खुद की ही पहचान।।

 

बंजारों-सा  दिन  ढला, मेहमानों-सी  रात।

रैन-दिवस में कब कहाँ, काल करेगा घात।।

 

जीवन पथ में  है कई,  प्रतिगामी अवरोध।

संकल्पित जो लक्ष्य है, रहे सिर्फ यह बोध।।

 

दुख के दरवाजे  घुसे,  आशाओं की  बेल।

लिपटे हरित बबूल से, दूध-छाँछ का खेल।।

 

सपनों के बाजार में, बिकें नहीं बिन मोल।

राह बनाएँ  स्वयं की, अपनी आँखें खोल।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – संग्रह ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रीमहालक्ष्मी साधना 🌻

दीपावली निमित्त श्रीमहालक्ष्मी साधना, कल शनिवार 15 अक्टूबर को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी तदनुसार शनिवार 22 अक्टूबर तक चलेगी।इस साधना का मंत्र होगा-

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – संग्रह ??

संग्रह दोनों ने किया,

उसका संग्रह

भीड़ जुटाकर भी,

उसे अकेला करता गया..,

मेरे संग्रह ने

एकाकीपन

पास फटकने न दिया,

अंतर तो रहा यारो!

उसने धनसंग्रह किया,

मैंने जनसंग्रह किया..!

© संजय भारद्वाज

रविवार 16 अप्रैल 2017, प्रातः 8:16 बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 44 ☆ स्वतंत्र कविता  – अभिव्यक्ति… ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता अभिव्यक्ति…”।

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 44 ✒️

? स्वतंत्र कविता  – अभिव्यक्ति…  ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

जीवन यात्रा में ,

आकांक्षाओं के महल ,

स्वयं बनते हैं ।

बनाए नहीं जाते ।।

 

अतृप्त जीवन की ,

असीम – अनंत ,

प्रसन्नता अपार ,

बिखर सी जाती है ,

किरचे – किरचे होकर ,

आत्मा का पा तिरस्कार ।

तब मन रोता है ज़ार- ज़ार।।

 

जैसे वर्षा का तेज़ बहाव ,

कचरे को ले जाता है बहा,

ऐसे ही शब्दों की वर्षा ,

बन जाती है कविता ,

बह जाती है अनुभवों की कटुता,

पीड़ा असहनीय व्यथा ।

थम जाती है विचारों की दशा ।।

 

मन को शांति प्रदान कर,

सहने की देती है शक्ति ।

स्वच्छ होता है हृदयाकाश,

विस्तार से करती है कविता,

मौन भावों की अभिव्यक्ति ।।

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ मनोज साहित्य # 55 – मनोज के दोहे…. ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  द्वारा आज प्रस्तुत है  “मनोज के दोहे। आप प्रत्येक मंगलवार को श्री मनोज जी की भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं।

✍ मनोज साहित्य # 55 – मनोज के दोहे….  

1 तृषा

मानव की यह तृषा ही, करवाती नित खोज।

संसाधन को जोड़कर, भरती मन में ओज।।

2 मृषा

नयन मृषा कब बोलते, मुख से निकलें बोल।

सच्चाई को परखने, दोनों को लें तौल।।

प्रिये मृषा मत बोलिए, बनती नहीं है बात।

पछताते हम उम्र भर, बस रोते दिन-रात।।

3 मृदा

कृषक मृदा पहचानता, बोता फिर है बीज।

लापरवाही यदि हुई , वह रोया नाचीज।।

4 मृणाल

कीचड़-बीच मृणाल ने, दिखलाया वह रूप।

पोखर सम्मानित हुआ, सबको लगा अनूप।।

पोखर में मृणाल खिले, मुग्ध हुआ संसार।

सूरज का पारा चढ़ा, प्रकृति करे मनुहार।।

5 तृषित

तृषित रहे जनता अगर, नेता वह बेकार।

स्वार्थी नेता डूबते, नाव फँसे मँझधार ।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सहोदर…(2) ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्रीमहालक्ष्मी साधना 🌻

दीपावली निमित्त श्रीमहालक्ष्मी साधना, कल शनिवार 15 अक्टूबर को आरम्भ होकर धन त्रयोदशी तदनुसार शनिवार 22 अक्टूबर तक चलेगी।इस साधना का मंत्र होगा-

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः।

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – सहोदर…(2) ??

न माटी मिली, न पानी,

न पोषण ही हिस्से आया,

सदा पत्थर चीरकर ही

अंकुरित हो पाया,

पूर्वजन्म, पुनर्जन्म का मिथक

हमारा यथार्थ निकला,

बोधिवृक्ष और मेरा प्रारब्ध

हरदम एक-सा निकला!

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – यही तो है जीवन हमारा … ☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’ ☆

डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’

 ☆ गीत –  यही तो है जीवन हमारा …☆ डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’ ☆ 

कुछ छूट जाता है

कुछ रह जाता है

कुछ  बॅट  जाता है

ज़िंदगी का सफर यूं ही कट जाता है

 

जो छूट गया

वो है मां का प्यारा सा आलिंगन

पिता का खुशी से कंपन

भाई बहन का लाढ़ मनुहार

सखियों के साथ खिलवाड़

ये छूट गया सब पीछे छूट गया

और साथ आ गया

मां के हाथों का नरम स्पर्श

पिता के माथे पर भविष्य की  चिंता का दर्श

नए जीवन से जुड़ा मेरा संघर्ष

सोचती हूं जीवन तो आते जाते रहेंगे

 

कुछ छूटेगा कुछ मिलेगा

कुछ का होगा बटवारा

यही तो है जीवन हमारा

 

© डॉ कामना तिवारी श्रीवास्तव ‘कौस्तुभ’

मो 9479774486

जबलपुर मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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