डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  एक भावप्रवण गीत – सदियों का संतोष।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 110 – गीत – सदियों का संतोष  ✍

क्षण भर का वह मिलन कि जैसे सदियों का संतोष दे गया।

एक अकेला और उपेक्षित आखिर कब तक रहता

बंद अँधेरे तहखाने में किससे क्या कुछ कहता

एक मृदुल स्पर्श तुम्हारा गई मूर्छना होश दे गया ।

क्षण भर का वह मिलन कि जैसे सदियों का संतोष दे गया।

सूरज डूबा चंदा डूबा पड़ा न कुछ दिखलाई

टिम टिम करते जुगनू ने ही जीवन राह सुझाई।

एक झलक दिखलाई उसने लगा कि संचित कोष दे गया।

क्षण भर का वह  मिलन की जैसे सदियों का संतोष दे गया।

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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